हमारा शोध
SSRF ने अध्यात्मशास्त्र के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए पी.आइ.पी. प्रणाली का उपयोग किया है । प्रस्तुत उदाहरण में हमने आध्यात्मिक दृष्टि से शुद्ध विषय वस्तु जैसे संतों के हस्तलेखन एवं सामान्य व्यक्ति के हस्तलेखन के चारों ओर के ऊर्जाक्षेत्र में अंतर को समझने का प्रयत्न किया है । हमने इसकी तुलना छठवीं इंद्रिय की सहायता से संतों के हस्तलेखन पर किए गए आध्यात्मिक शोध से भी की ।
चलचित्र की लिखित प्रतिलिपि
१. प्रस्तावना
नमस्कार, स्वागत है ।
हम गत २५ वर्षों से SSRF में आध्यात्मिक आयाम पर शोध कर रहे हैं । परंपरागत शोध में जैसे ५ ज्ञानेंद्रियों, बुद्धि एवं मन प्रयोग किया जाता है, वैसे ही आध्यात्मिक शोध छठवीं ज्ञानेंद्रिय का प्रयोग करके ही किया जा सकता है । साधना से प्राप्त प्रगत छठवीं इंद्रिय तकनीक के माध्यम से साधक आध्यात्मिक आयाम को अनुभव करने तथा उसमें देख पाने में सक्षम हैं और वे ऐसे तथ्य बताते हैं जो किसी सामान्य जन के लिए संभव नहीं है । आध्यात्मिक आयाम से हमारा तात्पर्य स्वर्ग, नरक, देवदूत, अनिष्ट शक्तियां एवं प्रभामंडलों के संसार से है ।
हाल ही में बायोफीडबैक यंत्रों में आर्इ नवीनताओं का उपयोग SSRF ने विविध उद्दीपकों का हमारे प्रभामंडलों, हमारे ऊर्जातंत्र तथा चक्रों पर होनवाले प्रभाव के अध्ययन हेतु किया है । आध्यात्मिक शोधों को भौतिक स्तर पर सिद्ध करने के लिए इसका अत्यंत वृहद् लाभ हुआ है । उदाहरण के लिए, छठवीं ज्ञानेंद्रिय की सहायता से हमें यह विदित हुआ था कि कुछ वस्तुओं में उपचारात्मक क्षमता है । उनमें से एक है आध्यत्मिक दृष्टि से अतिविकसित व्यक्ति अर्थात संतों के हस्तलेखन । संत किसे कहते हैं यह जानने के लिए कृपया हमारे जालस्थल पर देखें । जब साधकों ने संत द्वारा लिखित कागज को हाथ में लिया तब कुछ ही क्षणों में जैविक प्रतिपुष्टि यंत्र ने उनके चक्रों एवं शक्ति वलय में विशिष्ट परिवर्तन प्रदर्शित किया । इससे यह भी सिद्ध होता है कि साधना से उत्कृष्ट स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है एवं एक व्यक्ति अपनी मात्र उपस्थिति से अनेक लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है ।
इस प्रयोग में जो यंत्र हमने उपयोग में लाया उसे पी.आर्इ.पी. कहते हैं, जिसका पूरा नाम है, पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफॅरेंस फोटोग्राफी । इस यंत्र में किरीलियन फोटोग्राफी जैसी तकनीक प्रयोग की जाती है तथा इससे वस्तुओं एवं व्यक्तियों के प्रभामंडलों के परिवर्तन का अध्ययन किया जा सकता है ।
बायोफील्ड साइंसेस के केंद्र से डॉ. थॉर्नटन स्ट्रीटर एवं डॉ. अनिरुद्ध गांधी की सहायता से पी.आर्इ.पी. तकनीक का उपयोग कर हम अनेक अध्ययन कर पाए ।
२. पीआर्इपी यंत्र से निर्मित चित्रों से प्राप्त जानकारी का स्वरूप
हम आपके समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे जिसमें हमने विविध आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति के हस्तलेखन के चारोंओर विदयमान ऊर्जाक्षेत्र की जांच की । हमने आध्यात्मिक स्तर के आधार पर एक व्यक्ति के हस्तलेखन से प्रक्षेपित सकारात्मकता तथा नकारात्मकता की तुलना पर ध्यान देने हेतु प्रयास किया । किसी व्यक्ति का हस्तलेखन उसकी आध्यात्मिक सकारात्मकता तथा नकारात्मकता का प्रतिबिंब होता है ।
यह SSRF आध्यात्मिक शोधकेंद्र में नियमित साधना करनेवाले एक औसत साधक के हस्तलेखन के चारोंओर विदयमान ऊर्जाक्षेत्र का एक उदाहरण है । हमने इसे एक छोटे लिफाफे में रखा और उस हस्तलेखनवाले छोटे लिफाफे को एक बडे श्वेत लिफाफे में रखा ।
रंग तथा उसकी व्याख्या के आधार पर नारंगी, लाल तथा बैंगनी नकारात्मकता दर्शाते हैं तथा श्वेत, पीला तथा हरा रंग सकारात्मकता दर्शाते हैं ।
इस पीआर्इपी चित्र में ध्यान दें लिफाफे के आसपास के क्षेत्र में हरा रंग फैल रहा है । आप मेज पर अधिक मात्रा में हरा रंग, मेज के चारों ओर लाल तथा गुलाबी रंग तथा लिफाफे पर पीला तथा लाल रंग देख सकते हैं ।
३. पीआर्इपीद्वारा देखे गए एक सामान्य व्यक्ति के हस्तलेखन तथा एक संत के हस्तलेखन में तुलना
प्रायः सुंदर दिखने के कारण हमें किसी का हस्तलेखन अच्छा लगता है । हमारे लिए अच्छा दिखने का अर्थ है, प्रत्येक अक्षर का योग्य पद्धति से लिखा जाना । यहां, हमारी आंखें अक्षरों की सुंदरता देखती है और हमारे मन को वह अच्छा लगता है; किंतु साधना करने से हमें उससे संबंधित सूक्ष्म स्पंदनों का भी बोध होने लगता है ।
संत का हस्तलेखन देखने में कितना भी बुरा क्यों न हो, वैसे व्यक्ति को वह अच्छा ही लगेगा । संत के हस्तलेखन से चैतन्य की अनुभूति होती है ।
परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी FHA तथा SSRF दोनों के प्रेरणास्रोत हैं । उपरोक्त पद्धति से परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के हस्तलेखन का प्रयोग किया गया ।
बांयी ओर रखा हस्तलेखन का चित्र एक औसत आध्यात्मिक स्तरवाले साधक का है और उसकी दांयी ओर परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी का । जब हमने उन दोनों चित्रों की तुलना की,
१. परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के हस्तलेखन का पीआर्इपी चित्र मेज पर रखे प्रयोज्य वस्तु के आसपास के क्षेत्र में हरे रंग के माध्यम से अत्यधिक सकारात्मकता दर्शाता है ।
२. साथ ही, परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के हस्तलेखन के चित्र में नकारात्मकता को दर्शाता लाल तथा बैंगनी रंग औसत साधक के चित्र की तुलना में अत्यल्प मात्रा में है ।
३. अंत में, जैसे कि आप दोनों चित्रों में देख सकते हैं, सकारात्मकता को दर्शानेवाला पीला रंग दिखार्इ दे रहा है । नारंगी रंग जो नकारात्मक है, वह परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के चित्र में नहीं परंतु औसत साधक के चित्र में दिख रहा है ।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि यंत्रों जैसे पीआर्इपी से प्राप्त पाठ्यांक (रीडिंग) छठवीं इंद्रियद्वारा प्राप्त निरीक्षण का पर्याय नहीं हो सकते । यंत्र आध्यात्मिक आयाम के सर्वाधिक स्थूल अथवा ठोस भाग का ही मापन कर सकता है । इस प्रयोग द्वारा प्राप्त दृश्यात्मक चित्र तथा निष्कर्ष ज्ञान का केवल सतही प्रस्तुतीकरण है, जो वास्तविक अनुभूति से प्राप्त किया जा सकता है । इस प्रयोग तथा दृश्यात्मक भाग को दिखाने का मुख्य उद्देश्य है :
१. कि व्यक्ति के चारों ओर का प्रभामंडल (ऑरा) वास्तविक होता है और कुछ मात्रा में इसे देखा भी जा सकता है ।
२. तथा विज्ञान मानवीय ऊर्जा क्षेत्र अथवा प्रभामंडल को समझने का प्रयास कर रहा है ।
किसी मानव-निर्मित यंत्र द्वारा बनाए गए किसी संत का प्रभामंडल वास्तव में समान नहीं हो सकता ।
४. छठवीं इंद्रिय के माध्यम से देखे गए संत का हस्तलेखन
आधुनिक विज्ञान में हम पंचज्ञानेंद्रयों, मन तथा बुद्धि के माध्यम से शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा भावना एवं विचारों के रूप में निरीक्षण तथा अवलोकन करते हैं तथा निष्कर्ष निकालते हैं ।
किंतु आध्यात्मिक शोध में, सूक्ष्म ध्वनि, सूक्ष्म स्पर्श, सूक्ष्म गंध, प्रकाश तथा स्पंदनों का सूक्ष्म दृश्य तथा वैश्विक मन तथा बुद्धि से संपर्क करने की क्षमता द्वारा निरीक्षण, अवलोकन तथा निष्कर्ष निकाला जाता है ।
हमारे कुछ साधक आध्यात्मिक आयाम अथवा आध्यात्मिक संसार में उसी समान देख सकते हैं जैसे हम इस स्थूल जगत को देखते हैं । वे जो देखते हैं उसे चित्रित करते हैं और हम उसे सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र कहते हैं । सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित ये चित्र वस्तु अथवा घटना से संबंधित सूक्ष्म स्तर पर देखे गए पहलुओं का चित्रमय प्रस्तुतीकरण है ।
सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित आगे दर्शाया गया चित्र परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के हस्तलेखन का है । इससे चैतन्य के सूक्ष्म स्पंदन समझे जा सकते हैं ।
१. वाक्यों से चैतन्य पीले रंग में प्रवाहित होता दिख रहा है ।
२. वाक्यों के शब्दों से शक्ति भी प्रक्षेपित होती दिख रही है ।
३. चैतन्य का प्रभामंडल हस्तलेख के चारों ओर निर्मित हुआ है तथा उसका संचारण भी हो रहा है । कागज के चारों कोने से चैतन्य संचारित हुआ है, तथा
४. शब्दों से ऊपर की दिशा में चैतन्य की तरंगें संचारित हुर्इ हैं और आनंद के गुलाबी कण वातावरण में संचारित हुए ।
आप देख सकते हैं कि यंत्र द्वारा तथा छठवीं इंद्रिय द्वारा ज्ञात हुए निरिक्षणों में कितना अंतर है ।
इसीप्रकार, हमने मानवीय नाखून, केश तथा विभिन्न श्रेणीवाले साधकों के छायाचित्रों के ऊर्जाक्षेत्र का तुलनात्मक अध्ययन किया है ।
५. सारांश तथा मुख्य निष्कर्ष
इस प्रयोग द्वारा हम आपके समक्ष कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु रखना चाहेंगे ।
१. इन प्रयोगों से सिद्ध होता है कि एक संत तथा साधना करनेवाले एक सामान्य साधक एवं कोर्इ भी साधना न करनेवाले व्यक्ति में अत्यधिक अंतर होता है ।
२. अनेक लोग संतों के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते । पीआर्इपी चित्रों की सकारात्मकता को समझते हुए हमारी आशा है कि इससे लोगों को प्रयोज्य के संदर्भ में शोध करने तथा और अधिक सीखने हेतु उनकी जिज्ञासा को प्रेरणा मिलेगी और वे स्वयं भी संतों समान आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करेंगे ।
३. साधना आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति संत के आध्यात्मिक स्तर तक पहुंच सकता है और वातावरण को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है ।
हमें आशा है कि सूक्ष्म प्रभामंडल की इस व्याख्या ने इस विषय के प्रति आपकी जिज्ञासा बढा दी होगी । अधिक जानकारी के लिए हमारा जालस्थल देखें – www.spiritualresearchfoundation.org
इस वीडियो को देखकर आपको भी अवश्य बहुत सीखने को मिला होगा, ऐसी हमारी आशा है क्योंकि इसे बनाते समय हमें भी बहुत सीखने को मिला ।
आपकी आध्यात्मिक यात्रा हेतु हार्दिक शुभकामनाओं के साथ नमस्कार ।