१. प्रस्तावना
व्यक्ति का बचपन तथा किशोरावस्था वे वर्ष होते हैं जिसमें उसके समग्र विकास तथा संवर्धन की नींव डाली जाती है । चूंकि इस अवस्था में उत्साह तथा ऊर्जा अत्यधिक होती है, जहां बच्चा दूसरों का निरीक्षण कर, प्रयोग कर तथा आगे बढ कर सीखता तथा उनकी नकल करता है । इसीलिए अभिभावक तथा समाज पर बच्चे के समग्र विकास हेतु पूरक वातावरण बनाने का अत्यधिक दायित्व आ जाता है । अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों, किशोर-किशोरियों की समग्र भलाई के लिए अत्यधिक प्रयत्न करते हैं; किंतु वर्त्तमान समय की अत्यंत चिंताजनक परिस्थिति को देखते हुए जहां व्यसन व्यापक मात्रा में फैला हुआ है; प्रश्न यही है कि क्या हम अपने बच्चों, किशोर-किशोरियों की सुरक्षा तथा उनका स्वस्थ जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं ।
अमेरिकन लंग(फेफडे)एसोसिएशन के अनुसार, यदि तंबाकू का वर्तमान प्रचलन चलता रहा तो अभी धूम्रपान करनेवाले लगभग ६.४ लाख बच्चों की धूम्रपान से संबंधित रोग से अकाल मृत्यु होगी । इससे अधिक बुरा क्या हो सकता है कि धूम्रपान से होनेवाली स्वास्थ्य हानि को जागरूकता अभियान के माध्यम से समझने के बादभी किशोरों में धूम्रपान बढता ही जा रहा है । कुछ देशों में, जैसे इंडोनेशिया में बाल धूम्रपान वैध है, पूरा समाज अनियंत्रित धूम्रपान से पीडित है । हाल ही में, १३ लाख लोगों द्वारा देखे गए एक यूट्यूब वीडियो ने हमें चकित कर दिया, उसमें एक दो वर्षीय बच्चा इस प्रकार एक के बाद एक सिगरेट पीए जा रहा था, जैसे वह उसकी दिनचर्या का ही एक भाग हो । यह उदाहरण उस देश में बच्चों की वर्त्तमान दयनीय अवस्था दर्शाता है ।
२. व्यसन के कारण – शारीरिक तथा मानसिक
बच्चों तथा किशोरों के सिगरेट पीने की लत के अधीन होने के शारीरिक तथा मानसिक स्तरपर अनेक जटिल कारण हैं; उदा.तनाव सह न पाना, विरोध, उत्तेजित होने की इच्छा तथा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करना । यद्यपि अधिक निराशाजनक यह है कि एक बार कोई बच्चा, किशोर अथवा किशोरी, इस दुष्चक्र में फंस जाए; तो उनके अभिभावक तथा स्वास्थ्य से संबंधित व्यक्तियों द्वारा उन्हें इससे बाहर निकालने के प्रयास अधिकतर व्यर्थ ही गए हैं ।
हम सभी जानते हैं कि धूम्रपान से मृत्यु को आमंत्रित करनेवाले रोग जैसे कि कैंसर, वायुस्फीति (एम्फिजीमा, दमे जैसी सांस की एक व्याधि)तथा हृदयरोग होते हैं । मानसिक स्तर पर यह बच्चे, किशोर अथवा किशोरियों के मन की स्थिति को प्रभावित करता है । उनमें बार – बार मन के उतार – चढाव, क्रोध, चिंता इत्यादि दिखाई देता है । परिणामस्वरूप अकेले रहने की इच्छा तथा निराशा देखी जाती है । सामान्यतः व्यसन के आध्यात्मिक कारणों का ज्ञान नहीं होता । एसएसआरएफ में, आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें ज्ञात हुआ कि व्यसन के शारीरिक एवं मानसिक कारण तो किसी हिमीशिखर के दिखाई देनेवाले अग्रभाग समान हैं, जबकि आध्यात्मिक घटक ८० प्रतिशत से अधिक उत्तरदायी है । अधिकतर प्रकरणों में व्यसन का मुख्य कारण यही होता है । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि क्यों कुछ ही बच्चे व्यसनी होते हैं और अन्य क्यों नहीं ।
३. आध्यात्मिक कारक
मृत पूर्वज (जो अपने जीवनकाल में धूम्रपान करते थे) तथा अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट किए जाने से उत्पन्न कष्ट इसका मूल आध्यात्मिक कारण है । आध्यात्मिक शोध दर्शाते हैं कि अनिष्ट शक्तियां तथा मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह अपनी अपूर्ण इच्छा को संतुष्ट करने अथवा कष्ट देने के लिए प्रथम किसी व्यक्ति को आविष्ट करती हैं । बच्चे, किशोर अथवा किशोरी अधिक दुर्बल होते हैं, इसलिए उन पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की संभावना अधिक होती है । वे उनका उपयोग अपनी इच्छा पूर्ति के लिए करती हैं । इस प्रक्रिया में अनिष्ट शक्ति उनकी देह में काली शक्ति डालती है तथा केंद्र बनाती है; जिसके माध्यम से वे लंबे समय तक उसे प्रभावित कर उनकी चेतना को आविष्ट करती है । आगे एक साधक का छायाचित्र दिया गया है, साधना के कारण इन्होंने धूम्रपान करना छोड दिया ।
अनिष्ट शक्तियों के इन केंद्रों द्वारा निकलनेवाले उद्दीपक अथवा विचार व्यक्ति को सक्रिय रूप से सिगरेट पीने अथवा अन्य व्यसनमूलक पदार्थों के सेवन में लिप्त रहने हेतु आकृष्ट करते हैं । काली शक्ति से भरे इन विचारों की क्षमता अत्यधिक होती है, जो व्यसन को रोकनेवाली किसी भी सकारात्मक उद्दीपक (विचार) को दूर रखती है । जैसे – जैसे अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव बढता है, व्यक्ति पर आया काला आवरण भी घना होता जाता है, इससे उनका व्यसन छोडना और भी कठिन हो जाता है । यह भूतावेश कभी – कभी केवल एक ही जन्म के लिए सीमित नहीं रहता; अपितु यह व्यक्ति को अनेक जन्मों तक दुष्प्रभावित कर सकता है ।
इस आध्यात्मिक आयाम की गंभीरता हमें समझ नहीं आती अथवा हम इसके आदी हो गए हैं, क्योंकि हम भूतावेश के हिंसक प्रकटीकरण को देखना चाहते हैं । किंतु वास्तव में, पृष्ठभूमि में निष्क्रिय रहकर, कोई भी हिंसक लक्षण दिखाए बिना अनिष्ट शक्ति व्यक्ति को तब तक प्रभावित करती रहती है, जब तक वह उच्च स्तरीय सकारात्मकता के संपर्क में नहीं आता । सकारात्मक शक्ति के संपर्क में आने पर उन्हें व्यक्ति को छोडने के लिए बाध्य होना पडता है । जब बच्चे, किशोर तथा किशोरियां धूम्रपान करती हैं तब उन्हें अनिष्ट शक्ति ३० प्रतिशत तक प्रभावित करती हैं ।
४. उपचार
४.१ व्यक्तिगत स्तर पर
सकारात्मक शक्ति केवल आध्यात्मिक उपचारों तथा अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित नियमित साधना करने से प्राप्त हो सकती है । साथ ही SSRF श्री गुरुदेव दत्त का नामजप करने का भी सुझाव देता है । यह अत्यंत शक्तिशाली नामजप है, जो मृत पूर्वजों के कारण होनेवाली आध्यात्मिक समस्याओं के निवारण में सहायता करता है । प्रारंभ में, जब व्यक्ति साधना करने का प्रयास करता है, तब अनिष्ट शक्ति उसे रोकने का प्रयत्न करती है, जिसे व्यक्ति के असामान्य व्यवहार से समझा जा सकता है, जैसे – अपने पंथ के अनुसार नामजप करने का विरोध करना, आध्यात्मिक उपचारों को टालना इत्यादि । किंतु कुंजी यही है कि हमें इन्हें करते रहना है । नियमित साधना के द्वारा जब सत्त्वगुण (जो आध्यात्मिक शुद्धता से प्रकट होता है)में वृद्धि होती है तब अनिष्ट शक्ति की पकड दुर्बल होने लगती है, जो स्थायी तथा सदा के लिए ठीक होने का मार्ग प्रशस्त करती है । ठीक होने के कुछ प्राथमिक उपचार माध्यम हैं, नमक-मिश्रित जल का उपचार, SSRF निर्मित अगरबत्ती जलाना तथा बक्से के उपचार । उपचार तथा साधना की प्रभावशीलता भिन्न – भिन्न हो सकती है । यह विविध घटकों पर निर्भर करती है, जैसे कि आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति की क्षमता (सामर्थ्य), प्रारब्ध इत्यादि ।
SSRF का सुझाव यह भी है कि आप अपने घर की वास्तु में श्री गुरुदेव दत्त का नामजप बजाएं । इससे घर के वातावरण की शुद्धि होने में सहायता होगी । हमारा परामर्श है कि किए जा रहे चिकित्सकीय अथवा मानसिक उपचार के साथ साधना तथा आध्यात्मिक उपचार जारी रखें ।
४.२ समाज के स्तर पर
- तंबाकू उद्योग सिगरेट का उत्पादन बंद कर अपना धन किसी धार्मिक कार्य में लगाए ।
- उसी प्रकार किसान भी तंबाकू की खेती न करें; अपितु लोगों के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ की खेती करें ।
- माईकल रेबिनोफ, डीओ, पी.एच.डी., निकोलस केसके, पी.एच.डी., एंथोनी रिसलिंग, एम.ए.तथा केंहिस पार्क, बीएस, द्वारा किए गए शोध अध्ययन बताता है तंबाकू कंपनियों ने सिगरेट में योज्यों (additives)के उपयोग तथा समावेश हेतु शोध तथा विकास में बडी राशि दी है । और उद्योगों ने ५९९ अलग सिगरेट योज्यों के उपयोग को स्वीकारा है । हमारे निरीक्षण दर्शाते हैं कि ५९९ में से १०० से अधिक सिगरेट योज्य औषधीय कार्य करते हैं जो सिगरेट से पर्यावरण में उत्सर्जित तंबाकू के धुंए की गंध को छिपाते हैं, निकोटीन की मात्रा को बढा अथवा बनाए रख सकते हैं, सिगरेट के व्यसन को बढा सकता है तथा धूम्रपान के व्यसन से होनेवाले रोगों तथा लक्षणों को छिपा देते हैं । – स्रोत : पीएमसी, यूएस नेशनल लायब्रेरी ऑफ मेडिसीन, नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ
- यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि उपरोक्त अध्ययन दर्शाता है कि तंबाकू उद्योग के लोभी तथा अनुचित विचार तथा व्यवहार ने सिगरेट के व्यसन से मुक्त होने को और भी दुष्कर बना दिया है ।
५. अभिभावकों / बडों का दायित्त्व
अन्य महत्त्वपूर्ण घटक जिसने इस पतन की ओर उन्मुख किया है, वह है व्यक्तिवाद का प्रचलन, जो अत्यधिक अनियंत्रित स्वतंत्रता की अनुमति देती है । यह समाज का प्रतिफल है, जहां तथाकथित व्यक्तिगत अधिकार तथा स्वतंत्रता व्यक्तिगत तथा समाजिक व्यवहार को विस्तृत स्तर पर और अधिक पतन की ओर उन्मुख कर रहे हैं । बच्चे, किशोर तथा किशोरियों का मार्गदर्शन करना आवश्यक है, वे पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते, इसलिए गलत – सही में अंतर करने तथा योग्य निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते । प्रेमपूर्वक नियंत्रण से उनकी ऊर्जा को नियंत्रित कर लाभकारी एवं स्वास्थ्यवर्धक गतिविधियों की ओर मोडने की आवश्यकता है । परंतु यदि हमारे मन में बच्चों, किशोर-किशोरियों को असीम स्वतंत्रता देने की इच्छा हो, तो इसके फलस्वरूप वे अपने जीवन में इन दुर्गुणों/अनैतिक वर्तन का चयन करते हैं । लचीलेपन तथा स्व-नियंत्रण में शक्ति होती है । यह हमें अपने मूल नैतिक मूल्यों से जोडे रखता है, जो हम मनुष्यों की मुख्य आधारशीला है । यही हमें जानवरों से अलग करती है । ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है, जो जानवरों के पास नहीं है । इसलिए अनियंत्रित व्यवहार हमारे लिए अनुचित है ।
साधना के अंग के रूप में, यह अभिभावक का कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों, किशोर-किशोरियों में गुण निर्माण करें । बच्चे अपने अभिभावकों का अनुसरण करते हैं । जब वे देखते हैं कि उनके अभिभावक धूम्रपान कर रहे हैं तो वे भी सोचेंगे कि धूम्रपान तो अच्छा है । अभिभावक द्वारा अपने बच्चों, किशोर-किशोरियों को बार – बार धूम्रपान मत करो ऐसा कहने की अपेक्षा यदि वे स्वयं ही धूम्रपान करना बंद कर दें तो इसका अधिक प्रभाव पडेगा ।
जो लोग स्वार्थी होते हैं, उनके मन में केवल उनकी आवश्यकता अथवा इच्छा तथा स्व ही उनके ध्यान का केंद्र होता है । इसके विपरीत साधकों के ध्यान का केंद्र ईश्वर होते हैं और इसके फलस्वरूप उन्हें ईश्वर से सुरक्षा भी प्राप्त होती है । अतः आध्यात्मिक रूप से विकास करने तथा स्वार्थ एवं वैसे कार्य जो हमारे तथा समाज के लिए आध्यात्मिक रूप से हानिकारक है, से स्वाभाविक रूप से विमुख होने के लिए हमें छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करनी चाहिए । – परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी
परंतु अभिभावक ही आजकल आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं । जीवनशैली में नाकीय परिवर्तन आने के कारण बच्चे, किशोर-किशोरियों को अकेला छोड दिया जाता है । अपने वयस्कों के आचरण से वे सीखते हैं । दुर्भाग्यवश अभिभावकों का ही अपनेआप पर नियंत्रण नहीं रहता और इसीलिए बच्चे, किशोर-किशोरियों के सामने उनका अनुसरण योग्य आदर्श नहीं होता । अच्छा पारिवारिक वातावरण देने के लिए अभिभावकों को अपनेआप में परिवर्तन लाकर बच्चे, किशोर-किशोरियों की ओर ध्यान देना आवश्यक है ।
सात्त्विक अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से शुद्ध जीवनशैली अपनाएं
यह परिवर्तन सात्त्विक अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक शुद्ध जीवनशैली को अपनाने से संभव है । SSRFमें हमारे पास अनेक प्रकरण अध्ययन हैं जिनमें साधना आरंभ करने पर लोगों के जीवन में कैसे विलक्षण परिवर्तन आए, इसका वर्णन है । अनेक लोग इससे लाभान्वित हुए हैं । साधना तथा आध्यात्मिक उपचार के कारण धूम्रपान से मुक्त होने के वे साक्षि हैं ।
६. सारांश
संक्षेप में, आत्मसंतुष्ट न रहे; अपने बच्चे, किशोर-किशोरियों की ओर ध्यान देकर उन्हें सिगरेट पीने जैसे व्यसनों से सुरक्षित रखने के लिए निष्ठर्पूक प्रयास करने की आवश्यकता को समझ लें । नियमित साधना तथा सात्त्विक जीवनशैली ही इस पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है ।