मर्त्यलोक क्या है ?

विषय सूची

१. मर्त्यलोक का परिचय

हम मृत्यु के उपरांत कहां जाते हैं ?, इस लेख में हमने ब्रह्मांड के १३ प्रमुख सूक्ष्म-लोकों का वर्णन किया था, जहां कि हम मृत्यु के उपरांत जाते हैं । मृत्यु होने के त्वरित उपरांत सभी ब्रह्मांड के एक अस्थायी लोक में जाते हैं, जिसे मर्त्यलोक कहते हैं । इस क्षेत्र में सूक्ष्म-देह, स्थूल देह के बिना उसकी एक नई परिस्थिति के अनुरूप ढलती है । इस लोक के १० उपलोक होते हैं, जिससे होकर सूक्ष्म-देह आगे बढती जाती हैं ।

२. मर्त्यलोक किसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है ?

यह लोक उनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, जिनका मृत्योपरांत अंतिम गंतव्य भूवर्लोक है । वैसी सूक्ष्म-देह, पृथ्वीलोक के अपने जीवनकाल के स्मरण तथा आसक्तियों का त्याग करते हुए मर्त्यलोक के विविध उपलोकों से होकर धीरे-धीरे बढती हैं ।

आध्यात्मिक रूप से अति विकसित व्यक्तियों की सूक्ष्म-देहों के हल्के होने तथा सांसारिक जीवन से आसक्ति न होने के कारण, वे इस क्षेत्र से स्वर्ग, महर्लोक जैसे उच्च सूक्ष्म-लोकों में शीघ्र चले जाते हैं ।

इसके विपरीत, पाताल के किसी लोक में जानेवाली सूक्ष्म-देह मर्त्यलोक में अधिक समय बिताए बिना पाताल के निम्न लोकों में चली जाती हैं । यह उनकी सूक्ष्म-देह के भारी होने के कारण होता है, जो उनके जीवनकाल में किए गए अनिष्ट कर्मों, अहं तथा आसक्तियों से भरी पडी होती है ।

३. मर्त्यलोक के विविध उपलोक

मर्त्यलोक के कुल दस उप-लोक होते हैं । हमने इन प्रत्येक सूक्ष्म-लोकों का तथा इन प्रत्येक उप-लोकों में सूक्ष्म-देह द्वारा किए जानेवाले सामान्य व्यवहार का प्राथमिक विवरण दिया है ।

प्राचीन धर्मग्रंथों में पवित्र सूक्ष्म-नदी वैतरणी का वर्णन है, जिसमें कहा गया है कि सभी मृत पूर्वजों को भूवर्लोक में प्रवेश करने से पूर्व इस नदी को पार करना होता है । यह वास्तव में भूलोक के सर्व ओर आपतत्त्व का एक सूक्ष्म-कोष होता है । यही कोष ही वैतरणी नदी है । मृत्यु के उपरांत, सूक्ष्म-देह वैतरणी में डुबकी लगाकर भूवर्लोक में प्रवेश करती है । सूक्ष्म देह के साथ आई स्थूल देह से संबंधित शेष उत्सर्जित गैसें तथा उप-प्राण शक्तियां वैतरणी में त्याग दी जाती हैं ।

इस प्रकार वैतरणी स्थूल देह से संबंधित सूक्ष्म-देह के अंतिम अवशेषों को हटा देती है जिससे यह मर्त्यलोक में प्रवेश करने के लिए आवश्यक रूप में सूक्ष्म बन सके ।

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टिप्पणियां : म १, म २, म ३, ….. म १०

म १ का प्रयोग मर्त्यलोक के प्रथम उपलोक के लिए किया गया है । म २ मर्त्यलोक के द्वितीय उपलोक तथा इसी प्रकार और सभी ।

३.१ मर्त्यलोक का प्रथम उपलोक : सूक्ष्म-देह अव्यवस्थित ढंग से संभ्रमित होकर इधर-उधर भाग रही हैं ।

वैतरणी को पार करने के उपरांत सूक्ष्म-देह मर्त्यलोक के प्रथम उपलोक में प्रवेश करती है । इस लोक में वातावरण का रंग लालपन लिए बैंगनी रंग का प्रतीत होता है । वातावरण नया होने के कारण सूक्ष्म-देहें इधर-उधर भागती हुई दिखती हैं । उन्हें अंतःप्रेरणा से ज्ञात होता है कि उन्हें आगे जाना है;किंतु कौनसा मार्ग योग्य है, इसके संदर्भ में उन्हें कोई जानकारी नहीं होती । इसलिए इस उपलोक में सभी सूक्ष्म-देहें बेचैन रहती हैं ।

३.२ मर्त्यलोक का द्वितीय उपलोक :सूक्ष्म-देहों की अधीरता

इस उपलोक के वातावरण में बैंगनी तथा लाल रंग की चौडी धारियां होती हैं । यहां सूक्ष्म-देहें डूबने की स्थिति में संघर्ष करते हुए दिखती हैं । इस उपलोक में प्रवेश करने के उपरांत वे यहां पिछले उपलोक के समान यहां-वहां दौडती नहीं हैं; किंतु एक ही स्थान पर वे निरंतर गतिशील रहती हुई दिखती हैं । उनमें व्याकुलता दिखती है । ऐसा इसलिए कि इस उपलोक में आने के उपरांत वे पिछले उपलोक की तुलना में यहां अधिक अच्छे से रहने में सक्षम हो जाती हैं;किंतु अभी भी उन्हें किस मार्ग में बढना है, इसकी जानकारी नहीं होती ।

३.३ मर्त्यलोक का तीसरा उपलोक : असंयमित सूक्ष्म-देह

इस उपलोक का वातावरण ऐसे प्रतीत होता है कि मानो ये बैंगनीपन लिए लाल रंग के गुंथे हुए धागों से निर्मित हुआ हो । इस उपलोक में अनेक सूक्ष्म-देह ऊपर-नीचे अनियंत्रित ढंग से किंतु समस्तरीय रेखा में गति करते हुए दिखती हैं । सूक्ष्म-देह पिछले उपलोक की तुलना में यहां और प्रगति करती हैं तथा वे समस्तरीय रेखा में बढने का प्रयास करती हैं ।

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३.४ मर्त्यलोक का चौथा उपलोक : अस्थिर सूक्ष्म-देह

यहां बैंगनी जैसे लाल धागे आपस में और अधिक गूंथे होते हैं । इस उपलोक में सूक्ष्म-देहें अगले उपलोक में जाने के लिए अत्यधिक व्याकुल प्रतीत होती हैं । इस विभाग में सूक्ष्म-देहें लंबवत दिशा में ऊपर-नीचे की दिशा में गतिशील रहती हैं । चूंकि समस्तरीय दिशा में गति करने से वे मर्त्यलोक से बाहर जाने में असफल रहती हैं, इसलिए वे लंबवत दिशा में गति करती हैं ।

३.५ मर्त्यलोक का पांचवा उपलोक :वातावरण से समायोजन बनाने के लिए सूक्ष्म-देह द्वारा प्रयास किया जाना

सूक्ष्म रज-तम के कण इस विभाग में दिखते हैं । इसमें बैंगनी जैसे लाल रंग के धागों की अनेक पट्टियां दिखती हैं । इस क्षेत्र में सूक्ष्म-देहें आगे बढती हुई, तदोपरांत स्थिर तथा पुनः आगे की ओर बढती हुई दिखती हैं । वे अधिक स्थिरता की ओर बढती दिखाई देती हैं ।

३.६ मर्त्यलोक का छठा उपविभाग : सूक्ष्म-देह द्वारा वातावरण के दबाव से समायोजन कर पाना

इस विभाग में सूक्ष्म-देह कभी-कभी मध्यवर्त्ती क्षेत्र में तो कभी निचले क्षेत्र में अधिक स्थिर प्रतीत होती हैं । इस विभाग का वातावरण बैंगनी जैसे लाल बादलों से भरा होता है ।

३.७ मर्त्यलोक का सातवां उपलोक : सूक्ष्म-देह का कभी ऊपरी क्षेत्र में तो कभी मध्यवर्त्ती क्षेत्र में अधिक स्थिर होना

इस विभाग में, बादल विरल हो जाते हैं तथा रज-तम के कण अधिक होते हैं । सूक्ष्म-देहें कभी ऊपरी क्षेत्र में तो कभी मध्यवर्त्ती क्षेत्र में अधिक स्थिर हो जाती हैं ।

३.८ मर्त्यलोक का आठवां उपलोक : सूक्ष्म-देहों का ऊपरी क्षेत्र में स्थिर होना

यह विभाग पूर्णतः बैंगनी रंग का होता है । रज-तम के कण विरल हो जाते हैं । सूक्ष्म-देह ऊपरी क्षेत्र में ऊपर की ओर स्थिर हो जाती हैं ।

३.९ मर्त्यलोक का नवां उपविभाग : सूक्ष्म-देहों को भान होना कि विभाग को कैसे पार किया जाए

यह विभाग पूर्णतः बैंगनी रंग का होता है । इस विभाग में सूक्ष्म-देहों के बाह्य आवरण से प्रकाशमान तरंगें निकलती दिखती हैं । सूक्ष्म-देह इन प्रकाशमान तरंगों की शक्ति के बल पर अगले क्षेत्र में चली जाती हैं ।

३.१० मर्त्यलोक का दसवां उपलोक : सूक्ष्म-देहों को भान होना कि इस उपलोक विभाग को कैसे पार किया जाए

इस विभाग का वायुमंडल हल्के बैंगनी रंग का होता है । इस विभाग में सूक्ष्म-देह अत्यल्प समय में ही इस विभाग के आदी हुए प्रतीत होती हैं । नौवें उपलोक के वायव्य आवरण की सहायता से सूक्ष्म-देहें ऊपर की दिशा में फेंकी जाती हैं । उनके कर्मों के आधार पर यह निश्चित होता है कि उनका गंतव्य भूवर्लोक है अथवा अन्य लोक ।

३.११ सूक्ष्म अंतरिक्ष यान : सूक्ष्म-देहों का इस क्षेत्र से पुच्छल तारे के समान भूवर्लोक में फेंका जाना

इसे पूर्वजों का वाहन भी कहते हैं । इसकी अपनी शक्ति होती है । इस शक्ति के वेग के कारण ही सूक्ष्म-देहें इस क्षेत्र से पुच्छल तारे (धूमकेतु) के समान भूवर्लोक में फेंकी जाती हैं । इस क्षेत्र में तूफान जैसी ध्वनि सुनाई देती है ।

मर्त्यलोक का रंग सामूहिक रूप से बैंगनी तथा लाल रंग का प्रवाह होता है । इच्छा की तरंगों को विघटित करने में यह उपयुक्त व्यवस्था होती है । यह सूक्ष्म-देहों के चारों ओर विद्यमान कोषों अथवा सूक्ष्म-देहों के चारों ओर विद्यमान संस्कारों के केंद्र में होता है । इसके अतिरिक्त, यह स्थूल देह से संबंधित उत्सर्जक गैसों के निरंतर विघटन के कारण भी होता है ।

४. मर्त्यलोक में रहने की कालावधि

मर्त्यलोक में रहने की कालावधि कुछ माह से लेकर वर्षों तक होती है ।

वहां रहने की कालावधि को निश्चित करनेवाले घटक हैं :

१. मृत पूर्वजों की आसक्तियों की तीव्रता : आसक्ति जितनी अधिक आगे जाने की गति उतनी धीमी ।

२. मृत पूर्वजों के लिए की गई धार्मिक विधियां : की गई विशिष्ट धार्मिक विधियों के आधार पर सूक्ष्म-देह आगे की यात्रा के लिए गति प्राप्त करती है ।

३. आध्यात्मिक स्तर : ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाली सूक्ष्म-देह ३० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाली सूक्ष्म-देह की तुलना में शीघ्रता से इस लोक को पार कर जाएगी । ऐसा पंचज्ञानेंद्रियों, मन तथा बुद्धि के लय के कारण सूक्ष्म-देह के हल्के होने के कारण होता है ।

जब हम कहते हैं कि मृत पूर्वज पृथ्वी से जुडे से बद्ध हैं, तब इसका अर्थ होता है कि वे मर्त्यलोक में अटके हुए हैं । जब ऐसा होता है तब हम आगे जाने में उनकी सहायता विशिष्ट आध्यात्मिक क्षमतावाली धार्मिक विधियों तथा श्री गुरुदेव दत्त के विशेष सुरक्षात्मक जप से कर सकते हैं ।

वर्त्तमान समय में अधिकतर प्रसंगों में, न ही मृत व्यक्ति अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार पर्याप्त साधना किए होते हैं और न ही उनके वंशज कोई उपयुक्त धार्मिक विधियां करते हैं अथवा श्री गुरुदेव दत्त का नामजप करते हैं । परिणामस्वरूप अधिकांश सूक्ष्म-देह मर्त्यलोक में वर्षों तक सुस्त पडी रहती हैं !