दोलक (पेंडुलम) के प्रयोग से आध्यात्मिक शोध का परिचय

प्रमुख अन्वेषक : डॉ. नंदिनी सामंत, एम.बी.बी.एस., डी.पी.एम.

१. परिचय

परीक्षण करना मूलतः हाथ द्वारा चालित साधारण साधनों अथवा उपकरणों की सहायता से ढूंढना ही है । इन उपकरणों में वाय रॉड (Y-rods) एल रॉड (L-rods) तथा दोलक (पेंडुलम) सम्मिलित हैं ।

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परीक्षणकर्त्ता मानते हैं कि इन उपकरणों के उपयोग से वे दृष्टि अथवा जानकारी से ओझल वस्तुओं को ढूंढ सकते हैं । प्राचीन काल में, दोलक का प्रयोग कर मुख्यतः भूमिगत जल की खोज की जाती थी । जल तथा खनिजों के स्रोत का पता लगाने के अतिरिक्त दोलक का प्रयोग अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था ।

उदाहरण के लिए, दोलक का प्रयोग कर दोलक घूमानेवाले मानते हैं कि वे दोलक से प्रश्न पूछने के उपरांत दोलक की गतिविधि के आधार पर किसी के जीवन के संदर्भ में प्रश्न पूछकर ‘हां’ अथवा ‘नहीं’ में उत्तर प्राप्त कर सकते हैं । दोलक के माध्यम से ज्ञात प्रश्नों के उत्तर बहुआयामी हो सकते हैं तथा उसमें संबंधों, निवेश, वस्तु की विश्वसनीयता तथा भविष्य जानने के संदर्भ में भी हो सकते हैं ।

२. वस्तु की विशेषता अथवा अस्तित्व के परीक्षण हेतु दोलक का प्रयोग हम एक आध्यात्मिक शोध उपकरण के रूप में कैसे करने लगे

२.१ साधकों द्वारा दोलक परीक्षण की उन्हें हुई अनुभूतियां बताया जाना

SSRF के कुछ साधक दोलक के उपयोग से किसी वस्तु के अस्तित्व अथवा विशेषता का परीक्षण (डाउसिंग) करने का अभ्यास करते हैं । जब उन्होंने परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी (SSRF के प्रेरणास्रोत) के छायाचित्र, SSRF अगरबत्ती इत्यादि पर दोलक से परीक्षण किया, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि दोलक घडी की दिशा में अर्थात सकारात्मक दिशा में घूम रहा था । जब उन्होंने नकारात्मक वस्तुओं जैसे अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित वस्तुओं पर दोलक घुमाया, तब उसने नकारात्मक अर्थात घडी की विपरीत दिशा में घूर्णन दर्शाया । उन्होंने अपने निष्कर्ष की जानकारी हमें दी । इससे हमें ज्ञात हुआ कि दोलक की सहायता से किसी वस्तु की आध्यात्मिक सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता का मापन किया जा सकता है । इसने हमें यह विचार दिया कि दोलक की सहायता से परीक्षण कर हम विश्व के समक्ष अदृश्य आध्यात्मिक आयाम को दर्शा सकते हैं ।

२.२ एक पेंडुलम के उपयोग से किसी वस्तु के अस्तित्व अथवा विशेषता के परीक्षण (डाउसिंग) की विश्वसनीयता पर हमारे सूक्ष्म-ज्ञान-विभाग का निष्कर्ष

इसलिए हमने हमारे सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के विकसित छठवीं इंद्रियवाले साधकों से दोलक परीक्षक के दावों के संदर्भ में पूछा । उन्होंने बताया कि दोलक की यह विशेषता है कि ये सूक्ष्म स्पंदनों को ग्रहण कर तद्नुसार घूमने में सक्षम होता है । साथ ही दोलक की सहायता से परीक्षण करना वास्तव में विश्वासपूर्ण दैवीय पद्धति तब तक था, जब तक कि वह कुछ निश्चित सिद्धांतों से बद्ध था । ये सिद्धांत हैं :

  • दोलक घुमानेवाला न्यूनतम ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाला था ।
  • उसे अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं था ।

यह केवल प्रगत छठवीं इंद्रिय द्वारा समझा जा सकता है । हमने निश्चय किया कि हम हमारे अध्ययन हेतु दोलक को एक परीक्षण करनेवाले उपकरण की भांति उपयोग कर सात्विक तथा असात्विक वस्तुओं एवं व्यक्तियों में विद्यमान सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता का मापन करेंगे ।

३. शोध की प्रकृति

दोलक को किसी वस्तु के अस्तित्व अथवा विशेषता का परीक्षण (डाउसिंग) करनेवाले उपकरण के रूप में उपयोग कर हमने अनेक प्रयोग किए ।

३.१ सामान्य डाउसिंग से हमारा अध्ययन अलग कैसे था

  • दोलक की सहायता से परीक्षण करनेवाला सामान्य परीक्षक जो कुछ ठोस पता करने जैसे खनिज, भूमिगत जल का स्रोत अथवा संबंधों, निवेशों इत्यादि से संबंधित प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास करता है । उसके विपरीत, हम एक दोलक के उपयोग से किसी वस्तु के अस्तित्व अथवा विशेषता के परीक्षण से संबंधित सिद्धांत, साथ ही उपरोक्त सूक्ष्म-जगत अथवा आध्यात्मिक आयाम से संबंधित मूलभूत सिद्धांतों पर शोध करने का प्रयास कर रहे थे ।
  • यह साध्य करने के लिए, हमने विविध कारकों की खोज की जैसे परीक्षणकर्त्ता में अनिष्ट शक्तियों के कष्ट की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति का प्रभाव, परीक्षण किए जानेवाली वस्तुओं के अलग-अलग आकार, संतोंद्वारा प्रयुक्त वस्तुओं, धार्मिक चिन्हों, धार्मिक अक्षरों, विविध श्रेणियोंवाले साधक जैसे ‘औसत साधक’ अर्थात वैसे साधक जो २० से ३० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले हों, ‘अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधक’, ‘अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से रहित साधक’, ‘भाववाले साधक’ इत्यादि का दोलक के माध्यम से परीक्षण किया गया ।

 

३.२ हमारे अध्ययन की अनोखी विशेषता – सूक्ष्म-ज्ञान विभाग का निष्कर्ष

हमारे शोध की अनोखी विशेषता यह है कि हमारे सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के विकसित छठवीं इंद्रियवाले साधक पूरे प्रयोग के समय उपस्थित रहे । प्रयोग के विशिष्ट घटनाओं का उन्होंने सूक्ष्म-परीक्षण किया ।

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प्रयोग से प्राप्त पाठ्यांक तथा हमारे निरीक्षण हमने सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के साधकों को दिखाए तथा उनसे निरिक्षणों से संबंधित सूक्ष्म कारण पूछे । इस प्रकार, मूर्त्त पाठ्यांक को विकसित छठवीं इंद्रिय से प्राप्त ज्ञान का साथ मिला । इससे पूरा चित्र स्पष्ट हो गया और आध्यात्मिक आयाम में वास्तव में क्या हो रहा था, इसकी हमें और स्पष्ट दृष्टि मिली ।

४. कार्यप्रणाली

४.१ हमने धातु की सिकडी (चेन) से लटकती धातु के दोलक का चयन क्यों किया ?

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धातु ऊर्जा के सुसंचालक होते हैं । इसीलिए हमने अपने अध्ययन के लिए धातु के दोलक को चुना । जिन विविध धातुओं से दोलक निर्मित होते हैं जैसे – क्रिस्टल से, उनमें से यह धातु सर्वाधिक सात्त्विक है । इसलिए यह सर्वाधिक संवेदनशील होता है । हमने धागे के स्थान पर धातु की सिकडी (चेन) का प्रयोग किया, जिसका व्यापक स्तर पर प्रयोग होता है । इसका भी कारण यही है कि सूत का धागा शक्ति का कुचालक होता है ।

४.२ हमने इस विशिष्ट आकार के दोलक को क्यों चुना ?

अनेक ज्यामितीय आकारों में, उलटे त्रिकोण का सिरा शक्ति के अवशोषण में सर्वाधिक संवेदनशील होता है । दोलक का सिरा समान सिद्धांत पर काम करता है । इसलिए, हमने इस विशिष्ट आकार के दोलक को चुना ।

४.३ हमने दोलक को घुमाने के लिए मनुष्य को क्यों चुना ?

इस अध्ययन के कार्य के आरंभ करने के पूर्व वास्तव में प्रारंभिक अवस्था में, हमने दोलक को लकडी के स्टैंड में लगाकर प्रयोग किया । हमने दोलक के नीचे सकारात्मक तथा नकारात्मक वस्तुओं को रखा । हमने देखा कि दोलक ने योग्य गति दर्शायी । किंतु उन्हें प्रविष्ट करने के लिए वे पर्याप्त नहीं थे । कर्इ बार तो उसकी गतिविधि इतनी कम होती थी कि कदाचित ही उसके गति की दिशा समझ में आ सके । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लकडी शक्ति का सुचालक नहीं होती ।

मानवीय शरीर शक्ति का अच्छा संवाहक होता है । इसी कारण से हमने दोलक घुमाने के लिए मनुष्य के पर्याय को चुना । चूंकि दोलक घुमानेवाला शक्ति का संवहन कर सकता है, इससे गति में स्पष्टता आती है और इसलिए सरलता से इसे प्रविष्ट किया जा सकता है ।

४.४ हमने आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक व्यक्ति को दोलक घुमाने हेतु क्यों चुना ?

हमारे सभी प्रयोगों में, हमने ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तरवाले अनिष्ट शक्ति के कष्ट से रहित व्यक्ति को दोलक घुमाने हेतु उपयोग किया, जब तक यह उस प्रयोग की आवश्यकता थी । दोलक घुमानेवाले में विद्यमान उच्च आध्यात्मिक सकारात्मकता बाहर की ओर प्रक्षेपित होती है और दोलक को हल्कापन प्रदान करती है । साथ ही इससे जिस वस्तु अथवा व्यक्ति पर दोलक का प्रयोग किया जा रहा है उससे निकलनेवाले स्पंदनों के लिए संवेदनशील भी बनाता है ।

जिस वस्तु अथवा व्यक्ति पर दोलक का प्रयोग किया जा रहा है, यदि उसमें उच्च नकारात्मकता है तब यह नकारात्मकता दोलक से होते हुए दोलक घुमानेवाले पर आघात कर उसे प्रभावित करेगी । ऐसा होने की संभावना तब अल्प हो जाती है जब दोलक घुमानेवाला ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर हो । क्योंकि नकारात्मकता पर दोलक घुमानेवाले व्यक्ति के आंतरिक आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतिघात होता है ।

५. शोध से प्राप्त अनोखे निष्कर्ष

इस शोध की कालावधि में, प्रयोग से संबंधित सूक्ष्म-ज्ञान विभाग से प्राप्त विविध निरीक्षणों के निष्कर्ष ने हमारे द्वारा ऊपर बताए गए मूलभूत सिद्धांतों पर अमूल्य जानकारी प्रदान की । उदाहरण के लिए,

  • जब आध्यात्मिक रूप से एक औसत व्यक्ति, जिसका आध्यात्मिक स्तर २० से ३० प्रतिशत हो, दोलक पकडता है, तब दोलक अपने भार को बनाए रखता है तथा सूक्ष्म स्पंदनों को ग्रहण करने में अल्प संवेदनशील होता है । जबकि उच्च आध्यात्मिक स्तरवाला व्यक्ति (६० प्रतिशत से ऊपर) दोलक पकडता है, तब धारक के आध्यात्मिक सकारात्मकता के कारण दोलक की सूक्ष्म संवेदनशीलता में वृद्धि होती है ।
  • दोलक के गति का प्रभाव सकारात्मक अथवा नकारात्मक किसी भी दिशा में प्रयोज्य अथवा वस्तु के स्पंदन तथा दोलक घुमानेवाले के आध्यात्मिक स्तर के कारण दोलक की संवेदनशीलता का कुल परिणाम होता है ।

हम अपने पाठकों के साथ आध्यात्मिक शोध की विस्तृत जानकारी लेखों की श्रृंखला में साझा करेंगे, जहां पर प्रत्येक लेख एक प्रयोग के लिए समर्पित होगा ।