१. परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी को ज्ञात होना कि मेरे पति आतंरिक रूप से एक साधक हैं
वर्ष १९९६ में, मेरा परिवार विवाह हेतु मेरे लिए वर ढूंढ रहा था । भारत में, लोगों द्वारा अपने बच्चों का विवाह करवाना आम बात है । मुझे अमरीका में रहनेवाले श्री. राजीव कुडतरकर से विवाह का प्रस्ताव आया । इस प्रस्ताव से मैं असहमत थी, उसके अनेक कारण थे । पहला तो, मैं विवाह के लिए तैयार नहीं थी । दूसरा, अपने मित्र, परिवार तथा सहसाधकों से दूर अमरीका जाना मुझे सहज नहीं लग रहा था । अंतिमतः, वे पारंपरिक भारतीय पृष्ठभूमि से थे जबकि मैं आधुनिक जीवनशैली का अनुसरण कर रही थी । मेरे कुछ घनिष्ठ मित्रों तथा परिजनों को हमारी जोडी के विषय में कुछ संदेह था तथा वे मुझे विवाह हेतु अन्य वर ढूंढने के लिए कह रहे थे ।
चूंकि मैं साधना करती थी इसलिए मुझे यह ज्ञात था कि विवाह प्रारब्ध के अनुसार ही होता है । जब मेरी भेंट परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी से हुर्इ तब मैंने उन्हें अपने विवाह प्रस्ताव के विषय में बताया । परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी ने कहा कि यह विवाह मेरी साधना के लिए लाभप्रद होगा, उनके इस वक्तव्य से मैं आश्चर्यचकित थी । उन्होंने आगे बताया कि विवाह के लिए वह वर, आतंरिक रूप से एक साधक है जिसकी साधना अंतर्मन से चल रही है । वे बाह्य रूप से किसी भी प्रकार की साधना नहीं कर रह, तब भी ऐसा हो रहा है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने यह भी कहा कि वह मुझे सदैव खुश रखेगा तथा हम अमरीका में अध्यात्मप्रसार का कार्य कर सकेंगे ।
उनके शब्दों से मुझे आश्वासन मिला कि विवाह करना मेरी आध्यात्मिक प्रगति के लिए लाभप्रद होगा । मुझे भान हुआ कि इस विवाह के आध्यात्मिक लाभ होने की बात से मेरी सभी चिंताएं दूर हो गई । इससे मुझमें यह विश्वास जागृत हुआ कि सबकुछ अच्छे के लिए होगा, इसलिए मैंने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और विवाह कर अमरीका चली गई ।
हमारे विवाह के कुछ वर्षों में, मुझे राजीव के गुणों को देखने के अनेक अवसर प्राप्त हुए । उदाहरणार्थ, वे बिना किसी अपेक्षा के सदैव दूसरों की सहायता तथा सेवा के लिए तत्पर रहते, चाहे वह हमें अभी मिला कोई व्यक्ति हो अथवा कोई संबंधी हो । उन्हें यह ज्ञात था कि मेरे लिए साधना कितना महत्वपूर्ण है तथा वे सदैव स्वयं की आवश्यकता से पहले मेरी आवश्यकता का ध्यान रखते । मुझे कुछ शारीरिक रोग है, जिनके कारण कभी-कभी तैयार होना अथवा भोजन बनाने जैसे सामान्य कार्य पूर्ण करना भी मेरे लिए कठिन हो जाता है । ऐसी स्थिति मैं राजीव सदैव मेरी सहयता करने के लिए साथ में होते । उन्होंने बिना किसी शिकायत के यह सब कुछ मन से किया ।
वर्ष २०१६ में, हमने अमरीका में अपने घर पर आध्यात्मिक कार्यशालाएं आरंभ की । इस अवधि में, राजीव ने विभिन्न प्रकार से हमारी सहायता करने के लिए बहुत अधिक प्रयास किए । इनमें, कार्यशाला के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाने के साथ-साथ स्वयं पूरे तलघर (बेसमेंट) का नवीनीकरण करवाया । उन्होंने अपना एक घर कार्यशाला हेतु नि:शुल्क दिया, जिसे वे सामान्यतः किराएदारों को देते थे । पूरा दिन कार्य करने के उपरांत कार्यशाला के लिए हमें आवश्यक खाद्य सामग्री अथवा पदार्थ इत्यादि भी वे तुरंत ला देते थे ।
अध्यात्मप्रसार के लिए सेवा में अपने तन, मन और धन को पूर्ण रूप से अर्पण करने के कारण, जनवरी २०१७ में राजीव का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत हो गया । अब पीछे देखने पर मुझे समझ आता है कि परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी आरंभ से ही राजीव में साधकत्व के गुणों को जानते थे । राजीव आतंरिक रूप से एक साधक थे, मुझे यह देखने में मेरी सहायता करने तथा हमें ईश्वर की सेवा हेतु अनेक अवसर प्रदान करने के लिए, जिसके कारण हम दोनों की आध्यात्मिक प्रगति हुई, मैं गुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञ हूं ।
संपादक की टिप्पणी :आध्यात्मिक रूप से उच्च स्तरीय संत काल एवं स्थल के परे देख सकते हैं क्योंकि वे वैश्विक मन एवं बुद्धि से जुड पाने में सक्षम हैं । यह उन्हें व्यक्ति के पूर्व के जन्मों में क्या घटित हुआ तथा साधक के रूप में उसकी पूर्ण क्षमता क्या है, यह देखने की क्षमता प्रदान करती है । इस कारण परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी को यह ज्ञात हो सका कि राजीव कुडतरकर एक साधक थे तथा शिल्पा कुडतरकर के संग उनका विवाह होना दोनों के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभप्रद होगा ।
यद्यपि राजीव आध्यात्मिक प्रगति के लिए जागरूक रूप से प्रयास नहीं कर रहे थे तब भी उनके साधकत्व के गुणों तथा ईश्वरीय कार्य के लिए सेवा और त्याग के कारण उनकी आध्यात्मिक प्रगति हुई । किंतु अधिकतर प्रकरणों में, आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन के अनुसार जागरूक रूप से तथा निरंतर प्रयास करना आवश्यक होता है ।