भारतीय शास्त्रीय संगीत तथा नृत्य की उत्पत्ति में भारतीय मंदिरों का महत्व

क्या आप जानते हैं कि स्थान से कोई भी संगीत और नृत्य प्रदर्शन आध्यात्मिक रूप से प्रभावित होता है ? यदि किसी स्थान में व्याप्त सूक्ष्म स्पंदन नकारात्मक हैं, तो इससे प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है, भले ही वह प्रदर्शन भक्तिमय प्रकृति का ही क्यों न हो ।

विषय सूची

सार/संक्षेप :

भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की उत्पत्ति भारत के मंदिरों में हुई थी । क्योंकि भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य का मुख्य उद्देश्य कलाओं के माध्यम से कलाकारों को ईश्वर अथवा मंदिर के देवता की पूजा करने हेतु एक माध्यम बनाना था । मंदिरों में स्वाभाविक रूप से व्याप्त आध्यात्मिक शुद्धता (सात्विकता) का कलाकार पर सकारात्मक प्रभाव हुआ, और फलस्वरूप उसका प्रदर्शन आध्यात्मिक रूप से उन्नत हुआ । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध दल ने यह समझने के लिए एक शोध अध्ययन किया कि किसी स्थान में विद्यमान आध्यात्मिक शुद्धता (सात्विकता) अथवा नकारात्मकता संगीत अथवा नृत्य प्रदर्शन को कैसे प्रभावित कर सकती है । शोध अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि मंदिर और आश्रम (उचित देख रेख में रखे जाने पर) ऐसे स्थान हैं जिनमें उच्च स्तर की आध्यात्मिक सकारात्मकता (सात्त्‍विकता) होती है । इससे कलाकार एवं दर्शकों के सकारात्मक प्रभामंडल में वृद्धि होती है । इसके विपरीत, मुख्य रूप से सांसारिक प्रदर्शनों के लिए उपयोग किए जानेवाले सभागार/रंगशालाएं/ऑडिटोरियम और संगीत – कार्यक्रमों के सभागारों (कॉन्सर्ट हॉल) का भक्तिमय प्रदर्शनों पर आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पडता हैं ।

टिप्पणी : कृपया ध्यान दें कि नीचे दिया गया विषय उपरोक्त चित्रपट (वीडियो) का एक प्रतिलेख है । इस प्रतिलेख को पढते समय आप इसका सन्दर्भ ले सकते हैं ।

१. प्रस्तावना

आज के विश्व में जब हम किसी नृत्य अथवा गायन प्रदर्शन में भाग लेने के बारे में सोचते हैं, तो पहली बार में हमारे मन में वहां के स्थान के रूप में कदाचित किसी मंदिर का विचार तो नहीं होता है । हम किसी सभागार (ऑडिटोरियम) के अथवा यहां तक कि लोगों से खचाखच भरे हुए, बहुत अधिक प्रकाशमय, उच्च-तकनीकी के उपकरण और श्रव्य – दृश्य प्रभाव (ऑडियो-विजुअल इफेक्ट) से युक्त किसी मैदान/स्टेडियम जैसे स्थान के बारे में सोचते होंगे । उस वातावरण की बात ही कुछ और होती है। हम में से कई लोगों को, अथवा कम से कम भारत में युवा पीढी को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य, जो कदाचित विश्व में सबसे प्राचीन प्रदर्शन कला है, उसकी उत्पत्ति वास्तव में पूरे भारत के मंदिरों में हुई थी ।

इस चित्रपट (वीडियो) में, हम भारतीय मंदिरों का महत्व और उनके भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की परम्परा में योगदान की खोज करेंगे । क्या आप जानते हैं कि भारत में २० लाख (२ मिलियन) से भी अधिक मंदिर हैं ? इनमें से कुछ मंदिर बहुत प्राचीन हैं तथा वे हमारे पास कार्य हेतु किसी आधुनिक वास्तुशिल्प उपकरण के आने के बहुत पूर्व से ही भारतीय वास्तुकला की उत्कृष्टता के उदाहरण हैं ।

विश्वविद्यालय में, हमने प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनुसार संगीत और नृत्य की उस अनुपमता को पुनः उजागर करने का प्रयास किया है, जहां कलाकार अपनी कलाओं के माध्यम से आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने के साधन के रूप में मंदिरों और पूजा स्थलों में प्रदर्शन करते थे और प्रत्येक कलाकार की कला का रूप ईश्वर-प्राप्ति के लिए उसका मार्ग था । विश्वविद्यालय में सभी आध्यात्मिक शोधों का मार्गदर्शन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा किया जाता है । परात्पर गुरु एक ऐसे संत और सर्वोच्च कोटि के गुरु होते हैं, जिनका आध्यात्मिक स्तर बहुत उच्च होता है ।

२. भारतीय मंदिरों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य स्वरूपों की उत्पत्ति

अतः, प्राचीन काल में मंदिरों में देवता के समक्ष प्रदर्शन करते समय, कलाकार वास्तविक रूप में ईश्वर के साथ अपने संबंध को अनुभव कर पाते तथा ऐसा करवे भक्ति तथा ईश्वर के लिए प्रेम में डूब जाते । उनके प्रदर्शन को देखनेवाले दर्शक भी भावावस्थामें चले जाते । भक्तों  के कारण मंदिर में देवता तत्त्व अधिक मात्रा में आकर्षित होता, और वातावरण आध्यात्मिक रूप से भारित हो जाता था । इन सबसे सभी को आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता था । भारतीय मंदिर संपूर्ण समुदायों की आध्यात्मिक प्रगति एवं कल्याण के साधन थे ।

मैं अब आपको प्राचीन समय में ले जाना चाहता हूं तथा आपके साथ गोवा के एक ऐसे ही प्राचीन मंदिर, तांबडी सुरला स्थित श्री महादेव मंदिर का एक छोटा सा चित्रपट (वीडियो) साझा करना चाहता हूं । यह मंदिर अब भारतीय पुरातत्व सोसायटी का एक अंश है तथा इसे एक धरोहर स्थल माना जाता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की नृत्यांगनाओं ने इस मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान शिव के शिवलिंग के सामने ठीक उसी प्रकार नृत्य प्रदर्शन किया जैसे प्राचीन काल में किया जाता था । इस नृत्य प्रदर्शन का उद्देश्य यह समझना था कि उस काल के नर्तक क्या अनुभव करते थे । तथा हमें इससे प्राचीन भारतीय कला के रूप के अध्यात्म शास्त्र एवं क्षमता में और अधिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करने की आशा थी । ऐसा करने में, हमने भारत द्वारा विश्व को दी गई प्रदर्शन कलाओं की इस भूली हुई धरोहर को पुनः उजागर करने की आशा व्यक्त की ।

३. ताम्बडी सुरला स्थित श्री महादेव मंदिर में नृत्य प्रदर्शन के पश्चात एक कलाकार के सकारात्मक प्रभामंडल में वृद्धि होना

किसी भी वस्तु के आध्यात्मिक प्रभाव का आकलन करने हेतु उन्नत छठवीं इन्द्रिय का होना आवश्यक है । यह किसी भी घटना के आध्यात्मिक अथवा सूक्ष्म प्रभावों का आकलन करने का प्राथमिक तरीका है । यद्यपि, वर्तमान में,  प्रभामंडल और ऊर्जा स्कैनरों के आने से, हम लोगों, वस्तुओं, स्थलों और, उस पदार्थ/विषय के लिए, किसी भी संदीपन से प्रक्षेपित होनेवाले सूक्ष्म स्पंदनों के बारे में निष्पक्ष रूप से परिणाम प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं ।

मंदिर में प्रतिष्ठित/विद्यमान शिवलिंग एवं भगवान् शिव के चित्र के प्रभामंडल में हुए परिवर्तनों के साथ नृत्यांगनाओं के प्रभामंडल में हुए परिवर्तनों का आकलन करने तथा उसे मापने के लिए हमने इस नृत्य प्रदर्शन का अध्ययन यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर के रूप में विख्यात  एक उपकरण के माध्यम से किया ।

इस स्लाइड पर, हमने एक प्रदर्शन से पूर्व और पश्चात में पाए गए प्रभामंडलों के पाठ्यांकों (रीडिंग) को प्रदर्शित किया है, और आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि प्रदर्शन के पश्चात सकारात्मकता में किस प्रकार वृद्धि हुई । इस सारणी में, हमने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में एक साधक कलाकार द्वारा निर्मित भगवान शिव के चित्र के पाठ्यांकों को सम्मिलित नहीं किया है । ऐसा इसलिए क्योंकि इस चित्र के प्रभामंडल पाठ्यांक बहुत अधिक हैं ।

जैसा कि आप इस सारणी से देख सकते हैं कि जहां हमने इसे सम्मिलित किया है, वहां सभी पाठ्यांकों का अनुपात परिवर्तित हो जाता है । इससे यह ज्ञात होता है कि जब किसी देवता का चित्र आध्यात्मिक रूप से अधिक सटीक होता है, तो वह देवता के तत्त्व को अधिक आकर्षित करता है और फलस्वरूप उसका सकारात्मक प्रभामंडल अधिक होता है । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि देवता के ऐसे चित्रों का अत्यधिक आध्यात्मिक महत्त्व होता है तथा इससे श्रद्धालुओं और समाज को लाभ होता है । अब आप ध्यान दें कि ये नृत्यांगनाएं प्राथमिक रूप से साधक हैं, तथा वे महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन में अपनी साधना करने और ईश्वर की ओर जाने हेतु एक मार्ग के रूप में अपनी नृत्य कलाओं का अभ्यास करती हैं । हम आपके साथ मंदिरों में हमारे द्वारा किए गए ऐसे कुछ आध्यात्मिक शोधों को साझा करेंगे जो यह सिद्ध करने के लिए किए गए थे कि‍ वे (मंदिर) भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य कलाओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण थे तथा अभी भी हैं ।

४. स्थान का किसी प्रदर्शन के आध्यात्मिक स्पंदनों में कैसे योगदान हो सकता है ?

इस प्रकार के भक्ति प्रदर्शनों के लिए मंदिरों का चयन क्यों किया गया, इसका एक कारण स्वयं वह स्थान था । मंदिरों को उचित देखभाल को साथ रखे जाने पर, वह मंदिर वहां प्रतिष्ठित देवता के समानार्थी आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र बिंदु होते हैं और उनमें उच्च स्तर की सकारात्मकता होती है । आध्यात्मिक रूप से शुद्ध (सात्त्विक) ऐसे स्थानों पर प्रदर्शन करने से, नर्तक एवं संगीतकार इन मंदिरों में स्वाभाविक रूप से व्याप्त सात्विकता का लाभ प्राप्त करते हैं । आपको एक उदाहरण देने के लिए, जिस प्रकार एक सर्फर (समुद्र की लहरों पर पैरों में पहनी एक पट्टी की सहायता से लहराने वाला) एक लहर को पकडता है और पश्चात उसी के साथ चलता जाता है, उसी प्रकार, भारतीय शास्त्रीय कलाकार भी चैतन्य की तरंग को ग्रहण करने और उसके साथ एकरूप होकर प्रदर्शन करने में सक्षम होता है । यह कुछ ऐसा है जिसे हमारे पूर्वज सहज रूप से जानते थे ।

हमने यह वर्णित करने के लिए कि कैसे कोई स्थान एक महत्वपूर्ण कारक होता है, जो किसी भी प्रदर्शन के आध्यात्मिक स्पंदनों में योगदान देता है, इस पर एक प्रयोग किया । हमने विश्वविद्यालय में संगीत विभाग की एक गायिका तेजल से तीन स्थानों पर एक ही भक्ति गीत गाने का अनुरोध किया । प्रथम स्थान एक सभागार था, जिसका उपयोग प्रायः संगीत और नृत्य में प्रसिद्ध लोगों के प्रदर्शनों के लिए किया जाता था । दूसरा स्थान दुर्गादेवी, जो ईश्वर का बुराई को दूर करने हेतु उत्तरदाई एक तत्त्व है, से संबंधित एक मंदिर था । इस मंदिर में सक्रिय अनुष्ठान तथा भक्तिमय पूजा होती है । तीसरा स्थान आध्यात्मिक शोधकेंद्र एवं आश्रम का प्रसारण-कक्ष (स्टूडियो) था, जहां पर उच्च स्तर की आध्यात्मिक शुद्धता (सात्त्विकता) पाई गई है । वास्तव में, एक अन्य प्रयोग में, आध्यात्मिक शोधकेंद्र के भीतर से एकत्र किए गए मिट्टी और जल के नमूनों को ३२ राष्ट्रों से विश्वभर में एकत्र किए गए १००० से अधिक नमूनों में से सकारात्मक प्रभामंडल में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ । अतः हम आपको इस साधक-गायिका द्वारा तीनों स्थानों पर प्रदर्शन करते हुए एक चित्रपट (वीडियो) दिखाने जा रहे हैं ।  मैं अनुरोध करता हूं कि जब आप इस चित्रपट को देख रहे हों, तो आप प्रदर्शन एवं स्थल के स्पंदनों को अनुभव करने का प्रयास करें । आप यह भी अनुभव करने का प्रयास कर सकते हैं कि ‍वे प्रत्येक स्थल पर कैसे भिन्न हैं ।

५. तीन भिन्न-भिन्न स्थानों पर आयोजित हुए एक संगीत प्रदर्शन से प्रक्षेपित आध्यात्मिक स्पंदनों का तुलनात्मक अध्ययन

तो आपको क्या अनुभव हुआ ? अब आपने जो अनुभव किया उसे ध्यान में रखें, और अब देखते हैं कि यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर ने क्या पाठ्यांक(रीडिंग) दर्शाए ।

इस सारणी में, हमने तीनों स्थानों में कलाकार तथा देवता के चित्रों के प्रभामंडल पाठ्यांकों को प्रदर्शित किया है । इसके अतिरिक्त, हमने उस मंदिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा के पाठ्यांक प्रदर्शित किए हैं जहां प्रदर्शन हुआ था । जैसा कि आप देख सकते हैं, आश्रम तथा मंदिर में हुए प्रदर्शनों का सकारात्मक प्रभाव पडा । इसके विपरीत, ठीक उसी प्रदर्शन के सभागार में सकारात्मक प्राभमंडल न्यून हो गए थे, अर्थात इसका नकारात्मक प्रभाव पडा । योग्य प्रकार से देख रेख करने पर, मंदिर तथा आश्रम आध्यात्मिक सकारात्मकता के केंद्र होते हैं, जो भक्तिमय प्रदर्शन में वृद्धि करते हैं । दूसरी ओर, सभागार में सामान्यतया बहुत न्यून अथवा कोई सकारात्मकता नहीं होती ।  चूंकि उन्हें मुख्य रूप से सांसारिक कार्यक्रमों एवं मनोरंजन के लिए उपयोग किया जाता हैं, सभागार (कंसर्ट हॉल) प्रायः नकारात्मक स्पंदनों को आकर्षित करते हैं । वातावरण में व्याप्त ये नकारात्मक स्पंदन वास्तव में भक्तमय प्रदर्शन की आध्यात्मिक सकारात्मकता (सात्त्विकता) को न्यून करते हैं । इसीलिए परिसर की आध्यात्मिक शुद्धता करना आवश्यक है, लेकिन दुख की बात है कि अधिकांश सभागार और रंगशालाओं की नियमित रूप से आध्यात्मिक शुद्धतानहीं होती । इस सारणी में, हमने आश्रम में प्रदर्शन कर रहे पूरे समूह के प्रभामंडल के पाठ्यांकों में आए परिवर्तन को दर्शाया है । जैसा कि आप देख सकते हैं, पूरे समूह की सकारात्मकता में कई गुना वृद्धि हुई थी । गहरे नारंगी रंग की पट्टियां प्रदर्शन के पश्चात के पाठ्यांकों को दर्शाती हैं ।

इस स्लाइड में, आप सभागार में पूरे दल के प्रभामंडल में हुआ परिवर्तन देख सकते हैं ।  जैसा कि आप देख सकते हैं, हमने Y-अक्षरेखा का पैमाना वही रखा है । अतः कुल मिलाकर, जैसा कि आप देख सकते हैं कि प्रदर्शन के कारण सकारात्मक प्रभामंडल न्यून हो गया था । साथ ही, आरम्भ में प्रभामंडल के पाठ्यांक बहुत न्यून थे । अर्थात किसी सभागार के परिसर में कलाकार केवल प्रवेश करने ही, वह अपने प्रदर्शन को न्यून सकारात्मक प्रभामंडल के स्तरों पर आरम्भ करेगा, वह भी केवल तब, जब  प्रदर्शन आरम्भ करने के लिए उसका प्रभामंडल सकारात्मक होगा । आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि सभागार (कंसर्ट हॉल) में प्रदर्शन के पश्चात देवता का वह चित्र, जिसमें सामान्य रूप से उच्च स्तर का सकारात्मक प्रभामंडल होता है, उसमें नकारात्मक प्रभामंडल निर्मित हुआ ।

६. कलाकारों की अनुभूतियां

अतः, प्रदर्शन के पश्चात तेजल को क्या लगा ? तेजल, गायिका, ने यह साझा किया कि :

“मंदिर में गाते समय, मुझे यह अनुभव हुआ कि देवी गीत सुन रही हैं, और अंत में, मेरा भाव जागृत हो गया । आश्रम प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में गाते समय, यह सहज था, और मैं ध्यान की अवस्था में जा रही थी । इसके विपरीत, सभागार (कॉन्सर्ट हॉल) में उसी गीत को गाते समय, मैं बहिर्मुखी हो गई थी और बहुत भारीपन अनुभव हुआ ।

मूल रूप से, बहिर्मुखता से, तेजल ने स्पष्ट किया है कि उसके विचार सांसारिक अर्थों में उसके प्रदर्शन के बारे में और लोगों ने उसे कैसे समझा, इस पर अधिक थे । अब, आप ध्यान दें, तेजल जागृत छठी इंद्रिय से युक्त एक गायिका है, और इसलिए वह अपने प्रत्येक प्रदर्शन से सम्बंधित सूक्ष्मताओं को समझने में सक्षम थी । यह सब उनकी २ दशकों से अधिक की साधना के कारण था ।

सितार वादन करनेवाले साधक मनोज ने बताया कि :

“मंदिर में सितार बजाते समय, मुझे बहुत आनंद का अनुभव हुआ और प्रदर्शन के पश्चात, मेरे मन की बहुत ही शांत अंतर्मुखी अवस्था हो गई (मन की एक ऐसी अवस्था जहां व्यक्ति अपने आंतरिक आध्यात्मिक स्व पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है) । आश्रम प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में मुझे अपार आनंद की अनुभूति हुई । जबकि सभागार (कॉन्सर्ट हॉल) में सितार बजाते समय मेरा मन विचलित हुआ और मुझे आनंद अनुभव नहीं हुआ ।

तबला वादक साधक गिरिजय ने साझा किया कि :

“जब मैं मंदिर में तबला बजा रहा था, तब मेरा भाव जाग्रत हो रहा था । मैं मन की शांतिपूर्ण अवस्था अनुभव कर रहा था । आश्रम प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में तबला बजाते समय, सदैव के समान, मैं मन की निर्विचार अवस्था में चला गया । वहां बजाते समय मुझे भीतर से आनंद अनुभव हो रहा था । इसके विपरीत, सभागार (कॉन्सर्ट हॉल) में प्रदर्शन करते समय, मुझे यह विचार आने लगे कि मैं एक पेशेवर (व्यावसायिक) कलाकार हूं, जो कि दर्शकों के लिए प्रदर्शन कर रहा हूं । वह एक भक्ति गीत होने पर भी मुझे ईश्वर से कोई आध्यात्मिक जुडाव अनुभव नहीं हुआ ।

७. साधना एवं इससे साधक कलाकारों को कैसे सहायता प्राप्त होती है

अब मैं आपके साथ इन पाठ्यांकों (रीिडंग्स) के महत्व को साझा करने के लिए एक क्षण लेना चाहता हूं । सभी कलाकार और दर्शक कई वर्षों से साधना कर रहे हैं ।

विश्वविद्यालय में समस्त संगीत और नृत्य दल को कई वर्षों तक किसी सुर पर गाने से, किसी वाद्य यंत्र बजाने से, अथवा किसी नृत्य को करने से दूर रहने हेतु निर्देशित किया गया था । वस्तुतः, उनका ध्यान विभिन्न प्रकार की साधनाओं पर केंद्रित था ।

साधना के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक थे स्वभाव दोष निर्मूलन का अभ्यास और अहं निर्मूलन का अभ्यास, जो आध्यात्मिक प्रगति के किसी भी प्रयासों का आधार हैं । यहां कलाकारों ने क्रोध, अहं, ईर्ष्या, और असुरक्षा जैसे स्वभाव दोषों को दूर करने लिए – मूल रूप से, उन्हें नियंत्रित और न्यून करने के लिए पहले स्वयं पर कार्य किया । एक कला के रूप में प्रदर्शन कला कुछ ऐसी है जहां व्यक्ति का अहं बहुत सहजता से बढ सकता है । यद्यपि कोई सचेत भी हो, तब भी ऐसे कई तरीके हैं, जिनसे किसी कलाकार में अहं बढ सकता है और नकारात्मकता में वृद्धि हो सकती है । अहं एक फिसलन भरी ढलान के समान है, जो सहजता से एक कलाकार को आध्यात्मिक रूप से नीचे ला सकता है, भले ही उसका प्रदर्शन तकनीकी रूप से परिपूर्ण हो ।

आपको एक उदाहरण देने के लिए, इस प्रयोग की गायिका तेजल, जो विश्वविद्यालय में संगीत विभाग की समन्वयक भी हैं, ने १९९८ में साधना आरम्भ की और २०१६ में केवल विभाग के लिए ही गायन आरम्भ किया । इससे पूर्व १८ वर्ष तक, यद्यपि उनकी गायन की पृष्ठभूमि थी, गायकी का प्रशिक्षण लिया था एवं उनमें प्रतिभा थी, तब भी वह सब छोडकर उन्होंने साधना पर ध्यान केन्द्रित किया । इन वर्षों में, उन्होंने एक उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया । इतने वर्षों की साधना के उपरांत भी, वह सभागार के वातावरण के नकारात्मक स्पंदनों से प्रभावित हुई थीं । अतः मूल रूप से, यदि वह नकारात्मक रूप से प्रभावित हो गई, तो आध्यात्मिक रूप से औसत कलाकार के पास क्या अवसर होगा, चाहे वह तकनीकी रूप से कितना भी परिपूर्ण क्यों न हो ?

८. शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर व्यक्ति के प्रभामंडल में नकारात्मक स्पंदनों का प्रभाव

इस बात पर बल देना महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति को अपने प्रभामंडल पर पडे प्रभाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए । वास्तव में, जब तक इसका प्रभाव हमारे शारीरिक और मानसिक देहों पर दिखाई दे, उससे पूर्व ही इससे हमारे तंत्र में विद्यमान सूक्ष्म ऊर्जा सर्वप्रथम प्रभावित होती है । यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जब हमारा प्रभामंडल नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है, तो इससे हमारी भौतिक देहों पर नकारात्मक प्रभाव पडता है, परिणामस्वरूप सुस्ती और भारीपन लगने जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है, जो अंततः विभिन्न रोगों और व्याधियों के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं । मानसिक रूप से भी, इससे आक्रामक व्यवहार, नकारात्मक सोच अथवा अवसाद निर्माण हो सकता है । बौद्धिक स्तर पर, हमारे प्रभामंडल में नकारात्मकता में वृद्धि होना हमारे विचारों की स्पष्टता को प्रभावित कर सकता है, हमारे निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित कर सकता है तथा मानसिक अस्थिरता में वृद्धि कर सकता है । अंततः, हमारे प्रभामंडल में व्याप्त नकारात्मकता आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने की हमारी क्षमता को न्यून कर देती है और अनिष्ट शक्तियों द्वारा हम पर आक्रमण किए जाने की संभावना को बढा देती है । और यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि जब ऐसा होता है, तो इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति दुख अनुभव करता है, जिसे हममें से कोई भी अपने जीवन में नहीं चाहता ।

अब, कलाकारों, विशेष रूप से प्रसिद्ध कलाकारों को प्रायः जिस आध्यात्मिक समस्या का सामना करना पडता है, वह यह है कि ‍वे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के लक्ष्य बन जाते हैं । क्योंकि उनके माध्यम से, अनिष्ट शक्तियां एक ही बार में प्रदर्शन देखनेवाले लोगों के बडे समूहों को प्रभावित कर सकती हैं । वैसे भी कलाकार तथा ‍वे लोग जो बडे दर्शक वर्ग के सामने उपस्थित होते हैं, वे कदाचित ही साधना तथा स्व-उपचार के रूप में आध्यात्मिक उपचार करते हैं ।

९. शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों पर व्यक्ति के प्रभामंडल में नकारात्मक स्पंदनों का प्रभाव

हमने दो नृत्यांगनाओं के साथ एक और प्रयोग भी किया – एक ने भरतनाट्यम नृत्य का प्रदर्शन किया, और दूसरे ने कत्थक भारतीय नृत्य शैली का प्रदर्शन किया ।  गायन के प्रयोग के समान ही, इन नृत्यांगनाओं ने एक सभागार , एक मंदिर और आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम के प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में दुर्गादेवी के लिए एक भक्तिपूर्ण नृत्य किया । मैं आपको तीनों स्थलों पर हुए इन दोनों प्रदर्शनों का चित्रपट (वीडियो) दिखाना चाहता हूं । पुनः, इन प्रदर्शनों को देखते हुए, प्रयास करें और देखें कि इन प्रदर्शनों को देखते समय आपको क्या अनुभव होता है< विशेष रूप से यदि स्थल के आधार पर प्रदर्शनों में आपको कोई भिन्नताएं ध्यान में आती हो ।

चित्रपटों को देखते समय आप सभी को क्या अनुभव हुआ ? क्या आप प्रत्येक स्थान में हुए प्रदर्शन में अंतर अनुभव कर पाए? अब, आइए देखें कि यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर के अनुसार प्रभामंडल के पाठ्यांक क्या थे ।

जैसा कि आप इस सारणी से देख सकते हैं कि संगीत प्रदर्शन के समान ही, आश्रम और मंदिर परिसर में नृत्यांगनाओं के सकारात्मक प्रभामंडल में वृद्धि हुई । किन्तु, सभागार में वह न्यून हो गया । यह सारणी देवी दुर्गा के लिए भरतनाट्यम नृत्य करनेवाली नृत्यांगना की है ।

और यह सारणी देवी दुर्गा के लिए कत्थक नृत्य शैली का प्रदर्शन करनेवाले नृत्यांगना की यूएएस से लिए प्रभामंडल पाठ्यांक की है । जैसा कि आप देख सकते हैं, यद्यपि नृत्य प्रदर्शन ठीक एक ही समान थे; किन्तु प्रत्येक स्थान में ऊर्जा के स्तर में अंतर था । तदनुसार, देवी दुर्गा के चित्र से सम्बंधित ऊर्जा भी आश्रम और मंदिर में  बढ गई थी और सभागार में घट गई थी । अतः, इससे सभागार में ऐसा प्रदर्शन करने का उद्देश्य (परिणाम) निरस्त (विपरीत) सिद्ध हुआ, जहां व्यक्ति में भक्ति नृत्य से सकारात्मकता में वृद्धि होने के स्थान पर, वास्तविक रूप से उसके नकारात्मक प्रभामंडल में वृद्धि हुई ।

ऐसा केवल कलाकार के सन्दर्भ में ही नहीं था, अपितु दर्शकों तथा उन घुंघरूओं के सन्दर्भ में भी था जो नृत्यांगना ने नृत्य के लिए अपने पैरों पर धारण किए थे। इस सारणी में, हमने कत्थक नृत्यांगना के पाठ्यांक तथा आश्रम और सभागार के मध्य उसका नृत्य किस प्रकार भिन्न था, यह दर्शाया है । आप देख सकते हैं कि किस प्रकार आश्रम में ऊर्जा का स्तर बहुत अधिक है तथा सभागार में वह बहुत न्यून हैं । यहां पर पुनः, देवी दुर्गा के चित्र से नकारात्मक प्रभामंडल निर्मित हुआ । अब मैं साझा करना चाहता हूं कि तीनों स्थानों पर नृत्य करते समय नृत्यांगनाओं ने स्वयं क्या अनुभव किया ।

१०. नृत्यांगनाओं की अनुभूतियां

कत्थक नृत्य शैली का प्रदर्शन करनेवाली नृत्यांगना शर्वरी ने साझा किया कि

“जब मैं मंदिर में नृत्य कर रही थी, तब मुझे दुर्गा देवी की प्रबल उपस्थिति अनुभव हुई, और मुझे अनुभव हुआ कि मैं उनके प्रभामंडल की छत्रछाया में नृत्य कर रही हूं । आश्रम के प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में वही नृत्य करते समय मुझे देवी के दर्शन हुए और मेरा भाव जाग्रत हुआ । इसके विपरीत, जब मैं सभागार में नृत्य कर रही थी, तो मुझे दबाव अनुभव हुआ और मुझे दुर्गादेवी के साथ कोई एकरूपता अनुभव नहीं हुई ।”

भरतनाट्यम नृत्य शैली का प्रदर्शन करनेवाली नृत्यांगना अपाला ने साझा किया कि

“मंदिर में नृत्य करते समय मुझे देवी के दर्शन हुए, और वातावरण में अत्यधिक चैतन्य था । आश्रम प्रसारण कक्ष (स्टूडियो) में नृत्य करते समय, मैं आनंद की उच्च अवस्था में थी और वातावरण में मैंने एक दैवीय सूक्ष्म गुलाबी रंग को अनुभव किया । गुलाबी प्रीति का प्रतीक है । इसके विपरीत, जब मैंने सभागार में प्रदर्शन किया, तो मुझे भारीपन और आध्यात्मिक अशुद्धता अनुभव हुई ।”

११. किसी गायन अथवा नृत्य प्रदर्शन से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने पर क्या होता है ?

अब तक, हमने भक्ति प्रदर्शनों से सम्बंधित प्रयोग आपके साथ साझा किए हैं । तथा हां, जब आप कोई भक्ति गीत गाते हैं, तो यह आशा की जाती है कि वातावरण में सकारात्मकता में वृद्धि होगी । किन्तु, हमने देखा कि साधक-कलाकारों द्वारा गाया गया भक्ति गीत अथवा किया गया भक्तिपूर्ण नृत्य प्रदर्शन भी किसी  सभागार में व्याप्त नकारात्मकता को दूर नहीं कर सका । अतः अब कल्पना करें कि जब हम नकारात्मक स्पंदनों वाले स्थान पर नकारात्मक स्पंदनों वाला गीत अथवा नृत्य करेंगे । तब संयुक्त नकारात्मक प्रभाव होने पर क्या होगा ? और ठीक यही हम आपको दिखाने जा रहे हैं ।

सभागार में, हमने एक प्रयोग किया जहां उसी गायिका – तेजल, ने एक बॉलीवुड का गीत – जरा जरा गाया । कृपया इसे देखें ।

जैसा कि आप स्लाइड से देख सकते हैं, जब उसने बॉलीवुड का गीत गाया, तो उसकी स्वयं की लगभग सारी सकारात्मकता चली गई (उन्होंने अपना ७० % सकारात्मक प्रभामंडल खो दिया) और उनका प्रभामंडल बहुत नकारात्मक हो गया । हमने जो देखा वह यह था कि प्रकार २ नकारात्मक प्रभामंडल में ७८% तक और अधिक वृद्धि हुई । प्रकार २ नकारात्मक प्रभामंडल, नकारात्मक प्रभामंडल का अधिक सघन रूप होता है । प्रदर्शन देखने वाले दर्शकों पर भी यही नकारात्मक प्रभाव पडा । दर्शकों में से एक महिला का तो सकारात्मक प्रभामंडल पूर्ण रूप से घट गया  और उसके नकारात्मक प्रभामंडल में १३५ % तक वृद्धि हो गई । आपके ये ध्यान में रहे कि यह प्रभाव मात्र ५ मिनट के गायन प्रदर्शन को देखकर हुआ है ।

नृत्य के सम्बन्ध में प्रयोग करने पर भी वही नकारात्मक प्रभाव देखा गया । विश्वविद्यालय की हमारी कत्थक नृत्यांगना शार्वरी ने बॉलीवुड के एक गीत – मुकाबला पर नृत्य किया । कृपया इसे देखें ।

स्लाइड में दर्शाए गए पाठ्यांकों से ज्ञात होता है कि उसका सकारात्मक प्रभामंडल पूर्ण रूप से घट गया, और उसके प्रकार १ एवं प्रकार २ के नकारात्मक प्रभामंडलों में क्रमशः ७३ एवं ८२ % तक की वृद्धि हुई । दर्शकों पर भी उसी समान प्रभाव हुआ जहां उनके सकारात्मक प्रभामंडल घट गए तथा नकारात्मक प्रभामंडलों में अत्यधिक वृद्धि हुई ।

हम जिस बिंदु को बताने का प्रयास कर रहे हैं वह यह है कि जब इस प्रकार के बॉलीवुड गायन प्रदर्शनों का संयोग ऊंचे ध्वनि संगीत वाद्ययंत्रों, ऊंचे ध्वनि श्रव्य – दृश्य प्रभावों, दर्शकगणों द्वारा मादक पदार्थों का सेवन करना, रात्रि का समय तथा कलाकारों का उच्च अहं होना, इन सब कारकों के साथ होता है, तब इसका सामूहिक प्रभाव अत्यधिक नकारात्मक होता है तथा जिससे कलाकार एवं दर्शक, दीर्घ समय तक प्रभावित रहेंगे । साथ ही, वह स्थान भी नकारात्मक रूप से आवेशित रहता है; क्योंकि वहां इसी प्रकार के प्रदर्शन होते रहते हैं और आध्यात्मिक शुद्धि के कोई उचित उपाय नहीं किए जाते ।

निष्कर्ष

अंत में, हम आपको कुछ विचारों पर ध्यान दिलाना चाहते हैं :

  • वर्तमान में निर्णायक (जज), प्रदर्शन की आध्यात्मिक शुद्धता (सात्त्विकता), भाव इत्यादि जैसे कारकों पर ध्यान देने के स्थान पर, मुख्य रूप से केवल स्वर और मनोरंजन उपयोगिता के क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं ।
  • आध्यात्मिक दृष्टिकोण से संगीत और नृत्य दोनों की क्षमता को समझने का समग्र अभाव है ।
  • इसी प्रकार, व्यावसायिक स्थलों के वातावरण में बढी हुई आध्यात्मिक अशुद्धता, कलाकार की आध्यात्मिक उन्नति होने अथवा आध्यात्मिक रूप से शुद्ध स्पंदन निर्माण करने वाले उनके प्रदर्शन में सहायता करने हेतु अनुकूल नहीं है ।

हमारे आध्यात्मिक शोध, आध्यात्मिक स्पंदन हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू को कैसे प्रभावित करते हैं तथा आध्यात्मिक उन्नति कैसे करें, इन विषयों पर अधिक जानने के लिए आप हमारी लाइवचैट (प्रत्यक्ष बातचीत) सुविधा का उपयोग करके हमसे बातचीत कर सकते हैं ।