1-HIN-How-addictive-behaviour-is-caused-during-pregnancy--itself

मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित ७०% समस्याएं बचपन अथवा किशोरावस्था में आरंभ होती हैं ।

– व्यसन एवं मानसिक स्वास्थ्य केंद्र, कनाडा

१. व्यसन का मूल कारण गर्भावस्था से ही कैसे आरंभ होता है प्रस्तावना

इस लेख में हमने व्यसन के मूल कारण, अर्थात अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) अथवा मृत पूर्वजों की सूक्ष्मदेह द्वारा  प्रभावित अथवा आविष्ट होने की सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया का विवरण दिया है ।

आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ है कि व्यक्ति को व्यसन के लिए प्रवृत्त करने हेतु अनिष्ट शक्तियों के आवेशन की अधिकांश घटनाएं गर्भ में ही आरंभ होती हैं । अनिष्ट शक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को प्रौढावस्था में व्यसन के लिए प्रवृत्त करने की संभावना अत्यल्प होती है । इसका कारण यह है कि जब व्यक्ति भ्रूणावस्था में होता है, तब वह सर्वाधिक असुरक्षित होता है । गर्भ में प्रविष्ट जीव में उसके पूर्वजन्मों से आए स्वभावदोषों के संस्कार जितने अधिक होंगे, अनिष्ट शक्तियों अथवा पूर्वजों की सूक्ष्मदेहों के लिए आक्रमण करना उतना ही सरल हो जाता है ।

गर्भाशय में आविष्ट होने की सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया का विवरण नीचे दिया है ।

२. गर्भावस्था में पूर्वजों की सूक्ष्मदेहों द्वारा व्यसन निर्मित करने की प्रक्रिया के चरण

पहला चरण :  अधिकांश घटनाओं में पूर्वज की सूक्ष्मदेह/अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति पर मां के गर्भाशय में ही भ्रूण अवस्था में आक्रमण करती हैं । गर्भधारण के पूर्व तथा संभोग के समय (संभोगावस्था में) ही योनि से मां की देह में पूर्वज की सूक्ष्मदेह प्रवेश करती है और संपूर्ण गर्भाशय को काली शक्ति से भर देती है ।

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शुक्राणु के अंडाणु से संयोजन की प्रक्रिया भी काली शक्ति से प्रभावित हो जाती है । माता-पिता का आध्यात्मिक स्तर अधिक हो, तो इसका प्रभाव अल्प होता है । नियमित साधना तथा संभोग के पूर्व एवं, यदि संभव हो तो, संभोग करते समय भी प्रार्थना करने से नकारात्मक प्रभाव न्यून होने में सहायता होती है । प्रार्थना इस प्रकार से कर सकते हैं  :

  • हे ईश्‍वर, यदि आज के संभोग से गर्भधारण होनेवाला है, तो आप उसे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान कीजिए । गर्भधारण की प्रक्रिया कृपया सात्त्विक होने दीजिए

गर्भधारण के पूर्व और पश्‍चात प्रार्थना करना यदि रह भी जाए और गर्भावस्था आरंभ हो जाए, तो भी माता-पिता इस प्रकार नामजप और प्रार्थना कर सकते हैं :

  • हे ईश्‍वर, गर्भाशय में ही शिशु पर नामजप का संस्कार होने की कृपा कीजिए ।

मां अपनी नाभि पर न्यास कर अथवा हथेली पेट पर रखकर उपर्युक्त प्रकार से प्रार्थना सहित नामजप करें । यह नियमितरूप से पूरी गर्भावस्था में किया जा सकता है । वह निम्नलिखित प्रार्थनाएं भी कर सकती है :

  • हे ईश्‍वर, कृपया आप अपनी शक्ति का सुरक्षा कवच शिशु को प्रदान कीजिए ।
  • हे ईश्‍वर, जब शिशु सूक्ष्म से मेरे भीतर श्‍वासोच्छवास कर रहा हो,तो उसकी श्‍वास चैतन्य से भर दीजिए ।

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दूसरा चरण : पूर्वज की सूक्ष्मदेह/अनिष्ट शक्ति पूरे गर्भाशय में काली शक्ति के तंतुओं का जाल फैलाने लगती है । इससे भ्रूण विकसित होने से पहले ही आविष्ट हो जाता है ।

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तीसरा चरण : भ्रूण के विकास के समय,पूर्वज की सूक्ष्मदेह/अनिष्ट शक्ति हस्तक्षेप कर,मनोमय कोष की सूक्ष्म-कोशिकाओं के विकास में बाधा डालकर व्यसन के तीव्र विचारों के बीज बोती हैं । इस प्रकार व्यसन के विचारों के साथ ही भ्रूण का विकास होता है ।

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हम किन घटकों से बने हैं ?– इस लेख का संदर्भ लें ।

चौथा चरण : तत्पश्‍चात पूर्वज की सूक्ष्मदेह/अनिष्ट शक्ति भ्रूण की मस्तिष्क कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें व्यसनसंबंधी विचार आत्मसात करने हेतु अनुकूल बनाती हैं ।

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पांचवा चरण : भ्रूण विकास अगले चरण में पूर्वज की सूक्ष्मदेह/अनिष्ट शक्ति भ्रूण के शरीर से एकरूप हो जाती है और उसे पूर्णतः आविष्ट करती है । परिणामस्वरूप कुछ बच्चे किशोरावस्था में ही व्यसनाधीन हो जाते हैं ।

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किसी भ्रूण को लक्ष्य करने का तात्पर्य यह नहीं है कि अपनी वासना की पूर्ति के लिए पूर्वज की सूक्ष्मदेह को व्यक्ति की (भ्रूण की) आयु १५-२० वर्ष की होने तक प्रतीक्षा करनी होगी । तबतक अपनी वासनाओं को पूर्ण करने के लिए वह (पूर्वज की सूक्ष्मदेह) अन्य वंशजों को आविष्ट कर सकता है । किसी पूर्वज द्वारा भ्रूण को आविष्ट कर उसमें काली शक्ति का केंद्र बनाना, किसी धनी व्यक्ति द्वारा विश्‍व के विविध नगरों में अपार्टमेंट, पेंटहाऊस अथवा विला खरीदने समान है । भले ही वह अपने किसी अपार्टमेंट विशेष में लगातार कई वर्षों तक न जाए । तथापि उसके पास सुविधा रहती है, जिससे आवश्यकता पडने पर उसे कभी भी सुगमता एवं सुलभता से प्रवेश मिल जाता है ।

कुछ लोगों में अल्प आयु में व्यसन आरंभ होने, तो कुछ अन्य लोगों में देर से आरंभ होने का कारण यह है कि अनिष्ट शक्ति को व्यसन आरंभ करने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करनी पडती है । व्यक्ति के प्रभावित होने की आशंका बढने के लिए अनेक घटक उत्तरदायी होते हैं । ये घटक इस प्रकार हैं :

  • पुण्यकर्म न्यून होना
  • प्रारब्धानुसार कठिन समय होना
  •  मानसिक समस्याओं, तनाव, निराशा जैसे कारणों से इच्छाशक्ति न्यून होना

३. गर्भावस्था अथवा उसके पश्‍चात अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) के कारण व्यसन उत्पन्न होना

कभी-कभी निर्बल इच्छाशक्ति के लोगों को उनकी प्रौढावस्था में सामान्य भूत लक्ष्ये बनाते हैं । व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने पर अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति की विशिष्ट वस्तु के प्रति वासना भडकाकर उन्हें व्यसनी बनाती हैं । तथापि अधिकांश व्यसनी (अर्थात उनमें से ७०%) मां के गर्भ में ही व्यसन के विचारों से ग्रसित हो जाते हैं ।

जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में भूताविष्ट और किसी मादक पदार्थ अथवा वस्तु के व्यसनी हो चुके हैं, उनमें उस संबंधित पदार्थ के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है अथवा वे क्वचित उसमें सुख का अनुभव करने लगते हैं । मृत्यु के उपरांत वे स्वयं को व्यसन के उस सुख से वंचित अनुभव करते हैं ।

मृत्यु के उपरांत अपने व्यसन को पूरा करने हेतु यह व्यक्ति स्वयं अनिष्ट शक्ति बनकर उस पीढी की अन्य स्त्री की देह में प्रवेश करता है । अन्य व्यक्ति को इस प्रकार की हानि पहुंचाने की यह मंशा उसे अनिष्ट शक्ति बना देती है और वह अपने व्यसन के दुष्चक्र में अपनी आनेवाली कई पीढियों के लिए फंस जाता है । इस प्रकार यह चक्र पीढी दर पीढी चलता रहता है ।

अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) क्या होती हैं और व्यक्ति अनिष्ट शक्ति कैसे बन जाता है ? – इस लेख का संदर्भ लें ।