इस लेख को ठीक प्रकार से समझने के लिए, हम आपको निम्न लेखों से अवगत होने का परामर्श देते हैं :
१. सत्व, रज एवं तम – ब्रह्मांड के तीन मूलभूत तत्व
२. सात्विक-जीवन की अवधारणा की प्रस्तावना (दैनिक जीवन में अध्यात्म)
१. प्रस्तावना
वह तथ्य जो मनुष्यों को सबसे अलग करता है, वह है बात कर संवाद करने की क्षमता । हममें से अधिकांश लोग प्रतिदिन एवं दिन भर वार्तालाप करते हैं । समय के साथ, लोगों का बातचीत करने का ढंग बदल गया है । कुछ लोग द्वेषपूर्ण एवं बढा-चढा कर बात करते हैं । आजकल कई लोग ध्यान आकर्षित करने के लिए अथवा सबके बीच अपनी बात रखने के लिए ऊंचे स्वर में बात करते हैं । सामजिक संपर्क (पारस्परिक बातचीत) में गाली देना एवं अपशब्दों का प्रयोग करना एक सामान्य बात बन गई है ।
हमारे आध्यात्मिक शोध ने दर्शाया है कि हमारे बातचीत करने के ढंग में आध्यात्मिक स्पंदनों का एक समूह होता है, जो हमें एवं हमारे आसपास के लोगों को प्रभावित करता है । इस लेख में हम ऊंचे स्वर में बोलने की तुलना में धीरे बोलने के आध्यात्मिक प्रभावों को एवं अनुचित भाषा का प्रयोग करने के प्रभावों को भी समझेंगे ।
२. गाली देने अथवा अपशब्दों का प्रयोग करने के प्रभावों के विषय में आध्यात्मिक शोध
अधिकतर भाषाओँ में कुछ ऐसे शब्द होते हैं, जिन्हें अनुचित माना जाता है । ऐसे शब्द अपशब्द शब्द अथवा गाली भी कहलाते है एवं लोग इनका उपयोग प्रायः भावनाओं को व्यक्त करने के लिए करते है जैसे क्रोध, निराशा अथवा आश्चर्य, अथवा सामाजिक ध्यान प्राप्त करने के लिए जैसे अपमान, उत्पीडन अथवा परिहास I अभिलिखित (रिकॉडेड) की हुई बातचीत के हाल के अध्ययन उजागर करते है कि मोटे तौर पर प्रतिदिन बोले जानेवाले ८० से ९० शब्दों में ०.५ – ०.७ प्रतिशत अपशब्द होते हैं, जिनके उपयोग की ० – ३.४ प्रतिशत के बीच होती है । (संदर्भ: जे टी. (२००९): द यूटिलिटी एण्ड यूबीक्यूटी ऑफ टेबू वर्ड्स)
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से, अपशब्दों के पीछे सामान्य उद्देश्य जैसे ध्यान आकर्षित करना अथवा नकारात्मक भावना व्यक्त करना होता है जो हमें ईश्वर से दूर माया की ओर ले जाता है I इसके साथ, हमारे आध्यात्मिक शोध ने यह दर्शाया कि अपशब्द स्वयं कष्टदायक शक्ति को आकर्षित करते हैं I ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार ईश्वर का नाम दिव्य स्पंदनों को आकर्षित करता है, यह अपशब्द आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक स्पंदनों को आकर्षित करता है । इसका अर्थ यह है कि उद्देश्यहीन उच्चारण से भी इसका आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पडता है ।
नीचे हमने सूक्ष्म प्रभावों को समझने की दृष्टी से संबंधित जागृत छठवीं ज्ञानेंद्रिय से युक्त (पू.) श्रीमती योया वाले द्वारा प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र को साझा किया है ।
सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित इन सभी चित्रों को प्रकाशन से पूर्व परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी द्वारा जांचा परखा जाता है ।
पूजनीया योयाजी ने जो अनुभव किया उसके साथ सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र का वर्णन निम्न प्रकार से है I
- गाली देते समय अहं सक्रिय होता है ।
- तावरण से अपशब्दों एवं आकर्षण शक्ति के स्पंदन कष्टदायक शक्ति आकर्षित करते है ।
- अंतर्मन (चित्त) में कष्टदायक शक्ति का वलय कार्यरत होता हैI
- अहं एवं मन के स्तर के दोषों के कारण कष्टदायक शक्ति का प्रवाह अनाहत चक्र की ओर एवं विचारों के कारण आज्ञा चक्र की ओर होता है I
- कष्टदायक शक्ति का प्रवाह व्यक्ति से वातावरण की ओर प्रवाहित होता है जो वातवरण को आध्यात्मिक रूप से दूषित करता हैI
आध्यात्मिक स्तर पर पडा नकारात्मक प्रभाव हमे मानसिक अथवा शारीरिक स्तर पर भी प्रभावित कर सकता है । उदाहरण के लिए, किसी को अधिक नकारात्मक विचार आ सकते है अथवा मितली या उबकाई आ सकती है
अन्य बिंदु जो पूजनीया योयाजी ने देखे वह थे, स्वार्थ, दूसरों को परखने का दृष्टिकोण, सम्मान की कमी, दिखावा, इत्यादि जैसे दोषों के कारण अपशब्दों का प्रयोग करते समय ईश्वर से कोई संबंध नहीं रहता I गाली देने वाला व्यक्ति पापों को अपने ऊपर लेता है एवं उसका अहं और बढ सकता है I
अतः अपशब्दों के प्रयोग से बचने का विशेष रूप से सुझाव दिया जाता है I
३. मीडिया एवं कला से अभद्र भाषा पर प्रतिबंध लगाने के विषय में समाचार
५ मई २०१४, सोमवार को रूस में एक कानून पर हस्ताक्षर किए गए जो चलचित्रों, संगीत एवं सार्वजनिक प्रदर्शनों में अपशब्दों पर प्रतिबंध लगाएगाI
सुस्पष्ट किताबों एवं चक्रिकाओं को बंद पैकेटों में इस चेतावनी के साथ बेचा जाएगा कि जिस पर लिखा हो “इसमें अश्लील भाषा है,” सीएनएन की रिपोर्ट .
कानून अपराध करनेवाले ऐसे संगठनों से अधिकतम १,४०० डॉलर्स तक एवं व्यक्तियों से ७० डॉलर्स तक जुर्माना एकत्रित करेगा । अपराध दोहरानेवाले को भारी आर्थिक दंड (steeper fines) एवं व्यवसाय से ३-महीनों के निलंबन का सामना करना पड सकता है । अश्लीलता संबंधी विशेषज्ञों का एक समूह कानून की बारीकियों से निर्णय लेते हुए यह समझाएगा कि कौनसे शब्द क्रेमलिन की “भाषा र्इ संस्कृति के रक्षण एवं विकास” के घोषित लक्ष्य को हानि पहुंचा सकते है । – टार्इम डॉट कॉम एवं सीएनएन
४. ऊंचे स्वर से बोलने के प्रभावों पर आध्यात्मिक शोध
कोई ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करने अथवा विवाद करने का प्रयास करने जैसे कारणों के कारण ऊंचे स्वर से बोल सकता है I अन्य लोगों का ध्यान आकर्षित करना अहं का सूचक है एवं विवाद करना मन में नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को बढ़ाता है । अहं एवं नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दोनों ही हमें ईश्वर से दूर माया की ओर ले जाते है । वे आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक स्पंदन भी उत्पन्न करते है ।
इससे अनिष्ट शक्तियों (भूत, दानव, दैत्य इत्यादि) के लिए हमें प्रभावित करना और भी आसान हो जाता है । जो व्यक्ति स्वाभाविक रूप से ऊंचे स्वर में बोलता है । वह अध्यात्मिक कष्ट के प्रति अतिसंवेदनशील होता है ।
नीचे हमने ऊंचे स्वर से बोलने के सूक्ष्म प्रभावों पर (पू.) श्रीमती योया वाले को प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान साझा किया हैI
- अनाहत चक्र पर भावना का एक वलय निर्माण होता है I चूंकि ऊंचे स्वर से बोलना अहं का सूचक है व्यक्ति के चारों और काली शक्ति का आवरण भी निर्माण होता है I
- व्यक्ति के मुख के चारों और काली शक्ति का वलय निर्माण होता है एवं काली शक्ति का प्रवाह अनाहत चक्र से मुख की और होने लगता है I
- काली शक्ति के कण एवं सक्रिय शक्ति व्यक्ति के मुख से निकलकर वातावरण में प्रवेश करती है I अन्य लोगों की बढ़ी हुई अपेक्षाओं के कारण व्यक्ति से अहं की तरंगे भी निकलती हैं I
संक्षेप में, ऊंचे स्वर से बोलने से आध्यात्मिक रूप से हानिकारक प्रभाव पडता है । अतः ऊंचे स्वर से न बोलने का परामर्श दिया जाता है I जिस व्यक्ति को ठीक से सुनार्इ न देने की समस्या (hearing disability) हो वह स्वाभाविक रूप से ऊंचे स्वर से बोलता है I
जो उनके साथ बोलता है उसे भी ऊंचे स्वर से बोलना पडता है जिससे कि सुनने में असमर्थ व्यक्ति ठीक प्रकार से सुन सके । ऐसी परिस्थितियों में कोई भी आध्यात्मिक हानिकारक प्रभाव नहीं होता ।
५. धीरे बात करने के प्रभावों पर आध्यात्मिक शोध
इसके विपरीत धीरे बात करना सुनने की अभिवृत्ति, विनम्रता एवं अंतर्मुखता जैसे आध्यात्मिक रूप से अनुकूल गुणों को विकसित करने हेतु पूरक है । अन्तर्मुखी होने से हमारा तात्पर्य अंतर्मन में झांकने, ईश्वर से एकरूप होने का प्रयास करने एवं मन में इस लक्ष्य को धारण करते हुए अपने सभी कर्मों को करने से है । यह गुण हमें ईश्वर के निकट ले जाते है एवं हमारी साधना में सहायता करते है । अतः यह आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक स्पंदन उत्पन्न करते हैं ।
स्वाभाविक रूप से धीरे बोलना साधना में भी हमारी सहायता करता है एवं अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से भी हमारा रक्षण करता है । ऐसी बातें सुननेवाले को भी मधुर लगती है ।
नीचे हमने धीरे बोलने के सूक्ष्म प्रभावों पर (पू.)श्रीमती योया वाले को प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र साझा किया है I
पूजनीया योयाजी ने जो अनुभव किया उसके साथ सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र का वर्णन निम्नलिखित है I
- धीरे बोलते समय अन्यों के विषय में सोचने एवं उनका सम्मान करने के कारण अहं कम होता है ।
- आज्ञा चक्र में भावना के स्पंदन न्यून अनुपात में निर्माण होते है एवं सामान्य प्रकार से बोलनेवाले व्यक्ति से शक्ति की कुछ तरंगे एवं कण निकलते है I
- प्रमुख कार्यकारी शक्ति है चैतन्य I चैतन्य की तरंगे मुख से निकलकर वातावरण में जाती हैं I
- व्यक्ति के चारों ओर चैतन्य का सुरक्षा कवच भी निर्माण होता है I आज्ञा चक्र पर भी चैतन्य उत्पन्न एवं सक्रिय हो जाता है I
हमें प्राप्त होनेवाले आध्यात्मिक लाभों के कारण ही धीरे बोलने का परामर्श दिया जाता है ।
६. धीरे क्यों बोलें – आध्यात्मिक आयाम में किया प्रयोग
आप प्रत्यक्ष धीरे बोलने के प्रभाव को अनुभव कर सकें, इसके लिए चलिए हम एक सूक्ष्म प्रयोग करते हैं I कृपया कुछ क्षणों के लिए नाम जप करें एवं तत्पश्चात कुछ समय के लिए धीरे विनम्रता से बोलें । इस पर ध्यान दे कि आप कैसा अनुभव करते हैं । तदुपरांत और १-२ मिनट नामजप करें और कुछ समय ऊंचे स्वर में बोलें अब कैसा लगता है, यह लिख लें I इस प्रयोग को करने से, ऊंचे स्वर में बोलने के स्थान पर धीरे बोलते समय सूक्ष्म आयाम में जो परिवर्तन होता है, आप उसे अनुभव कर सकते हैं ।
७. तुलना – अपशब्दों का, ऊंचे स्वर से बोलने का एवं धीरे बोलने का सूक्ष्म परिणाम
नीचे दी गर्इ सारणी में अपशब्दों का प्रयोग ऊंचे एवं धीरे बोलने के प्रभावों के मध्य तुलना दर्शायी गर्इ है ।
गाली देने अथवा अपशब्दों का प्रयोग करना | ऊंचे स्वर से बोलना | धीरे बोलना | ||
---|---|---|---|---|
१. सकारात्मक ऊर्जा/शक्ति | १ अ. चैतन्य (Chaitanya) | – | – | २.३ |
१ आ. शक्ति (Shakti) | – | ३ | २ | |
२. नकारात्मक ऊर्जा/शक्ति | २ अ. अहं | ३ | ३ | २ |
२ आ. भावना | – | २.५ | १.२ | |
२ इ. आकर्षण शक्ति | २ | १ | – | |
२ र्इ. कष्ट | ४ | २.८ | – | |
३. स्वभाव (वृत्ति) (Vrutti) | बहिर्मुखी | बहिर्मुखी | अंतर्मुखी | |
४. प्रभाव | ४ अ. स्वयं पर | भावनाओं में एवं अहं में वृद्धि | अन्य लोगों का ध्यान अपनी और खीचना एवं अपेक्षाओं में वृद्धि | शारीरिक रूप से (टिप्पणी १) एवं मानसिक रूप से शांति अनुभव करना |
४ आ. अन्यों पर | चूंकि मन को दुःख पहुंचा होता है, यह अस्थिर होता है | अशांति एवं मन की अस्थिरता में वृद्धि | कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं | |
४ इ. वातावरण पर | रज-तम में एवं नकारात्मकता में वृद्धि | – | – | |
५. क्या इससे पाप लगता है ? | हां | हां | नहीं |
टिप्पणी १– धीरे एवं शांतिपूर्वक बोलने से शरीर की प्रत्येक क्रिया, उदाहरण के लिए, शारीरिक गतिविधियां, मुखमंडल के हावभाव शांत (स्थिर) होते हैं ।
८. निष्कर्ष
यदि कोई धीरे बोलता है एवं अपशब्दों के प्रयोग से दूर रहता है, तो यह हमें एवं हमारे आस पास रहनेवाले लोगों को अधिक सत्व प्रधान होने में सहायता करता है I
निरंतर साधना जैसे नामजप से हमारे चारों ओर आध्यात्मिक सुरक्षा कवच निर्माण होता है जो सूक्ष्म जगत के हानिकारक तत्वों उदा. अन्य लोगों के ऊंचे स्वर में बोलने अथवा अपशब्दों के प्रयोग से उत्पन्न दुष्परिणामों से हमारी रक्षा करता है ।
निरंतर साधना करने से, हमारी छठवीं ज्ञानेंद्रिय विकसित होती है एवं क्या सात्विक है और क्या तामसिक इसकी हमे भीतरी समझ प्राप्त होती है I इससे सात्विक विकल्प का चयन करना सहज हो जाता है, जैसे कि धीरे बोलना कैसे लाभप्रद है इसके महत्व को हम अपने अंतर में अनुभव कर सकते हैं ।