१. आध्यात्मिक स्तर पर नामजप के लाभ
१. १ नामजप आध्यात्मिक उपचार के रूप में कार्य करता है ।
कुछ विशेष मंत्र हमारे शरीर के विशेष अंगों के साथ जुडे रहते हैं । यदि शरीर का कोर्इ अंग ठीक से कार्य नहीं कर रहा और उसका कारण आध्यात्मिक है तो, नामजप उसे ठीक करने में सक्षम है । नामजप से कुछ विशेष तरंगें उत्पन्न होती हैं जो रोगग्रस्त अंग में निर्मित असामान्य एवं अप्राकृतिक तरंगों को दूर करने में सहायता करती है । अधिक जानकारी के लिए “स्वास्थ्य के लिए नामजप” इस अनुभाग को देखें ।
१.२ नामजप से प्रारब्ध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं
यदि हम हर समय ईश्वर का नाम लेते हैं तो प्रारब्ध की तीव्रता घट सकती है अथवा वह सहन करने योग्य हो सकता है । इसके साथ ही हम अपने संचित, जो कुल प्रारब्ध का जोड है उस पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रारब्ध के प्रभाव को अल्प करने तथा शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए जिस धर्म में हमें ईश्वर ने जन्म दिया है उस धर्म के देवता का नामजप करना चाहिए ।
१.३ नामजप से पितृदोष (पूर्वजों की अतृप्ति के कारण होनेवाले कष्ट) से उत्पन्न होनेवाली समस्याएं दूर होती हैं ।
वर्तमान काल में अनेक लोग दिवंगत पूर्वजों के लिए धार्मिक विधियां नहीं करते इसलिए उनके पूर्वजों के अतृप्त सूक्ष्म देहों के कारण उन्हें कष्ट अनुभव होते हैं, जैसे विवाह न होना, पति-पत्नी के बीच अनबन होना, गर्भधारण न होना, विकलांग बच्चे का जन्म होना आदि पितृदोषके कुछ लक्षण हैं ।
पितृदोष से उत्पन्न कष्टों से छुटकारा पाने के लिए हमारा सुझाव है कि आप आध्यात्मिक दृष्टि से सुरक्षा प्रदान करनेवाला ‘‘श्री गुरुदेव दत्त’’ का नामजप करें । इसकी विस्तृत जानकारी हमारे लेख “पूर्वजों के कष्ट से स्वयं का रक्षण कैसे करें ?’’ में उपलब्ध है ।
१.४ वास्तु की आध्यात्मिक शुद्धि के लिए नामजप
नामजप करने से जो आध्यात्मिक शक्ति निर्मित होती है, उससे हम जिस वास्तु में रहते हैं, उसकी भी शुद्धि होती है । यदि हम अपने वास्तु में अनिष्ट तरंगों का अनुभव करते हैं, तो हमें प्रगत छठवीं ज्ञानेंद्रिय अथवा सूक्ष्म-ज्ञान की समझ रखनेवाले व्यक्ति से संपर्क करना चाहिए । वह हमें हमारे उद्देश्य की पूर्ति के लिए कौनसा नामजप करना है, बता सकते हैं । यदि यह संभव न हो तो, कष्ट की तीव्रता के अनुसार जिस धर्म में हमारा जन्म हुआ है उसके देवता का नामजप २०- ६० मिनटतक करना चाहिए ।
१. ५ नामजप से हमारे आध्यात्मिक कष्ट दूर होते हैं ।
अनिष्ट शक्तियों के कारण, हमें जीवन में निरंतर शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं एवं बाधाओं का सामना करना पडता है । यद्यपि बाह्य रूप से ये समस्याएं शारीरिक, मानसिक अथवा सांसारिक स्वरूप की दिखती हैं; परंतु वास्तव में ये समस्याएं अनिष्ट शक्तियों के कारण ही उत्पन्न होती हैं । जब हमें इस प्रकार का कष्ट अनुभव होता है, तब स्थूल रूप से कितना भी उपचार करें, कष्ट पूरी तरह से समाप्त नहीं होता । यह वैसे ही है जैसे मलेरिया को हम ज्वर की औषधि से ठीक नहीं कर सकते, अतः जिस औषधि में मलेरिया के कीटाणुओं को मारने की शक्ति है वही लेनी पडती है । अनिष्ट शक्तियां साधकों की साधना में विघ्न डालती है इसलिए साधकों को साधना का जो अपेक्षित फल मिलना चाहिए वह उन्हें नहीं मिलता । जब हम ईश्वर के नाम का जप करते हैं, तब विशिष्ट ईश्वरीय तत्त्व हमारी ओर आकर्षित होता है और अनिष्ट शक्तियों से हमारी सुरक्षा करता है ।
वर्तमान समय में, वर्ष २०२५ तक, पूरे विश्व में भगवान कृष्ण का तत्त्व अधिक मात्रा में जागृत रहेगा, इसलिए प्रतिदिन २ घंटे ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय‘ का जप कर सकते हैं ।
१.६ नामजप करने से हम दुखों से बच सकते हैं ।
अ. दुःख का मूल कारण है विभिन्न वस्तुओं के प्रति हमारी आसक्ति । नामजप करने से हममें ईश्वर के प्रति प्रेम निर्माण होता है, हमारी सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति घट जाती है, दुःख दूर हो जाते हैं और हमें अधिक आनंद का अनुभव होता है ।
आ. ईश्वर सदा आनंद में रहते हैं इसीलिए उनका नाम लेने से हम भी निश्चित रूप से आनंद अनुभव करते हैं ।
१.७ नामजप से आध्यात्मिक शक्तियां (सिद्धियां) प्राप्त होना
सिद्धियों में अलौकिक शक्ति होती है । नामजप की साधना करने पर हम कभी-कभी विशिष्ट र्इश्वरीय तत्त्व पर नियंत्रण पा लेते हैं और फलस्वरूप अलौकिक शक्तियां प्राप्त कर लेते हैं । उद्धाहरण के तौर पर, सूर्य देवता का नामजप करने से तेज तत्व पर नियंत्रण प्राप्त होता है और उसके कारण हम पर उष्णता का प्रभाव नहीं पडता । सिद्धि साधना का ही प्रतिफल है, परंतु साधना का उद्देश्य नहीं है ।
१.८ नामजप से मृत्यु के पश्चात भी आध्यात्मिक लाभ होते हैं
निरंतर नामजप करने से हमारे अंतर्मन में भक्ति का केंद्र निर्माण होता है । मृत्यु के समय वह सूक्ष्म-शरीर के साथ जाता है । इसलिए मरने के उपरांत भी नामजप चालू रह सकता है । यह हमारी मरणोपरांत रक्षा करता है और आगे के सूक्ष्म-लोकों में तीव्र गति से जाने में हमारी सहायता करता है ।
२. साधना में नामजप का महत्व
२.१ नामजप के समय स्मरण एवं ध्यान दोनों होते हैं ।
हम मन में भगवान का स्मरण करते हैं इसलिए उनका नामजप करते हैं । नामजप करते समय ईश्वर का स्मरण एवं ध्यान स्वतः ही होता है ।
२.२ नामजप करने से अंतर्मुख वृत्ति निर्मित होती है ।
जब नामजप से हमारी वृत्ति अंतर्मुख होने लगती है तब इसका अर्थ है कि हमारी आध्यात्मिक उन्नति हो रही है । संसार के प्रति झुकाव घटने लगता है और हम अपने अंतर्मन में झांकने लगते हैं । इससे हमारी वृत्ति अंतर्मुख होने में सहायता होती है, जो हमारी साधना के लिए लाभदायक है ।
२. ३ नामजप परिपूर्ण साधना है ।
परिपूर्ण साधना वो होती है जो मन एवं शरीर के कार्य के लिए अनुकूल हो । नामजप वैसी ही एक परिपूर्ण साधना है । इसे कोई भी, कभी भी एवं कहीं भी कर सकता है । अतः यह एक उत्तम स्वाभाविक अवस्था है जिसमें हम भगवान से एकरूप हो सकते हैं । यह अवस्था ऐसे लोगों की होती है जिनका नामजप अंतर्मन से होता है, जिसमें उनका ईश्वरीय तत्व के साथ निरंतर संबंध जुडा रहता है ।
२.४ नामजप से श्रद्धा एवं भाव दोनों विकसित होते हैं
निरंतर भगवान का नाम लेने से, नामजप पर पूर्ण विश्वास होने पर हमें अनुभूतियां होती हैं । नामजप से अनुभूति होने पर हममें भक्ति तथा श्रद्धा निर्मित होकर दृढ होती है । जब हमें पूर्ण विश्वास हो जाता है कि भगवान का नाम मुझे सबकुछ देगा तब हम आर्तता से नामजप करने लगते हैं । तब हममें शीघ्रता से भाव जागृति होती है । एक कहावत है ‘जहां भाव वहां भगवान’, अतः अध्यात्म में भाव निर्माण करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।
२.५ बिना अपेक्षा के नामजप करने से पुण्य का भी लोप हो जाता है
किसी सांसारिक लाभ की अपेक्षा किए बिना जब हम नामजप करते हैं, तब हममें भाव निर्मित होता है । ईश्वर के नाम के प्रति प्रेम जागृत होने से हम ईश्वर को ही पा लेते हैं । ईश्वर प्राप्ति होने पर अत्याधिक आनंद की अनुभूति होती है, तब हमारे सभी पुण्य समाप्त हो जाते हैं, क्योंकि इस स्तर पर पुण्य भी मोक्षतक पहुंचने में बाधा बन जाते हैं । इस स्थिति में पहुंच कर हम जिस भक्ति को अनुभव करते हैं उससे हमें एवं हमारे आसपास के लोगों को भी लाभ होता है ।
२.६ नामजप करने से पापों का अंत होता है ।
ईश्वर के नाम में इतनी शक्ति है की वह असंख्य पापों को जला कर भस्म कर देती है । कहा जाता है कि व्यक्ति का ऐसा कोई पाप नहीं है, जिसे ईश्वर नष्ट न कर सकें ।
भारत के महाराष्ट्र स्थित नारायण गांव के परम पूज्य काणे महाराजजी ने नामजप से पापों को नष्ट करने की क्षमता का वर्णन करते हुए कहा है कि “नामजप करने से पूर्व की कालावधि में कोई पाप किया हो तो वह नष्ट हो जाता है । यदि नामजप आरंभ करने के उपरांत कोई पाप करता है, पाप तबतक वैसे ही रहते हैं, जबतक हम पुनः नामजप नहीं करते । यदि पुनः नामजप करने में हम असफल रहे तब हमें पाप के परिणाम भुगतने पडते हैं ।’’
नामजप से अज्ञानवश हुए पाप धुल जाते हैं । यदि जानबूझकर पाप किए गए हों तो ऐसा नहीं होता ।
नामजप पापों को समाप्त करने के लिए, प्रायश्चित से श्रेष्ठ है, क्योंकि प्राश्चित से पाप तो नष्ट हो जाते हैं पर हमारी पाप करने की वृत्ति बनी रहती है । जब हममें मोक्ष प्राप्ति की तीव्र इच्छा जागृत होती है तब पाप करने की इच्छा शांत हो जाती है और पाप नष्ट हो जाते हैं ।
२.७ नामजप हमारे कर्म को अकर्म–कर्म में बदल देता है ।
किसी भी व्यवसाय में हम लेन देन के मामलों में कितना भी सावधानीपूर्वक प्रयास क्यों न करें, एकदम सटीक हिसाब लगाना असंभव है । संक्षेप में, लेन देन का हिसाब बना ही रहता है । इससे बचने के लिए यह आवश्यक है कि कर्म, अकर्म-कर्म होना चाहिए ।
कोई भी कर्म नामजप करते हुए किया जाए तो वह अकर्म-कर्म बन जाता है । उससे हमें न पुण्य मिलता है न पाप । फलस्वरूप होता यह है कि हमारा प्रारब्ध भोग समाप्त हो जाता है और जन्म मृत्यु के चक्र से हमें शीघ्र मुक्ति मिलती है ।
२.८ नामजप से हमारा अंतर्मन शुद्ध होता है और आध्यात्मिक ज्ञान ग्रहण करने के अनुकूल बनता है ।
जैसे अच्छी फसल के लिए खेत को जोतना पडता है तभी मिट्टी उपजाऊ बनती है, वैसे ही जबतक हमारा सूक्ष्म शरीर शुद्ध नहीं होता, तबतक ज्ञान भीतर प्रवेश नहीं कर पाता ।
२.९ जप करने से हमारी आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र होती है
साधना में अनुभूति जैसे विविध रंग दिखना, प्रकाश दिखना एवं भिन्न प्रकार के स्वर सुनाई देना आदि होने के उपरांत अनेक लोग अपनी साधना में वहीं रुक जाते हैं । उन्हें अनिष्ट शक्तियां अनुचित मार्गदर्शन कर सकती हैं । क्योंकि उन्हें ईश्वर का संरक्षण अल्प मिलता है । भगवान का नामजप करने से सभी प्रकार के अनुभवों की अनदेखी करते हुए हम सीधे भगवानतक पहुंच जाते हैं ।
२.१० नामजप से अहंकार का विघटन होता है
जैसे आग के समीप घी रखने से वो पिघल जाता है, ठीक इसी प्रकार नामजप से हमारे अहंकार का भी विघटन हो जाता है ।
२.११ नामजप से गुरु की कृपा प्राप्त होती है
यदि गुरु स्वयं ही हमें बतांए कि हमें कौन सा नामजप करना चाहिए, तो यह सौभाग्य की बात है; किंतु यदि हमें गुरु नहीं मिले हैं, तब भी हमें नामजप करते रहना चाहिए । क्योंकि नामजप से ही हमें गुरु मिलेंगे ।
२.१२ नामजप से हम ईश्वर से एकरूप हो सकते हैं
जो भी ईश्वर अथवा देवता का नामजप करता है, वह उनसे एकरूप हो सकता है । जब ये तीनों एक हो जाते हैं, तब अद्वैत की स्थिति प्राप्त होती है ।
३. सारांश
नामजप हमारी सभी आध्यात्मिक समस्याओं को दूर करता है और मृत्यु के उपरांत भी हमारा ध्यान रखता है ।
केवल एक नामजप साधना ही है जो निरंतर की जा सकती है । उदा. हम न तो दिन के पूरे २४ घंटे ध्यान के लिए बैठ सकते हैं, न योगासन कर सकते हैं, न भक्ति गीत गा सकते हैं और न ही हर समय तीर्थ यात्रा कर सकते हैं ; परंतु अपना प्रत्येक दायित्त्त्व निभाते हुए जैसे घर, बच्चे, नौकरी को संभालते हुए भी हम हर समय नामजप कर सकते हैं । यदि हम ईश्वर से एकरूप होना चाहते हैं तो हमारी साधना निरंतर एवं अखंड होनी चाहिए । यह केवल नामजप से ही संभव है ।
नामजप हमारे अंतर्मन को भी शुद्ध करता है और यह हमारे इस जन्म के एवं पूर्व जन्मों के पापों को भी भस्म करता है, जिससे हमारे लिए जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना संभव हो सके । यह हमारे अहंकार को नष्ट करता है और अंतर्मन में श्रद्धा और भक्ति निर्मित करता है जिससे हमें एवं हमारे आस-पास के सभी लोगों को लाभ होता है ।