भूत अथवा राक्षस किस पर आक्रमण करते हैं ?

१. अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)द्वारा भूतावेश के लिए लक्ष्य बनाए जाने अथवा आक्रमण किए जाने का मूल कारण

सर्वप्रथम हम समझ लेते हैं कि अनिष्ट शक्ति द्वारा व्यक्ति को प्रभावित करने अथवा आविष्ट करने के लिए लक्ष्य बनाए जाने के मूल कारण क्या हैं ?

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१. यदि अनिष्ट शक्ति तथा व्यक्ति के मध्य लेन-देन पूर्ण करना हो : यदि अनिष्ट शक्ति ने व्यक्ति के कारण कष्ट भुगते हों, तो वह प्रतिशोध लेगी ।

२. प्रभावित व्यक्ति के माध्यम से अपनी इच्छाओं तथा आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए व्यक्ति पर नियंत्रण करना : अनिष्ट शक्ति सामान्यतः वैसे लोगों को आविष्ट करती है जिसकी इच्छाएं उससे मेल खाती हों क्योंकि तब उन्हें पूर्ण करना अधिक सरल होता है ।

३. यदि व्यक्ति ने जानबूझकर अथवा अनजाने में अनिष्ट शक्ति का अपमान किया हो अथवा उसे क्रोधित किया हो : उदाहरण के लिए जिस वृक्ष पर अनिष्ट शक्ति का वास हो उस पर मूत्र विसर्जन करना

४. व्यक्ति को अध्यात्मप्रसार हेतु प्रयास करने से रोकना :जो व्यक्ति व्यष्टि साधना (अर्थात केवल अपनी आध्यात्मिक उन्नति हेतु साधना) करता है, तब प्रधानता से उसकी आंतरिक शुद्धि होती है । दूसरी ओर जो व्यक्ति समाज की भलाई के लिए साधना करता है, तब उसकी आंतरिक शुद्धि तो होती है, साथ ही साथ वातावरण में सत्त्वगुण में वृद्धि करने में भी उसका बडा योगदान होता है ।

यद्यपि हम सभी प्रकार की अनिष्ट शक्तियों के लिए सामान्य रूप से वर्णन के लिए अनिष्ट शक्ति (राक्षस, भूत, पिशाच इत्यादि) शब्दों का प्रयोग करते रहे हैं, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि निम्न स्तरीय अनिष्ट शक्तियों एवं उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों की शक्ति में अपरिमित अंतर है । यह अमेरिका की सैन्य शक्ति का प्रशांत महासागर के किसी छोटे से देश की सैन्य शक्ति से तुलना किए जाने समान है । यद्यपि दोनों संप्रभु राष्ट्र हैं, तथापि सैन्य शक्ति के संदर्भ में दोनों के स्तर पूर्णतः असमान हैं ।

इससे अत्यधिक रज-तम वृत्तिवाले अनिष्ट शक्तियों को अत्यधिक कष्ट होते हैं । यही कारण है कि अनिष्ट शक्तियां समाज की उन्नति के लिए साधना करनेवाले साधकों पर आक्रमण करती है तथा कष्ट देती हैं । समाज के लिए साधना करनेवाले साधकों पर उनके आध्यात्मिक उन्नति के आरंभ में अनिष्ट शक्तियां अधिक तीव्रता से आक्रमण करती हैं । साधक भी संत तथा ईश्वर की कृपा तथा सुरक्षा से लाभान्वित होते हैं । समाज की भलाई के लिए साधना करने से व्यक्ति को अतिरिक्त लाभ भी होते है

५. यदि कोई व्यक्ति प्रेतबाधित स्थान पर जाता है तो अनिष्ट शक्ति उसे कष्ट दे सकती है ।

२. अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण किए जाने के कारणों से संबंधित आंकडे

आगे दी गई सारणी में व्यक्ति के अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) से प्रभावित होने के कारणों की संभावना दर्शायी गई है ।

अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण का कारण प्रतिशत
१. अनिष्ट शक्ति तथा लक्ष्यित व्यक्ति के मध्य रहे लेन-देन पूर्ण करना ३०
२. अनिष्ट शक्तियों की इच्छा पूर्ण करने का प्रयास करना ३०
३. क्योंकि उस व्यक्ति ने अनिष्ट शक्ति को क्रोधित किया था १०
४. लक्ष्यित व्यक्ति द्वारा किए जा रहे अध्यात्म प्रसार को रोकना
५. लक्ष्यित व्यक्ति का प्रेतबाधित स्थान पर जाना
७. अज्ञात अथवा अन्य २१
कुल १००

• अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है, अनिष्ट शक्ति के आक्रमण का संचालक । ९० प्रतिशत प्रकरणों में जहां अनिष्ट शक्ति व्यक्ति को प्रभावित अथवा आविष्ट करती है, उसका कारण होता है उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति द्वारा दिया गया आदेश । केवल १० प्रतिशत प्रकरणों में ही अनिष्ट शक्ति स्वयं से ही आक्रमण करती है ।

३. अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण का लक्ष्य बनने की संभावना किसकी अधिक है ?

अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, भूत, पिशाच इत्यादि) के लिए निम्नांकित प्रकार के लोगों पर आक्रमण करना तथा आविष्ट करना सरल होता है । (टिप्पणी : इस लेख को समझने के लिए हमारा सुझाव है कि आप तीन सूक्ष्म-स्तरीय मूलभूत घटक लेख पढें ।)

जो अनिष्ट शक्तियां पदक्रम में निम्न स्तर पर हैं, अर्थात ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से नीचे हैं, जैसे भूत - ये रज-तम प्रधान होते हैं । जो अनिष्ट शक्तियां पदक्रम में उच्च स्तर पर हैं, अर्थात ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से ऊपर हैं, जैसे - छठे तथा सातवें पाताल के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक, वे तम-रजप्रधान होते हैं ।
  • शारीरिक रोग से ग्रस्त : व्यक्ति के किसी भी रोग अथवा बीमारी से पीडित होने का अर्थ है कि उस व्यक्ति में तमोगुण की वृद्धि हुई है तथा उसी के अनुरूप सत्त्वगुण घटा है । जब रोग गंभीर तथा लंबे समय से हो तब तमोगुण में अत्याधिक वृद्धि होती है ।

    उच्चतर सत्व प्रधानता अनिष्ट शक्तियों से सुरक्षा सुनिश्चित करती है । जब सत्वगुण में कमी आती है, तब अनिष्ट शक्तियों के लिए व्यक्ति को प्रभावित करना अथवा उसमें प्रवेश करना उस तमप्रधान अंग के माध्यम से सरल हो जाता है । चूंकि अनिष्ट शक्तियां (राक्षस, भूत, पिशाच इत्यादि) तम तथा रजप्रधान सूक्ष्म स्तरीय तत्त्व से बनी होती हैं, वे व्यक्ति के चोट अथवा रोगग्रस्त भाग का उपयोग उस व्यक्ति में प्रवेश हेतु करती हैं ।

  • दुर्बल मन वाले व्यक्ति : ऐसे लोग अनिष्ट शक्तियों के सरल भक्ष्य बनते हैं । हमारे स्वभाव दोष जैसे क्रोध, लोभ, भावनाप्रधानता इत्यादि हमारे मन के घाव समान हैं । ये भी हमारे मन के रज-तम अथवा तम-रज की अधिकतावाले भाग होते हैं । इसलिए स्वभाव दोष अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) के लिए सरल प्रवेशद्वार समान कार्य करते हैं । एक बार जब आविष्ट करने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, तब अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) व्यक्ति के स्वभावदोषों का प्रयोग उन्हें अपने नियंत्रण में करने के लिए करती हैं । वे इन दोषों की तीव्रता बढा देती है, उदाहरण के लिए एक भावुक व्यक्ति को अत्यधिक भावनाशील बना देना । इससे व्यक्ति का मन और अधिक दुर्बल हो जाता है, जिससे भूतावेश स्थायी रूप से स्थापित हो जाता है ।

यहां सिद्धांत यह है कि आक्रमण के लिए लक्ष्यित तथा आक्रमण करनेवाली अनिष्ट शक्ति में जो भी आध्यात्मिक रूप से सबल होगा वही विजयी होगा । यदि अनिष्ट शक्ति की आध्यात्मिक शक्ति आक्रमण किए जानेवाले व्यक्ति की शक्ति से अधिक हो तो वह उस व्यक्ति को प्रभावित अथवा आविष्ट कर सकती है ।

यदि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर उच्च हो, तब अनिष्ट शक्ति के विरुद्ध उसकी प्रतिरक्षा (बचाव) दृढ होगी । इसका कारण होगा :

  • उसका अपना आध्यात्मिक स्तर
  • ईश्वर से प्राप्त उच्चतर संरक्षण