१. मनोविकारों के लिए उपचार पद्धति के रूप में नामजप
अधिकांश मानसिक रोगों में नामजप लाभदायी है । नामजप बाध्यकारी मनोग्रस्ति विकार (obsessive compulsive disorder) में तो सबसे प्रभावशाली उपचारों में से एक है ।
२. नामजप करने से अंतर्मन शुद्ध होता है
नामजप से निर्मित तेज से अंतर्मन के संस्कार नष्ट होते हैं ।
नामजप से अंतर्मन की शुद्धि निम्नलिखित पद्धति के अनुसार होती है ।
२.१ नामजप में रूचि निर्माण होना और अंतर्मन का शुद्धिकरण
मनोविज्ञान के अनुसार, ईश्वर का नामजप तथा भौतिक वस्तु का जप करने में बहुत समानता है । जब माता अपने शिशु का नाम पुकारती अथवा सुनती है, तो उसके अंत:करण में वात्सल्य, प्रसन्नता, चिंता, आकांक्षा इत्यादि अनेक भावनाएं उत्पन्न होती हैं । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वस्तु के (यहां बालक के)नाम से उसकी सभी भावनाएं जुडी हुई होती हैं । स्मरण करने अथवा व्यक्ति का नाम निरंतर सुनने से भावना जागृत होती है । यही स्मरण माता के जीवन की एक प्रभावी शक्ति बन जाता है । कभी-कभी इस शक्ति से प्रेरित होकर माता अपने शिशु के लिए सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हो जाती है ।
ईश्वर के नामजप के प्रति भी यही मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया होती है । जब हम नामजप करते हैं, तब जाने-अनजाने ईश्वर के प्रति कुछ भावनाएं अथवा चित्र होते हैं तथा ईश्वर के गुणों के बारे में भी थोडा बहुत ज्ञान होता है । हमें यह ज्ञात है कि ईश्वर की कृपा से हमारा कल्याण होता है और नामजप उनकी कृपा प्राप्त करने का साधन है । अतः हमारा भाव कि हम उस ईश्वर का नामजप कर रहे हैं, जो विशिष्ट गुणों से संपन्न हैं, उस नाम के साथ जुड जाता है । इस भाव के कारण ईश्वर के प्रति आदर, प्रेम और भक्ति, अनुचित कार्यों का भय इत्यादि भावनाएं बढती जाती हैं तथा विपरीत भावनाएं धीरे-धीरे घटने लगती हैं । इस प्रकार धीरे-धीरे अंतर्मन की शुद्धि होती है ।
२.२ संस्कारों का अल्प होना
जब हम नामजप करते हैं, तब बाह्य मन, अंतर्मन के केंद्रों उदा. इच्छा एवं वासना-केंद्र, रुचि-अरुचि केंद्र, स्वभाव एवं बुद्धि केंद्र इत्यादिसे आनेवाली संवेदनाओं को नहीं स्वीकारता । जब यह प्रक्रिया लंबे समय तक होती है तब इन केंद्रों के संस्कार धीरे-धीरे घटने लगते हैं और मनुष्य को शांत मानसिक अवस्था अनुभव होती है ।
२.३ नए संस्कारों का निर्माण न होना
नामजप करते समय अंतर्मन में अन्य वस्तुओं से संबंधित नए संस्कार नहीं बनते । अंतर्मन में नए संस्कार न बने इसके लिए जागृत अवस्था में ईश्वर का नामजप करना कदाचित सर्वश्रेष्ठ मार्ग है । [एकाग्रता की अवस्थाओं में, ध्यान एवं समाधि (अर्थात परमोच्च ईश्वरीय तत्त्व से एकरूप होने की परम जागृत अवस्था) जैसी अवस्थाओं में भी, अन्य वस्तुओं के संस्कार अंतर्मन में निर्मित नहीं होते ।]
२.४ नामजप से इच्छाओं का निर्मूलन
नामजप के कारण, मन बाहरी आकर्षणों से अल्प विचलित होता है । जब इस प्रकार मन का भटकना घट जाता है, तब हमें माया की ओर आकर्षित करनेवाली इच्छाएं तथा हमारा देहभान अपने आप न्यून होता जाता है और हम नामजप में एकाग्र हो पाते हैं । इच्छाओं की पूर्ति करने के स्थान पर हमारा मन नामजप में स्थिर हो जाता है । इस प्रकार इच्छाएं अल्प होकर अंत में नहीं रहती हैं । इच्छाओं का स्वरूप सूक्ष्म होने के कारण उन्हें न्यून करने के लिए सूक्ष्म साधनों (ईश्वर के नाम)की आवश्यकता होती है । जब इच्छाएं न्यून हो जाती हैं अथवा नहीं रहती हैं, तब हम आनंद अनुभव करते हैं । यह आनंद हमें आंतरिक संतोष देता है, यह संतोष मन की किसी भी इच्छा पूर्ति से अधिक होता है ।
३. नामजप से अंतर्मुखता एवं अंतर्निरीक्षण में वृद्धि होना
स्वयं में सद्गुण लाने के लिए अंतर्मुखता एवं अंतर्निरीक्षण दोनों आवश्यक हैं । नामजप करने की प्रक्रिया से ये दोनों गुण विकसित होने प्रारंभ होते हैं । जब हम अंतर्मुख होने का प्रयत्न करते हैं, तभी खरा नामजप आरंभ होता है । यदि हम देखना चाहते हैं कि मन में नामजप हो रहा है अथवा नहीं, तब हमें अपने भीतर ध्यान केंद्रित करना होगा अर्थात आध्यात्मिक अर्थ से अंतर्मुख होना पडेगा ।
मन अपने निहित स्वभाव के अनुसार विचलित होता है एवं बाहरी उत्तेजनाओं (stimuli) से आकर्षित होता है, अतः यह अधिक समय तक नामजप में एकाग्र नहीं रहता । इसका भान होते ही, पुनः मन को नामजप की ओर लाने का प्रयत्न करना ही चाहिए । इस प्रक्रिया में, मन को विचलित करनेवाले विचारों अथवा स्वभावदोषों के प्रति हम सतर्क हो जाते हैं । यही अंतर्निरीक्षण है ।
४. नामजप से एकाग्रता में वृद्धि होना
नामजप करने से जैसे अंतर्मन की शुद्धि होती है, वैसे ही अंतर्मन से बाह्यमन में आनेवाली संवेदनाएं भी घटती जाती हैं, तथा एकाग्रता में वृद्धि होती है । इस प्रकार, हम कोई भी कार्य अधिक शांति, एकाग्रता एवं परिपूर्णता से कर सकते हैं, जिससे जीवन अधिक यशस्वी बनता है, साथ ही आध्यात्मिक प्रगति होती है ।
५. नामजप से वाणी शुद्धि
जब हम दिनभर सांसारिक बातों में उलझे रहते हैं, तब हम माया से संबंधित अपने अंतर्मन के संस्कारों को अधिक शक्तिशाली बनाकर मन को अशुद्ध कर देते हैं । जिस प्रकार नामजप दैवी शक्ति से हमारे अंतर्मन को पवित्र करता है, उसी प्रकार हमारी वाणी को भी शुद्ध करता है ।
६. नामजप का लाभ मौन रहने के लाभ के समान
ईश्वर का नामजप करना एक प्रकार का मौन धारण करना है । अतः नामजप करने से मौन के निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलते हैं ।
अ. सांसारिक समस्याएं अल्प होना : अधिकतम सांसारिक समस्याएं हमारे बोलने के कारण उत्पन्न होती हैं । मौन धारण करने के अभ्यास से, वे स्वाभाविक रूप से टल जाती हैं ।
आ. हम असत्य बोलना टाल सकते हैं ।
इ. षडरिपुओं पर नियंत्रण : षडरिपु हमें भौतिक संसार से बांधे रखते हैं तथा वे ही हमारे दुखों के कारण हैं । वे षडरिपु हैं काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ तथा मोह । जब क्रोध जैसी भावनाएं व्यक्त नहीं की जाती हैं, तब नामजप के द्वारा हम धीरे-धीरे उन पर नियंत्रण पाते है ।
७. सारांश – नामजप के लाभ
आज के तनावपूर्ण वातावरण में, नामजप से जीवन तनावमुक्त बनता है । जिससे उच्च फलोत्पत्ति, अन्यों के साथ शांतिपूर्ण व्यवहार करना, प्रेमभाव में वृद्धि, स्वार्थ न्यून होना एवं आध्यात्मिक प्रगति होती है ।