प्रकरण अध्ययन (केस-स्टडी) : हृदय की शल्य क्रिया के बिना ही श्री.शिवाजी वटकर का हृदय रोग ठीक होना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचार भी करने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

१. श्री.शिवाजी वटकर के हृदय रोग का सारांश

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श्री. वटकर मुंबई में, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के सहायक जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत थे । वे वर्ष १९८९ से साधना कर रहे हैं । श्री. वटकर का प्रकरण अध्ययन (केस स्टडी), लक्षण तथा उन्हें ठीक करनेवाले आध्यात्मिक उपचार उनके ही शब्दों में नीचे प्रस्तुत है ।

मुझे कुछ महीनों से छाती में वेदना हो रही थी । जब इसकी तीव्रता बढी, तब १२ दिसंबर २००० को मैंने ई.सी.जी. करवाई । मेरे पारिवारिक चिकित्सक ने आश्‍वासन दिया कि मेरा रक्त दबाव (ब्लड प्रेशर) तथा ई.सी.जी. सामान्य है ।

जब छाती की वेदना वैसी बनी रही तो मैंने वह ई.सी.जी. (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम – इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ द्वारा उत्पादित हृदय चक्र की एक चित्रमय रिकॉर्डिंग) एक कार्डियोलॉजिस्ट (हृदय रोग विशेषज्ञ ) को परामर्श लेने हेतु दिखार्इ । उन्होंने मुझे एक दबाव जांच (स्ट्रेस टेस्ट) करवाने के लिए कहा । सामान्यतः यह जांच १५ से २० मिनटों में पूर्ण होती है, पर १५ फरवरी २००० को जब वह जांच चल रही थी, परामर्श देनेवाले चिकित्सक ने ४-५ मिनटों में ही जांच रोक दी तथा बताया कि मुझे गंभीर हृदय रोग है ।

कृपया दबाव जांच (स्ट्रेस टेस्ट) के परिणाम देखने के लिए यहां क्लिक करें – परिणाम १ तथा परिणाम २

जब मैंने दबाव जांच (स्ट्रेस टेस्ट) के परिणाम एक अन्य कार्डियोलॉजिस्ट को दिखाए, तब उन्होंने कहा कि यदि मैं शल्यक्रिया के लिए तैयार हूं तो एंजियोथेरेपी (वाहिकाचित्रण; हृदय कक्षों के साथ रक्त वाहिनियों के भीतर की स्थिति के अवलोकन हेतु एक जांच) करवाने के लिए । उन्होंने मुझे चिकित्सीय उपचार संबंधी परामर्श दिए तथा दो सप्ताह के उपरांत पुनः मिलने के लिए कहा । उसी दिन मैंने परम पूज्य डॉ. आठवलेजी को दूरभाष कर सारी स्थिति बताई ।

जब मैं उन्हें घटना बता रहा था, उन्होंने मुझे बीच में ही रोककर कहा, आपको कोई हृदय रोग नहीं है । यह समस्या प्राणशक्ति घट जाने से हुई है । आयुर्वेदिक औषधि आरंभ कीजिए, आराम कीजिए तथा सत्सेवा करते रहें।

मैंने परामर्श के अनुसार औषधियां लेनी आरंभ की तथा एक सप्ताह तक आराम किया । छाती की वेदना घटने के स्थान पर बढती गई । मेरे पडोस में रहनेवाले एक विशेषज्ञ चिकित्सक ने मुझे कुछ और जांच तथा उसके अनुसार उपचार करवाने तथा पैदल घूमने जाने के लिए भी कहा । उन्होंने मुझे आश्वासन भी दिया कि व्यायाम से मेरा रक्त संचारण (प्राकृतिक रक्त-पथ) आरंभ हो जाएगा । मेरे मित्रों तथा कार्यालय के फीजिसियनों ने भी मुझे आगे की जांच करवाने का परामर्श दिया । २२ फरवरी २०००, को मुझे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी से त्वरित संपर्क करने की सूचना मिली । मैंने यह सोचकर उन्हें संपर्क किया कि संभवतः न्यास (ट्रस्ट) की गतिविधियों संबंधी कुछ महत्वपूर्ण कार्य होगा ।

उनका पहला वाक्य था, मैंने जो १६ फरवरी २००० को इमेल भेजा था क्या आप उसके अनुसार आध्यात्मिक उपचार के लिए परम पूज्य जोशीबाबा के पास गए थे ?

मैंने कहा, मुझे यह सूचना नहीं मिली थी । इसलिए आध्यात्मिक उपचार के लिए मैं उनके पास नहीं गया । अब मैं उनके पास जाऊंगा । तब मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं इसी बीच आगे की जांचों के लिए अस्पताल में भर्ती हो सकता हूं, उन्होंने हां कहा ।

२३ फरवरी २००० को मैं मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती हुआ । अस्पताल में रहने के २-३ दिनों में मेरी अनेक प्रकार की चिकित्सीय जांच हुई ।

२ मार्च २००० को लीलावती अस्पताल से मिला डिस्चार्ज कार्ड देखने के लिए क्लिक करें (देखें १ तथा देखें २), जिसमें हृदय की अरक्तता का निदान, रोग का इतिहास और जांच के परिणाम दिए हैं ।

जांच के ब्यौरे (रिपोर्ट) से यह स्पष्ट था कि, मेरे हृदय में पर्याप्त मात्रा में रक्त संचारण नहीं हो रहा था, जिससे मेरा जीवन गंभीर संकट में था और यह केवल औषधियों से ठीक नहीं हो सकता था । उन जांचों (स्कैनिंग तथा न्यूक्लियर मेडिसीन) क्रमवीक्षण और परमाणु चिकित्सा की सत्यता लगभग ९० प्रतिशत है । परामर्श देनेवाले चिकित्सक ने मुझे बताया कि आगे के उपचार निश्चित करने के लिए मुझे एंजियोथेरेपी (रक्त वाहिनियों में सीधे उपचार; इसका प्रयाेग वाहिनियों के भीतर रक्त का थक्का – थ्रोम्बस भंग करने के लिए या एक ट्यूमर के रक्त की आपूर्ति में सीधे औषधि पहुंचाने के लिए किया जाता है।) करवानी होगी । गुरु की कृपा से जितने भी चिकित्सकों से मैंने परामर्श लिया वे सभी सात्त्विक अथवा सत्वप्रधान थे; किंतु वे केवल स्थूल परीक्षणों के आधार पर उपचार बता रहे थे । मैं थोडा शंकाग्रस्त तथा चिंतित था । मैंने त्वरित परम पूज्य जोशीबाबा द्वारा बताए गए आध्यात्मिक उपचार करने आरंभ किए ।

उन्होंने कहा, तुम एंजियोथेरेपी करवाओ । उसके उपरांत क्या करना है, हम निश्‍चित करेंगे; तुम्हें उस विषय में कुछ भी नहीं करना है ।

२५ फरवरी २००० को किए गए मायोकार्डियल परफ्यूजन इमेज (हृदय की मांसपेशियों में रक्त के फैलाव का परीक्षण) तथा मायोकार्डियल परफ्यूजन स्कैन रिपोर्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें ।

आगे की जांच तथा उपचार करवाने से पहले मैंने २७ फरवरी २००० को परम पूज्य डॉ. आठवलेजी से बात की । उन्होंने कहा, एंजियोथेरेपी करवा लें । यदि चिकित्सक शल्यक्रिया (कॉरोनरी बायपास; हृदय धमनी उपमार्ग शल्यक्रिया) करवाने की सलाह दें, तो करवा लें । शारीरिक रोगों के उपचार के लिए हम अपनी आध्यात्मिक शक्ति व्यर्थ नहीं करना चाहते । हमें भविष्य में अनेक काम करने हैं तथा हम आपका समय व्यर्थ नहीं करना चाहते । आपको दिया गया भगवान का नामजप करें तथा परम पूज्य जोशीबाबा द्वारा बताए गए आध्यात्मिक उपचार करते रहें ।

२७ फरवरी २००० को किए गए मायोकार्डियल परफ्यूजन स्कैन रिपोर्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें । दोनों रिपोर्ट में हृदय के पूर्वकाल और अवर भाग में प्रतिवर्ती अरक्तता दिखाई दी ।

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के शब्दों से मैं निश्‍चितं हो गया तथा जो भी होगा ईश्वर की इच्छा से होगा यह निर्णय लिया । २९ फरवरी २००० को मुझे एंजियोथेरेपी के लिए शल्यकर्म कक्ष में ले जाया गया । अपने गुरु परम पूज्य भक्तराज महाराजी तथापरम पूज्य डॉ. आठवलेजी का स्मरण कर मैं आंखें बंद कर अपने कुलदेवता का नामस्मरण करने लगा । यद्यपि मैं वहां चल रही प्रक्रिया को मॉनिटर पर देख सकता था, तब भी मैंने ना कुछ देखा ना ही सुना । १५ मिनट के उपरांत चिकित्सक, विस्मयपूर्वक बाेले, बधाई हो ! आपकी रक्त वाहिनियों (ब्लड वेसेल्स) में १ प्रतिशत भी अवरोध नहीं है । एक ५४ वर्षीय वृद्ध व्यक्ति की रक्तवाहिनियों में प्रायः ५०-७० प्रतिशत अवरोध पाया जाता है । ऐसी अवरोध रहित रक्त नलिकाएं दुर्लभ होती हैं । एंजियोप्लास्टी (रक्तवाहिकासंधान; शल्य चिकित्सा की मरम्मत या एक रक्त वाहिका की अनब्लॉक करने, विशेष रूप से एक कोरोनरी धमनी अनब्लॉक करने की प्रक्रिया) अथवा बायपास सर्जरी करवाने की कोई आवश्यकता नहीं है । आपको कोई भी हृदयसंबंधी समस्या नहीं है । मैंने कहा कि यह मात्र मेरे गुरु की कृपा के कारण हुआ है ।

देखने के लिए यहां क्लिक करें :

  • २९ फरवरी २००० को किया गया Cardiac Catheterisation report (एक चिकित्सा प्रक्रिया जिसमें एक लंबी, पतली, लचीली ट्यूब (कैथेटर), हाथ, ऊपरी जांघ या गर्दन की एक रक्त वाहिका में डालकर हृदय में पहुंचाई जाती है ।) (देखें १ तथा देखें २) जिसमें सामान्य कोरोनरी धमनियां (normal coronary arteries) दिख रही हैं ।
  • २९ फरवरी २००० को किए गए ई.सी.जी.रिपोर्ट जिसमें सबकुछ सामान्य दिखा । (देखें १, देखें २, देखें ३ तथा देखें ४)

मेरे पुनः पुनः प्रश्न पूछे जाने पर भी चिकित्सक, इस संदर्भ में शरीररचना शास्त्र के आधार पर मुझे संतोषप्रद उत्तर नहीं दे सके । मैंने त्वरित यह बताने के लिए परम पूज्य जोशीबाबा को दूरभाष किया । उन्होंने कहा मैं पहले ही तुम्हें बता चुका था कि तुम्हें कोई चिकित्सीय समस्या नहीं है । तुम्हारे माध्यम से अनेक कार्य करवाने का ईश्वर का नियोजन है । यह सब तुम्हारी श्रद्धा के कारण हुआ ।

– श्री. शिवाजी वटकर, मुंबई, भारत.

. श्री शिवाजी वटकर के प्रकरणअध्ययन का आध्यात्मिक दृष्टिकोण

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, किसी भी रोग के आध्यात्मिक मूल कारण के दो पहलू होते हैं :

इसलिए, प्रसंग के अनुसार तमोगुण को घटाकर सत्वगुण में वृद्धि करने साथ ही विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार अनिष्ट शक्तियों के कारण हो रही समस्याओं को दूर करने के प्रयास पर आधारित होते हैं ।

आध्यात्मिक निदान

श्री. वटकर के प्रसंग में उनके हृदय रोग का आध्यात्मिक मूल कारण प्राण शक्ति घट जाना था । यह मुख्यतः अनिष्ट शक्तियों की समस्या तथा सत्वगुण में कमी आने के कारण से हुई थी ।

तो, उनकी प्राण शक्ति की समस्या को किसने ठीक किया ?

आध्यात्मिक उपचार

श्री.वटकर ने उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक के बतानुसार ईश्वर का नामजप श्रद्धासहित आरंभ किया था ।

ईश्वर के नामजप के कार्य करने की प्रक्रिया : जब हम ईश्वर का नामजप करते हैं, तब इसमें उनका चैतन्य भी समाहित होता है । इसका कारण है अध्यात्म का एक नियम । जिसके अनुसार स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा शक्ति उसके नाम के साथ जुडी होती है । इसलिए ईश्वर का नामजप करने से व्यक्ति में प्राण शक्ति का भंडार बढ जाता है ।

इसके साथ ही उन्होंने परम पूज्य जोशीबाबा द्वारा बताए गए विशिष्ट आध्यात्मिक उपाय भी किए ।