१. साधक की आध्यात्मिक यात्रा (साधना) में आने वाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करने में गुरुतत्त्व कैसे उसकी सहायता करता है
वर्ष २००८ में, मेरे परिवार से अत्यधिक विरोध होने पर भी मैंने पूर्णकालिक साधक बनने का निर्णय लिया । कई वर्षों तक मेरे परिवार ने मेरा विवाह करने का प्रयत्न किया जिससे कि मैं पूर्णकालिक साधक बनने का सपना पूरा न कर सकूं, किंतु किसी प्रकार ईश्वर की कृपा से ऐसा नहीं हो पाया । मैं उस समय धनबाद में रहती थी जो कि पूर्व भारत का एक नगर है । मुझे धनबाद से गोवा (जो कि पश्चिम भारत में है) के लिए यात्रा करनी थी । जिस दिन मुझे रेलगाडी पकडनी थी उस दिन मेरे सामने अनेक बाधाएं आई । मेरी माताजी को आध्यात्मिक कष्ट है तथा उस दिन मेरे घर से निकलने से पूर्व यह विशेष रूप से अधिक हो गया था । मेरी माताजी में अनिष्ट शक्ति का प्रकटीकरण होने लगा तथा उन्होंने घर के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया । उस समय देरी हो रही थी तथा मेरी रेलगाडी भी छूट सकती थी । मुझे स्मरण है कि मैं पूर्णरूप से असहाय हो गई थी । तब अचानक मैंने मुख्य द्वार पर परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी का विशाल रूप प्रकट होते हुए देखा । जैसे ही यह हुआ तो मैंने देखा कि मेरी माताजी के ऊपर अनिष्ट शक्ति का प्रभाव घटने लगा तथा उन्होंने हमें बता दिया कि चाबी कहां रखी है ।
हमने त्वरित द्वार का ताला खोला तथा रेलवे स्टेशन की ओर दौडे । मैंने स्टेशन पर पहुंचने तक पूरी यात्रा में तथा स्टेशन पर भी उनकी उपस्थिति का अनुभव किया । रेलवे स्टेशन पर किसी ने हमें बताया कि हमारी रेल अभी तक नहीं आई है तथा हमें प्रतीक्षा करनी होगी । वास्तव में, यह सही सूचना नहीं थी क्योंकि जो रेल प्लेटफार्म पर खडी थी वही हमारी रेल थी किंतु उस पर गलत नाम लिखा था । तत्पश्चात जब रेल जाने लगी तब एक यात्री ने मुझसे कहा, ‘बहनजी, क्या आप सपना देख रही है, यही आपकी रेल है ।
मैं घबरा गई तथा मैंने सोचा कि आश्रम जाने का केवल यही एक अवसर है क्योंकि यदि मुझसे यह रेल छूट गई तो कल मेरे रिश्तेदार आ जाएंगे तथा मुझे पुनः रोक लिया जाएगा । मैंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से सहायता के लिए याचना की । मैंने अपना सारा सामान प्लेटफार्म पर ही छोड दिया और रेल में बैठने के लिए दौडी । उसी क्षण परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी का रूप प्रकट हुआ तथा रेल की गति धीमी हो गई और मैं भागती हुई रेल में प्रवेश कर सकी । उत्तर भारत में कभी-कभी रेलवे प्लेटफार्म पर रखे सामान की चोरी हो जाती है ।
किंतु, लोग मुझे मेरा सामान रेल में देने लगे । जिस डिब्बे में मैंने प्रवेश किया था वह मेरे डिब्बे से दूर था तथा मुझे चिंता होने लगी कि मैं वहां तक अपना सामान कैसे ले जा पाऊंगी जिसमें दो बडे भारी सूटकेस तथा चार छोटे थैले थे । अचानक मुझे अपने में एक अद्भुत शक्ति का अनुभव हुआ । मैंने एक ही बार में अपना पूरा सामान ले लिया तथा एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे तक, तथा अंततः मैं उस डिब्बे में पहुंच गई जहां मेरा स्थान अरक्षित था । मुझे अनुभूति हुई कि मेरे लिए परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी स्वयं मेरा सामान ले जा रहे हैं क्योंकि मुझे लगा था कि मेरे लिए स्वयं इतना भारी सामान ले जाना असंभव था ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ संपर्क में आने के उपरांत, उनकी द्वारा दी गई असीम ज्ञान, मार्गदर्शन तथा प्रीति से, उन्होंने मुझे एक बेहतर मनुष्य बना दिया । जब मैं अपने अतीत में पुनः देखती हूं तथा जो आज मैं हूं उसके लिए उनके प्रति मेरी कृतज्ञता को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता । मैं उन सहस्र साधकों में से एक हूं जिनकी आध्यामिक उन्नति में सहायता करने में उन्होंने अनेक वर्षों से अथक प्रयास किए हैं ।
२. साधक चाहे जहां भी हो उन्हें आश्वस्त करना
एक बार जब मैं ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में थी तब मुझे थोडी निराशा अनुभव हो रही थी क्योंकि मुझे लग रहा था कि मेरी साधना ठीक से नहीं हो रही है । मैंने नम्रतापूर्वक परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी से मेरी सहायता हेतु तथा मेरे साथ रहने के लिए प्रार्थना की । उस समय, मुझे यह स्वर सुनाई दिए, “मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं ।”
तब मैंने उनसे कहा, “मैं आपको देखना चाहती हूं ।”
उन्होंने कहा, “बस खिडकी के बाहर झांकों और तुम मुझे शीघ्र ही देखोगी ।”
मैंने खिडकी के बाहर देखा तथा प्रतीक्षा की किंतु कुछ भी होते नहीं दिख रहा था । तब मैंने पुनः पूछा और परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी बोले, “बस देखती जाओ, मेरा रूप धीरे-धीरे प्रकट होगा ।”
तब अचानक पता नहीं कहां से, दो इन्द्रधनुष प्रकट हुए । तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कहा कि इस इन्द्रधनुष के रूप में मैं तुमसे मिलने आया हूं । मेरा भावजागृत हुआ आैर वह अवस्था बहुत देर तक रही । आज भी जब मैं उस अनुभूति के विषय में विचार करती हूं तो बहुत ही आश्वस्त व शांत अनुभव करती हूं ।
जब मेलबोर्न में सत्संग के समय मैंने सहसाधकों को इस अनुभूति के विषय में बताया तब हममें भाव जागृत हुए तथा हम सभी ने शांति तथा आश्वासन अनुभव किया कि गुरुतत्त्व हमारी प्रार्थना सुनता है ।