विषय सूची
१. प्रस्तावना
आध्यात्मिक शोध द्वारा ज्ञात हुआ है कि संपूर्ण विश्व के लगभग सभी लोग अपने जीवन में किसी न किसी समय अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित होते ही हैं । विश्व की लगभग ३०% जनसंख्या अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट है । प्रभावित अथवा आविष्ट होने से व्यक्ति की क्षमता अनजाने में ही तीव्र गति से घटती जाती है । इसलिए इस संदर्भ में शीघ्रातिशीघ्र समझ लेना आवश्यक है जिससे कि उस पर उपचार किया जा सके ।
चूंकि अनिष्ट शक्तिद्वारा प्रभावित होने की प्रक्रिया आध्यात्मिक स्तर पर होती है (अर्थात पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि से परे), इसलिए व्यक्ति के प्रभावित अथवा आविष्ट होने अथवा न होने संबंधी ज्ञान केवल ७०%आध्यात्मिक स्तर से ऊपर के संत अथवा व्यक्ति जिनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय जागृत है, उन्हें ही हो सकता है । अधिकतर लोगों का आध्यात्मिक स्तर उच्च न होने तथा उनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय अतिजाग्रत न होने से लोग अपने आविष्ट तथा प्रभावित होने की स्थिति से अनभिज्ञ रहते हैं ।
इस लेख में हमने अनिष्ट शक्तियों द्वारा शरीर के विभिन्न तंत्रों को प्रभावित किए जाने पर दिखाई देनेवाले कुछ विशिष्ट लक्षणों की सूची दी है । ये लक्षण सामान्यतया होनेवाली संबंधित तंत्रों की व्याधियों में भी दिखाई देते हैं । अतएव जब लक्षणों का कारण स्पष्ट नहीं होता, श्रेष्ठ पारंपारिक उपचारों से भी लक्षण नष्ट नहीं होते अथवा बार-बार उत्पन्न होते हैं, तो हम बौद्धिक स्तर पर इनके अनिष्ट शक्तियों के कारण से होने की संभावना के संदर्भ में विचार कर सकते हैं ।
२. अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट होने पर कौनसे शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं ?
सरलता से समझने हेतु हमने इनका वर्गीकरण किया है ।
२.१ पंचज्ञानेंद्रियां
- मुख में गंदा स्वाद
- आंखें भीतर की ओर खिंचाव, जलन इत्यादि अनुभव होना
- होंठ, मुख और गला सूखना
- अनिष्ट शक्तियों के रज-तम के कारण प्रभावित व्यक्ति के मुख और शरीर पर चिपचिपा आवरण बनता है ।
- तैलीय त्वचा
- त्वचा पर चकत्ते (रैश) आना
- भयप्रद स्पर्श अनुभव होना
२.२ वेदना
- सुर्इ चुभने समान संवेदनाएं
- मस्तिष्कशूल (सिरदर्द) और माईग्रेन (अर्धशीर्षि )
- कमर में तीव्र वेदना, पूर्ण शरीर में वेदना (बदनदर्द) तथा हिल न पाना
- गला दबने जैसा अनुभव होना
२.३ शरीर के नवद्वारों से संबंधित लक्षण
सात्विकता के प्रभाव में आने पर अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) शरीर को उसके नवद्वारों अर्थात दो आंखें, दो नासिकाएं, दो कान, मुख, पुरुष के लिंग/स्त्री की योनि और गुदा के माध्यम से छोडकर जाती हैं । उस समय व्यक्ति को इनमें से किसी भी द्वार से वायु बाहर उत्सर्जित होने का अनुभवहोता है अथवा किसी को प्रभावित नवद्वार से संबंधित खांसी, जम्हाइयां, डकार, छींक आदि का अनुभव हो सकता है ।
२.४ पाचनतंत्र
- व्यक्ति को भोजन करने से परावृत्त करना : भूख मंद होना, अन्न देखते ही जी मितलाना, अन्न से दूर जाने पर हल्का लगना
- भूख तीव्र होना, बार-बार भूख लगना और अत्यधिक भोजन करना : अन्न के पाचन हेतु तेजतत्त्व की आवश्यकता होती है । जबकि मनुष्य प्रधानतः पृथ्वीतत्त्व से बना होता है, वह अत्यधिक भोजन का पाचन नहीं कर सकता । परंतु यदि वह अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) से आविष्ट होगा, तो वह इसे पचा सकता है । अनिष्ट शक्तियां वायुतत्त्व से बनी होती हैं, इसलिए वे अग्नितत्त्व की सहायता से भोजन का पाचन कर सकती हैं । ब्रह्मांड के मूलभूत तत्त्व (पंचतत्त्व) – इस लेख का संदर्भ लें ।
२.५ प्रजनन तंत्र
- संतति न होना
- बार-बार गर्भपात होना
- मृत बच्चे का जन्म होना
२.६ दुर्घटनाएं
- बिजली का झटका
- तवे से गर्म तेल के उछलने जैसी घरेलू दुर्घटनाएं
- किसी विशिष्ट स्थान पर बार-बार वाहन दुर्घटना होना
२.७ गतिविधियों से संबंधित अवयव
- बढे हुए रजोगुण के कारण आकुलता और अस्थिरता
- विचित्र गतिविधियां
- चेहरे के स्नायुओं में संकुचन
२.८ ध्वनि निकालना
- कराहने की और अस्वाभाविक (अजीब) ध्वनि निकालना और बाद में उसे भूल जाना
- प्राणियों की ध्वनि निकालना
- अनिष्ट शक्ति आविष्ट व्यक्ति के माध्यम से विपरीत लिंग के व्यक्ति जैसी ध्वनि निकालना
२.९ प्राणशक्ति पर प्रभाव
प्राणशक्ति सूक्ष्म जीवनदायिनी शक्ति है ।
आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगत और अप्रगत व्यक्ति की प्राणशक्ति
प्राणशक्ति (प्रतिशत में) | |
---|---|
१. आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगत व्यक्ति | १३० |
२. आध्यात्मिक दृष्टि से अप्रगत व्यक्ति | १०० |
अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) द्वारा दिए कष्ट की तीव्रतानुसार प्राणशक्ति की मात्रा (प्रतिशत में)
कष्ट की तीव्रता | प्राणशक्ति की मात्रा (प्रतिशत में) |
---|---|
५ | ९५ |
१० | ९० |
२० | ७० |
३० | ५० |
४०* | ३०** |
* वर्तमान समय में अधिकतम कष्ट की संभावित मात्रा सामान्यतया ४०% होती है ।
कष्ट का स्वरूप दोनों प्रकार का हो सकता है – अनिष्ट शक्ति द्वारा प्रभावित अथवा आविष्ट होना
** प्राणशक्ति न्यून होनेका कारण है, अनिष्ट शक्ति से लडने में उसका व्यय होना । ३०% से न्यून होने पर व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है ।
प्राणशक्ति के न्यून होने से ध्यान न लग पाना : ध्यान के लिए मन की एकाग्रता अनिवार्य है । प्राणशक्ति के न्यून होने से मन के पास कार्य के लिए शक्ति नहीं रहती । इसलिए ध्यान लगना असंभव होता है । तब भी मन में तीव्र भावनाएं और भय रहता है, क्योंकि इन विचारों के लिए अल्प प्राणशक्ति पर्याप्त होती है, और ये भावनाएं अनिष्ट शक्तियों द्वारा ही उत्पन्न की जाती हैं ।
३. मानसिक कष्ट और उसके लक्षण
जब व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित अथवा आविष्ट हो जाता है, उसमें निम्न मानसिक लक्षण दिखाई देते हैं :
- बिना किसी कारण अपने सहयोगी अथवा परिवार के सदस्य से बात करनेकी इच्छा न होना ।
- बिना किसी कारण अपने सहयोगी अथवा परिवार के सदस्य से अपनेआप को दूर रखने की इच्छा होना ।
- अपने मूल स्वभाव से हटकर आचरण करना
- बिना किसी कारण रह-रहकर रोना, भयभीत होना, चिंता, निराशा, भय, मनोवैज्ञानिक व्याधियां, आत्महत्या के विचार इत्यादि । व्यक्ति को खोपडी, भयप्रद दृश्य आदि दिखाकर डराने के लिए अनिष्ट शक्ति को मात्र ५% शक्ति व्यय करनी पडती है ।
- संशय अथवा नकारात्मक विचार : अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति को अस्थिर करने के लिए उसके मन में संशय और नकारात्मक विचार उत्पन्न करती हैं । इससे व्यक्ति चिंतित और चिडचिडा बन जाता है । नकारात्मक विचारों के कुछ उदाहरण :
- किसी का गला दबाने की इच्छा होना
- अहंकार में वृद्धि
- ईश्वर के प्रति श्रद्धा न्यून होना
- दूसरों के प्रति क्रोध : जब अनिष्ट शक्ति से प्रभावित अथवा आविष्ट व्यक्ति को बिना किसी ठोस कारण के दूसरे पर क्रोध आता है, तब संभव है कि यह अनिष्ट शक्ति के कारण ही हो । ऐसे प्रसंगों में इस क्रोध की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए ।
- दूसरों को हानि पहुंचाने के विचार आना : आविष्ट व्यक्ति के मन में अपनेआपको अथवा दूसरों को हानि पहुंचाने के विचार आ सकते हैं । भूत निकालने के प्रयत्न में व्यक्ति को दूसरों को हानि पहुंचाने के विचार आ सकते हैं । ऐसी स्थिति में आरंभ में ही जब आविष्ट व्यक्ति में आवेशन/अनिष्ट शक्ति पूर्णतः प्रकट नहीं हुआ है और पीडित व्यक्ति का अपना अस्तित्व कुछ मात्रा में शेष हो, तब उसे किसी अन्य व्यक्ति को अपने इन विचारों से अवगत कराना चाहिए, अन्यथा एक बार पूर्ण प्रकटीकरण हो जाने पर अपनेआप पर नियंत्रण खो जाने से आविष्ट व्यक्ति उपचार करनेवाले व्यक्ति को हानि पहुंचा सकता है ।
४. यौन संबंधी लक्षण
- यौन वासना अल्प होना अथवा बढ जाना ।
- यदि कोई स्त्री, स्त्री की लिंगदेह से आविष्ट हो जाती है, तो वह अन्य पुरुष भूत को सीधे आकृष्ट करती है अथवा पुरुष भूत से आविष्ट किसी पुरुष के माध्यम से आकृष्ट करती है । ऐसी स्त्री को विपरीत लिंग के व्यक्ति से विवाह किए बिना सीधे संबंध रखने में कोई आपत्ति नहीं होती । कोई न कोई कारण बताकर वे विवाह आदि से दूर रहते हैं ।
५. निद्रा से संबंधित समस्याएं
- नींद न आना
- अत्यधिक नींद आना
- नींद में चलना – संदर्भ हेतु देखें हमारे लेख : नींद में चलना
- निद्रा पक्षाघात (स्लीप पेरालीसिस)
स्वाभाविक नींद और अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित नींद (ग्लानि) में अंतर
प्राकृतिक नींद | अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित नींद (ग्लानि) | |
---|---|---|
परिणाम | कुछ समय के लिए प्रतीक्षा करना संभव | सिर भारी होना, तत्काल सोना अनिवार्य हो जाना |
उपाय | मुख पर पानी छिडकना | नामजप और अन्य आध्यात्मिक उपाय |
- बुरे स्वप्न आना
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डरावने और विचित्र चेहेरे अथवा भूतों के प्रकार देखना
- अपने प्रियजनों की मृत्यु के स्वप्न देखना अथवा स्वप्न देखनेवाले व्यक्ति द्वारा उनकी हत्या होते देखना
- अपने परिचित अथवा प्रिय व्यक्ति को अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट होते देखना और जागृत अवस्था में उनसे भय लगना
-
परिवार के एक अथवा अनेक व्यक्तियों को सांप से हानि पहुंचते देखना
-
६. वैवाहिक कलह
- दंपति में से यदि एक व्यक्ति सात्त्विक हो, तो अन्य व्यक्ति में विद्यमान अनिष्ट शक्ति को उसकी सात्त्विकता सहन न होने से उसके सान्निध्य में रहने पर कष्ट होता है । अनिष्ट शक्तियां सात्त्विकता से बचने के लिए दंपति में अनबन उत्पन्न करती हैं ।
- दोनों के अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट होने पर भी अनबन होती है ।
- शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण ।
७. बौद्धिक कष्ट
- बौद्धिक फलोत्पत्ति न्यून होना, भुलक्कडपन, अंतःप्रेरणा न्यून होना (स्वयंस्फूर्ति से न सूझना)
- सामान्य बातें समझने में कठिनाई आना, जो कि उस व्यक्ति के लिए अस्वाभाविक है ।
८. आर्थिक हानि
- किसी व्यक्ति द्वारा ठगे जाना
- कार्यालय में अच्छा वातावरण होने पर भी कर्मचारियों द्वारा पारदर्शी व्यवहार न किया जाना
- यंत्रों में बार-बार समस्याएं उत्पन्न होना
९. आध्यात्मिक लक्षण
९.१ पंचज्ञानेंद्रियों से संबंधित कष्ट
जागृत अवस्था, ध्यानावस्था अथवा स्वप्नावस्था में व्यक्ति निम्न प्रकार के कष्ट अनुभव कर सकता है ।
- दुर्गंध
- भयप्रद दृश्य
- सिर के सर्व ओर काला वलय दिखाई देना
- भयप्रद दृश्य : मृत शरीर (प्रेत) , राक्षसी और विरूप चेहेरे, ऊपर मानवी चेहेरा और नीचे हड्डियों का कंकाल, खिडकी के भीतर केवल उंगलियों से लेकर केहुनीतक का हाथ, किसी के पेट में जलता शव, वृक्ष पर लटकता/झूलता भूत
- भूतों की रंगबिरंगी शोभायात्रा
- साधकों के मृत शरीर, परिचितों के जलते हुए शरीर
- इधर-उधर बिखरे हुए और ट्रक में भरे हुए शवों के ढेर
- आंखों में चमक
९.२ स्पर्श अनुभव करना
- किसी के अपने बगल में सोने का भान होना
- कोई चादर खींच रहा है, ऐसा प्रतीत होना
- कोई जगा रहा है, ऐसा प्रतीत होना
- कक्ष में कोई घूम रहा है, ऐसा प्रतीत होना
- किसी ने शरीर पर हाथ रखा है अथवा उसे शरीर पर फेर रहा है, ऐसा प्रतीत होना
- थप्पड लगाए जैसा लगना
- बलात्कार – सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र – यौन उत्पीडन देखें ।
- कोई बिछौने पर धकेल रहा है, ऐसा प्रतीत होना
- शरीर के अवयवों को विचित्र स्पर्श होने का अनुभव करना
- नींद में कराहना
- जगने पर उठते समय कटि (कमर) में वेदना होना
- जगने पर पेडू (lower abdomen) में वेदना होना
- श्वेतप्रदर (योनि से श्वेत स्राव होना)
- अमावस्या अथवा पूर्णिमा के दिन कष्ट में वृद्धि होना
९.३ ध्वनियां सुनाई देना
- श्वास लेने की ध्वनि सुनाई देना
- किसी की पदचाप सुनाई देना
- चीख सुनाई देना
- किसी की पुकार सुनाई देना
९.४ सात्त्विक वस्तुओं से होनेवाले कष्ट
- विभूति, तीर्थ, प्रसाद इत्यादि के संपर्क में आने पर कष्ट होना
- पवित्र चिह्नों को स्पर्श न कर पाना उदा. देवताओं के चित्र, क्रॉस इत्यादि
- संतों से मिलने तथा तीर्थस्थल जाने से मना करना : अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित अथवा आविष्ट व्यक्ति संत, तीर्थस्थल अथवा मंदिर में जाना टालते हैं । कुछ लोग ऐसे सात्त्विक वातावरण में प्रकट हो जाते हैं । प्रकट होने से उनकी काली शक्ति न्यून हो जाती है । इससे बचने के लिए अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति को उस सात्त्विक प्रभावित क्षेत्र में अथवा व्यक्ति के पास जाने से पहले ही छोड देती हैं और व्यक्ति के उस स्थान से बाहर आने पर पुनः आविष्ट करती हैं ।
९.५ देवता के नामजप से कष्ट होना
- नामजप करना भूल जाना
- नामजप न कर पाना
- नामजप करते समय अथवा पश्चात सिर में वेदना होना
- नामजप करते समय घुटन प्रतीत होना
- नामजप के समय सिर में विचित्र अनुभव होना और पश्चात अचेत हो जाना
१०. सारांश
- अनिष्ट शक्तियां उनके द्वारा प्रभावित अथवा आविष्ट व्यक्ति में विविध प्रकार के लक्षण उत्पन्न करती हैं ।
- ये लक्षण किसी शारीरिक अथवा मानसिक व्याधियों के लक्षणों अथवा अन्य सांसारिक उदा. आर्थिक समस्याओं जैसे लक्षणों समान प्रतीत हो सकते हैं ।
- वास्तविक मूल कारण का निदान (अर्थात अनिष्ट शक्तियां) केवल संतों अथवा उन व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है, जिनके पास अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय है ।
- अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय के अभाव में जब समस्या का सर्वश्रेष्ठ पारंपारिक उपायों के पश्चात भी समाधान नहीं मिल रहा हो, तो हम बौद्धिक स्तर पर तर्क कर सकते हैं कि समस्या का मूल कारण अनिष्ट शक्तियां ही हैं ।
- यदि आध्यात्मिक उपचारों से समस्या का समाधान हो जाता है, तो निदान स्पष्ट है कि समस्या का कारण अनिष्ट शक्तियां ही हैं ।
- छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करना ही सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक उपचार है ।