१. प्रस्तावना
इस लेख में हम विभिन्न वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की उनकी सीमाओं के स्तर पर तुलना करेंगे । इस श्रृंखला के पूर्व के लेखों में विभिन्न मापदंडों एवं उपचारों में उनकी सहायता के स्तर पर हमने चिकित्सा पद्धतियों की क्षमता की तुलना की है । उनकी सीमाएं समझ लेने पर किसी भी विशिष्ट चिकित्सा पद्धति का चयन करने का हमें एक बेहतर अनुमान हो जाएगा । हम वैकल्पिक चिकित्सा की सीमा का अध्ययन केवल उसके उपचार करने की क्षमतातक ही सीमित नहीं कर रहे । हम अपने पाठकों के लाभ के लिए सीमा के विशिष्ट बिंदुओं का शोध करेंगे I
२. एलोपैथी
एलोपैथी उपचार की सीमा यह है कि, उपचार के पश्चात हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है एवं उपचार के उपरांत थकान अनुभव होती है । ऐसा होने का कारण हमने इस श्रृंखला के आगामी लेख में बताया है, जो प्रत्येक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में सम्मिलित संकटों का वर्णन करता है ।
३. यूनानी चिकित्सा पद्धति
जैसा कि हमने देखा, इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का परिणाम व्यक्ति की मानसिक अवस्था से प्रभावित होता है । चूंकि अधिकतर लोग अपनी भावनाओं से प्रभावित होते हैं, इसलिए यूनानी चिकित्सा पद्धति की उपचार दर अल्प होती है ।
४. एक्यूप्रेशर
एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति की प्रभावकारिता अन्य घटकों पर निर्भर करती है, मुख्यतः चिकित्सक के सटीक एक्यूप्रेशर बिंदुओं का पता लगाने के कौशल पर । एक्यूप्रेशर बिंदु भौतिक (शारीरिक) चिन्ह नहीँ होते । इसलिए उनका पता लगाना चिकित्सक के कौशल, अनुभव एवं कुछ मात्रा में, उसकी सहज बुद्धि का कार्य है । इसी कारण, विशिष्ट एक्यूप्रेशर बिंदुओं का पता लगाना कठिन होता है । फलस्वरूप रोग से मुक्ति पाने में इसका उपयोग सीमित है ।
५. मुद्रा
उपचारों के परिणामों की तुलना करनेवाली इस श्रृंखला के लेख में, हमने यह देखा कि, मुद्रा चिकित्सा पद्धति रोगग्रस्त शारीरिक अंग में से सूक्ष्म काली शक्ति को बाहर निकालने की शरीर की कोशिकाओं की शक्ति बढाती है । शरीर के प्रभावित अंग से बाहर निकली यह काली शक्ति व्यक्ति की तरंगों से भारित हो जाती है । आसपास के वातावरण में विचरनेवाली अनिष्ट शक्ति इस सूक्ष्म काली शक्ति को माध्यम बनाकर इसका उपयोग व्यक्ति को प्रभावित अथवा आवेशित करने में कर सकती है । इस प्रकार अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण होने की संभावना अधिक होती है ।
६. होमियोपैथी
विभिन्न वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की प्रक्रिया के स्तर पर तुलना करनेवाली इस श्रृंखला के पूर्व के एक लेख में, हमने देखा कि होमियोपैथी शरीर की कोशिकाओं में चेतना का निर्माण करती है । चेतना, चैतन्य का वह पहलू है जो मन एवं देह की प्रक्रिया को संचालित करता है । भले ही कोशिकाओं में चेतना निर्माण होती हो, परंतु रोगी के विचारों में उतार-चढाव के अनुसार इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के प्रभावों में भी उतार-चढाव होते हैं । तथापि यह वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति सूक्ष्म देह पर कार्य करती है, इसिलए विचारों का प्रभाव अधिक नहीं होता, जैसे यूनानी चिकित्सा पद्धति में होता है ।
तथापि इसकी एक सीमा यह है कि यदि भावनाओं में उत्तेजना अधिक हो, तो चेतना के क्षीण होने की संभावना रहती है ।
७. आयुर्वेद
हमने देखा कि यह वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति कोशिकाओं की रिक्ति में चैतन्य का निर्माण कर उच्चतम स्तर पर कार्य करती है । चूंकि आयुर्वेद आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करता है, इसलिए इसकी प्रक्रिया रोगी के भाव पर निर्भर करती है । जो आयुर्वेद का पूर्ण आयाम नहीं समझते, उनकी आयुर्वेद के प्रति आस्था न्यून होने के कारण उन्हें इसका लाभ अल्प होता है । अनेक लोग इस उत्कृष्ट वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति द्वारा पूर्ण उपचार अनुभव नहीं कर पाते, क्योंकि उनमें आयुर्वेद के प्रति भाव सीमित होती है । इसके साथ ही एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यदि व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, दानव, नकारात्मक शक्तियों आदि) से पीडित हो, तो चैतन्य का निर्माण नकारात्मक प्रभाव डालता है । SSRF ने आध्यात्मिक शोध में यह बताया है कि विश्व की ९०% जनसंख्या अपने जीवन में कभी न कभी अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होती है । फलस्वरूप अनेक लोग आयुर्वेद से शीघ्र एवं/अथवा पूर्ण रूप से ठीक नहीं हो पाते । इसके साथ ही, अधिकांश लोग रज-तम प्रधान होते हैं, इसलिए वे एलोपैथी से शीघ्र परिणामों को अनुभव करते हैं, चाहे वे परिणाम अल्पकालिक ही क्यों न हों ।