कुछ समय पूर्व ही मेरा गहन आयुर्वेदिक औषधोपचार हुआ है । उपचार के समय मैं स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन(SSRF)के अन्य साधकों से बात नहीं कर पाती थी और उनके सत्संग से वंचित अनुभव करती थी । जब मुझे थोडा अच्छा अनुभव होने लगा,तो मैंने अपना संगणक चालू कर SSRFजालस्थल के कुछ लेख पढना आरंभ किया । जालस्थल के लेख पढने से मुझे अपने मन को अध्यात्म पर केंद्रित करने का अवसर मिला जो एक प्रकार का सत्संग ही था । जीवन की समस्याओं का कारण यह लेख पढते समय मुझे गुरु के प्रति अत्यंत कृतज्ञता भाव अनुभव हुआ । मैंने सोचा कि गुरु के कारण ही हमें आध्यात्मिक ज्ञान मिल पा रहा है जिससे हम जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना सीख पाए हैं ।
जब मुझे अत्यधिक कृतज्ञता अनुभव हो रही थी,उस समय मुझे चंदन की सुगंध आनी आरंभ हो गई तथा मैं सूक्ष्म रूप से उसका स्वाद भी अनुभव कर पा रही थी । वहां पर ना कोई अगरबत्ती जल रही थी ना ही सुगंध का कोई अन्य स्रोत था । तभी मेरी आंखों में भावाश्रु आ गए और मुझे स्वयं में उच्चतम स्तरीय आनंद की अनुभूति हुई जो डेढ घंटे तक बनी रही ।
– कु.माया जयराम, कोलोरेडो, यू.एस.ए.
इस अनुभूति का अध्यात्म शास्त्र
ईश्वर की कृपा से हमें अनुभूतियां होती हैं । यह ईश्वर के बताने की पद्धति है कि हम योग्य मार्ग पर हैं । अनुभूतियां हमें साधना करते रहने की प्रेरणा देता है । अनुभूतियों के कई प्रकार हैं,ये हमारी ईश्वर की भक्ति के कारण से आ सकती है अथवा जब भी हमें ईश्वर के आश्वासन की आवश्यकता होती है ।
माया के प्रसंग में,जब उन्हें ईश्वर के प्रति अत्यधिक कृतज्ञता-भाव अनुभव हुआ तब वे जीवन में ईश्वर का अस्तित्व अनुभव कर पाईं । उसी क्षण माया को अपनी सूंघने तथा स्वाद की सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रियों द्वारा चंदन की सूक्ष्म-सुगंध तथा स्वाद अनुभव हुआ । सामान्यतः सूक्ष्म-स्वाद का अनुभव दुर्लभ ही होता है । यह आपतत्त्व को छठवीं ज्ञानेंद्रिय द्वारा (स्वाद लेने के सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय द्वारा) ग्रहण करने से होता है ।
इन सबसे माया के कृतज्ञता भाव में वृद्धि हुई फलस्वरूप उनमें भाव जागृति हुई । भाव प्रकट होने का एक लक्षण भक्ति एवं शांति के साथ ठंडे अश्रु निकलना है ।
हमें सूक्ष्म-सुगंध अथवा स्वाद का अनुभव कैसे होता है,यह जानने के लिए कृपया हमारा संदर्भ लेख पंच सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रियोंद्वारा छठवीं इंद्रिय का ज्ञान होना पढें ।