१. प्रकरण
एलिजाबेथ एक २७ वर्षीय युवती हैं, जो विकास एवं अनुसंधान के क्षेत्र में सफलता पूर्वक कार्य कर रहीं हैं । अपने पूर्ण जीवन में उन्हें वर्ष में प्राय: ६ बार अल्प से मध्यम स्तर की निराशा अनुभव होती है । उनके पास इस निराशा का कोई स्पष्टीकरण नहीं था । उनके ही शब्दों में उनकी निराशा का वर्णन निम्नानुसार है ।
‘‘मैं एक अति संभ्रांत परिवार से हूं । मेरे माता-पिता ने मुझे बचपन से ही आत्मनिर्भर रहना सिखाया जिससे मुझे उन पर आश्रित न रहना पडे । जब भी मैं अध्ययन करती तब वे मुझपर यह बात बिंबित करते कि मैं जो भी कर रही हूं वह अपने लिए कर रही हूं । इस बात ने मुझे दायित्व लेना सिखाया । इसके फलस्वरूप मुझे अपनी विद्यालयीन परिक्षाओं में सदा औसत से अधिक अंक प्राप्त हुए ।’’
‘‘मै अपनी शिक्षा के साथ-साथ आजीविका प्राप्त करने हेतु नौकरी भी करने लगी एवं अपने दोनों ही कर्तव्यों उचित प्रकार से निभाती । मैंने अपने कार्य में श्रेष्ठता प्राप्त की जिसके फलस्वरूप मुझे नौकरी में स्थायी कर दिया गया । आर्थिक आत्मनिर्भता प्राप्त करने पर मैंने अपनी अभिरुचि के अनुरूप कई बातें कीं, जैसे भाषाएं सीखना, अलग खेल खेलना तथा पर्यटन । यद्यपि बाह्यत: मैं यह प्रदर्शित करती कि मैं आत्मनिर्भर एवं सफल हूं तदापि आंतरिक स्तर पर मुझे निराशा झेलनी पडती । वर्ष में न्यूनतम छ: बार तथा प्रत्येक बार लगभग छ: सप्ताह तक मुझे यह झेलना पडता । जब मैं निराशा के कारणों का निरीक्षण करती तब मात्र कुछ प्रसंगों में ही मैं कारण ढूंढ पाती । साथ ही कुछ प्रसंगों का तो मेरे जीवन पर अत्यधिक गहरा प्रभाव पडा । उदाहरण के लिए मेरे विद्यालयीन जीवन में मेरे मित्रों ने बिना किसी स्पष्ट कारण के महीनों मुझसे बात नहीं की । दूसरा उदाहरण है कि जब मेरे एक पुरुष मित्र ने मुझे छोड दिया, इससे मैं लगभग आठ मास तक निराशा से ग्रस्त रही । एक अन्य प्रकरण में तो मेरी निराशा का कारण यह अपेक्षा थी कि कार्यालय में मेरे अधिकारी कैसे हों । मैं निराशा के ऐसे दौरों की अभ्यस्त हो गई थी और इनमें से अनेक का मैं कारण भी नहीं जानती थी । यद्यपि जीवन में मेरे पास सबकुछ था; किंतु निराशा के दौरों के कारण मुझे तब भी लगता कि अभी भी जीवन अपूर्ण है ।’’
ऐसे ही एक दिन मेरे एक मित्र ने मेरा परिचय स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन (SSRF) से करवाया, जिनके मार्गदर्शन में वह साधना कर रही थी । अध्यात्म के सिद्धांत वास्तव में सार्वभौम थे एवं उनसे मुझमें उत्सुकता जागृत हुई । मैंने भी साधना करना प्रारंभ किया एवं शीघ्र ही मई २००२ में मैं अपने मित्र के साथ भारत में गोवा स्थित SSRF के आश्रम में अध्यात्म के संबंध में और अधिक सीखने हेतु तथा इस आशा से गई कि वे मुझे मेरे निराशा के दौरों के संबंध में जानकारी दे सकेंगे ।
२. आध्यात्मिक निदान
आश्रम में आने पर एलिजाबेथ को आध्यात्मिक निदान करवाने का एवं परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी द्वारा संचालित उपचार सत्र में सम्मिलित होने का अवसर मिला । तदुपरांत एलिजाबेथ ने कहा, ‘‘गोवा में आध्यात्मिक निदान एवं उपचार सत्र के समय मुझे पता चला कि मैं एक अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) द्वारा बाधित थी जो उपचार के समय प्रकट होने लगी । जीवन में पहली बार मुझे पता चला कि मुझे आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) ही मेरी निराशा का कारण थी ।’’
एलिजाबेथ का यह चित्र उनके आध्यात्मिक निदान एवं उपचार के समय लिया गया है । कृपया उनके ठुड्डी ऊपर कर मुख खुला रखने की विशेष मुद्रा को ध्यान से देखें, यह उनके सामान्य हाव-भाव से पूर्णतः अलग है ।
इस आध्यात्मिक निदान सत्र के उपरांत वह अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत तथा पिशाच आदि) इस रूप में प्रकट होने लगी । इससे पहले उसका कष्ट मात्र निराशा के रूप में दिखाई देता था ।
‘‘प्रकटीकरण के समय मुझे अपनी छाती एवं गले में सूजन प्रतीत होती (मुझे यह बाद में समझ आया कि मेरे शरीर के उन स्थानों पर नागने अर्थात अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) ने अपना स्थान बना रखा था ।) उस समय मेरा मुख अधिक खुला रहता एवं कोई शक्ति मेरे मुख से बातें करती । यह सभी लक्षण प्रकटीकरण के उपरांत न्यून हो जाते ।
तो वास्तव में एलिजाबेथ के मानसिक कष्ट का क्या कारण था ?
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, किसी भी समस्या अथवा रोग के आध्यात्मिक कारणों के दो पहलू होते हैं :
१. सामान्यतः ऐसा तमोगुण की वृद्धि के साथ-साथ सत्त्व गुण की न्यूनता होने के कारण होता है । (अधिक जानकारी के लिए संदर्भ हेतु देखें : तीन सूक्ष्म तत्त्व)
२. विशिष्ट स्तर पर देखा जाए तो, ऐसा किसी विशेष कारक, जैसे किसी विशेष अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) के आक्रमण के कारण होता है ।
SSRF के सूक्ष्म-विभाग की एक साधिका कु. अनुराधा वाडेकर ने एलिजाबेथ के सूक्ष्म निदान सत्र के समय उनका सूक्ष्म परीक्षण किया तथा उनके द्वारा निर्मित सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र निम्नानुसार है :
यह कु. अनुराधा द्वारा वास्तव में देखे गए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र का संगणकीय चित्रण है ।
सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र तथा सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के साधकों द्वारा किए गए सूक्ष्म परीक्षण से एलिजाबेथ की मूल समस्या पता चली ।
एक सूक्ष्म काला नाग, एक प्रकार की अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) ने एलिजाबेथ को आविष्ट किया था । उसने उनके हृदय केंद्र अर्थात अनाहत चक्र एवं गले के केंद्र अर्थात विशुद्ध चक्र में अपना स्थान निर्माण कर लिया था । उसने एलिजाबेथ को अपने चंगुल में कठोरता से जकड रखा था तथा अपने मुख से निकलनेवाली काली शक्ति के आवरण से उन्हें ढंक रखा था । जिसके फलस्वरूप कष्ट के लक्षण जैसे, मुख खुला रहना, गर्दन में वेदना, शारीरिक क्षीणता आदि प्रकट होते थे ।
३. आध्यात्मिक उपचार एवं रोग से निवृत्ति
उसी निदान सत्र के समय विभिन्न आध्यात्मिक उपचार भी किए जाते थे ।
‘‘जब आध्यात्मिक उपचार किए जाते तब मैं चीखती एवं छटपटाती । आगे मुझे समझमें आया कि उन उपचारों से मुझमें विद्यमान अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) को कष्ट होता था और वह छटपटाती थी । उसका प्रकटीकरण एक मास के उपरांत कम हुआ । यदि भूत का प्रकटीकरण पुन: हुआ तो मुझे क्या करना चाहिए इसका मार्गदर्शन किया गया ।’’
एलिजाबेथ को सूक्ष्म काले नाग से होनेवाली पीडा तीव्र थी तथा लंबे समय से थी, इसलिए तीव्र आध्यात्मिक उपचार अधिक समय तक करना आवश्यक था । दुर्भाग्य से कार्यालयीन दबाव एवं समय के अभाव के कारण उसे मध्य में ही उपचार छोडने पडे एवं वह अपने कार्य हेतु वापस चली गई ।
अगले कुछ वर्ष अर्थात जून २००२ से २००५ तक समय – समय पर प्रकटीकरण होता रहा । सूक्ष्म नाग का शारीरिक प्रकटीकरण कभी – कभी ८ घंटेतक होता और यदा-कदा २४ घंटे भी होता । प्रकटीकरण के अधिक होने का एक प्रमुख कारण था, एलिजाबेथ का साधना प्रारंभ करना । साधना करने से उसमें सत्त्वगुण की वृद्धि हुई जिससे उसमें विद्यमान सूक्ष्म नाग को असुविधा होती और इसीलिए वह अधिक प्रकट होता ।
‘‘जून २००२ में सूक्ष्म नाग मुझे बार-बार प्रकट होकर तंग करने लगा । मैं नौकरी करती थी इसलिए सुबह ९ से शाम ५ बजे के बीच होनेवाले उसके प्रकटीकरण से मुझे बहुत असुविधा होती एवं यह मेरे लिए अति चिंताजनक था । संध्याकाल के समय मैं अध्यात्मिक दृष्टि से अपेक्षाकृत शुद्ध वातावरण में अर्थात अन्य सह-साधकों के सान्निध्य में रहती, उस समय प्रकटीकरण और भी अधिक होता । इस प्रकार मेरा पूरा दिन ही प्रकटीकरण के कारण व्यर्थ हो जाता । मेरा अपना आस्तत्व लगभग खो चुका था, क्योंकि मैं अपने व्यक्तित्व के पूर्णतः प्रतिकूल व्यवहार करती ।
‘‘तभी अप्रत्याशितरूप से मुझे व्यावसायिक यात्रा पर एक अन्य देश जाना पडा । उस समय नाग ने अनेक समस्यांएं निर्माण कर मेरे जीवन को प्रभावित किया, जैसे; कार्य के मध्य यदि मैं टहलने के लिए जाने का विचार करती तो मैं स्थान निश्चित नहीं कर पाती और नाग ही मेरे लिए यह निश्चित करता कि मुझे कहां जाना है । पूरे सम्मेलन में मैं प्रकटीकरण की स्थिति में ठोडी ऊपर कर बैठी रहती (जैसा कि उपरोक्त चित्र में दिखाया गया है)। मैं अनिष्ट शक्ति के (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) प्रभाव में एक विशिष्ट पद्धति से चादर की घडी करती तथा विशेष पद्धति से शौचालय में जाती इत्यादि तब भी जब देखनेवाला कोई न होता । अपने जीवन पर मेरा कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया था ।”
‘‘अगस्त २००२ में प्रकटीकरण तीव्र रूप से नकारात्मक हो गए जो मेरे मित्रों एवं सहयोगियों के समय एवं ध्यान को प्रभावित करते । यदा-कदा प्रकटीकरण आक्रामक, अतृप्ति एवं क्रोध भरे होते । एक-दो बार नाग ने मेरे माध्यम से एक मित्र को चोट पहुंचाई । अन्य लोगों से सामान्य संबंध बनाने की मेरी न तो इच्छा ही होती और न ही मैं मधुर संबंध बनाने में सक्षम थी । मैं बाह्य जगत से पूरी तरह कट गई थी । ऐसा छ:ह मास तक चलता रहा । जब प्रकटीकरण परिवार अथवा समाज के अन्य लोगों के समक्ष होता तो उसकी तीव्रता अल्प होती । सामान्यतया इसका स्वरूप वार्तालाप का होता (वार्ता करने की पद्धति में मेरे अपनी शैली से उल्लेखनीय असमानता न होती ) अथवा नाग यह प्रदर्शित करने का प्रयत्न करता जैसे वह दूसरों को आर्शिवाद देना चाहता हो ।
‘‘मई २००५ में, मैं सौभाग्य से अपने व्यवसाय से पुन: समय निकाल कर भारत में आध्यात्मिक उपचार के एक और सत्र में सम्मिलित हो सकी । इस बार आध्यात्मिक उपचार के उपरांत मेरी मानसिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार दिखाई दिया । मुझे ऐसा लगा जैसे विजयी होने का मनोभाव मुझमें जागृत हुआ है, यद्यपि कुछ मात्रा में मानसिक कष्ट अभी भी व्याप्त थे, मुझे बोध हुआ कि मैं उसे पराजित करना सीख रही हूं । वहां मैं लंबे समयतक कष्ट एवं निराशा से मुक्त थी ।
आध्यात्मिक उपचार के समय ऐसा क्या हुआ कि एलिजाबेथ में ऐसे परिवर्तन आए ?
पवित्र छडी से आध्यात्मिक उपचार करते समय SSRF की कु. अनुराधा वाडेकर द्वारा निर्मित सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र का संदर्भ लेकर यह समझते हैं कि आध्यात्मिक उपचार के सत्र में क्या घटित हुआ ।
सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र देखने के लिए यहां क्लिक करें ।
यह संगणक से निर्मित सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र है, जिसमें यह दिखाया है कि सूक्ष्मरूप से क्या दिख रहा था :
आध्यात्मिक उपचार का विवरण :
- आध्यात्मिक उपचार में प्रयोग की हुई पवित्र छडी चमेली की थी ।
- पवित्र छडी में स्वयं में ५ प्रतिशत सत्त्वगुण होता है । इस सत्त्वगुण के कारण वह छडी ईश्वरीय स्रोत से २० प्रतिशत अधिक ईश्वरीय चैतन्य आकर्षित कर सकती है ।
- जैसा कि सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में दिखाया गया है, सूक्ष्म-उपचारों एवं परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी की उपस्थिति के फलस्वरूप पवित्र चमेली की छडी का स्पर्श कराने से एलिजाबेथ के शरीर में ईश्वरीय चैतन्य का एक प्रवाह प्रारंभ हुआ ।
- सूक्ष्म नाग ने एलिजाबेथ के चारों ओर काला आवरण बनाया था, जिससे पवित्र छडी से प्रक्षेपित होनेवाले ईश्वरीय चैतन्य के प्रभाव से वह नाग स्वयं को सुरक्षित रख पाए । नाग ईश्वरीय चैतन्य से संघर्ष करता दिखा । नाग को पवित्र छडी के ईश्वरीय चैतन्य से कष्ट होता है इसलिए वह एलिजाबेथ को छोड कर सात्त्विक पवित्र छडी से लडने लगता है ।
- पवित्र छडी से प्राप्त होनेवाले आध्यात्मिक उपचार के अतिरिक्त जैसे कि सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में दर्शाया गया है, एलिजाबेथ को अन्य आध्यात्मिक उपायों का भी लाभ प्राप्त हुआ जैसे
- प्रार्थना करना
- पवित्र विभूति लगाना
- तीर्थ छिडकना
- प.पू. डॉ. आठवले जी का सान्निध्य प्राप्त होना
इस प्रकार से आध्यात्मिक उपाय वे महत्त्वपुर्ण कारक थे, जिनके कारण नाग से लडकर उसे भगाने में सफलता प्राप्त हुई । इससे एलिजाबेथ की सात्त्विकता में भी वृद्धि हुई, जिसके लिए एलिजाबेथ ने भी परिश्रम किया और वे वर्ष २००२ से अबतक निरंतर साधना करती रहीं । इस प्रकार से एलिजाबेथ सूक्ष्म नाग के कष्ट से छुटकारा पा सकीं ।
नीचे दी गई सारिणी में उनमें सुधार का मार्ग दिखाया गया है, जिसका प्रारंभ प्रथम आध्यात्मिक उपचार सत्र से वर्ष २००२ में हुआ । प्रारंभ में निराशा के लक्षण वास्तव में और भी तीव्र होते गए । अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) उनको इसलिए कष्ट देती थी क्योंकि उसे एलिजाबेथ की साधना से कष्ट होता था । साधना करने के कारण एलिजाबेथ में बढती आध्यात्मिक शक्ति से वर्ष २००५ में किए गए आध्यात्मिक उपचारों के सकारात्मक प्रभाव सफल होने में सहायता हुई ।
निराशा के दौरे | मई २००२ के पहले | जून २००२-जुलाई २००३ | जुलाई २००३-मई २००५ | मई २००५-दिसंबर २००५ |
---|---|---|---|---|
वार्षिक आवृत्ति | ६ | निरंतर | ३-४ | १-२ |
प्रत्येक दौरे की कालाअवधि | ३ सप्ताह | १२ मास | ४ सप्ताह | २ सप्ताह |
तीव्रता | न्यून से मध्यम | औषधोपचार वांछित | मध्यम से तीव्र | मध्यम से न्यून |
एलिजाबेथ की वर्तमान दृष्टि : ‘‘साधना के परिणामस्वरूप मेरा परिवार मुझमें होनेवाले सकारात्मक परिवर्तन देखने लगा है, परंतु वे सूक्ष्म-आयाम में विश्वास नहीं रखते इसलिए वे यह नहीं मानते कि मुझमें जो परिवर्तन हुए हैं, वे साधना के परिणामस्वरूप हुए हैं ।
‘‘साधना के बिना मैं दोहरे आस्तत्व के साथ एक अत्यंत सफल शैक्षणिक तथा व्यावसायिक दृष्टिकोण से जीवन जीती; किंतु पारस्परिक संबंधों तथा निराशा के साथ अंधेरे में ही रह जाती । सौभाग्य से मुझे एक समाधान मिला जो मुझे और अच्छा व्यक्तित्व प्रदान करने के साथ-साथ सूक्ष्म-आयाम के अनिष्ट शक्तियों से भी मेरी सूक्ष्म स्तर पर रक्षा करता है ।’’
४. सारांश
- इस प्रकरण से यह विदित होता है कि, मानसिक रोग जैसे बाहर से दिखाई देनेवाले लक्षण वास्तव में आध्यात्मिक व्याधि का प्रकटीकरण हो सकते हैं ।
- प्राय: जैसा कि हमने एलिजाबेथ के प्रकरण में देखा, प्रकटीकरण समाज नहीं समझ सकता अथवा समाज उसे मानसिक रोग की संज्ञा दे देता है ।
- समाज में ऐसे अनेक प्रकरण हैं, जो अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) द्वारा दी जा रही यातनाओं से पीडित हैं, उन्हें उचित आध्यात्मिक निदान एवं मूलभूत आध्यात्मिक कारणों के उपचार की आवश्यकता है ।
- प्रकटीकरण की वास्तविकता का बोध निम्नलिखित उदाहरणों से होता है :
- चादर योग्य रूप विशिष्ट पद्धति से तह करने में समय देना
- एलिजाबेथ के व्यावसायिक यात्रा के समय उनके शौचालय में एक विशिष्ट पद्धति से जाने की पद्धति को मनोचिकित्सक मनोग्रसित बाध्यता विकार की श्रेणी में रख कर उपचार करते । जिसके फलस्वरूप उपचार भी मानसिक स्तर तक सीमित रहते । जिससे निश्चित ही उनका परिणाम भी सीमित रहता और वह रोग से पूर्णतया मुक्त न हो पाती ।
- यदि समाज इस तथ्य से अवगत दो जाए कि मानसिक रोग कहलानेवाले ऐसे रोगों पर आध्यात्मिक उपचार करने होते हैं, तभी प्रभावित लोगों को उचित समय पर सही उपचार दे कर स्थायी रूप से कष्ट मुक्त किया जा सकता है ।
संदर्भ हेतु देखें लेख : हमारे जीवन की कठिनाईयों का मूलभूत कारण