सितंबर २००५ में मैं स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) के आश्रम में गया था ।
वहां मुझे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी से मिलने का सौभाग्य मिला । उनसे बात करने के उपरांत परम पूज्य डॉ. आठवले जी ने मुझे एक चॉकलेट दी और स्वयं एक चॉकलेट ली । इस तथ्य को समझकर कि जब संत किसी वस्तु को छूते हैं तब उसमें चैतन्य उत्पन्न होता है, मैंने परम पूज्य डॉ. आठवले जी द्वारा स्पर्श की गर्इ चॉकलेट का वेष्टन (रेपर) अपने पास संरक्षित कर लिया । मैंने उसे हलके से मोडकर अपनी जेब में रख लिया । परम पूज्य डॉ. आठवले जी में मुझे वेष्टन को गोल कर एक छोटी सी गेंद का आकार देने के लिए कहा । मैंने दोनों वेष्टनों की क्षमता को समझने के लिए उन्हें जिपलॉक थैले में सुरक्षित रख लिया ।
अक्टूबर २००५, में मैं ऑस्ट्रेलिया वापस आ गया । मैनें जिपलॉक थैले को पूजा घर में रखा । २६ दिसंबर को तीन साधक SSRF website के विकास में सहायता करने हेतु सत्सेवा करने मेरे घर पर आए थे ।
जालस्थल पर दिनभर कार्य करने के उपरांत हम उस दिन की घटनाओं की चर्चा करते हुए विश्राम कर रहे थे । मुझे विचार आया कि छठवीं इंद्रिय को जांचने हेतु चॉकलेट के वेष्टन का सूक्ष्म–प्रयोग करें और देखें कि चैतन्य ग्रहण कर पाते हैं अथवा नहीं । मैं पूजा घर से जिपलॉक थैला लेकर आया और जैसे ही मैंने उसे खोला उससे एक तीव्र सुगंध निकलने लगी । सभी उपस्थित साधकों को चंदन तथा चमेली की बहुत तीव्र दैवी सुगंध की अनुभूति हुर्इ ।
– शॉन क्लार्क, मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया
इस अनुभूति का अध्यात्मशास्त्र
यह सुगंध कहां से आ रही थी ?
जब भी संत अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्ति किसी वस्तु को स्पर्श करते हैं, तब संत से वस्तु में चैतन्य संचारित होता है । चॉकलेट के वेष्टन में परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का चैतन्य प्रवाहित होने के कारण सूक्ष्म-सुगंध प्रक्षेपित हो रही थी ।
सूक्ष्म-सुगंध ग्रहण कैसे होती है ?
किसी भी सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय, सूक्ष्म-मन अथवा सूक्ष्म–बुद्धि द्वारा विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से साधक चैतन्य ग्रहण कर सकता है । छठवीं इंद्रिय के विकास के समय, सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रियां सबसे स्थूल होने के कारण सबसे शीघ्र विकसित होती हैं । सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रियों में सूंघने की क्षमता सबसे स्थूल होती हैं, इसलिए वह सबसे शीघ्र विकसित होती हैं ।