मिट्टी का आध्यात्मिक अध्ययन – भाग १

भूमि एवं वातावरण पर लोगों का सूक्ष्म प्रभाव
सारांश

ऐसे अनेक कारक (घटक) हैं, जो भूमि का मूल्यांकन करने में योगदान देते हैं । तब भी भूमि खरीदते समय, उसका विकास करते समय अथवा व्यवसाय अथवा मौजमस्ती के लिए विविध स्थानों पर जाते समय, कदाचित ही कोई उस भूमि के सूक्ष्म प्रभाव अथवा उस भूमि का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड सकता है, इसके विषय में सोचता होगा । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के दल के पास आध्यात्मिक शोध का ३७ वर्षों का अनुभव है । यह शोध औरा (प्रभामंडल) तथा सूक्ष्म-ऊर्जा स्कैनर के साथ साथ इस शोध दल के सदस्यों की अतिजाग्रत छठवीं इंद्रिय की सहायता से किया गया है । इन पद्धतियों के उपयोग से, अभी तक विश्व भर से १६९ नमूनों का विश्लेषण/परीक्षण किया जा चूका है । आठ प्रकार के क्षेत्रों से मिट्टी के नमूने लिए गए, इनमें ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के साथ साथ लोकप्रिय पर्यटन स्थल की मिट्टी के नमूने भी सम्मिलित हैं । इसमें यह पाया गया कि विश्वभर के मिट्टी के अधिकांश नमूनों से नकारात्मक स्पंदन उत्सर्जित/प्रक्षेपित होते हैं । इसमें एकमात्र अपवाद भारत था, जहां कुछ मात्र में सकारात्मकता पाई गई । मिट्टी के नमूनों में नकारात्मक स्पंदनों की प्रबलता का मुख्य कारण मानवजाति का भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर वातावरण पर पडने वाला प्रभाव है । कुछ विकासशील देशों के मिट्टी के नमूनों की तुलना में कुछ विकसित देशों के मिट्टी के नमूनों से अधिक नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । यह पाया गया है कि भूमि से प्रक्षेपित होने वाले सूक्ष्म स्पंदन, लोगों के सामूहिक विचार और कृतियां, भूमि का किस उद्देश्य से उपयोग होता है तथा उस क्षेत्र में व्याप्त/प्रचलित भौतिकतावाद का स्तर, जैसे कारकों/घटकों के आधार पर बहुत भिन्न भिन्न हो सकते हैं । यह भी देखा गया कि समय (युग) एक ऐसा कारक है जो भूमि से प्रक्षेपित होने वाले सूक्ष्म स्पंदनों को प्रभावित कर सकता है । भूमि से प्रक्षेपित होने वाले सूक्ष्म स्पंदन तो लोगों को प्रभावित करते ही है, किंतु उससे भी अधिक उस भूमि पर रहने वाले लोग स्वयं ही उस भूमि को आध्यत्मिक स्तर पर और अधिक प्रदूषित करते हैं । भूमि के सूक्ष्म पहलुओं की समझ भूमि खरीदने का सही निर्णय लेने में सहायता कर सकती है । साधना से व्यक्ति को भूमि के सूक्ष्म नकारात्मक स्पंदनों से बचने में तथा उसकी आध्यात्मिक शुद्धि (सात्त्विकता) को बढाने में सहायता प्राप्त होती है ।

१. मिट्टी तथा भूमि के मूल्यांकन की प्रस्तावना

ऐसे अनेक कारक हैं, जो भूमि का मूल्यांकन करने में योगदान देते हैं । तब भी भूमि खरीदते समय, उसका विकास करते समय अथवा व्यवसाय अथवा मौजमस्ती के लिए विविध स्थानों पर जाते समय, कदाचित ही लोग उस भूमि के सूक्ष्म प्रभाव अथवा उस भूमि का क्या प्रभाव पड सकता है, इसके विषय में सोचते होंगे । किंतु, हमारे शोध से पता चला है कि मिट्टी तथा भूमि के सूक्ष्म प्रभाव वहां के निवासियों को बहुत प्रभावित कर सकते हैं ।

उन पर्यटकों का ही उदाहरण लेते हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण प्रसिद्ध स्थानों पर समूह में घूमने जाते हैं । वे उन स्थानों को प्रमुख रूप से छुट्टी मनाने तथा सैर-सपाटा करने के दृष्टिकोण से देखते हैं । किंतु, यदि इनमें से कुछ स्थान पूर्व में हिंसा के साक्षी रहे हों, तो वातावरण में पुनः उस भयानक समय की स्मृति निर्माण होती है तथा उस बात से अनभिज्ञ पर्यटक उन नकारात्मक सूक्ष्म स्पंदनों से प्रभावित हो जाता है । इस प्रकार मानव की विविध गतिविधियों तथा समाज के विचारों और कृतियों के कारण भी भूमि तथा जल प्रभावित हो जाते हैं ।

२. आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से मिट्टी के अध्ययन एवं परीक्षण हेतु किया गया प्रयोग

२.१ पृष्ठभूमि/भूमिका एवं उद्देश्य

विशेषज्ञ समीक्षित वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित अनेक अध्ययन यह दर्शाते है कि सक्रिय रूपसे प्रकाशन करने वाले ९७ प्रतिशत से भी अधिक मौसम/जलवायु वैज्ञानिक यह मानते है कि पिछली शताब्दी से लेकर आज तक मनुष्य के क्रिया-कलापों के कारण समय के साथ जलवायु-तापमान में वृद्धि होने की अत्यधिक संभावना है (NASA.gov)। हमारे SSRF जालस्थल पर प्रकाशित २००७ के लेख में, हमने जलवायु परिवर्तन के कारणों पर एक समग्रतात्मक विवरण प्रस्तुत किया है । लेख में आध्यात्मिक शोधों के माध्यम से हमारे यह निष्कर्ष बताए गए है कि पृथ्वी तथा वातावरण पर मानवता का प्रभाव मात्र भौतिक कारणों से (जैसा कि अधिकांश लोग समझते हैं) नहीं, अपितु मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर के कारणों से अधिक मात्रा में है । आध्यात्मिक शोध से पता चलता है कि मानवजाति आध्यात्मिक स्तर पर वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, फलस्वरूप पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पंचमहाभूतों द्वारा इस बढती हुई आध्यात्मिक अशुद्धि के प्रतिक्रिया के रूप में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि हो रही है । इस ग्रह की शुद्धि करने की प्रकृति की यह एक प्रक्रिया है ।

आधुनिक औरा (प्रभामंडल) तथा सूक्ष्म ऊर्जा स्कैनरों के कारण, वस्तुओं (सजीव तथा निर्जीव) जैसे की मिट्टी द्वारा प्रक्षेपित होने वाले सूक्ष्म स्पंदनों को मापना अब हमारे लिए और अधिक संभव हो गया है । यह हमें इस बात का ठोस प्रमाण देता है कि मानवता ने पर्यावरण को, जिसमें वनस्पतियों और जीवों के साथ-साथ मिट्टी और जलमार्ग भी सम्मिलित हैं, किस प्रकार प्रभावित किया है ।

फरवरी २०१८ में, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय एवं अध्यात्मशास्त्र शोध संस्थान ने आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से मिट्टी का अध्ययन करना प्रारंभ किया । इस अध्ययन का उद्देश्य विश्वभर की मिट्टी का विश्लेषण करना तथा क्षेत्र और स्थान के आधार पर सूक्ष्म स्पंदनों के अंतर का आकलन करना था । इसका नियोजन वर्तमान युग में वातावरण की आध्यात्मिक स्थिति का पता लगाने (आकलन करने) के लिए किया गया था ।

२.२ कार्यप्रणाली

अध्यात्मिक शोध दल ने अध्यात्मिक शोध संस्थान में आने वाले साधकों एवं शुभ-चिंतकों से विश्व भर से मिट्टी और जल के कुछ नमूने लाने का अनुरोध किया । इन नमूनों के संग्रह, संवेष्टन (पैकेजिंग), परिवहन तथा इसके उपरांत उन्हें आध्यात्मिक शोध दल को आकलन हेतु सौपने के संबंध में विशिष्ट निर्देश दिए गए थे । निर्देश देने का कारण प्रमुख रूप से यह सुनिश्चित करना था कि :

  1. हमें विविध प्रकार के स्थानों से (नीचे विवरण दिया गया है) नमूने प्राप्त हो ।
  2. नमूने के संग्रह से लेकर उसके आकलन/मापन के समय तक उसके सूक्ष्म स्पंदन अन्य संवेदनाओं से न्यूनतम प्रभावित रहे । ऐसा इसलिए था ताकि नमूनों के आकलन/मापन तक उनके मूल/वास्तविक स्पंदनों को बरकरार (बनाए) रखा जा सके ।
  3. संग्रह से आकलन/मापन तक के समय को लगभग २ दिनों तक न्यून करना

मिट्टी के नमूनों के परिक्षण एवं विश्लेषण हेतु प्रयुक्त यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर

यूनिवर्सल थर्मो स्कैनरयूनिवर्सल थर्मो स्कैनर के उपयोग से मिट्टी के नमूनों के सूक्ष्म स्पंदन एवं औरा का मापन लिया गया । यह डॉ. मन्नेम मूर्थी (भारत के एक पूर्व परमाणु वैज्ञानिक) द्वारा विकसित एक उपकरण है । इसका उपयोग किसी भी वस्तु (सजीव एवं निर्जीव) के चारों ओर व्याप्त सूक्ष्म ऊर्जा (सकारात्मक एवं नकारात्मक) तथा औरा (प्रभामंडल) को मापने के लिए जाता है । नकारात्मक सूक्ष्म ऊर्जा पाठ्यांक दो प्रकार के होते हैं और इन्हें आईआर (इंफ्रारेड/अवरक्त) एवं यूवी (अल्ट्रावायलेट/पराबैंगनी) के रूप में दर्शाया जात है । आईआर गणना/पाठ्यांक से नकारात्मक स्पंदनों के सौम्य रूप को मापा जाता है तथा यूवी प्रविष्टि/रीडिंग से नकारात्मक स्पंदनों के अधिक तीव्र रूप को मापा जाता है और यह सामान्यतया भूतावेश के स्तर के नकारात्मक स्पंदनों से सम्बंधित होता है । पांच वर्ष की अवधि में, अध्यात्म शोध दल ने इस उपकरण का व्यापक रूप में उपयोग किया है, जिसमें विभिन्न वस्तुओं (सजीव एवं निर्जीव) के सूक्ष्म ऊर्जा तथा औरा के लगभग १०,००० पाठ्यांक प्राप्त किए जा चुके हैं । दल का यह अनुभव रहा है कि यूटीएस के आंकडे बहुत सटीक है तथा शोध दल द्वारा लिए गए यूटीएस के आकडों की पुष्टि छठवीं इंद्रिय के माध्यम से प्राप्त पाठ्यांकों से की गई है । यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर के विषय में अधिक पढें – शीघ्र प्रकाशित होगा

आध्यात्मिक शोध में छठवीं इंद्रिय का महत्त्व

यह ध्यान देने की बात है कि यद्यपि यूटीएस जैसे उपकरण बहुत अच्छे आध्यात्मिक शोध उपकरण है, किंतु किसी भी वस्तु (यहां पर यह मिट्टी के नमूने है) से प्रक्षेपित होने वाले सूक्ष्म स्पंदनों का वास्तविक मापन एवं विश्लेषण केवल छठवीं इंद्रिय, जो कि अतिजाग्रत होनी आवश्यक है, के माध्यम से ही किया जा सकता है, ।

सूक्ष्म स्पंदन जानने हेतु मिट्टी के परीक्षण में प्रयुक्त मिट्टी के नमूनों की जानकारी

नीचे इन मिट्टी के नमूनों के संबंध में कुछ प्रासंगिक जानकारी दी गई है, जिनका संग्रहण एवं विश्लेषण इस लेख के लिए किया गया था ।

  1. १. २५ अक्टूबर २०१८ तक, २४ देशों के १६९ मिट्टी के नमूने एकत्रित किए गए और उनका मापन/परीक्षण किया गया । नीचे दी गई तालिका/सारणी में राष्ट्रों के नाम सूचीबद्ध किए गए है ।

    ऑस्ट्रेलिया

    अल सल्वाडोर

    मलेशिया

    सिंगापुर

    ऑस्ट्रिया

    फ्रांस

    माल्टा

    श्रीलंका

    बोलिविया

    जर्मनी

    नेपाल

    स्विट्जरलैंड

    कोलंबिया

    भारत

    कतर

    संयुक्त अरब अमीरात

    क्रोएशिया

    इंडोनेशिया

    रूस

    यूके/ग्रेटब्रिटेन

    मिस्त्र

    लेबनान

    सर्बिया

    अमरीका

  2. संग्रह से मापन तक का औसत समय २.६ दिन था ।
  3. नमूनों को निम्नलिखित प्रकारों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया था तथा नीचे दी गई सारणी/तालिका में प्रत्येक श्रेणीं में विश्लेषण किए गए नमूनों की संख्या दर्शाई गई है ।
क्षेत्र/स्थल का प्रकार नमूनों की संख्या
शहर ५३
ग्रामीण १४
विरासत/धरोहर एवं पर्यटक ३८
धार्मिक स्थल ३८
रेगिस्तान
शमशान घाट तथा कब्रिस्तान १०
समुद्र तट
भारत के गोवा स्थित अध्यात्म शोध केंद्र एवं आश्रम
योग १६९

२.३ मिट्टी के नमूने के परीक्षण से प्राप्त अवलोकन एवं निष्कर्ष

जैसे जैसे नमूनों को जांचना आरंभ किया, एक दिशा/स्थिति स्पष्ट होती चली गई । यूटीएस का उपयोग करते हुए, नमूनों से सकारात्मक सूक्ष्म ऊर्जा पाठ्यांक की अपेक्षा नकारात्मक सूक्ष्म पाठ्यांक अधिक दर्ज हुए । यहां तक कि उन ८ नमूनों (जो आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम से लिए गए) को बाहर करना पडा क्योंकि उनकी उच्च स्तर की सकारात्मकता के कारण विश्लेषण से प्राप्त परिणाम एवं सांख्यिकीय आंकडे (जैसे कि औसतन) बिगड (प्रभावित हो) रहे थे ।

प्रारंभिक विश्लेषण में से, अध्यात्म शोध संस्थान एवं आश्रम के ८ नमूनों को बाहर निकालने के पश्चात, १६१ नमूने बचे थे । २४ देशों से प्राप्त शेष १६१ मिट्टी के नमूनों के संबंध में कुछ प्रमुख आंकडे नीचे दिए गए हैं ।

सारांश - विश्व भर के २४ देशों की मिट्टी के १६१ नमूनों के सूक्ष्म स्पंदन

१. मिट्टी के नमूनों में व्याप्त नकारात्मक औरा/प्रभामंडल (अवरक्त)

  1. ७४ प्रतिशत (१६१ में से ११९) नमूनों में नकारात्मक औरा पाया गया । (इसका अर्थ यह है कि यूटीएस की भुजाएं १८० डिग्री तक खुल गई जहां यूटीएस संचालक वस्तु का औरा मापने हेतु पीछे की ओर चलने में समर्थ हो सका)
  2. ५ प्रतिशत (१६१ में से ९) नमूनों ने नकारात्मक होने के संकेत दर्शाएं क्योंकि यूटीएस की भुजाएं कुछ कोण तक ही खुली किंतु पूर्ण रूप से १८० डिग्री तक नहीं खुली ।
इसका अर्थ यह है कि ७९ प्रतिशत नमूनों में नकारात्मक अवरक्त/इंफ्रारेड औरा था अथवा उनमें कुछ स्तर तक नकारात्मकता व्याप्त थी
२. मिट्टी के नमूनों से नकारात्मक औरा/प्रभामंडल (पराबैगनी)
  1. ३७ प्रतिशत (१६१ में से ६०) नमूनों में उच्च मात्रा में नकारात्मक पराबैगनी औरा पाया गया । पराबैगनी/यूवी औरा का अस्तित्त्व मूल रूप से यह दर्शाता है नमूनों से उच्च तीव्रता के नकारात्मक स्पंदनों का पता चला था ।

३. मिट्टी के नमूनों से सकारात्मक औरा

  1. केवल २० प्रतिशत (१६१ में से ३२) नमूनों में सकारात्मक औरा पाया गया । जिन देशों से मिट्टी के सकारात्मक आंकडे दर्ज किए गए, वे मात्र तीन देश थे – भारत, क्रोएशिया और श्रीलंका ।
  2. क्रोएशिया में भी, केवल अध्यात्मशास्त्र शोध संस्थान के आश्रम से लिए गए मिट्टी के नमूने सकारात्मक थे ।
  3. श्रीलंका में, केवल विरासत/धरोहर वाले स्थल तथा प्रभु श्रीराम से जुडे तीर्थ स्थान जैसे कि प्रतिष्ठित रामसेतु (आदम का पुल) से ही सकारात्मक नमूने आए ।रामसेतु (जिसे आदम का पुल भी कहते है)d. नेपाल से आए मिट्टी के नमूने ने भी सकारात्मकता के कुछ संकेत दर्शाए थे, किंतु वास्तव में उसमें सकारात्मक औरा नहीं था ।

४. मिट्टी की श्रेणी से प्राप्त अवलोकन

सभी प्रकार की मिट्टी के पाठ्यांकों/आंकडों का अवलोकन करने के उपरांत, इस सारणी में प्रत्येक श्रेणी में प्राप्त अधिकतम नकारात्मक पाठ्यांक दर्शाएं गए है । (कृपया ध्यान दें कि पराबैगनी/यूवी आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक स्पंदनों की उच्च तीव्रता को दर्शाती है ।)

मिट्टी की श्रेणी से प्राप्त अवलोकन

  • दर्ज की गई अधिकतम नकारात्मकता के संदर्भ में, जैसा अपेक्षित था, शमशान घाट और कब्रिस्तान में नकारात्मकता का स्तर उच्चतम था । इसमें कोई आश्चर्य नहीं था । आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, ऐसे स्थानों के प्रभाव का मापन, सीमा (परिधि) और तीव्रता में निर्धारित किया गया :
स्थल का प्रकार सूक्ष्म प्रभाव की सीमा सूक्ष्म प्रभाव की तीव्रता
शमशान घाट ५ किलोमीटर -२ %
कब्रिस्तान २० किलोमीटर -१० %

स्त्रोत :आध्यात्मिक शोध

कृपया ध्यान दें : आध्यात्मिक सकारात्मकता एवं नकारात्मकता के संदर्भ में निर्जीव वस्तुओं के लिए मापक/परिमाण क्रमशः +/- ६ प्रतिशत है । इसका अर्थ यह है कि नकारात्मकता के संदर्भ में, -१० प्रतिशत के साथ कब्रिस्तान सारणी में बहुत ही अलग (दूर) स्थान पर हैं तथा उनसे भूमि और वातावरण पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पडता है तथा वह प्रभाव दशकों तथा कुछ प्रसंगों में शताब्दियों तक रह सकता है । दाह संस्कार विरुद्ध शव दफन (शव को गाडना) पर हमारे लेख का संदर्भ लें ।

  • किंतु, आश्चर्य की बात यह थी कि धार्मिक स्थलों की मिट्टी के नमूनों में से दूसरे सबसे अधिक नकारात्मक पाठ्यांक/आंकडे दर्ज किए गए । ऐसा क्यों हुआ, इसका आगे का स्पष्टीकरण आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से मिट्टी का अध्ययन के भाग २ में दिया गया है ।
  • धरोहर वाले एवं पर्यटक स्थलों से प्राप्त हुए नकारात्मक स्पंदनों का अधिकतम स्तर लगभग धार्मिक स्थलों के नकारात्मक स्पंदनों जितना ही उच्च/समान था । इस अध्ययन के भाग २ में, ताजमहल का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से विश्लेषण किया गया है, जिसकी मिट्टी के नमूनों से, सभी धरोहर/विरासत वाले स्थलों की तुलना में, उच्चतम स्तर की नकारात्मकता दर्ज हुई ।
  • शहरी क्षेत्रों के मिट्टी के नमूनों के संबंध में, अधिकतर नमूने नकारात्मक पाए गए । नीचे दी गई सारणी में उन शहरों को सूचीबद्ध किया गया है, जहां की मिट्टी के नमूनों से सबसे अधिक नकारात्मक पाठ्यांक/आंकडे प्राप्त हुए ।
शहर देश/राष्ट्र
एबरडीन यूके
फ्रैंकफर्ट जर्मनी
बोगोटा कोलंबिया
बांडुंग, पश्चिम जावा इंडोनेशिया
एडिलेड ऑस्ट्रेलिया
ल्योन फ्रांस
बाली इंडोनेशिया
जगरेब क्रोएशिया
ला पाज बोलीविया
सैंट पीटर्सबर्ग रूस
वियना ऑस्ट्रिया

ध्यान देने की बात यह है कि सभी देशों की शहरी मिट्टी के नमूनों में नकारात्मकता देखी गई तथा इसका संबंध किसी भी देश के कितने भी आर्थिक रूप से विकसित अथवा विकासशील होने से नहीं था । केवल एक देश, जिसकी शहरी मिट्टी के कुछ नमूनों ने परीक्षण के समय सकारात्मकता का स्तर दर्शाया, वह है भारत ।

  • ग्रामीण क्षेत्रों की मिट्टी के नमूनों में औसतन निम्न स्तर की नकारात्मकता थी ।
  • समुद्रतट की मिट्टी के नमूनों ने, कुछ किलोमीटर दूर स्थित निकट के शहरी क्षेत्र से लिए गए मिट्टी के नमूनों की तुलना में परीक्षण करने पर न्यून नकारात्मकता दर्शाई ।
  • भारत के गोवा स्थित अध्यात्मशास्त्र शोध केंद्र एवं आश्रम से लिए गए किसी भी मिट्टी के नमूनों ने किसी भी प्रकार की नकारात्मकता नहीं दर्शाई, इसके विपरीत इनसे इतनी अधिक स्तर की सकारात्मकता दर्ज की गई जितनी कि अभी तक विश्व भर के किसी भी दूसरे नमूनों में नहीं देखी गई थी ।

३. निष्कर्ष

अब तक का, यह अध्ययन दर्शाता है कि विश्वभर के मिट्टी के नमूनों के सकारात्मक होने की तुलना में नकारात्मक होने की संभावना अधिक है । केवल एक भारत को छोड दें, जहां के सभी प्रकार की मिट्टी के नमूनों में सकारात्मकता की मात्रा पाई गई, तो शेष सभी देशों के आंकडे/पाठ्यांक व्यापक रूप से (बहुत मात्रा में) नकारात्मक थे । इस अध्ययन के अगले भाग में सम्मिलित है :

  1. ताजमहल – अब तक मापे गए सभी धरोहर/विरासत वाले स्थलों की तुलना में सबसे अधिक नकारात्मक स्पंदन इसमें क्यों हैं?
  2. विश्व में दर्ज की गई अब तक की आध्यात्मिक रूप से सबसे पवित्र मिट्टी
  3. भारत में सकारात्मक औरा सहित मिट्टी के नमूने इतनी अनुपात में क्यों थे
  4. मानवजाति वातावरण को कैसे प्रभावित कर रही है ?
  5. इस अध्ययन के क्या मायने हैं ?