अध्यात्म शास्त्र के अनुसार, किसी मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार से संबंधित अनुष्ठान एवं समारोह इस प्रकार से आयोजित होने चाहिए जिससे मृत व्यक्ति के सूक्ष्म देह को उसकी आगे की यात्रा में सहायता मिले | ऐसा कुछ भी करना हमें टालना चाहिए जिसके द्वारा मृत व्यक्ति की सूक्ष्म देह की धरती पर उसके पिछले जीवन के प्रति आसक्ति बढे ।
आज काल सामान्यतः अंतयेष्टि समारोह आयोजित करने का प्रचलन है । अनेक संबंधी एवं शुभचिंतक मृत व्यक्ति के निकटतम परिवार के सदस्य के घर पर एकत्रित हो कर मृत व्यक्ति के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उसकी मृत्यु पर अपना शोक प्रकट करते हैं । प्रायः ऐसे समय पर भोजन परोसा जाता है और मृत व्यक्ति के बीते जीवन पर चर्चा होती है ।
अध्यात्म शास्त्र की दृष्टि से यह इसमें सहभागी लोगों एवं मृत व्यक्ति के सूक्ष्म देह के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है ।
१. टिप्पणी : मृत व्यक्ति के विषय में बात करना, उसके सूक्ष्म देह को बारंबार परिसर की ओर खींचता है ।
आज के संसार में अधिकतर लोग रज-तम प्रकृति के होते हैं और अत्यधिक अहं, इच्छाओं एवं विभिन्न प्रकार की आसक्तियों से ग्रसित होते हैं । जब रज-तम प्रधान व्यक्ति की मृत्यु होती है तब उसकी इच्छाओं और आसक्तियों में सूक्ष्म देह अटक जाती है जो उसकी मृत्यु के आगे की यात्रा में बाधा उत्पन्न करती हैं ।
जब हम मृत व्यक्ति के विषय में चर्चा करते हैं तो हमारी बातों द्वारा उस व्यक्ति से संबंधित रज-तम की तरंगें वातावरण में प्रसारित होती हैं । इन तरंगों के कारण, मृत व्यक्ति का सूक्ष्म देह बारंबार परिसर की ओर आकर्षित होता है और सारे वातावरण में भटकने लगता है । अध्यात्म शास्त्र के अनुसार “शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उससे जुड़ी ऊर्जा एक साथ होती हैं ।” यहां शब्द का तात्पर्य मृत व्यक्ति का नाम और रूप का तात्पर्य मृत व्यक्ति की सूक्ष्म देह से है ।
मृत व्यक्ति के बारे में बातें करने से, उससे जुड़ी ऊर्जा की उत्पत्ति होती है जो उसके सूक्ष्म देह को चर्चा स्थल की ओर खींचती है |
आध्यात्मिक दृष्टि से मृत व्यक्ति के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पण करने की सही विधि क्या है ?
ऊपर लिखित सिद्धांत के अनुसार, मृत व्यक्ति के प्रति श्रद्धा एवं शोक इस प्रकार व्यक्त करना चाहिए जिससे परिसर में पहले से ही व्याप्त रज-तम के तत्वों में और अधिक वृद्धि न हो ।
संदर्भ हेतु तीन सूक्ष्म मूल तत्त्व (त्रिगुण) पर लेख पढें, जिसमें उन क्रियाकलापों का उदाहरण दिया गया है जिनसे रज-तम में वृद्धि होती है |
इसके साथ ही, हमें एसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो मृत व्यक्ति की सूक्ष्म देह को पुनः धरती की ओर खींचे । इसलिए, एकत्रित जनसमुदाय को, मृत व्यक्ति के बारे में ऊंचे स्वर में और विस्तार में चर्चा करना टालना चाहिए । मृत व्यक्ति के बारे में चर्चा करने के स्थान पर हमें अंतिम संस्कार से लौटते समय अंतर्मुख ही रहना चाहिए ।
आध्यात्मिक रक्षा मंत्र ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जप करने अथवा उसे मध्यम स्वर में सुनने से मृत व्यक्ति की सूक्ष्म देह को गति मिलने के साथ साथ उसके वंशजों की भी दुष्परिणामों से रक्षा होती है ।
२. टिप्पणी : मृत व्यक्ति के घर में भोजन करने से अनिष्ट शक्तियों (प्रेत, भूत, बु्री शक्तियां इत्यादि) द्वारा होनेवाले कष्ट की संभावना
प्रत्येक वस्तु, यहां तक की मृत व्यक्ति के घर में परोसा हुआ भोजन तक तम प्रधान वातावरण से प्रभावित होता है । ऐसे रज-तम से प्रदूषित भोजन के सेवन से अनिष्ट शक्तियों से पीडित होने की संभावना बढ जाती है ।
मृत व्यक्ति के घर में भोजन करने का आध्यात्मिक दृष्टिकोण क्या है ?
जैसा कि ऊपर बताया है, अंतिम संस्कार से लौटने के उपरांत मृत व्यक्ति के घर में जलपान नहीं करना चाहिए । यहां तक की घर में उपस्थित संबंधियों के लिए भी घर में भोजन नहीं पकाना चाहिए, कम से कम तबतक जब तक मृत व्यक्ति का विधिवत दाह संस्कार न हो जाए । निकट संबंधी, मित्रगण एवं पडोसी, मृत व्यक्ति के परिवार को भोजन दे सकते हैं । आध्यात्मिक विधि से पवित्र जल (जल के साथ विभूति) छिडक कर शुद्धिकरण करने और ईश्वर से रक्षा के लिए प्रार्थना करने के पश्चात ही भोजन करना चाहिए । इस भोजन को मौन रहकर एवं निरंतर ‘श्री गुरुदेव दत्त‘ का जप करते हुए ही सेवन करना चाहिए |
टिप्पणी : संदर्भ हेतु हमारे आध्यात्मिक उपचार विभाग के ‘पवित्र जल से आध्यात्मिक उपाय’ यह लेख देखें ।