अध्यात्म शास्त्र में देवता के सिद्धान्त को उदाहरण के माध्यम से उचित ढंग से समझा जा सकता है । क्या आपने कभी सोचा है कि मात्र तीन मूल रंग – लाल, नीला और पीला होने पर भी संसार में अनगिनत रंग कैसे हैं ?
हम जानते हैं कि इन तीन रंगों के विभिन्न सम्मिश्रण अनेक नये रंगों को जन्म देते हैं ।
इसी प्रकार यद्यपि ईश्वर एक है परंतु ब्रह्मांड में विभिन्न कार्यों को करने के लिए विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं । ब्रह्मांड के विभिन्न कार्यों को करने के लिए ईश्वर के पांच मूल सिद्धान्त अवतरित होते है । वे हैं :
- उत्पत्ति : प्रत्येक वस्तु उत्पन्न होती है ।
- स्थिति : प्रत्येक वस्तु जो उत्पन्न होती है उसका संरक्षण होता है ।
- लय : प्रत्येक वस्तु जो उत्पन्न और संरक्षित हुई है वह नष्ट होती है ।
- व्यापकता : ईश्वर प्रत्येक वस्तु में है ।
- आनंद : ईश्वर का गुण सर्वोच्च एवं अनंत सुख है ।
ये पांच मूलभूत सिद्धान्त एक दूसरे के साथ अनेक प्रकार से मिलकर ईश्वर के करोडों अद्वितीय रूपों में विभिन्न कार्यों को पूर्ण करने के लिए अवतरित होते हैं । उदाहरण के लिए ईश्वर का एक रूप पढने, पढाने, रक्षा करने और स्वास्थ्य इत्यादि में सहायक है । अध्यात्म शास्त्र के अनुसार ईश्वर के प्रत्येक ऐसे रूप का आकार होता है और इसे देवता कहते है । ब्रह्मांड में देवताओं की कुल संख्या तैंतीस करोड है, प्रत्येक का कार्य अद्वितीय है ।