साधना द्वारा आंत की सूजन संबंधी व्याधियों पर विजय प्राप्त करना

डेविड, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाले वित्त पृष्ठभूमि के व्यवसायी हैं । इस प्रकरण अध्ययन में डेविड, (इसका अध्ययन जुलाई २०१३ में किया गया है) अपने शब्दों में बता रहे हैं कि किस प्रकार SSRF के जालस्थल ssrf.org पर बताई साधना तथा आध्यात्मिक उपचार पद्धतियां, आंतों में जलन संबंधी उनके गंभीर रोग पर विजय प्राप्त करने में सहायक हुई । डेविड २०१२ में SSRF से परिचित हुए । वे SSRF के मार्गदर्शन में गत १ वर्ष से अधिक काल से साधना कर रहे हैं; परंतु पिछले १२ माह में उन्होंने तीव्रता से साधना आरंभ की है । यहां वे अपने शब्दों में उनके अनुभव बता रहे हैं ।

१. आंत से संबंधित चिकित्सकीय समस्या

मैं आंतों में दाह की व्याधि से त्रस्त हूं । इस व्याधि में आंत के कुछ भागों में बहुत सूजन आ जाती है जिससे आंत में व्रण (अल्सर) और घाव निर्मित होते हैं । मैं इस समस्या से पिछले १० वर्षों से त्रस्त हूं । पारंपारिक औषधियों से मेरे शरीर पर विपरीत परिणाम होता है और मैं अधिक अस्वस्थ हो जाता हूं । अतः १ वर्ष तक एलोपैथिक औषधियां लेने के उपरांत मैंने विविध प्रकार की प्राकृतिक तथा वैकल्पिक चिकित्सा के विभिन्न उपचार आरंभ किए । इन चिकित्सा पद्धतियों से मुझे लाभ तो हुए; परंतु १५-२० प्रतिशत से अधिक नहीं । परिणामस्वरूप मैं अन्य अच्छे उपचारों की प्रतीक्षा में रहता था ।

SSRF का जालस्थल मिलने से पूर्व मेरा जीवन अत्यंत नकारात्मक (भयानक) और तनावपूर्ण था । उस समय मेरी व्याधि की गंभीरता अत्यधिक थी । एक घाव के माध्यम से मेरी आंत मूत्राशय में खुल गई (इसे enterovesical fistula (नालव्रण ) कहते हैं) । इससे मूत्राशय में रह-रहकर संक्रमण (infection) होने लगा । परिणामस्वरूप मैं बार-बार मूत्रमार्ग में संक्रमण से urinary tract infections (UTI) पीडित रहता । मेरे चिकित्सक ने मुझे रक्तसंबंधी कुछ परीक्षण कराने के लिए कहा । इन परीक्षणों के निष्कर्षानुसार रक्त में श्‍वेत कोशिकाएं और C-reactive protein (CRP) बढ गए थे । इसलिए उन्होंने मुझे मूत्रविज्ञानी (urologist) के पास भेजा । मूत्राशय विशेषज्ञ से मिलने हेतु मुझे ४ माह प्रतीक्षा करनी पडी । उन्होंने मुझे आगे आंत के शल्यचिकित्सक (colo-rectal (bowel) surgeon ) के पास भेजा, जिनसे भेंट होने में मुझे और ३ माह प्रतीक्षा करनी पडी । शल्यकर्म के अतिरिक्त अन्य उपचारों से व्याधि ठीक हो सकती है अथवा नहीं, इसकी पुष्टि करने के लिए उन्होंने देश के अग्रणी gastroenterologist (bowel specialist) के पास भेजा । सौभाग्यवश किसी अन्य रुग्ण की भेंट निरस्त होने के कारण मेरी भेंट हो पाई । इसलिए आंत के शल्यचिकित्सक (colo-rectal (bowel) surgeon) से मिलने के उपरांत कुछ ही सप्ताहों में मैं gastroenterologist (bowel specialist) से मिल सका ।

२. प्रदाहक आन्त्र रोग के निवारण हेतु अपनाई गई आध्यात्मिक उपचार पद्धतियां

जुलार्इ २०१२ में मैं उचित साधना की खोज में था, जब मैंने अकस्मात SSRF का जालस्थल (वेबसार्इट) देखा । इससे पूर्व मैं अन्य संस्था के मार्गदर्शन अनुसार साधना करता था । SSRF के जालस्थलपर वर्णित सिद्धांतों में गूढ सत्यता को मैंने अनुभव किया ।

विविध चिकित्सकों की प्रतीक्षा के ८ माह की कालावधि में (ऊपर बताएनुसार) मैं SSRF के मार्गदर्शन में गंभीरता से साधना कर रहा था । दिन में न्यूनतम २ घंटे बिना भूले मैं श्री गुरुदेव दत्त (पितृदोष से मुक्ति पाने हेतु किया जानेवाला नामजप) और भगवान श्रीकृष्ण का नामजप करता था । केवल अन्य काम करते समय ही नहीं, अपितु टीवी देखते समय भी नामजप करता रहता । मैंने नियमितरूप से नमक-पानी तथा गत्ते के बक्से के उपाय भी किए ।

नामजप करने के उपरांत विशेषकर नमक पानी के उपाय करते समय मैंने देखा कि अकस्मात मेरा मानसिक तनाव न्यून हुआ । मेरी प्रमुख स्वास्थ्य समस्या में धीरे-धीरे परिवर्तन होते गए । ये सुधार लगातार नहीं हुए । स्वास्थ्य में कुछ सुधार होता, तदुपरांत कुछ बिगड जाता, पुनः कुछ सुधार और पुन:कुछ बिगड जाता । दो पग आगे, एक पग पीछे; इस प्रकार होता रहा ।

इसके पश्चात मैंने सुरक्षा की प्रगत आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति अपनार्इ जैसे कि – सप्तचक्रों पर देवताओं के चित्र लगाना और ८ वें तथा ९ वें द्वार पर आध्यात्मिक सुरक्षा-पट्टियां लगाना । इन उपचार पद्धतियों के विषय में मुझे SSRF के आॅनलार्इन सत्संग (सत्त के संग) में पता चला ।

८ वां और ९ वां द्वार मूत्रमार्ग के मुख और गुदामुख से संबंधित हैं । अनिष्ट शक्तियां हमें इन द्वारों के माध्यम से सहजता से प्रभावित करती हैं; क्योंकि इनके द्वारा शरीर के आंतरिक तंत्रों से सीधे संपर्क करना संभव होता है । नाक एवं मुख जैसे द्वारों की तुलना में मूत्रमार्ग और गुदा द्वार के भाग में रज-तम की मात्रा अत्यधिक होती है (मल त्याग और यौन कार्य के कारण) । SSRF द्वारा निर्मित कपडे में लिपटी आध्यात्मिक सुरक्षा-पट्टियां सरलता से लगाई जा सकती हैं । ये पट्टियां इन द्वारों को आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ उन पर आध्यात्मिक उपचार भी करती हैं ।

इसी प्रकार देवताओं के चित्र सप्तचक्रों पर लगाने से चक्रों के सर्व ओर की आध्यात्मिक शुद्धता बढती है और सूक्ष्मशक्ति पूरे शरीर में सहजता से प्रवाहित होने लगती है । इससे चक्रों पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा होनेवाले आक्रमण से सुरक्षा मिलती है ।

आरंभ में नमक पानी के आध्यात्मिक उपचार मुझे सर्वाधिक उपयुक्त लगे । उपचार करते समय पूरे १५ मिनट तक मुझे निरंतर डकारें आती थीं और उपचार पूर्ण करने के उपरांत शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से अत्यधिक हलका लगता था । आजकल नमक पानी के उपचार करते समय मुझे डकारें नहीं आतीं । मुझे लगता है कि अब इस उपचार से मुझ पर अधिक सूक्ष्म परिणाम होने लग गए हैं । अब मुझे गत्ते के बक्से के उपचार अधिक शक्तिशाली लगते हैं । बक्से विशिष्ट प्रकार से रखने पर तनाव तुरंत दूर हो जाता और मुझे बहुत डकारें आतीं । आज भी ये उपचार करते समय मुझे डकारें आती हैं ।

अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित व्यक्ति को आध्यात्मिक उपचार करते समय अथवा शुद्ध आध्यात्मिक वातावरण में प्रवेश करने पर निरंतर डकारें आती हैं । शरीर से काली शक्ति निकल जाने का यह एक मार्ग है ।

८ वें तथा ९ वें द्वार पर सुरक्षा-पट्टियां न लगाने पर मुझे बहुत थकान होती है और मैं दोपहर में गाढी निद्रा में सो जाता हूं । दूसरी ओर मैंने देखा है कि ये पट्टियां लगाने से आश्‍चर्यजनक पद्धति से उत्साह लगने लगता है । मैंने यह भी देखा है कि चक्रों पर देवताओं के चित्र लगाना अत्यधिक शक्तिशाली आध्यात्मिक उपचार है । परंतु आरंभ में इससे होनेवाले उत्साहवर्धक परिणाम अनुभव करने से पूर्व इन उपचारों से मेरा कष्ट बढ गया था । मैं ये चित्र नमक पानी के उपचार करते समय और सोते समय लगाता था । कभी-कभी मैं कर्पूर का चूर्ण कर उसे शरीर पर लगाता था अथवा उसकी गंध सूंघता था । इससे मुझे बहुत पवित्रता अनुभव होती थी । SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्ती के धुएं से मैं प्रतिदिन बक्सों और देवताओं के चित्रों की आध्यात्मिक शुद्धि करता था ।

३. नियमित साधना और आध्यात्मिक उपचारों के उत्साहवर्धक परिणाम

पेट के विख्यात विशेषज्ञ से भेंट करने से पहले मेरी स्थिति में लगभग ८० प्रतिशत सुधार आया था । मैं अपने मूत्र में श्वेत रक्त कोशिकाओं की जांच करने के लिए घर में मूत्र परीक्षण स्ट्रिप्स का उपयोग करता था । श्‍वेत कोशिकाओं में लक्षणीय कमी हुई थी । अब मुझे नित्य की भांति कष्टप्रद मूत्र-संक्रमण UTI नहीं होता । भोजन के उपरांत पेट भी नहीं फूलता । पहले मुझे यह पीडा प्रतिदिन होती थी ।

पेट के विशेषज्ञ ने कहा कि कई दशकों से वे इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और इस क्षेत्र में होनेवाले अनेक शोध भी उन्होंने पढे हैं; परंतु इस प्रकार से ठीक होने का उदाहरण उन्होंने कभी नहीं देखा । मेरे जैसे रुग्णों में आंतों के घाव अधिकाधिक बढते जाते हैं और अंत में उसके लिए शल्यकर्म करना आवश्यक हो जाता है । साथ में यह भी कहा कि मेरी जैसी व्याधि में उन्होंने कभी रक्त की जांच के इस प्रकार के साधारण(Normal)परिणाम होते नहीं देखे । श्वेत रक्त कोशिकाओं एवं CRP levels के विषय में यह विशेष रूप से सत्य है । अंत में उन्होंने यह कहा कि उनके पास मेरे लिए कोई और सुझाव नहीं था तथा मैं वही जारी रखूं जाेमैं कर रहा था । केवल स्थिति अधिक बिगड जाने पर मैं शल्यकर्म के विषय में सोच सकता हूं ।

परिणामों के कारण मैं वास्तव में आनंदी, कृतज्ञ और हलका हो गया था । मैं कहना चाहता हूं, मेरा दृढ विश्वास है कि मैं केवल ईश्‍वरकृपा और SSRF की सहायता से ठीक हुआ हूं ।

SSRF में आने से पहले मैंने पूर्वजों के लिए विविध कर्मकांड एवं विविध प्रकार के नामजप करने की तीव्र साधना की थी (किसी अन्य संगठन के मार्गदर्शन में)। परंतु मुझे लगा कि उनसे मुझे कोई लाभ नहीं हुआ । साधना के कई मार्ग हैं और लोगों का विश्वास होता है कि उनका ही मार्ग शुद्ध और उचित है; परंतु वास्तवकिता वैसी नहीं है । SSRF द्वारा निर्देशित साधना से मुझ में शारीरिक और मानसिक परिवर्तन आए । लोगों के लिए जिस प्रकार अन्न आवश्यक होता है, वैसे मेरे लिए यह साधना है । जीवित रहने के लिए प्रतिदिन कुछ समय यह साधना करना अनिवार्य है । जो लोग कठिन समस्याओं में फंसे हैं, उनके लिए यह समझना आवश्यक है कि साधना ही उन्हें ऐसा कुछ दे सकती है, जो अन्य कोई नहीं दे सकता । इसकी निश्चिति देना संभव नहीं है कि साधना से लोगों को क्या प्राप्त होगा; परंतु मुझे विश्वास है कि सभी को जो आवश्यक है, वही मिलता है । मुझे तो अनेक सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं ।

४. SSRF की टिप्पणी

जीवन की समस्याएं शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कारणों से हो सकती हैं । डेविड के उदाहरण में आध्यात्मिक उपचारों से (SSRF द्वारा निर्देशित) उसकी आंत की व्याधि पर शक्तिशाली प्रभाव हुए । श्री गुरुदेव दत्त के नामजप से प्राप्त तत्काल प्रभाव इस बात को सूचित करते हैं कि यह समस्या मृत पूर्वजों के कारण थी ।

व्याधि का मूल कारण यदि आध्यात्मिक है, तो वह केवल आध्यात्मिक उपचारों से ही ठीक हो सकती है । यदि समस्या पूर्णतः अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण जैसे आध्यात्मिक कारणों से है और इससे शरीर के किसी अवयव को २० प्रतिशत हानि पहुंचती है, तो आध्यात्मिक उपचारों से व्याधि केवल ८० प्रतिशत तक ठीक हो सकती है । किसी व्याधि का आरंभिक कारण आध्यात्मिक हो, तो भी एक बार अवयव क्षतिग्रस्त होने पर उसमें आध्यात्मिक उपचारों से १०० प्रतिशत सुधार लाना कठिन होता है । नियमित साधना के साथ नियमित आध्यात्मिक उपचार, जीवन की ऐसी समस्याओं के समाधान का एकमात्र उपाय है । कुछ लोगों में आध्यात्मिक उपचार आरंभ करने पर व्याधि के लक्षण बढ सकते हैं; परंतु यह इस बात का सूचक है कि अच्छी आध्यात्मिक शक्ति व्याधि उत्पन्न करनेवाली काली शक्ति का विरोध कर रही है । डेविड के उदाहरण में श्रद्धासहित नियमित आध्यात्मिक उपचार करने से वे अच्छी आध्यात्मिक शक्ति को आकृष्ट कर पाए, जो कि समस्या के शीघ्र समाधान में सहायक हुई ।