साधना के रूप में अनेक बार मैं अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के घर स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन के जालस्थल (वेबसार्इट) संबंधी परियोजना (प्रोजेक्ट) में सहायता करने के लिए सेवा हेतु जाता हूं । एक समय जब मैं SSRF की एक ऑनलार्इन पत्रिका की सदस्यता हेतु स्वचालित प्रतिक्रिया बनाने की सेवा कर रहा था, मुझे ५-६ सेकेंड के लिए पवित्र विभूति की सूक्ष्म-सुगंध अनुभव हुर्इ । उस समय वैसी सुगंध का कोर्इ भी स्रोत आसपास नहीं था । जब मैंने उत्सुकतावश अपने मार्गदर्शक सेपूछा कि क्या उन्हें भी ऐसी सुगंध आर्इ है, उन्होंने ‘नहीं’ उत्तर दिया । मैं सदस्यता हेतु स्वचालित प्रतिक्रिया बनाने की सेवा करने लगा, कुछ समय उपरांत हम दोनों को कुछ समय के लिए उसी सुगंध की अनुभूति हुर्इ । इस अनुभूति ने मेरे योग्य साधना पथ (गुरुकृपायोग) के प्रति मेरी श्रद्धा दृढ कर दी ।
– वामसी कृष्णा, मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया.
इस अनुभूति का अध्यात्मशास्त्रइस अनुभूति का अध्यात्मशास्त्र
जब कोर्इ आध्यात्मिक रूप से लाभदायक वातावरण जैसे, मंदिर अथवा सत्संग में रहता है अथवा सत्सेवा करतेा है, तो उस समय सात्त्विकता बढ जाने के कारण अथवा सत्सेवा करने हेतु र्इश्वरीय शक्ति के प्रवाह के कारण साधक का आध्यात्मिक स्तर कुछ समय के लिए बढ जाता है । जब किसी का आध्यात्मिक स्तर बढता है, तब उसकी सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय सक्रिय हो जाती हैं और तब वह सर्वव्यापी र्इश्वर द्वारा प्रक्षेपित चैतन्यकी तरंगों को ग्रहण करने में सक्षम हो जाता है । अधिकांश अनुभूतियां भगवान अपने भक्तों को यह बताने के लिए देते हैं कि वे योग्य पथ पर हैं जिससे साधना के प्रति उनकी श्रद्धा बढे । साधक की आध्यात्मिक उन्नति की यात्रा में, श्रद्धा ही मुख्य कुंजी है, जो साधक को उच्च आध्यात्मिक स्तर की ओर प्रगति करने में सहायता करती है ।