सारांश
डॉ. पांडुरंग मराठे गोवा के एक एम.बी.बी.एस. चिकित्सक हैं जो पिछले २० वर्षों से चिकित्साकार्य कर रहे हैं । उनके रोग का इतिहास, रोग के लक्षण तथा उपचार की पद्धति जिससे वे अंततः ठीक हो पाए, इन सबके विषय में उनसे हुआ साक्षात्कार आगे प्रस्तुत है ।
साक्षात्कारकर्त्ता : डॉ. मराठे, आपको हुए रोग के लक्षण आदि के विषय में क्या आप संक्षेप में बता सकेंगे ?
डॉ. मराठे : जी, ये मात्र बुखार से आरंभ हुआ और एक सप्ताह के उपरांत सफेद मल विसर्जन हुआ । शीघ्र ही मुझे भान हुआ कि यह पीलिया रोग का लक्षण है । तत्पश्चात, मुझे अत्यधिक उल्टी होने लगी और मैं अत्यंत दुर्बल हो गया । एक सप्ताह के अंदर, मुझे मूत्र विसर्जन तथा आंखें खोलने में भी कठिनाई होने लगी । स्थिति इतनी बुरी हो गई कि मुझे अस्पताल में भर्ती होना पडा ।
साक्षात्कारकर्त्ता : ओह ! तब चिकित्सकों ने रोग का क्या निदान किया ?
डॉ. मराठे : मुझे सभी आवश्यक चिकित्सीय परीक्षण करवाने पडे तथा संक्रामक प्रकार के हेपेटाइटिस ए के रूप में मेरे रोग का निदान हुआ I सामान्य भाषा में वह गंभीर पीलिया का रोग था I मुझे योग्य उपचार दिया गया तथा मुझे पूर्ण रूप से आराम करने की सलाह दी गई I चिकित्सक ने मुझे यह आश्वासन दिया कि मैं ६-८ सप्ताह में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाऊंगा I
साक्षात्कारकर्त्ता : तो क्या चिकित्सक का अनुमान सत्य हुआ ?
डॉ. मराठे : वास्तव में ऐसा नहीं हुआ I मेरी स्थिति और अधिक बिगडती चली गई I एक ही माह में मेरी रक्तिम-पित्तवर्णकता (बिलिरूबीन) की मात्रा १ इकाई के सामान्य स्तर से तीव्रता से बढकर २५ इकाई तक हो गई I सामन्यतः यह एक इकाई से कम होती है I इतना उच्च स्तर यकृत (लीवर) में पित्त नलियों (बार्इल डक्ट्स) में अवरोध का सूचक था I
पूरे शरीर पर अत्यधिक खुजली रहती थी तथा साथ ही सुई जैसे चुभन की वेदना होती I मैं सो नहीं पाता था तथा मेरा वजन ६३ किलो से १५ किलो तक घटकर ४८ किलो हो गया था I
यद्यपि मैं चिकित्सक द्वारा बताया उपचार ध्यानपूर्वक कर रहा था परंतु ८ सप्ताह के उपरांत भी रक्तिम-पित्तवर्णकता (बिलीरुबिन) की मात्रा सामान्य नहीं हुई I चिकित्सकों को भी रक्तिम-पित्तवर्णकता के बढे हुए तथा स्थिर स्तर का कारण समझ नही आ रहा था I
साक्षात्कारकर्त्ता : तब आपने क्या किया ?
डॉ. मराठे : मैंने अनेक चिकित्सकों से परामर्श लिया तथा वैकल्पिक चिकित्सा जैसे आयुर्वेद तथा होम्योपैथी का भी प्रयोग किया I किंतु कुछ भी सहायक नहीं लगा I अंततः मैं निराश हो गया I चिकित्सकों ने मेरी निराशा को यह कहकर ओर बढा दिया कि वे जो कुछ कर सकते थे वे कर चुके हैं I
साक्षात्कारकर्त्ता : जब सर्वोत्तम चिकित्सकीय उपचार भी सहायक नहीं रहा, तब आपने क्या किया ?
डॉ. मराठे : इस स्थिति में जब चिकित्सकों के सभी प्रयासों के उपरांत भी कुछ नहीं हो पाया, तब मैं समझ गया कि इसका कारण आध्यात्मिक प्रकृति का है I मैं , भारत में गोवा स्थित स्पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन (SSRF) गया तथा उसके शोध दल से मिला I मुझे वहां के सूक्ष्म दृष्टि विभाग में ले जाया गया I जो साधक सूक्ष्म विश्व में देख सकते थे उन्होंने सूक्ष्म आयाम से मेरा परीक्षण किया I मुझे बिना हाथ लगाए तथा बिना किसी भौतिक परीक्षण के ही उन्होंने मेरी समस्या का निदान कर लिया I पीलिया का वास्तविक कारण जो उन्होंने बताया वह मेरे लिए आश्चर्यजनक था I उन्होंने कहा कि वह अनिष्ट शक्ति का तीव्र आक्रमण था जिसने यकृत की सभी पित्त नलिकाओं में अवरोध उत्पन्न कर दिया था I उन्होंने इससे संबंधित सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र
जो ऐसा दिखाई दे रहा था :
दाई ओर बना सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित यह चित्र संगणक से बनाया गया चित्र है जिसे SSRF के सूक्ष्म दृष्टि विभाग के साधकों ने वास्तव में देखा था I
जो काले चिन्ह आप देख सकते हैं वे अनिष्ट शक्ति द्वारा निर्मित अवरोध हैं I आप देख सकते हैं कि किस प्रकार उन्होंने सभी पित्त नलिकाओं में अवरोध उत्पन्न कर दिया I अनिष्ट शक्ति ने मेरे पित्त के निरंतर प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया था, इसलिए मेरे रक्त में रक्तिम-पित्तवर्णकता का स्तर बढ गया I इससे रक्तिम-पित्तवर्णकता के स्थिर तथा बढे हुए स्तर का कारण समझ आता है I
साक्षात्कारकर्त्ता : तो डॉ. मराठे, सूक्ष्म दृष्टि विभाग द्वारा निदान बताने के उपरांत कौन सा उपचार दिया गया ?
डॉ. मराठे : आध्यात्मिक उपचार के दो पहलू बताए गए I
१. व्यक्तिगत स्तर पर उन्होंने मुझे विशिष्ट देवता का नामजप करने के लिए कहा I यह प्रतिदिन ४ अथवा ५ घंटे की अवधि तक करना था I तथा मैं इसे लेटे हुए भी कर सकता था I
२. इसके साथ ही उन्होंने अनिष्ट शक्ति को नष्ट करने हेतु मेरा बाह्य आध्यात्मिक उपचारों से भी उपचार किया जैसे अगरबत्ती (चमेली की अगरबत्ती) के संपर्क में रहना, विभूति फूंकना, तीर्थ छिडकना, प्रार्थना तथा एक अन्य महत्वपूर्ण उपचार और वह था परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के सत्संग में रहना I
मैंने तुरंत इसे करना प्रारंभ कर दिया तथा एक ही सप्ताह में इसके परिणाम दिखाई देने लगे I अतः संक्षेप में, मुझे जिस रोग से २ महीनों में मुक्त हो जाना चाहिए था किंतु आध्यात्मिक कारण पहले ज्ञात न हो पाने और उसका उपचार न होने के कारण मुझे पुनः अपने कार्य में लौटने में ५ माह लग गए ।
साक्षात्कारकर्ता : डॉ. मराठे आपने जो समय दिया उसके लिए धन्यवाद I