सत्संग के लाभ

१. सत्संग के लाभ – प्रस्तावना

एक साधक की आध्यात्मिक यात्रा में ‘सत्संग’, साधना का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । विशेषकर आध्यात्मिक यात्रा के आरंभ में जबतक अध्यात्म हमारे जीवन का अविभाज्य अंग न बन जाए एक अनुभवी साधक के लिए ‘सत्संग’ ईश्वर एवं सहसाधकों की सेवा करने का एक सुअवसर है । इसमें साधक अपने साधना संबंधी अनुभव बांटते हैं तथा अपनी और अन्यों की साधना को प्रोत्साहित करते हैं ।

नीचे दिए गए प्रत्येक पीले बॉक्स में हमने कुछ साधकों की ‘सत्संग के लाभ’ संबंधी अनुभूतियां प्रस्तुत की हैं ।

विवाह के तुरंत उपरांत मैं अमरीका आई । मुझे ‘नामजप-साधना’ आरंभ किए हुए केवल एक महीना ही हुआ था । मैंने नामजप करने का तथा अपने जीवन में कुछ साधना का समावेश करने का प्रयास किया; परंतु इसमें मैं असफल रही । अतः लगभग एक वर्ष के लिए मैं अत्यल्प साधना कर पाई । जब मैं सत्संग में सहभागी होने लगी, तब ही मुझसे नियतिम नामजप होने लगा तथा मैं आध्यात्मिक प्रगति हेतु प्रयास कर सकी । – एस.के. अमरीका

२. अध्यात्म संबंधी शंकासमाधान

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जब साधक अध्यात्म शास्त्र का अध्ययन करता है, तब उसे जीवन के विषय में नई धारणाएं ज्ञात होती हैं तथा शिक्षा मिलती है । संभव है कि इन नवीन धारणाओं के कारण उसके मन में कुछ प्रश्‍न उभरें, जैसे – — ‘साधना के सिद्धांत को प्रत्यक्ष अपने जीवन में कैसे उतारूं ? साधना में जो बाधा आ रही है, उसका निवारण कैसे करूं ?’ ऐसे प्रश्‍न अध्यात्म शास्त्र के विद्यार्थी के लिए स्वाभाविक हैं । इन शंकाओं का उचित समय पर समाधान होना महत्त्वपूर्ण है जिससे साधना अबाधित रहे ।

किसी साधक में अध्यात्म प्रसार की लगन, अन्यों के प्रति प्रेम तथा भाव होता है । जब ऐसा साधक सत्संग का संचालन करता है, तब वह ईश्‍वर के विचारों को उत्तम ढंग से ग्रहण कर, अध्यात्म और साधना के विषय में समग्र उत्तर दे पाता है । सत्संग में उपस्थित साधकों का समूह सार्वजनिक रूप से सीख पाता है कि अध्यात्म संबंधी ऐसे प्रश्‍न उभरने पर क्या दृष्टिकोण अपनाना उपयुक्त है ।

प्रश्‍न अनुत्तरित रहें, तो प्रयास थम जाते हैं । कुछ साधकों के विषय में तो उनकी साधना की रेल पटरी से ही उतर जाती है । सत्संग में आने वाले कुछ साधकों को सुखद आश्‍चर्य होता है जब उन्हें सत्संग में अपने मन के अनुत्तरित प्रश्‍नों के उत्तर अनायास ही, बिना पूछे मिल जाते हैं । जब कोई साधक सत्संग में आनेका प्रयास करता हे तो ईश्‍वर उस साधक के मनमें कुछ समय से अनुत्तरित रहे प्रश्‍नों का समाधान कर उसकी सहायता करते हैं ।

३. सत्संग हमारी आध्यात्मिक बैटरी के पुनर्भरण में (चार्ज करने में) सहायक

अध्यात्म शास्त्र के अनुसार संपूर्ण विश्‍व की निर्मिति तीन मूलभूत सूक्ष्म घटकों से हुई है – सत्व, रज और तम । सत्व वह घटक है जो आध्यात्मिक पवित्रतता और ज्ञान का सूचक है, रज मनोभाव (वासना) और क्रियाशीलता का सूचक है, जबकि तम अज्ञान और निष्क्रियता दर्शाता है । सभी वस्तुओं से प्रक्षेपित सूक्ष्म स्पंदन, वस्तु के प्रधान सूक्ष्म मूलभूत घटक पर निर्भर करती हैं ।

आज के युग में भौतकता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है और अध्यात्म पर अल्प । ऐसे में वातावरण में आध्यात्मिक अशुद्धता बढने लगती है । इसे आध्यात्मिक प्रदूषण कहते हैं और इसका अर्थ होता है कि रज और तम, इन सूक्ष्म घटकों की वातावरण में वृद्धि होना । इस आध्यात्मिक प्रदूषण के कारण हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा क्षीण होने लगती है और सप्ताह के अंत में ऐसा लगता है मानो हमारी आध्यात्मिक बैटरी समाप्त (खाली) हो हुई है । इसके कारण हम शक्तिहीन अनुभव करते है और साधना के विषय में सोचना भी कठिन हो जाता है । इससे साधना को आगे बढाने का उत्साह कम हो सकता है ।

जब हम सत्संग में उपस्थित रहते हैं, तब सत्संग की उच्च आध्यात्मिक सकारात्मकता का हम पर प्रभाव पडता है । वातावरण दैवी चैतन्य से भर जाता है । इसमें प्रमुख सूक्ष्म घटक सत्व होता है । जब सत्संग में उच्च आध्यात्मिक स्तर के साधक उपस्थित होते हैं, जिनमें भाव और सीखने की वृत्ति भी है, तो सत्संग की आध्यात्मिक सकारात्मकता और बढ जाती है । कभी कभी अच्छी शक्तियां और देवता भी सूक्ष्म रूप से सत्संग में उपस्थित रहकर साधकों पर कृपा करते हैं ।

चुनौती भरे सप्ताह के उपरांत साधकों की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति क्षीण हो जाती है । लेकिन सत्संग में उपलब्ध दैवी चैतन्य और सात्विकता (आध्यात्मिक पवित्रता) के कारण, साधक आध्यात्मिक सकारात्मकता से प्रभावित होते हैं तथा उन्हें साधना के प्रयासों में सातत्य बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रेरणा और उत्साह प्राप्त होते हैं ।

आलाव (कैम्पफायर) के घेरे में बैठे लोगों को अग्नि की उष्णता अनुभव होती है । उसी प्रकार सत्संग में उपस्थित सभी साधकों की साधना को अन्य साधकों की आध्यात्मिक अनुभूतियों से पोषण मिलता है । जैसे अग्नि को प्रज्वलित रखने के लिए वायु आवश्यक है उसी प्रकार से साधना को आगे बढाने के लिए सत्संग अनिवार्य है ।

एक दिन मैं बहुत थकी हुई घर लौटी । उस दिन SSRF के अन्य साधकों के साथ नियोजित स्काइप सत्संग में उपस्थित रहने की इच्छा नहीं हो रही थी; एकांत में रहनेका मन कर रहा था । मेरे पति ने मुझसे सत्संग में सहभागी होने का आग्रह किया । अनिच्छापूर्वक मैंने उनकी बात मानी । सत्संग में मुझे एक सप्ताह पूर्व हुई एक आध्यात्मिक अनुभूति बताने के लिए कहा गया । जब मैं अनुभूति बताने लगी तो मुझ में भाव जागृत हुआ । मेरी आंखों में कृतज्ञता के आंसू उमड पडे । उसके पश्‍चात हलकापन लगने लगा और एक ही क्षण में दिनभर की थकान लुप्त हो गई । – आर. जी., युरोप

३.१ दूरभाष और स्काइप जैसे वॉइस कॉन्फरन्स सॉफ्टवेयर के माध्यम से ऑन लाईन सत्संगों का संचालन

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सत्संग की सकारात्मक ऊर्जा साधकों के शारीरिक दृष्टि से एक ही स्थान पर एकत्रित रहने पर निर्भर नहीं है । यदि कोई समूह दूरभाष अथवा अंतरजाल के माध्यम से सत्संग में उपस्थित हो, तब भी वह ईश्‍वर की शक्ति ग्रहण कर सकता है । सत्संग में उपस्थित साधकों में भाव जागृत होने से ईश्‍वर की उर्जा अधिक रहती है ।

स्पिरीचुअल सायंस रिसर्च फाऊंडेशन द्वारा विश्‍वभर के साधकों के लिए स्काइप के माध्यम से ऑन लाइन सत्संग आयोजित किए जाते हैं । अंतरजाल के माध्यम से एकत्रित हुए विभिन्न महाद्वीपों के साधक भी ऑनलाइन सत्संग में दिव्य चैतन्य तथा उपस्थित साधकों से आत्मीयता और एकजुटता अनुभव कर पाते हैं ।

जब मैं उत्तर अमरीका से स्काइप सत्संग में सहभागी हुई तब सत्संग के अन्य साधकों से मेरा परिचय नहीं था । आरंभ में मैं चुप रही और अन्य साधकों की बातें सुनती रही । सत्संग-प्रमुख अत्यंत स्नेह और उत्साह से सभी साधकों तक पहुंचने का प्रयास कर रही थीं । उनका प्रेम मेरे हृदय को छू गया । जब अन्य साधक खुलकर अपनी साधना में आने वाली अडचनें बताने लगे, तब मुझे उनसे आत्मीयता लगने लगी । मैंने भी नामजप आरंभ करने पर हुई एक अनुभूति सुनाई । जब सत्संग समाप्त होने लगा, तब मुझे लगा जैसे मैं सभी साधकों से परिचित हूं और हम सब साधना के सूत्र से बंधे हुए हैं । दैनिक जीवन के अनुभवों से यह बहुत भिन्न था । इसके लिए मैं ईश्‍वर के प्रति कृतज्ञ हूं ।  – क्रिस्टी ल्यूंग, कनाडा

४. सत्संग से हमें अपने साधना-पथ पर दृढता से आगे बढने की प्रेरणा मिलती है

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जैसे-जैसे साधना के प्रयत्न सातत्य से और लगन से होने लगते हैं, हमें आध्यात्मिक अनुभूतियां होने लगती हैं । सत्संग में साधक ये अनुभूतियां बताते हैं । इससे इन अनुभूतियों का भावार्थ (गूढ अर्थ) भी ज्ञात होने लगता है । आध्यात्मिक अनुभूति, साधक के लिए ईश्‍वर से मिली भेंट है जो उसे साधना बढाने की प्रेरणा देती है । अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियों पर चिंतन करने से अथवा दूसरों के अनुभव सुनने से साधना के प्रति हमारी श्रद्धा दृढ होती है ।

 

 

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एक बार मैं इस बात से कुछ निराश थी कि मेरी साधना ठीक से नहीं हो रही । मैंने आर्तता से ईश्‍वरसे प्रार्थना की कि वे मेरी सहायता करें और मेरे साथ रहें । तब मुझे सुनाई दिया – मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं । मैंने कहा – मुझे तुम्हें देखना है । फिर आवाज आई – खिडकी के बाहर देखो, कुछ ही क्षणों में तुम मुझे देख सकोगी । मैंने बाहर देखा लेकिन मुझे कुछ नहीं दिखाई दिया । मैंने पुन: पूछा तो ईश्‍वर ने बताया कि धीरे से उनका रूप दिखाई होगा । तब अचानक एक साथ दो इंद्रधनुष प्रकट हुए । ईश्‍वरने कहा – मैं इंद्रधनुष के रूप में तुमसे मलने आया हूं । उस क्षण मुझमें जो भाव जागृत हुआ वह बहुत समय तक रहा । आज भी जब मुझे इस अनुभूति का स्मरण होता है, तो मैं पुन: निश्चिन्त और शांत हो जाती हूं ।

जब मैंने यह अनुभूति मेलबर्न के सत्संग में साधकों को बताई, तब हम सभी में भाव जागृत हुआ और मन शांत हो गया । यह आश्‍वासन मिला कि ईश्‍वर हमारी प्रार्थना सुनते हैं ।  – श्‍वेता क्लार्क, मेलर्बान ऑस्ट्रेलिया

आध्यात्मिक प्रगति के लिए एकमात्र मुद्रा है, आस्था । अलंकारिक भाषा में कहना हो, तो अमरीका में डॉलर, यूराप में यूरो का चलन प्रचलित है । अर्थात अमरीका में कुछ भी खरीदने के लिए डॉलर आवश्यक है । उसी प्रकार आध्यात्मिक प्रगति के लिए दृढ आस्था अनिवार्य है । अधिकतर हमें अपने अधिकोष में संग्रहित राशि (बैंक-बैलेंस) पर विश्‍वास रहता है, क्योंकि हम अपनी आवश्यकता के अनुसार उसका उपयोग कर सकते हैं । उसी प्रकार अध्यात्म और आध्यात्मिक प्रगति के संदर्भ में ईश्‍वर और साधना पर उससे भी अधिक आस्था होनी चाहिए ।

५. व्यापकता और दूसरों के प्रति प्रेम विकसित होना

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सत्संग में रहनेसे अन्य साधकों के प्रति आत्मीयता लगने लगती है । सांसारिक संबंधों से भिन्न, साधकों के संबंध का केंद्र बिंदु है आध्यात्मिक प्रगति । इसलिए इस संबंध में अपेक्षा का भाग अल्प होता है तथा एक-दूसरे की सहायता करने पर और एक-दूसरे से सीखने पर अधिक ध्यान होता है । सत्संग, सकारात्मक संबंधों के पोषण और विकास का माध्यम (व्यासपीठ) बन जाता है । कुछ काल के उपरांत साधक अपेक्षा विरहित प्रेम का अनुभव करते हैं जिसे प्रीति कहते है । इससे आगे की अवस्था में साधक संपूर्ण मानवता के लिए निरपेक्ष प्रेम का अनुभव करने लगता है । यह सब सत्संग के पोषक आध्यात्मिक वातावरण के कारण ही संभव होता है ।

मैं प्रबंधन (मैनेजमेंट) का विद्यार्थी हूं । मैं पिछले ३ १/२ वर्षों से SSRF के मार्गदर्शन में साधना कर रहा हूं । मैं बहुत भाग्यशाली हूं; साप्ताहिक सत्संग के कारण मुझे बहुत लाभ हुआ है । इससे पूर्व मैं बहुत भावनाप्रधान और ईर्ष्यालु था । अब सत्संग के कारण मैं दूसरों के सुख-दुख में सहभागी होने लगा हूं, सफल लोगों की प्रशंसा भी मनसे करता हूं । एक दिन मेरे मित्र ने मुझसे पूछा कि अपनी कठिन परिस्थिति में भी मैं अन्यों के विषय में कैसे सोच पाता हूं । तब मुझे यह भान हुआ कि मुझमें साधना और सत्संग के कारण बहुत परिवर्तन हुआ है । – एक साधक

६. सारांश में

अध्यात्म अनुभूति का शास्त्र है । सत्संग से क्या लाभ होता है, यह समझने का सबसे सरल माध्यम है – सत्संग के पूर्व और उपरांत के अनुभव में अंतर तथा अपनी साधना पर प्रभाव का निरीक्षण । नियमित रूप से सत्संग में उपस्थित रहने से हमारी साधना उत्तरोत्तर दृढ होती है । परिणामस्वरूप यह धारणा दृढ हो जाती है कि हमें अपने आध्यात्मिक जीवन का ध्येय ईश्‍वर प्राप्ति साध्य करना ही है ।

अध्यात्म शास्त्र शोध संस्थान (एस.एस.आर.एफ) विश्‍वभर में सत्संगों का आयोजन करती है, जिनका संचालन प्रतिदिन साधना करने वाले साधक करते हैं । सत्संग का समय जानने के लिए दिनदर्शिका का पृष्ठ  देखें ।