विषय सूची
- १. नदियां, समुद्र तथा वर्षा का जल लाल होना – परिचय
- २. विविध जलाशयों का रंग लाल होना, एक अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
- २.१ महायुद्ध की पूर्वसूचना
- ३. अनिष्ट शक्तियां जल का रंग लाल कैसे कर देती हैं
- ४. महाभूतों का (पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश तत्त्वों का)उपयोग
- ५. रंग का महत्त्व
- ६. क्या हम नदी, झील, वर्षा और समुद्र को लाल होने से बचा सकते हैं ?
१. नदियां, समुद्र तथा वर्षा का जल लाल होना – परिचय
विगत कुछ वर्षों से, लगभग सन २०१० से संपूर्ण विश्व के जलाशयों के संदर्भ में एक अद्भुत घटना चर्चा में है । नदी, झील, समुद्र एवं वर्षा के जल का रंग लाल हो रहा है । इनमें से कुछ नदियों का रंग एक ही रात में परिवर्तित हो गया, जिससे जलाशयों का एक बडा क्षेत्र रक्त के रंग जैसा लाल हो गया । इस घटना पर वैज्ञानिक किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं एवं इन घटनाओं की प्रत्येक कडी को वे सुलझा नहीं पा रहे हैं । विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए जा रहे है, उदा.-
१.लाल शैवाल का फलना-फूलना
२.प्रदूषण
३.लवण क्यारी (सॉल्ट अथवा पैन) के रूप में लवण (नमक) का उच्च मात्रा में जमना, जिससे नीला जल रक्त के रंग में परिवर्तित होना । (भूविज्ञान की भाषा में सॉल्ट फ्लैट का अर्थ है, लवण और अन्य खनिजों का भूमि पर आच्छादन)
४.जलवायु परिवर्तन – समुद्रों का अम्लीकरण
कुछ लोगों का मत है कि यह घटना आगामी भीषणकाल अथवा विश्वयुद्ध का संकेत है । यह घटना अपनेआप में विचित्र है, परंतु सत्य यह है कि नदी, झील एवं समुद्री जल का लाल रंग में परिवर्तन, विश्व के अधिकाधिक जलाशयों में फैल रहा है । इस कारण लाल जलाशयों में हजारों की संख्या में मछली एवं पक्षी मृत हो रहे हैं । रेड टाइड कहलानेवाली ऐसी घटनाएं अधिकांशतः नदीमुख एवं समुद्र के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं, हालांकि ताजे जल में भी इनका प्रादुर्भाव हो सकता है । निम्नलिखित सारणी में समय के अनुसार जलाशयों के लाल होने की घटना दी गई है ।
माह /वर्ष | देश | जलाशय के लाल होने का स्थान | जलाशय का नाम | जलाशय का प्रकार |
---|---|---|---|---|
२५-जुलाई-०१ | भारत | नगरकोट्टयम/इदुक्की | लागू नहीं | वर्षा |
२९-जून-०५ | इराक | साद्र नगर | साद्र नगर झील | झील |
जुलाई-०६ | भारत | केरल | लागू नहीं | वर्षा |
जुलाई-०७ | भारत | केरल | लागू नहीं | वर्षा |
जुलाई-०८ | भारत | केरल | लागू नहीं | वर्षा |
१०-सितंबर-०९ | संयुक्त राष्ट्र अमेरिका | ब्लैकस्टोन, बोस्टन | ब्लैकस्टोन नदी | नदी |
१-अगस्त-११ | संयुक्त राष्ट्र अमेरिका | ओ सी फिशर | ओ सी फिशर झील | झील |
१६-फरवरी-१२ | लेबनान | फर्न-अल-शब्बाक | बेरुत नदी | नदी |
४-जून-१२ | सेनेगल | रेतबा | रेत्बा झील | झील |
५-जुलाई-१२ | भारत | कन्नूर | लागू नहीं | वर्षा |
२५-जुलाई-१२ | यूक्रेन | बर्दीयांस्क | आजोव | समुद्र |
७-सितंबर-१२ | चीन | चोंगकिंग | यांगत्जी नदी | नदी |
१७-नवंबर-१२ | पूर्वी श्रीलंका | सेवानगाला | लागू नहीं | वर्षा |
२७-नवंबर-१२ | ऑस्ट्रेलिया | सिडनी | बोंडी एवं अन्य निकटवर्ती समुद्रतट | समुद्र |
११-जनवरी-१३ | नीदरलैंड्स | ब्लू हेरॉन | ब्लू हेरॉन नहर | नहर |
१९-जून-१३ | ऑस्ट्रेलिया | हिलियर | हिलियर झील | झील |
९-अगस्त-१३ | फ्रांस | कामार्ग | कामार्ग झील | झील |
१९-अगस्त-१३ | कजाकस्तान | करागंदा | करागंदा | बर्फ |
३-दिसंबर-१३ | स्लोवाकिया | मयावा | अनाम | नदी |
६-जनवरी-१४ | युनाइटेड किंगडम | नॉर्थम्पटन | थॉर्पलैंड्स क्षेत्र का एक झरना | झरना |
३०-अप्रैल-१४ | स्विट्जरलैंड | बर्न | लोट्ज्विल | नदी |
उपलब्ध नहीं | ऑस्ट्रेलिया | हट लगून | हट लगून | झील |
उपलब्ध नहीं | स्पेन | सैलिनास डि टौरेविजा | सैलिनास डि टौरेविजा | झील |
उपलब्ध नहीं | तंजानिया | नैटरॉन | नैटरॉन झील | झील |
६-जून -१४ | सर्बिया | गोर्नजी मिलानोकेक | डिस्पोटोविका | नदी |
२२-अगस्त -१४ | संयुक्त राष्ट्र अमेरिका | फ्लोरिडा के समुद्र किनार पट्टी से दूर (अपतटीय) | मेक्सिको की खाडी | समुद्री ज्वार |
२. विविध जलाशयों का रंग लाल होना, एक अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
२.१ महायुद्ध की पूर्वसूचना
यदि किसी घटना को अत्यधिक प्रयत्नों के उपरांत भी वैज्ञानिक न समझ पाएं, तो हम यह समझ सकते हैं कि कदाचित उस घटना का मूल कारण आध्यात्मिक है । हमारे लेख, ‘महायुद्ध में हमने स्पष्ट किया है कि सूक्ष्म स्तर पर पूरा ब्रह्मांड एक बहुत बडे महायुद्ध का सामना कर रहा है । यह युद्ध अधिकांशतः सूक्ष्म स्तर पर ही लडा जाएगा;तथापि इस सूक्ष्म युद्ध का एक अंश पृथ्वी पर भी प्रकट होगा एवं पूरी मानवता पर इसका गंभीर प्रभाव होगा । इसके कारण अनेक वैश्विक संकट, प्राकृतिक आपदाएं होंगी तथा अंततः इनकी परिणति तृतीय विश्वयुद्ध में होगी ।
इस सूक्ष्मयुद्ध के पीछे, नरक के निचले क्षेत्रों की शक्तिशाली आसुरी शक्तियों का हाथ है, जिन्हे मांत्रिक कहते हैं । ऐसा बहुत कुछ है जो ये शक्तिशाली मांत्रिक पृथ्वी की आध्यात्मिक शुद्धता (सत्त्व गुण) न्यून करने तथा आध्यात्मिक अशुद्धता (रज-तम) बढाने हेतु कर सकते हैं और करते भी हैं ।
जब पृथ्वी पर रज-तम बढता है, तब पर्यावरण में अस्थिरता बढती है जो आगे चलकर युद्ध एवं प्राकृतिक आपदाओं का रूप ले लेती है । जब रज-तम चरम सीमा पर पहुंचता है, तब मांत्रिकों के लिए तत्काल युद्धजनक स्थिति उत्पन्न करना सरल होता है । वर्ष २०१३ और २०१४ में हमने जो युद्ध एवं सामाजिक अस्थिरता देखी (और जो आगामी वर्षों में देखेंगे), वे मूलरूप से वैश्विक स्तर पर मनुष्य की मानसिक अस्थिरता के (मन की अशुद्धि के)एवं अनिष्ट शक्तियोंद्वारा इन लोगों के माध्यम से द्वंद निर्माण करने के कारण उत्पन्न हुए हैं । इस सूक्ष्म युद्ध में, मांत्रिक अपनी शक्ति बढाने और पृथ्वी की सात्त्विकता नष्ट करने के प्रत्येक अवसर का लाभ उठा रहे हैं ।
पृथ्वी के जलाशयों का रंग लाल होने का मुख्य कारण है, पांचवें पाताल के मांत्रिक । और यह तृतीय विश्वयुद्ध की दिशा में बढती कष्टदायी शक्ति का प्रतीक है । निम्नलिखित सारणी में हमने आध्यात्मिक शोध से प्राप्त आंकडों के माध्यम से, जलाशयों का रंग लाल होने के मूलभूत कारणों को स्पष्ट किया है ।
जलाशयों के लाल रंग में परिवर्तित होने का कारण | कारण का प्रतिशत | रज-तम में कितने प्रतिशत वृद्धि होने पर जलाशय लाल होता है | वातावरण पर घटना का अनिष्ट परिणाम |
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शारीरिक /मानव-निर्मित कारण १ | ३० | ५%३ | १०%४ |
आध्यात्मिक २ | ७० |
टिप्पणी
१.शारीरिक/मनुष्य निर्मित कारण : ऐसे कारण उदा. प्रदूषण
२.अध्यात्मिक कारण अर्थात घटनाओं का मूल कारण आध्यात्मिक है (अनिष्ट शक्तियां, समाज में अधार्मिक कृत्य आदि जिनसे रज-तम में वृद्धि होती है ।) लाल रंग का प्रादुर्भाव यदि लाल शैवाल के कारण है, तो इसका मूलभूत कारण आध्यात्मिक है, जैसे – लाल शैवाल में पाए जानेवाले रज-तमात्मक घटक । इस संबंध में विस्तृत जानकारी आगे दी है ।
३.इसका अर्थ यह है कि रज-तम में केवल ५%की वृद्धि भी ऐसी घटनाओं को उत्प्रेरित करती है ।
४.इसका अर्थ यह है कि उस क्षेत्र में अनिष्ट स्पंदनों की १०% वृद्धि, १० कि.मी.के अंतर पर अनुभव होती है ।
वैज्ञानिक समुदाय की सोच सीमित है, क्योंकि वे प्रत्येक घटना को केवल बुद्धि से समझने का प्रयत्न करते हैं;परंतु जलाशयों का लाल होना जैसी घटनाओं के मूल कारण के अधिकांश सूत्र अध्यात्मिक-विश्व से जुडे हैं । जब मूल कारण ही अध्यात्मिक है तो उसका बोध केवल आध्यात्मिक शोध अथवा प्रगत छठवीं इंद्रिय से ही हो सकता है ।
३. अनिष्ट शक्तियां जल का रंग लाल कैसे कर देती हैं
आध्यात्मिक आयाम की उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां जैसे मांत्रिक, केवल अपनी अलौकिक शक्तियों से (सिद्धियों से)ही जल का रंग लाल कर सकते हैं;परंतु बिना किसी आधार के कुछ भी करने में अधिक अध्यात्मिक ऊर्जा लगती है । इसीलिए अपनी आध्यात्मिक शक्ति बचाने के लिए वे वातारण में स्थित रज-तमात्मक पेड-पौधे व मछलियों का उपयोग कर ऐसा लाल रंग प्रकट करते हैं । शैवाल का मूल स्वभाव रज-तम प्रधान है । मांत्रिक आध्यात्मिक काली शक्ति से शैवाल का विस्तार करते हैं । वे शैवाल में अनिष्ट शक्ति भर देते हैं । (शैवाल विस्तार का अर्थ है जलीय व्यवस्था में विशेषकर माइक्रोस्कोपिक शैवाल की मात्रा में तीव्र वृद्धि अथवा संचय) जब शैवाल विस्तरित होती है, तब वह जल में काली शक्ति एवं कष्टदायी तरंगों को भी तीव्रता से बढाती है ।
एक अन्य पद्धति, जो मांत्रिक अपनाते हैं – वे मछलियों एवं अन्य रज-तम प्रधान जलचरों को अपने वश में कर, जल में लाल रंग विकसित करने के लिए उनका उपयोग करते हैं । मछलियों की गतिशीलता के कारण अनिष्ट स्पंदन शीघ्रता से जलाशयों के बडे क्षेत्र में फैल जाते है । प्रजातियों में विशेषतः उनके प्रजननकाल में काली शक्ति भर दी जाती है । तदुपरांत मछलियों का झुंड केवल श्वसन के माध्यम से ही बडी मात्रा में अनिष्ट शक्ति प्रक्षेपित कर सकता है । जलचरों को काली शक्ति से आवेशित करने से, प्रभावित मछलियों का सेवन करनेवाले लोग अप्रत्यक्ष रूप से मांत्रिकों से प्रभावित होते हैं । इन पद्धतियों का उपयोग कर मांत्रिक जल-जीवन में काली शक्ति एवं कष्ट अनेक गुना बढाते हैं ।
३.१ लाल वर्षा
अपनी अलौकिक शक्तियों से वे (मांत्रिक) बादलों को भी प्रभावित कर सकते हैं; जिससे लाल वर्षा होती है । ऐसी लाल वर्षा केरल, दक्षिण भारत और श्रीलंका में देखी गई है । केरल में हुई वर्षा में पाए जानेवाले सूक्ष्म लाल कणों को वैज्ञानिकों ने इससे पहले कभी नहीं देखा और उन्हें वास्तव में मांत्रिक ही उत्पन्न करते हैं । इन कणों की (कोशिकाओं की) ३०० डिग्री जैसे अत्यंत उष्ण तापमान में भी वेग से वृद्धि होती है ।
भारत के केरल राज्य में हुई लाल वर्षा के कण सूक्ष्मदर्शक यंत्र से (माइक्रोस्कोप से), ऊपर दिए चित्र अनुसार दिखे
१.केरल में हुई लाल वर्षा के नमूने में, माइक्रोस्कोप से ऐसे कण दिखे । (स्त्रोत : विकिपीडिया)
२.ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर एक बीजाणु का (स्पोरका)चित्र जिसमें आंतरिक आवरण (कैपसूल) विभक्त दिख रहा है । (स्त्रोत :विकिपीडिया)
३.यदि कण को ध्यान से देखें, तो उनमें एक मुखमंडल दिखाई देता है । जब अनिष्ट शक्तियां वस्तुओं पर आक्रमण करती हैं, तो कभी कभी वे उस पर अपना छाप छोड देती हैं ।
मांत्रिक कष्टदायी स्पंदन निर्माण करने हेतु जीवाणुओं में परिवर्तन कर वर्षा के जल को लाल कर देते हैं । वे स्वयं कण अथवा जीवाणु नहीं बनाते क्योंकि ऐसा करने में अधिक शक्ति खर्च करनी पडती है । तथापि वे किसी विद्यमान कण अथवा जीवाणु की विशेषता में इतना अधिक परिवर्तन कर सकते हैं कि ऐसा लगता है मानो कुछ नया आविष्कार हुआ है ।
४. महाभूतों का (पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश तत्त्वों का)उपयोग
पृथ्वी पर विनाश करने के लिए मांत्रिक अपनी अलौकिक शक्तियों के (सिद्धियों के) बल पर पंचमहाभूतों का प्रयोग करते हैं । मानव देह प्रमुखतः पृथ्वीतत्त्व एवं आपतत्त्व से बनी है, इसलिए मानवीय प्रकति एवं मनुष्यजाति को प्रभावित करने के लिए मांत्रिक इन दोनों महाभूतों का अधिकतम प्रयोग करते हैं । कष्टदायी तरंगों को दूर-दूरतक फैलाने के लिए वायुतत्त्व का भी उपयोग किया जाता है;क्योंकि वह कष्टदायी तरंगों को संचारित करने का सरल माध्यम है ।
जलाशय को कष्टदायी तरंगों से लाल कर मांत्रिक इन तरंगों को तीव्रगति से फैला सकते हैं; जबकि पानी के वाष्प बनने पर वही कष्टदायी तरंगें वाष्प के माध्यम से अधिक तीव्रगति से सुदूर क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती हैं ।
साथ ही इससे प्रभावित जलाशय का तल (नदी का निचला भाग) भी प्रभावित होता है ।
मांत्रिक केवल उन्हीं स्थानों को अपना लक्ष्य बनाते हैं, जहां रज-तम के लिए पोषक वातावरण हो । अंततः वे सभी क्षेत्र कष्टदायी शक्ति के आगार बन जाते हैं; जिनका उपयोग मांत्रिक भविष्य में तृतीय विश्वयुद्ध को गति देने के लिए करेंगे !
५. रंग का महत्त्व
इन आक्रमणों में रंगों का महत्त्व क्या है ?
- लाल रंग के माध्यम से आक्रमण : यह अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की श्रृंखला का प्रथम चरण है । इसमें अनिष्ट शक्तियां अपनी काली शक्ति से मायावी लाल रंग उत्पन्न करती हैं । इस मायावी लाल रंग का प्रमुख कार्य है दैहिक (शारीरिक) स्तर पर मनुष्य को हानि पहुंचाना । इससे विभिन्न शारीरिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं, उदा. श्वसनसंबंधी रोग, प्राणशक्ति न्यून होना, असाध्य रोग आदि । इन व्याधियों के कारण मनुष्य की कार्यक्षमता अत्यधिक घट जाती है ।
- हरे रंग के माध्यम से आक्रमण : २०१६ के इस अगले चरण के आक्रमण में, मांत्रिक मायावी हरे रंग के माध्यम से लडेंगे । समुद्र, नदियों, झीलों का पानी गहरे हरे रंग का दिखाई देगा । इस मायावी हरे रंग से मानसिक स्तर पर समस्याएं उत्पन्न करने का ध्येय रखा जाएगा । इस चरण में हत्या, बलात्कार एवं रक्तपात की घटनाओं में वृद्धि होगी (२३ जनवरी २०१४ को मुंबई के बाहरी क्षेत्र डोंबिवली में हरे रंग की वर्षा हुई )
- भूरे रंग के माध्यम से आक्रमण : २०१७ के इस आगे के चरण में जलाशय भूरे रंग के हो जाएंगे । वर्षा भी गेरुए रंग की होगी । इस गेरुए रंग के माध्यम से मांत्रिक मनुष्य देह को पूर्णतया अपने नियंत्रण में ले लेंगे, जिससे मनुष्य का अपना अस्तित्त्व समाप्त हो जाएगा । वह केवल मांत्रिकों के हाथ की कठपुतली बन जाएगा । आसुरी शक्तियां मनुष्य के मन को विकृत कर देंगी और वास्तव में पृथ्वी पर आसुरी शक्तियां ही मनुष्य के रूप में वास करेंगी । इनसे राष्ट्र और धर्म, दोनों की अत्यधिक हानि होगी । वे संतों और सज्जनों का उत्पीडन करेंगी ।
- काले रंग के माध्यम से आक्रमण : इस अंतिम चरण में, २०१८ के उत्तराधर्र् में काले रंग के माध्यम से युद्ध के कारण व्यापक स्तर पर विनाश आरंभ हो जाएगा । २०१८ के उपरांत का काल विध्वंसक होगा, समुद्री जल काला-सा हो जाएगा और मानवजाति काली वर्षा देखेगी । राष्ट्र एवं धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल छा जाएंगे । युद्ध से व्यापक स्तर पर विनाश आरंभ होगा ।
६. क्या हम नदी, झील, वर्षा और समुद्र को लाल होने से बचा सकते हैं ?
यदि मानवजाति सात्त्विक जीवनशैली को अपनाने के लिए अधिकतम प्रयास करे, तो विश्व से रज-तम घटने लगेंगे और सात्त्विकता बढेगी । इन प्रयासों में स्वार्थ, लालच जैसे स्वभावदोष घटाना और साधना आरंभ करना भी सम्मिलित हैं । परिवर्तन के लिए यह अनिवार्य है कि साधना संप्रदाय स्वरूप में सीमित न होकर, वैश्विक हो । साधना के छ:मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार की गई साधना काल के अनुसार आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वाधिक पूरक है । तदनुसार प्रकृतिसंबंधी ऐसी घटनाएं न्यून होंगी ।
हम अपने सभी पाठकों से निवेदन करते हैं कि वे साधना की आवश्यकता के विषय में अपने आसपास के लोगों को बताएं; जिससे पृथ्वी पर एकत्रित सात्त्विकता अथवा आध्यात्मिक शुद्धता बढे ।