१. मेरे पुत्र नारायण के जन्म के समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मुझे बल एवं शक्ति प्रदान किया जाना
अपने पुत्र नारायण को जन्म देते समय, मुझे आरंभ में प्रसव पीडा को सहन करने में कठिनाइयां हो रही थी । मुझे उस समय कुछ नहीं सूझ रहा था तथा कुछ करने का मन नहीं हो रहा था । तब अचानक मेरे मन में ईश्वर का नामजप करने तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना करने का एक प्रबल विचार आया । मैंने अपनी बची हुई पूर्ण शक्ति से सहायता के लिए प्रार्थना की कि आप ही मुझे बल प्रदान करें । तदोपरांत मुझसे तीव्रता से नामजप होने लगा । तत्पश्चात मेरा भय एवं चिंताएं न्यून होने लगी तथा मुझे अनुभव हुआ कि पीडा की तीव्रता न्यून हुई है । मैं घर पर ही नारायण को जन्म दे रही थी तथा कक्ष में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का चित्र था जिसने प्रसव पीडा को सहन करने में मेरी अत्यधिक सहायता की ।
प्रसाविका (दाई) यह देखकर आश्चर्यचकित थी कि मैं यह पीडा इतनी शांति से कैसे सहन कर पा रही हूं । मैं बिना उसे कुछ कहे उसके द्वारा बताई जा रही सभी बातों का पालन कर रही थी क्योंकि मुझे यह अनुभूति हो रही थी कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी सूक्ष्म में यहां उपस्थित हैं एवं वे ही मुझे बल प्रदान कर रहे हैं । सामान्यतः जन्म देने की प्रक्रिया के समय प्रसव पीडा में वृद्धि होने लगती है किंतु मेरे प्रकरण में इसके विपरीत हो रहा था । पूरी प्रक्रिया के समय मैं अधिक और अधिक शांति एवं आनंद अनुभव कर रही थी । ११ घंटे मेरे प्रसव में रहने एवं प्रसव से १-२ दिन पहले न सो पाने के उपरांत भी मुझे यह अनुभूति हुई ।
२. मुझे आध्यात्मिक कष्ट होने पर भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मुझे शिशु का ध्यान रखने के लिए बल प्रदान करना
मैंने कुछ समय पूर्व ही अपने पुत्र नारायण को जन्म दिया । आध्यात्मिक कष्ट होने के साथ साथ मातृत्व की चुनौतियों से निपटते हुए प्रायः मुझे रोना आ जाता । किंतु मैंने देखा कि अपनी साधना एवं आध्यात्मिक उपचारों को निरंतर करने से स्थिति अधिक सहनीय हो जाती थी । जब स्थिति वास्तव में बुरी होने लगती तब मैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को पुकारती तथा कुछ अनुभूतियां इस प्रकार हुर्इ जिनमें मुझे लगता कि वे सूक्ष्म से मेरे साथ है ।
- जब नारायण (मेरा पुत्र) तीन माह का था, मेरे पति शहर से बाहर चले गए थे । मैं नारायण का ध्यान रखने के लिए घर में अकेली थी । उस समय, मैं बहुत कम सो पाती तथा शिशु का ध्यान रखने के साथ-साथ घर का कार्य पूर्ण करने में कठिनाईयां आती । एक रात नारायण सुबह होने तक नहीं सोया था तथा मुझे लग रहा था कि अब मैं गिर जाऊंगी और मैं नारायण को और अधिक देर तक नहीं रख सकती थी । मैं पूजा घर में गई तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चित्र के सामने रोने लगी । मैंने उनसे श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की कि कृपया आएं एवं इस स्थिति को संभालने के लिए मुझे बल प्रदान करें । उसके उपरांत मैं जो पहले निढाल अनुभव कर रही थी, अब मुझे स्वयं में अनायास ही एक नई ऊर्जा अनुभव हुई और मैं सहजता से नारायण का ध्यान रख सकी । अब मुझे थकान नहीं लग रही थी तथा मुझे आनंद अनुभव होने लगा । नारायण शीघ्र ही सो गया । उस क्षण, मुझे इस बात से अत्यधिक कृतज्ञता अनुभव हो रही थी कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मेरी प्रार्थना सुनी एवं वे सहायता के लिए दौडे चले आए ।
- एक दिन जब मैं नारायण के साथ अकेली थी, तब मुझे पक्षाघात के रूप में आध्यात्मिक कष्ट अनुभव हुआ । मुझे भय लग रहा था तथा समझ नहीं आ रहा था कि मैं नारायण का ध्यान कैसे रखूंगी । मैंने सहायता के लिए ईश्वर एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से प्रार्थना की तथा मैंने नारायण को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पावन चरणों में रखने की कल्पना की । उसी क्षण, नारायण ने अपनेआप खेलना आरंभ कर दिया तथा मैं नामजप करने पर ध्यान केन्द्रित कर सकी । कुछ समय उपरांत, मुझे ठीक लगने लगा और तब उसी समय नारायण को पुनः मेरी आवश्यकता लगने लगी ।
- मुझे ४ घंटे नामजप करने के लिए बताया गया था आैर मुझे इस बात की चिंता थी कि शिशु तथा घर के कार्य को संभालते हुए क्या मैं ४ घंटे एकाग्रता से नामजप कर सकूंगी । मैंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से प्रार्थना की कि वे मुझसे आध्यात्मिक उपचार पूर्ण करवा कर लें । उस दिन के उपरांत, जब भी मुझे लगता कि मैं अब और नहीं संभाल सकती, तब नारायण को नींद आ जाती तथा मुझे नामजप करने का समय मिल जाता । अंततः नारायण संतुष्ट हो जाता तथा मेरे घर के सभी कार्य पूर्ण हो जाते ।
इन सभी अनुभूतियों ने मुझे बताया कि ईश्वर के साथ अपने इस दिव्य संबंध पर भरोसा करना कितना महत्वपूर्ण है क्योंकि एक वे ही हैं जो हमारे साथ प्रत्येक समय रहते हैं ।