१. प्रस्तावना
अधिकतर लोगों के लिए पसीना एवं शरीर से दुर्गंध आना जीवन में सामान्य बात है । हमारे व्यायाम करने पर, अधिक ऊष्ण होने पर अथवा हमारे व्यग्र, चिंतित अथवा तनावग्रस्त होने पर अधिक पसीना एवं शरीर से दुर्गंध आ सकती है । मानव शरीर से आनेवाली गंध एवं दुर्गंध के भौतिक, जैव रासायनिक एवं मनोवैज्ञानिक कारण वैज्ञानिक समुदाय को व्यापक रूप से ज्ञात हैं । भोजन, पेय, एवं रोग जैसे कारक शरीर की गंध को प्रभावित कर सकते हैं । व्यक्ति के शरीर की गंध उसकी जीवनशैली, अनुवांशिकी एवं चिकित्सा-उपचार से भी प्रभावित होती है । तथापि, शरीर की गंध एवं दुर्गंधों का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण है जो वैज्ञानिक समुदाय को अज्ञात है आैर वह है आध्यात्मिक कारण । SSRF के अतिसक्रिय छठवीं ज्ञानेंद्रिय अथवा अतिरिक्त संवेदी क्षमतावाले साधकों को दुर्गंधों का आध्यात्मिक कारण र्इश्वरीय ज्ञान के रूप में प्राप्त हुआ । जब व्यक्ति की छठवीं ज्ञानेंद्रिय विकसित होती है तो वह वैश्विक मन एवं बुद्धि के ज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम बन जाता है । छठवीं ज्ञानेंद्रिय इस जन्म अथवा पूर्व जन्म में की गई साधना से मिलती है ।
अनिष्ट शक्तियां शरीर में विभिन्न प्रकार की दुर्गंधों को उत्पन्न करने के लिए जानी जाती हैं । कभी-कभी दुर्गंध (शरीर से निकलनेवाली, बदबूदार श्वास, डकार, उबासी से निकली दुर्गंध इत्यादि) को आसपास के वातावरण में फैलाने के लिए निर्मित किया जाता है । ऐसा मात्र प्रभावित व्यक्ति के लिए ही नहीं अपितु आसपास के लोगों के भी कष्ट बढाने के लिए किया जाता है ।
२. पर्यायवाची
शरीर की दुर्गंध को चिकित्सीय भाषा में ब्रोमहाइड्रोसिस, ऑसमीड्रोसिस, ओजोक्रोशिया, दुर्गंधित पसीना, शरीर की दुर्गंध अथवा दुर्गंधपूर्ण पसीना कहा जा सकता है । दुर्गन्धित श्वास को हैलीटोसिस भी कहते हैं ।
३. शरीर की दुर्गंध का क्या कारण है ?
पसीना गंधरहित होता है । जीवाणु जो सामान्यतया त्वचा की सतह को आच्छादित करते हैं, वे पसीने को विभाजित करते हैं । इस प्रक्रिया के उपोत्पाद (बाय प्रोडक्ट) अथवा अपशिष्ट पदार्थ अम्ल यौगिक होते हैं, जो गंधयुक्त होते हैं, इसी को हम शरीर की गंध मानते हैं ।
जीवाणु द्वारा पसीने को विभाजित किए जाने पर विभिन्न गंधों-यौगिक उत्पन्न होते हैं । इन अम्लों की विशिष्ट गंध होती है । इन्हीं से शरीर की गंध निर्माण होती है । गंध से संबद्ध दो सामान्य अम्ल यौगिक हैं :
प्रोपियोनिक अम्ल – सिरके की गंध से संबद्ध ।
आइसोवेलरिक अम्ल – पनीर की गंध से संबद्ध ।
ट्राइमिथाइल अमीनूरिया (TMAU) इसे फिश ओडर सिंड्रोम कहते हैं । यह एक दुर्लभ चयापचय विकार है ।
इसमें ट्राइमिथाइल अमीन व्यक्ति के पसीने, मूत्र एवं श्वास में मछली की तीव्र गंध अथवा शरीर की तीव्र गंध को छोडते हुए स्रावित होता है ।
४. शरीर की गंध एवं दुर्गंधित श्वास के क्या कारण हैं ?
४.१ भोजन
हम जो भी खाते हैं वह न केवल शरीर की दुर्गंध में अपितु पैर की दुर्गंध एवं दुर्गंधयुक्त श्वास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । भोजन में विद्यमान पोषक तत्व एवं यौगिक पदार्थ प्रतिदिन के भरण पोषण के लिए अनिवार्य है । तथापि, उनमें से कुछ, अत्यधिक मात्रा में खाने पर गंध को प्रभावित कर सकते हैं । सामान्यतया गंध से संबंधित खाद्यपदार्थ में लाल मांस, समुद्री खाद्यपदार्थ, अंडे का पीला भाग (अंडपीत), लहसुन, प्याज, दही, सेम, शतावरी, पत्तागोभी एवं मसाले जैसे सरसों एवं धनिया सम्मिलित हैं ।
४.२ औषधि
कई औषधियों का सामान्य दुष्प्रभाव है, पसीना । मनोरोग औषधियों के साथ ही कुछ अन्य औषधियां भी इसके लिए उत्तरदायी हो सकती हैं । इसके साथ, एस्पिरिन एवं एसिटामिनोफेन भी पसीने की निर्मिति में वृद्धि कर सकती है ।
४.३ हार्मोन संबंधी परिवर्तन
शरीर की गंध से जुडा सबसे सामान्य हार्मोनल कारण है रजोनिवृत्ति (मेनोपौस) । रजोनिवृत्ति का सामान्य दुष्प्रभाव है उष्णता होना, जो पसीने को बढाने का कारण बनता है । अधिक पसीना होने से, जीवाणुओं द्वारा अतिरिक्त पसीने को विभाजित करने के परिणामस्वरूप अधिक दुर्गंधित यौगिकों का निर्माण होता है ।
४.४ अनुवांशिकी
व्यक्ति से आनेवाले गंध के प्रकार के विषय में मानव जीव विज्ञान एवं अनुवांशिकी भी भूमिका निभाते हैं । पूर्व एशियाई मूल के लोगों (जैसे जापानी, चीनी, कोरियाई) के शरीर में स्वेद (पसीने) की ग्रंथियां अल्प होती हैं । अल्प ग्रंथियां होने से पसीने का स्त्राव अल्प होता है, इस तथ्य के परिणामस्वरूप उन्हें शरीर की दुर्गंध की संभावना भी अल्प रहती है । इसके साथ, पूर्व एशियाई मूल के लोगों के कान में सूखा गंधक (मोम) होता है । इसके विपरीत, अधिकतर लोगों के कान में गीला मोम होता है । ऐसा जापानी, चीनी एवं कोरियाई जातियों में विशेष पित्रैक (जीन) के कारण होता है । कान का गीला मोम शरीर की अतिरिक्त दुर्गंध के लिए योगदान कर सकता है ।
५. शरीर की दुर्गंध के विषय में आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
कुछ लोगों में शरीर की दुर्गंध का कारण आध्यात्मिक स्वरूप का भी हो सकता है । चूंकि कारण सूक्ष्म आयाम से संबंधित है, अतः इसका ज्ञान उन्हें ही हो सकता है जिनके पास अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय है । जिससे वे विश्व मन एवं बुद्धि से जुड सकते हैं । ऐसी परिस्थिति में आधुनिक विज्ञान को रोग का स्पष्ट निदान नहीं भी मिल सकता है । आधुनिक विज्ञान आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाली समस्या के कारण के किसी भी लक्षण को बताने में समर्थ नहीं है । इसी प्रकार भौतिक स्तर पर इसके उपाय के सभी प्रयास भी व्यर्थ हैं । निम्नलिखित जानकारी स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन की संत पूजनीया श्रीमती अंजली गाडगीळजी द्वारा प्राप्त र्इश्वरीय ज्ञान है ।
५.१. साधक के शरीर से निकलनेवाली दुर्गंध का आध्यात्मिक कारण
अति प्राचीन काल से अच्छाई एवं बुराई में युद्ध चल रहा है । साधक अपना सत्व गुण बढाने एवं रज-तम गुणों को न्यून करने के लिए साधना करते हैं, उन पर नित्य अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण होता रहता है । वर्तमान काल में यह आक्रमण बारंबार होते हैं, क्योंकि अनिष्ट शक्तियां पराजित हो रही हैं एवं शीघ्र ही ईश्वरीय राज्य की स्थापना होगी । चूंकि अनिष्ट शक्तियां पराजित हो रही हैं इसलिए साधक की कोशिकाओं में विद्यमान काली शक्ति क्षीण होनी प्रारंभ हो गर्इ हैं एवं उनके शरीर में से दुर्गंध निकलती है, जो वातावरण में भी फैल सकती है । शरीर के अपशिष्ट पदार्थ से निकलनेवाली सूक्ष्म वायु के कारण ऐसा होता है ।
सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक जो साधकों के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं, वातावरण में दबाव बढाने के लिए पसीने के माध्यम से अर्थात शरीर से दुर्गंध के निकलने की प्रक्रिया के प्रारंभ होने के समय त्वचा के प्रत्येक छिद्र से काली शक्ति प्रसारित करते हैं । गंध प्रायः निचले स्तर की अनिष्ट शक्तियों के कारण होती है । वे शरीर में दुर्गंध निर्मित करने के लिए पृथ्वीतत्व का प्रयोग करती है । साथ ही यदि उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों के साथ सूक्ष्म युद्ध होता है, तो इस होनेवाले सूक्ष्म युद्ध के उपोत्पाद (बायप्रोडक्ट) के रूप में भी दुर्गंध निकल सकती है ।
प्रक्रिया : दुर्गंध के माध्यम से काली शक्ति के आक्रमण के लिए त्वचा के रंग का प्रयोग किया जाता है । इस रंग का प्रयोग करके, त्वचा के निकट वायु युक्त सूक्ष्म काला आवरण निर्माण किया जाता है । यह आवरण सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिकों की इच्छा शक्ति से सक्रिय होता है एवं आवश्यकता पडने पर यह दुर्गंध को पसीने अथवा सूक्ष्म काली वायु के माध्यम से वातावरण में संचारित करता है ।
५.२ शरीर की दुर्गंध के विभिन्न कारणों को दर्शानेवाली सारणी :
भौतिक (प्रतिशत) | मानसिक (प्रतिशत) | आध्यात्मिक (प्रतिशत) | |
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औसत व्यक्ति (आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत) | ६५ | ३० | ५ |
केवल व्यष्टि साधना करनेवाला साधक जिसका आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत है | ३० | ५० | २० |
व्यष्टि साधना एवं समाज में अध्यात्म प्रसार की साधना (समष्टि साधना) करनेवाला साधक जिसका आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत है | २० | ३० | ५० |
टिप्पणियां
१. अनिष्ट शक्तियों द्वारा व्यक्तिगत अस्वच्छता का लाभ उठाया जा सकता है एवं तत्पश्चात इस ६५ प्रतिशत का भाग भी आध्यात्मिक मूल कारण के होने से हो सकता है ।
२. शरीर की दुर्गंध का मानसिक कारण, मानसिक समस्याएं जैसे प्रारंभ में निराशा हो सकती है एवं तत्पश्चात इस दुर्बल मन की अवस्था में अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है, जिससे शरीर की दुर्गंध अथवा दुर्गंधयुक्त श्वास निर्माण होती है ।
३. पूर्वजों के अथवा व्यक्ति जहां रहता है वहां के वास्तुदेवता के अथवा कुलदेवता के क्रोधित होने के कारण भी हो सकता है ।
४. शरीर की गंध का आध्यात्मिक कारण, वैसे साधक में अधिक होता है जो समाज में अध्यात्म एवं धर्म प्रसार करने की साधना (समष्टि साधना) कर रहे हैं एवं ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु कार्यरत हैं ।
५.३ कष्टदायक शक्तियों के कारण शरीर के विभिन्न भागों में दुर्गंध के निर्माण की प्रक्रिया एवं उसके प्रभाव
प्रत्येक प्रकार की दुर्गंध का निर्माण करने के लिए, अनिष्ट शक्तियों को अपनी शक्ति का ३० प्रतिशत व्यय करना पडता है ।
प्रक्रिया | प्रभाव | |
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शरीर | शरीर के चारोंओर निर्मित बाह्य आवरण का विघटन | शरीर के चारोंओर बाह्य आवरण में चिपचिपाहट बढ जाती है |
पसीना | प्राण शक्ति के कोष का विघटित होना | प्राण शक्ति घट जाती है |
श्वास | कष्टदायक कोशिकाओं का विघटन | कष्टदायक कोशिकाओं में विद्यमान द्रव के अनुपात में वृद्धि होना |
मूत्र | कोशिकाओं में प्रभावित द्रव का विघटन होना एवं इस कारण से दुर्गंध का निर्माण होना, जिसे मूत्र के माध्यम से बाहर निकाल दिया जाना | कोशिकाओं में कष्टदायक द्रव में वृद्धि होना, दो-दो कोशिकाएं एकजुट हो जाती हैं । |
विष्ठा | शरीर द्वारा भोजन ग्रहण करने से कष्टदायक तंतुओं के विघटन के कारण निर्मित दुर्गंध को मल-मूत्र द्वारा बाहर निकाला जाना | आंतो के भीतर एवं बाहर कष्टदायक तंतुओं के आवरण के कारण आंते सिकुडने लगती है |
वीर्य | कष्टदायक शक्ति द्वारा मन में कामुक विचार डाले जाने के कारण अकस्मात वीर्य का निकल जाना एवं शुक्राणु में संचित कष्टदायक शक्ति के विघटन से निर्मित सूक्ष्म वायु के कारण वीर्य में दुर्गंध आना | व्यक्ति में तमो गुण बढ जाता है एवं कामुक सुख से संबंधित विचार बढते हैं |
माहवारी द्रव | शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का नष्ट होना | अधिकतर पसीना, डकार एवं उबासी के माध्यम से दुर्गंध निकलने के कारण कष्टदायक शक्ति अल्प होने लगती है |
५.४ पाताल के विभिन्न लोकों की गंध एवं प्रभावित व्यक्ति पर उनका प्रभाव
पाताल का स्तर | के समान गंध | प्रभाव |
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१ | सरसों का तेल | प्राण शक्ति के कोष पर आक्रमण |
२ | कच्चे काजू का तेल | शरीर में रक्त कोशिकाओं पर आक्रमण |
३ | दुर्गंधित मीठा तेल | त्वचा पर आक्रमण |
४ | वीर्य का निकलना | अस्थियों में द्रव का घट जाना |
५ | मासिकधर्म की गंध | कोशिकाओं में द्रव घट जाना |
६ | अरंडी का तेल | शरीर में कैल्शियम का घट जाना |
७ | मिश्रित गंध | शरीर में पानी के घटक घट जाने के कारण शरीर की कांति का घट जाना |
६. शरीर से दुर्गंध अल्प करने के उपाय
जब शरीर की गंध अथवा दुर्गंध युक्त श्वास का कारण शारीरिक स्वरूप का हो, तो सामान्य उपाय जैसे अच्छी व्यक्तिगत स्वच्छता (जीवाणु प्रतिरोधक साबुन से प्रतिदिन स्नान, पसीने को रोकनेवाले उत्पाद तथा डियोडरेंट का प्रयोग, प्रत्येक बार भोजन के उपरांत दांतों की सफाई करना, कुल्ला करना, इत्यादि) एवं संतुलित आहार सहायता करेगा ।
यदि दुर्गंध का कारण आध्यात्मिक स्वरूप का हो तो हम अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार अधिक से अधिक साधना करके इससे मुक्त हो सकते हैं । की जानेवाली साधना की तीव्रता आक्रमण की गंभीरता पर निर्भर करेगी । इष्ट एवं अनिष्ट शक्तियों के मध्य होनेवाला सूक्ष्म युद्ध एवं इसकी सीमा के अनुसार इसमें समय का कारक भी सम्मिलित होगा ।
कभी-कभी सूक्ष्म-युद्ध के समय जब साधक की सात्विकता उसके चारोंओर अनिष्ट शक्ति द्वारा निर्मित काली शक्ति से युद्ध करती है, तब शरीर में से दुर्गंध आ सकती है ।
७. संक्षेप में
शरीर से निकलनेवाली दुर्गंध का कारण शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक (अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण) हो सकता है । आध्यात्मिक कारण प्रायः साधक के प्रकरण में होता है जो व्यष्टि के साथ-साथ अध्यात्म प्रसार करने की साधना (समष्टि साधना) कर रहा है । मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार दृढ साधना शरीर से निकलनेवाली दुर्गंध के आध्यात्मिक कारणों पर विजय पाने में सहायता करती है ।