मादक पदार्थों (drugs) का सेवन तथा वैसे ही अन्य व्यसन सभी देशों के लिए एक बडी समस्या बन चुका है । तथापि विकसित देशों की चुनौतियां विकासशील देशों की तुलनामें भिन्न हैं । विकसित देशों में लोगों को गतिमान जीवनशैली के कारण मानसिक तनाव का सामना करना पडता है । जिसके परिणामस्वरूप वे मद्यपान, धूम्रपान, मादक पदार्थों (drugs) का सेवन तथा ऐसे ही अन्य क्रियाकलापों में लिप्त हो जाते हैं, जिनका परिवर्तन अंततः व्यसन में हो जाता है । साथ ही विकसित देशों में लोगों की आय अधिक होने से उनके लिए मादक पदार्थ अथवा ऐसी चीजें प्राप्त करना कोई कठिन बात नहीं रहती । मादक पदार्थों का सेवन तथा अन्य व्यसन, विकसित देशों के लिए आज एक जटिल समस्या बन गई है ।
जब भी वातावरण भौतिक सुख-सुविधाओं में अत्यधिक लिप्त होने के अनुकूल होता है, जैसा कि हम विकसित देशों में देख सकते हैं, तब अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति से एकरूप होने में समर्थ होती हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं ।
ऐसे वातावरण और व्यसन से संबंधित आचार-विचारों के कारण कुछ महिलाएं गर्भवती होने पर भी धूम्रपान, मद्यपान जैसे व्यसन आरंभ करती हैं अथवा पुराना व्यसन चालू रखती हैं । इस प्रकार से गर्भ में विद्यमान अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) अपनी वासनाएं पूरी करने के साथ ही गर्भ एवं मां पर नियंत्रण भी प्राप्त कर लेती हैं और जीवन भर अपनी वासनाओं को तृप्त करती रहती हैं । दूसरी ओर अधिकांश महिलाएं तीव्र इच्छाशक्ति के बल पर गर्भावस्था में इस पर विजय भी प्राप्त करती हैं ।
samhsa.gov. द्वारा प्रकाशित ब्यौरे में गर्भवती महिलाओं की इच्छाशक्ति प्रदर्शित की गई है । २००४-२००५ के संयुक्त विवरण के अनुसार पिछले कुछ माह में २६ से ४४ वर्ष के आयुवर्ग की साधारण महिलाओं की तुलना में गर्भवती महिलाओं में धूम्रपान करने की मात्रा अल्प पाई गई (१०.४ वि.२८.८ प्रतिशत) और १८ से २५ वर्ष के आयुवर्ग में (२६.४ वि.३५.८ प्रतिशत)पाई गई (आकृति क्र.४.५); तथापि १५ से १७ वर्ष के आयुवर्ग में गर्भवती महिलाओं में धूम्रपान करनेवालों की मात्रा साधारण महिलाओं की तुलना में (२२.३ वि.१८.५ प्रतिशत)अधिक पाई गई, किंतु यह अंतर नगण्य था । (संदर्भः Samsha.gov 2005)
यदि महिलाएं गर्भावस्था में भी धूम्रपान, मद्यपान, मादक द्रव्यों का सेवन आदि करती रहती हैं, तो बच्चे के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर प्रभावित होने की संभावना होती है ।
यह भी एक कारण है कि प्राय: संपन्न समाज में कई बार छोटी आयु में ही बच्चों को व्यसन की लत लग जाती है अथवा वे यौन इच्छाओं में उलझ जाते हैं । इसका कारण भी अनिष्ट शक्तियां ही हैं । जीवन के उत्तरार्ध में, किशोरावस्था से वंचित ऐसे व्यक्तियों के, मानसिक संतुलन खो देने अथवा मानसिक रोगी बनने की आशंका रहती है । स्वाभाविक रूप से अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)इनके स्थूलदेह के माध्यम से प्रकट होकर पारिवारिक संतुलन नष्ट कर देती हैं ।
samsha.gov द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि, अमरीका जैसे देश में न्यूनतम १२ वर्ष की आयु से ही धूम्रपान की मात्रा बढ जाती है ।
SSRF की टिप्पणी : संपन्न समाज के पास संपत्ति तथा अतिरिक्त अवकाश होने के कारण उसके दिशाहीन होने की संभावना होती है । परिणामस्वरूप उनमें अधिक आत्मकेंद्रित होने की तथा पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि द्वारा उपभोग करने की वृत्ति बढती है । इस वृत्ति के कारण वे विभिन्न प्रकार के व्यसनों जैसे टीवी देखने, अधिक खाद्य-पदार्थ खाने, जुआ खेलने तथा मादक पदार्थों के व्यसन लिप्त हो जाते हैं ।
जीवन का प्रत्येक कर्म इस प्रकार से करना कि उससे आध्यात्मिक उन्नति हो, यही वास्तव में जीवन का ध्येय होता है । अतः जब वह केवल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि द्वारा सुख उपभोग करने की वृत्ति में फंस जाता है, तो आध्यात्मिक उन्नति के लिए इसके परे जाना उनके लिए असंभव हो जाता है । महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सांसारिक सुखों में फंस जाने से अनिष्ट शक्तियों के आकृष्ट होने की आशंका बढ जाती है और वे उन व्यक्तियों के माध्यम से अपनी वासनाएं पूरी करती हैं ।