१. परिचय
वर्ष २००० के आसपास, SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र से जुडे साधकों ने अनेक असामान्य चित्र एवं अन्य वस्तुएं शोधकेंद्र में भेजीं । इन वस्तुओं में आकस्मिक परिवर्तन आए थे, जिनका कोई स्पष्ट कारण नहीं था । इनमें वस्तुओं का स्वत: जल जाना, चटकना, दरार पडना, खरोंचें आना, धब्बे आना, छेद हो जाना इस प्रकार के भीषण विरुपण दिखाई दिए । उसी प्रकार के परिवर्तन SSRF के शोधकेंद्र के परिसर में और कुछ जिज्ञासुओं के व्यक्तिगत सामान एवं घरों में भी दिखाई दिए ।
प्रारंभ में साधक इन सभी आश्चर्यचकित करनेवाले परिवर्तनों से स्तब्ध थे क्योंकि इनका कोई स्पष्ट कारण नहीं था । परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी ने तत्काल स्पष्ट किया कि इन वस्तुओं पर सूक्ष्म आयाम की अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण हुआ है और ये ही इन परिवर्तनों का कारण है । तब से हमने इनका अध्ययन जागृत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से तथा बायोफीडबैक उपकरण की सहायता से करना प्रारंभ किया । अब तक हमने निर्जीव वस्तुओं पर इस प्रकार के बिना किसी बाह्य कारण के हुए विचित्र और अपनेआप होनेवाले हजारों परिवर्तनों का सामना और अध्ययन किया है ।
इस भाग में, हम अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित हमारे निर्जीव वस्तुओं के संग्रह का एक छोटा सा भाग और कुछ चुने हुए प्रकरण-अध्ययनों के पीछे का आध्यात्मिक शास्त्र प्रस्तुत करेंगे । इस शोध को बताने का कारण समाज को सूचित करना है कि इस प्रकार की असाधारण घटनाएं होती हैं । इससे आपके अथवा आपके परिवार द्वारा अनुभव की गईं अद्भुत घटनाओं से संबंधित प्रश्नों का उत्तर भी मिलेगा । इसके उपरांत हम SSRF से जुडे साधकों पर शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर हुए आक्रमणों को भी साझा करेंगे I
२. SSRF इन आक्रमणों का अनुभव क्यों कर रहा है ?
छठवीं इंद्रिय के माध्यम से, हमें ज्ञात हुआ कि ये आक्रमण उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों अथवा सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक द्वारा किए गए हैं । आरंभ में हमें आश्चर्य हुआ कि तुलनात्मक रूप में इतनी छोटी संस्था होते हुए भी यह उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां हमारा चयन कर इतनी क्रूरतापूर्वक हम पर क्यों आक्रमण कर रही हैं । समय बीतने पर कारण समझ में आने लगे ।
२.१ SSRF तथा परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कार्य की अद्वितीयता
हममें से अधिकतर लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि विश्व में इष्ट तथा अनिष्ट शक्ति में हो रहे भयंकर सूक्ष्म-युद्ध चल रहा है । अगले दशक तक (वर्ष २०१८ तक) इस युद्ध का एक अंश पृथ्वी लोक पर भी असाधारण प्राकृतिक आपदाओं तथा तृतीय विश्ययुद्ध के रूप में दिखेगा ।
मानव जीवन की विपुल हानि से विश्व पर अत्यधिक गंभीर प्रभाव पडेगा । अगले एक हजार वर्ष तक मानवजाति आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति हेतु इतना प्रयास करेगी जितना उन्होंने कर्इ हजारों वर्षों से नहीं किया है । धर्मयुद्ध समाप्त होने पर ‘मानवजाति में आध्यात्मिक पुनर्जागरण के युग’ का मार्ग प्रशस्त होगा । इसका अर्थ है कि अगले हजार वर्षों में मनुष्य आध्यात्मिक चेतना के सिद्धांत की ओर आकर्षित होगा, जहां मानवजाति शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विश्व के मध्य संबंध को ढूंढने का प्रयास करेगी तथा उच्च स्तरीय आध्यात्मिक चेतना को ढूंढेंगी । आनेवाले हजार वर्ष मानवजाति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि लगभग ४००,००० वर्षों के उपरांत होनेवाले ब्रह्मांड के अंत काल से पूर्व यह कलियुग में इस प्रकार का अंतिम आध्यात्मिक पुनर्जागरण होगा ।
संतों द्वारा चलार्इ जानेवाली गैर सांप्रदायिक आध्यात्मिक संस्थाएं (जैसे SSRF) जिसका आध्यात्मिक शोध उस नए यु्ग में आध्यात्मिक ज्ञान की नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान देगी । इसलिए ऐसी संस्था पर उच्च स्तर के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक सर्वाधिक आक्रमण करते हैं । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी (जिनके आशीर्वाद से SSRF की स्थापना हुर्इ) पर सर्वाधिक आक्रमण हुए हैं । वास्तव में परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के शारीरिक स्तर पर हुए आक्रमण के अतिरिक्त, इस खंड में आप देखेंगे कि निर्जीव वस्तुओं पर हुए अनेकों सूक्ष्मस्तरीय आक्रमणों के अंतर्गत परम पूज्य भक्तराज महाराज तथा उनके शिष्य परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र भी हैं ।
ऐसा इसलिए क्योंकि ये संत अध्यात्म के प्रसार हेतु समष्टि साधना में संलग्न हैं । वास्तविक समष्टि साधना गैर सांप्रदायिक होती है, यह अपवर्जक न होकर सर्वसमावेशक होती है तथा लोगों को उनके आध्यात्मिक पथ के अनुसार मार्गदर्शन करती है । ये व्यष्टि साधना में संलग्न संतों से अलग हैं । व्यष्टि साधना करनेवाले अधिकतर संत अपने ही मार्ग की साधना को प्रसारित करने का प्रयास करते हैं । समष्टि साधना करनेवाले संतों के लिए व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण होता है अर्थात वे अपने अनुयायियों की संख्या पर ध्यान नहीं देते अपितु व्यक्ति के लिए सर्वाधिक योग्य आध्यात्मिक मार्गानुसार उसकी प्रगति पर ध्यान देते हैं ।
सर्वोच्च आध्यात्मिक स्तरवाले संत ही चौथे पाताल से लेकर सातवें पाताल तक के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिकों से युद्ध करने अथवा उनके आक्रमण का सामना कर पाने में सक्षम होते हैं । परिणामस्वरूप इन संतों पर ही अधिकतम आक्रमण होते हैं तथा उनके कार्य में संलग्न साधकों पर भी उनकी तुलना में अल्प मात्रा में आक्रमण होते हैं । अन्य मुख्य बिंदु यह है कि पांचवे अथवा छठे पाताल के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक सामान्य लोगों अथवा अध्यात्मप्रसार हेतु साधना करने में संलग्न न रहनेवाले संतों पर आक्रमण कर अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं गंवाते । समष्टि साधना में संलग्न संत अन्य संतों से अलग होते हैं क्योंकि वे बिना किसी सांप्रदायिक भेदभाव से सभी को साधना करने में सहायता करते हैं । वे र्इश्वर के साधनों का सर्वाधिक प्रभावी ढंग से प्रयोग करते हैं । वे सामान्यतः समाज की सहायता शारीरिक अथवा मानसिक रूप से जैसे दान, सामाजिक कार्य इत्यादि करके न कर पूर्ण रूप से आध्यात्मिक स्तर पर करते हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें भान है कि हमारे जीवन में आनेवाली सभी समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में होता है और उन पर विजय केवल आध्यात्मिक उपचारों से ही प्राप्त की जा सकती है ।
२.२ घटना विरुद्ध उद्देश्य का तुलनात्मक महत्व
अनिष्ट शक्तियों द्वारा सूक्ष्म आक्रमण क्यों एवं कैसे किए जाने हेतु उत्तरदायी कारक | |
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वस्त्रों तथा छायाचित्र पर विशिष्ट स्थान जिस पर आक्रमण हुआ है । इसमें आक्रमण की पद्धति भी सम्मिलित है (दहन, धब्बा, छिद्र इत्यादि) | ३० प्रतिशत |
आक्रमण का उद्देश्य | ७० प्रतिशत |
वे लोग जो इस प्रकार के सूक्ष्म-आक्रमण के साक्षी बनते हैं, उनका प्रभावित होना अथवा स्थूल में हुए आक्रमण जैसे कपडे में बिना कारण के छिद्र होना अथवा देवताओं के चित्र का जल जाना इत्यादि घटनाएं उनके साथ होना स्वभाविक है । आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें ज्ञात हुआ है कि आक्रमण के उद्देश्य का महत्त्व अधिक है । अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्म-आक्रमण करने के लिए अपने साधनों का उपयोग सक्षमता से करती है जिससे वे अपने लक्ष्य पर इच्छित प्रभाव डाल सके जो वास्तव में आक्रमण से भी अधिक परिणामकारक होता है ।
अगले भाग में हम साधकों पर आक्रमण के प्रभाव का वर्णन करेंगे ।
२.३ परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कार्य से जुडे साधकों पर ये आक्रमण क्यों हो रहे हैं ?
अनिष्ट शक्तियों द्वारा सामान्य लोगों पर आक्रमण किए जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :
- प्रतिशोध लेना
- अपनी इच्छाओं/अभिलाषा को पूर्ण करने का प्रयास करना
- दूसरों को कष्ट देकर सुख अनुभव करना
साधक पर आक्रमण का उद्देश्य मुख्यतः उन्हें भयभीत करना तथा उनकी साधना में बाधा निर्माण करना होता है । सूक्ष्म-आक्रमण द्वारा किए गए दहन, खरोंच अथवा छिद्रों से काली शक्ति प्रक्षेपित होती है तथा यह साधक पर आवरण लाती है, जिससे उन पर शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर हानिकारक प्रभाव पडता है । इसके विपरीत जब सामान्य व्यक्ति पर अनिष्ट शक्ति का उसी प्रकार का आक्रमण होता है, तब यह केवल उसे भयभीत करने के लिए अथवा लेन-देन पूर्ण करने के लिए होता है । कुछ प्रकरणों में यह उसके परिचित द्वारा किए गए काले जादू का भी परिणाम हो सकता है ।
२.४ साधकों पर सूक्ष्म-आक्रमण का क्या प्रभाव पडता है ?
जब किसी रासायनिक प्रतिक्रिया अथवा भौतिक प्रतिक्रिया के कारण दहन अथवा छिद्र जैसी घटना होती है, तब किसी भी प्रकार का मानसिक अथवा आध्यात्मिक प्रभाव आसपास के व्यक्ति पर नहीं होता । किंतु अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए गए इस प्रकार के अपसामान्य आक्रमण से पीडित होने पर, कष्ट निम्नलिखित में से एक अथवा सभी स्तरों पर हो सकता है :
- शारीरिक : भारीपन, उलटी आना, पेट दर्द, आंखों के नीचे गहरे गड्ढे, वस्तु से दुर्गंध आना, बेसुध होना, त्वचा का रंग असामान्य होना, कानों का सुन्न हो जाना, कान में दर्द होना, अत्यधिक सिर दर्द होना, शरीर का अकड जाना, हाथ तथा पैरों में सूर्इ चुभोने समान संवेदना होना इत्यादि ।
- मानसिक : भय, स्पष्टता से न सोच पाना, निराशा, आत्महत्या के विचार इत्यादि ।
- आध्यात्मिक : साधना हेतु उत्साह में न्यूनता आना, साधना को टालने का विचार करना, भूतकाल में अनेक सकारात्मक अनुभूतियां होने के पश्चात भी साधना के संदर्भ में शंका होना इत्यादि ।
आक्रमण की तीव्रता साधक के भाव
के समानुपाती होता है । यदि साधक का भाव अधिक है तब सू्क्ष्मस्तरीय मांत्रिक ध्यान अथवा सिद्धियों के माध्यम से तथा निर्गुण शक्ति की सहायता से आक्रमण करता है । इसलिए मान लें कि अनिष्ट शक्ति द्वारा किए गए स्वतः दहन के प्रकरण में यदि वास्तविक रूप से दहन अल्प भी हुआ हो, तो भी काली शक्ति का संचारण उससे अधिक ही होता है ।
जैसे बुरार्इ में भी अच्छार्इ छुपी होती है । वैसे ही परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में SSRF के साधकों को भी इन अनिष्ट अपसामान्य घटनाओं से भी कुछ सकारात्मक ही प्राप्त हुआ है ।
- संकल्प तथा साधकों का विश्वास दृढ हो जाना : जो साधक इनसे प्रभावित हैं, वे इनके हानिकारक प्रभाव को निरस्त करने के लिए साधना तथा आध्यात्मिक उपचारों का उपयोग करते हैं । इससे अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों पर आधारित उनकी साधना के प्रति उनकी श्रद्धा में वृद्धि हुर्इ है ।
- आध्यात्मिक उपचार तकनीक सीखना : अनेक नई आध्यात्मिक उपचार की पद्धतियां सीखने को मिली हैं जो आध्यात्मिक उपचार खंड में प्रकाशित होती रहेंगी ।
इन घटनाओं का अध्ययन : इसने SSRF को आध्यात्मिक आयाम के नकारात्मक तथा छिपे पहलू के संदर्भ में अध्ययन करने का अद्वितीय अवसर प्रदान किया है ।
२.५ परम पूज्य डॉ. आठवलेजी पर ये आक्रमण क्यों हो रहे हैं ?
जैसे कि पहले ही बताया गया है कि उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के अधिकतर आक्रमण परम पूज्य डॉ. आठवलेजी को ही लक्ष्य करते हैं । जब सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक किसी छायाचित्र पर आक्रमण करता है, तब वह आक्रमण छायाचित्र पर न होकर उस व्यक्ति पर होता है जिसका वह छायाचित्र है । उदाहरण के लिए, यदि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के चित्र पर आक्रमण होता है, तब यह प्रत्यक्ष उनके द्वारा भी अनुभव किया जाएगा । यह इस आध्यात्मिक सिद्धांत पर आधारित है कि शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा उसकी शक्ति एक साथ होती है । छायाचित्र का उपयोग कर काला जादू करने के प्रकरण में भी यही सिद्धांत नकारात्मक अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
परम पूज्य डॉ. आठवलेजी पर आक्रमण का उद्देश्य है उनके कार्य को रोकना । उन पर किए जानेवाले आक्रमण विशेष रूप से किया जाता है :
- उन्हें मारने के लिए
- उनकी प्राणशक्ति को न्यून करने तथा उन्हें तीव्र शारीरिक कष्ट देने हेतु
यद्यपि उच्च स्तरीय संतों का अहं अत्यल्प होता है इसलिए उनके मन तथा बुद्धि को प्रभावित नहीं किया जा सकता है । तथापि उनके जीवित रहने के कारण उनके भौतिक देह तथा प्राणशक्ति को प्रभावित किया जा सकता है । संदर्भ हेतु देखें लेख – हमारी निर्मिति किससे हुर्इ है ?
आगे दी गर्इ सारणी में आध्यात्मिक रूप से औसतन व्यक्ति की तुलना में परम पूज्य डॉ. आठवलेजी द्वारा अनुभूत आक्रमण की तीव्रता तथा आक्रमण का सामना करने की क्षमता का दृष्टिकोण प्रदान करता है ।
सामान्य व्यक्ति तथा परम पूज्य डॉ. आठवलेजी पर हुए सूक्ष्म आक्रमण के प्रभाव की तुलना
आक्रमण करनेवाले मांत्रिक का लोक | दूसरा पाताल (патал) | दूसरा पाताल | चौथे से छठा पाताल |
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आक्रमण हुए व्यक्ति / छायाचित्र का प्रकार | आध्यात्मिक रूप से औसतन व्यक्ति | परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र | परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र / परम पूज्य डॉ. आठवलेजी पर प्रत्यक्ष आक्रमण |
आक्रमण की बारंबारता | एक बार | पुनः-पुनः | पुनः-पुनः |
उद्देश्य | व्यक्ति को भयभीत करना | साधकों को भयभीत करना | परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के प्राण लेना |
परिणाम | गंभीर चोटें / व्यक्ति की मृत्यु | परम पूज्य डॉ. आठवलेजी पर थोडा प्रभाव | परम पूज्य डॉ. आठवलेजी की औसत प्राणशक्ति घट जाना |
आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त आगे दी गर्इ सारणी में पिछले एक दशक से परम पूज्य डॉ. आठवलेजी की प्राणशक्ति के औसत स्तर को दर्शाया गया है ।
पिछले एक दशक से परम पूज्य डॉ. आठवलेजी की प्राणशक्ति का औसत स्तर
वर्ष | प्राणशक्ति (प्रतिशत)१ |
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२००० तथा उससे पूर्व | १४०२ |
२००१-२००५ | ६० |
२००६-२०१० | ४०३ |
टिप्पणियां :
१. सामान्य व्यक्ति की प्राणशक्ति का स्तर १०० प्रतिशत होता है ।
२. आध्यात्मिक रूप से प्रगत व्यक्ति की प्राणशक्ति अधिक होती है । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के प्रकरण में उनकी प्राणशक्ति का अधिकांश भाग (जो वर्ष २००० से पूर्व में १४० प्रतिशत था) अध्यात्मप्रसार के स्थूल तथा सूक्ष्म साधनों में निर्दिष्ट हुआ ।
३. जब प्राणशक्ति ३० प्रतिशत से अल्प होती है, तब मृत्यु हो जाती है । १० फरवरी २०१० को जब सूक्ष्म-परीक्षण किया गया तब परम पूज्य डॉ. आठवलेजी की प्राणशक्ति ३४ प्रतिशत थी ।
२.६ इन सूक्ष्म आक्रमणों का समाज के स्तर पर प्रभाव
अनिष्ट शक्तियां समाज को कष्ट देने तथा अस्थिर करने के लिए कटिबद्ध हैं । जबकि दूसरी ओर संत तथा उनके चित्र पृथ्वी पर चैतन्य के संग्रहकेंद्र हैं तथा संसार की सात्विकता में वृद्धि करने में सहायक हैं । यह विशेषकर परम पूज्य डॉ. आठवलेजी जैसे संतों के संदर्भ में हैं जो अध्यात्मप्रसार हेतु साधना में संलग्न हैं । इसलिए एक संत के मार्गदर्शन में बनाए गए देवता के चित्र से भी चैतन्य का वृद्धिंगत मात्रा में प्रक्षेपण होता है । ऐसा इसलिए क्योंकि संत वैश्विक मन तथा वैश्विक बुद्धि से जुडे होते हैं तथा कलाकार को देवता के रूप की सूक्ष्मताओं को विस्तार से बता सकते हैं, इससे अंतिमतः देवता का चित्र अधिक मात्रा में देवता के तत्त्व को ग्रहण करता है । देवताओं के ये चित्र सामान्य कलाकारों द्वारा निर्मित चित्र की तुलना में पृथ्वी पर अत्यधिक मात्रा में चैतन्य की निर्मिति करते हैं ।
परिणामस्वरूप देवताओं तथा संतों के छायाचित्रों पर आक्रमण कर सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक साधक तथा समाज को उन चित्रों से होनेवाले व्यापक आध्यात्मिक लाभ को प्रभावी रूप से अल्प कर देता है । साथ ही सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक चैतन्य को और आगे फैलने से रोकने का प्रयास करता है ।
यदि एक चित्र पर आक्रमण हुआ है, तो अन्य साधकों के घर रखे उसी प्रकार के चित्र भी समान रूप से प्रभावित होंगे । किंतु जिस चित्र पर आक्रमण हुआ है उसकी तुलना में उसी प्रकार के चित्र पर नगण्य मात्रा में प्रभाव होंगे ।
२.७ क्या सामान्य लोग इस प्रकार के सूक्ष्म आक्रमणों से पीडित होते हैं ?
उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा सामान्य व्यक्ति पर किया गया इस प्रकार का सूक्ष्म-आक्रमण कदाचित ही होता है । अति दुर्लभ प्रसंगों में, उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां सामान्य व्यक्ति पर आक्रमण मात्र उसे भयभीत करने के उद्देश्य से करती हैं । ऐसा होने की संभावना
- व्यष्टि साधना करनेवाला व्यक्ति – १००,००० में १
- अध्यात्मप्रसार हेतु साधना करनेवाला व्यक्ति – १००० में १
- काल घटक के अनुसार अर्थात चूंकि विश्व बदलते युग के संधिकाल में तथा सूक्ष्म-युद्ध के मध्य है ।
यद्यपि सामान्य व्यक्ति के साथ इस घटना के होने की संभावना अत्यल्प है, तथापि जानकारी होना अच्छा होगा । यह इसी सिद्धांत के अनुसार है जैसे हम चांद अथवा मंगल ग्रह कैसा होगा यह जानने की जिज्ञासा रखते हैं; किंतु वास्तव में हममें से अधिकतर लोग वहां नहीं गए हैं ।
३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा की गर्इ विरूपता तथा मानव-निर्मित विरूपता में अंतर कैसे करें ?
अनिष्ट शक्तियों द्वारा हुर्इ घटनाएं तथा नियमित रासायनिक प्रतिक्रिया अथवा भौतिक साधन दवारा हुर्इ घटनाओं में अंतर निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है :
- बाह्य प्रभाव की अनुपस्थिति : बिना किसी बाह्य प्रभाव अथवा तार्किक कारण हुर्इ घटना / प्रसंग
- होने की गति : बिना किसी बाह्य संवेदना के अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित प्रसंग अथवा घटना की गति अथवा आकस्मिकता एक मुख्य विशेषता है ।
- वस्तुओं में परिवर्तन : वस्तुओं को बिना प्रयोग किए तथा बिना काटे-छाटे उसमें विरूपता जैसे छिद्र होना, स्वतः उनके आकार तथा माप में परिवर्तन होना ।
- घटना की प्रक्रिया : जिस पद्धति से उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां घटना की निर्मिति करती हैं, वह सामान्य रासायनिक परिवर्तन से अति भिन्न होता है । उदाहरण के लिए अनिष्ट शक्तियों द्वारा छिद्र करने की प्रक्रिया पदार्थ पर सूक्ष्म-अम्ल गिराकर उसे जैसे कपडे को जलाने समान हो सकती है । यद्यपि यह केवल प्रगत छठवीं इंद्रिय द्वारा ही समझा जा सकता है ।
पहले तीन बुद्धि के माध्यम से पहचाने जा सकते हैं; किंतु अंतिम बिंदु केवल छठवीं इंद्रिय द्वारा अनुभव किया जा सकता हैं ।
४. इन आक्रमणों के प्रभाव की कालावधि कितनी होती है ?
अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित अपसामान्य घटनाओं तथा प्रसंगों का प्रभाव वस्तु पर सदा के लिए भी रह सकता है; किंतु प्रभाव की अवधि उसे (निर्मित करनेवाले) सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक की क्षमता पर निर्भर करता है । कुछ प्रकरणों में व्यक्ति आक्रमण के प्रभाव को अल्प अथवा निष्क्रिय करने के लिए आध्यात्मिक उपचार करता है । अन्य प्रकरणों में, प्रभावित वस्तु का आगे उपयोग कष्ट को बढा सकता है, इस कारण से वैसी वस्तुओं का प्रयोग न करना ही श्रेयस्कर होगा । तब यही सर्वोत्तम होगा कि उसे जलाशय जैसे नदी, तालाब, समुद्र आदि में विसर्जित कर दिया जाए ।
५. अपनी रक्षा के लिए क्या किया जा सकता है ?
नकारात्मक अपसामान्य घटनाओं के प्रकरण जिसमें व्यक्ति को हानि पहुंचानी होती है, उससे रक्षण हेतु उसके लिए सबसे श्रेष्ठ होगा अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करना । इसमें आध्यात्मिक माध्यमों से प्रवृत आक्रमण जैसे काला जादू, भूतावेश इत्यादि सम्मिलित है । कृपया संदर्भ हेतु हमारा खंड आध्यात्मिक उपचार तथा साधना देखें ।