SSRF २००९ में, श्रीमती ड्रगाना किस्लोवस्की ने अपने यूरोप स्थित घर के गलियारे में लकडी के फर्श पर छिद्र उभरे देखे । वे यात्रा पर घर से बाहर थीं, उनके सदनिका (अपार्टमेंट)में निवास कर रहे अन्य लोगों को छिद्रों के होने के संदर्भ में कुछ भी पता नहीं था । छिद्र रसोईघर तथा सत्सेवा किए जानेवाले कक्ष के बीच के गलियारे में उभरे थे ।
उनका अनुभव उनके शब्दों में इस प्रकार है :
‘‘छिद्र देखने पर, पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी ने मुझे उन छिद्रों पर हाथ फेरने को कहा तथा मुझे कैसा अनुभव होता है यह बताने को कहा जब मैंने ऐसा किया तो मुझे उन छिद्रों से कष्टदायक शक्ति निकलती प्रतीत हुई और मेरे पेट में वेदना होने लगी । पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी ने उन छिद्रों पर आध्यात्मिक उपचार के रूप में SSRF के मासिक समाचारपत्र का एक प्रिंट तथा खाली बक्से रख दिए । अगले तीन दिनों तक मुझे पेट में वेदना होती रही । तत्पश्चात जब इन छिद्रों का छायाचित्र SSRF के साधक पूज्य अतुल दिघे तथा पूजनीया (श्रीमती) भावना शिंदेजी ने देखा, तो उन्हें कष्ट अनुभव हुआ ।’’