१. प्रस्तावना
जैसा कि हमारे लेख, सत्संग क्या है, में स्पष्ट किया गया है, सत्संग का अर्थ है, सत का संग अर्थात सत में रहना। हम विविध माध्यमों से सत के सान्निध्य में रह सकते हैं । यहां सत्संग के अनेक प्रकार दिए गए हैं ।
२. ईश्वर के साथ सत्संग
साधना न करनेवाला व्यक्ति दुख में ईश्वर का स्मरण करता है तथा उनसे बातें करता है । आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर व्यक्ति न केवल कठिन समय में अपितु अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को ईश्वर के साथ बिताता है । वह ईश्वर को अपनी प्रत्येक त्रुटि एवं आंतरिक विचार बताता है । ऐसे साधक को कुछ कालावधि के पश्चात ऐसा अनुभव होता है कि उसे अंतरमन से उत्तर प्राप्त होने लगे हैं । जैसे-जैसे उसकी साधना बढती है, वह निरंतर ईश्वर के सान्निध्य में रहने का प्रयास करता है । ईश्वर से वार्ता उनके (ईश्वर)साथ सत्संग की भांति है और यह सत्संग सर्वोच्च स्तर का होता है ।
३. संत, गुरु एवं उन्नत साधकों के साथ सत्संग
तीव्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु, हमें निरंतर उन्नत साधकों अथवा अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के सत्संग में रहना चाहिए । सत्संग से प्राप्त लाभ के अतिरिक्त, यह हमें दोष निवारण का अवसर प्रदान करता है, साधना में सुधार होता है तथा साधना में आनेवाली अडचनों के निर्मूलन हेतु मार्गदर्शन प्राप्त होता है ।
सत्संग का पूर्व नियोजन करने से उन्नत साधकों के साथ व्यतीत किए जानेवाले समय का समुचित उपयोग विशेष लक्ष्य प्राप्ति हेतु होता है । उदाहरणार्थ, किसी उन्नत साधक से मिलने के पूर्व दिन और समय संबंधी योजना बनानी चाहिए । इसके लिए हमें अपनी अनुभूतियों, बाधाओं, प्रश्न एवं साधना में हो रही प्रगति संबंधी सूत्र इत्यादि लिखकर रखने चाहिए ।
उन्नत साधकों के साथ वार्तालाप करते हुए अथवा उनके सान्निध्य में रहकर जो सूत्र एवं अंतरनिहित सिद्धांत हम सीखते हैं, वे भी हमें लिखना चाहिए । साथ ही उन्हें आचरण में उतारने का प्रयास करना चाहिए । कोई विशेष घटना अथवा बातचीत किसी सिद्धांत को समझाने में सहायक होती है, उसमें निहित सिद्धांतों को समझने पर हमारा विशेष ध्यान होना चाहिए । उदाहरणार्थ, यदि उन्नत साधक दूरभाष को स्वच्छ कर योग्य तरीके से रखने का उदाहरण देते हैं, तो हमें उस उदाहरण में निहित स्वच्छता और परिपूर्णता के सिद्धांत का अभ्यास साधना का एक भाग समझकर करना चाहिए । हमें यह भी समझना होगा कि यह सिद्धांत केवल दूरभाष तक सीमित न रहकर सभी स्थानों पर लागू हो । हम जो कुछ भी सीखते हैं अथवा हमें जो मार्गदर्शन प्राप्त होता है उसे आचरण में लाने का प्रयास करने का नियोजन करना चाहिए क्योंकि अभ्यास विहीन ज्ञान व्यर्थ है ।
उन्नत साधक के सत्संग में रहने पर हमें प्रत्येक समय अपने अनुभव को लिखना चाहिए । उदाहरणार्थ, क्या नामजप की मात्रा अथवा गुणवत्ता बढी है, बिना विवेचना के ही किसी शंका का समाधान हुआ, शारीरिक व्याधि, जैसे पीठ की वेदना बिना उपचार के न्यून अथवा बंद हुई, वार्ता के पश्चात व्यक्तिगत अनुभव कैसे रहे – अच्छे, बुरे अथवा अपरिवर्तित, क्योंकि साथना का उद्देश्य है आनंद की प्राप्ति, सत्संग से आनंद की अनुभूति में वृद्धि होनी चाहिए । यदि ऐसा नहीं हो रहा हो, तो हमें विश्लेषण करना चाहिए कि हमसे क्या चूक हो रही है तथा इसकी पुनरावृत्ति ना हो इस पर ध्यान देना होगा । इसके विपरीत, यदि अच्छी अनुभूति हुई हो, तो क्या सही किया उसका विवेचन करें और भविष्य में उसी पर ध्यान केंद्रित करें ।
४. सह-साधकों के साथ सत्संग
इसे स्थूल (शारीरिक) स्तर पर, दूरभाष अथवा जालस्थल के माध्यम से किया जा सकता है । SSRF विश्व भर में अपने साधकों के लिए अंग्रेजी एवं अनेक यूरोपियन भाषाओं में नियमित सत्संग का आयोजन करता है । चूंकि ये साधक विश्व के विभिन्न भागों में रहते हैं, अत: इस हेतु Skype के माधयम से सत्संग का संचालन होता है । इन सत्संगों में आध्यात्मिक विषय की चर्चा तथा साधना से संबंधित शंकाओं का समाधान किया जाता है ।
सह-साधकों के साथ व्यक्तिगत स्तर अथवा दूरभाष पर आध्यात्मिक चर्चा भी एक प्रकार का सत्संग है ।
ये सत्संग चर्चा किए गए विषयों के अनुसार वर्गीकृत किए जा सकते हैं –
- सूचनात्मक सत्संग – अध्यात्म संबंधी सूचनाएं बताई जाती हैं एवं उस पर चर्चा की जाती है ।
- मार्गदर्शक सत्संग – इन सत्संगों में व्यष्टि साधना एवं प्रसार संबंधी मार्गदर्शन किए जाते हैं ।
- भाव सत्संग – सहभागी साधकों के भाव में वृद्धि हेतु किया जानेवाला सत्संग ।
५. संतों द्वारा लिखित धर्मग्रंथ वाचन
यह एक ऐसा सत्संग है, जहां साधक पुस्तकों में अंकित शब्दों के माध्यम से चैतन्य ग्रहण करता है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस ग्रंथ का लेखक एक संत अथवा एक उच्च कोटि की जीवात्मा हैं, जिनका संकल्प उसके शब्दों से कार्यरत होता है । SSRF के अनेक साधकों ने अपने अनुभव बताए हैं कि मात्र इन ग्रंथों के निकट होने से उन्हें स्वयं पर आध्यात्मिक उपचार होते अनुभव होते हैं ।
६. सत्संग के अन्य प्रकार
- आध्यात्मिक प्रवचन में सम्मिलित होना
- धार्मिक स्थलों जैसे, गिरिजाघर, मंदिर, संतों के आश्रम इत्यादि के दर्शन
- तीर्थ स्थलों में रहना
- भक्ति गीतों का श्रवण अथवा गायन
७. निष्कर्ष
अब जब हम सत के संग में रहने हेतु सत्संग के विभिन्न माध्यमों से तथा सत्संग का हमारी आध्यात्मिक प्रगति में होनेवाले महत्त्व से अवगत हो गए हैं, तो हमें निरंतर सत्संग में रहने का प्रयत्न कर उससे लाभान्वित होने का प्रयास करना चाहिए ।