अपने आप तैलीय धब्बे उभरने का अध्यात्म शास्त्र

१. तैलीय धब्बों के अपने आप उभरने की प्रस्तावना

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कार्य से जुडे साधकों ने अपने जीवन में कई अपसामान्य विषय एवं घटनाओं को अनुभव किया है । इसका कारण हमने संदर्भ लेख भयानक अलौकिक घटनाओं से परिचय में बताया है I इस लेख में, हमने बताया है कि किस प्रकार विभिन्न वस्तुओं जैसे देवताओं एवं संतों के वस्त्र एवं छायाचित्रों पर तेल के धब्बों को अपनेआप उभरते देखा गया I प्रत्यक्ष में तैलीय धब्बों का उभरना भले ही इतना भयानक न दिखता हो, तथापि इन तैलीय धब्बों का कर्त्ता यदि वास्तव में उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां है, तब आस-पास के वातावरण पर इसका दीर्घकाल तक प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है ।

२. अपने आप तैलीय धब्बों के उभरने के उदाहरण

आगे दिए गए स्लाइड शो में जिन विभिन्न वस्तुओं पर अपनेआप तैलीय धब्बे उभरे उन्हें दर्शाया गया है I

तैलीय धब्बे का अपनेआप उभरना

आध्यात्मिक शोध से हमें ज्ञात हुआ कि धब्बे का कारण उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियोंद्वारा किया गया आक्रमण था

 

३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा उत्पन्न तैलीय धब्बों की प्रमुख विशेषताएं

  • कारण : अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म से तैलीय धब्बे उत्पन्न करने का मुख्य कारण यह है कि इन धब्बों के माध्यम से वे काली शक्ति के भंडार को सुगम बनाकर वातावरण पर आध्यात्मिक रूप से हानिकारक प्रभाव डालने के लिए समर्थ हो जाती हैं । एक बार तैलीय धब्बे में काली शक्ति का भंडार निर्मित हो जाने पर यह काली शक्ति के आदान-प्रदान अर्थात काली शक्ति को ग्रहण करने एवं प्रक्षेपित करने हेतु केंद्र समान भी बन जाता है ।
  • कैसे :
    • केवल सूक्ष्म द्वारा तैलीय धब्बों का निर्माण करने के लिए, उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां अपनी सिद्धियों के माध्यम से पृथ्वीतत्व एवं आपतत्व का प्रयोग करती हैं ।
    • आध्यात्मिक शोध द्वारा हमे यह ज्ञात हुआ है कि सिद्धियों के माध्यम से (SSRF से संबंधित परिसर में) उभरनेवाले अधिकतर तैलीय धब्बे प्रायः पशु एवं मानव वसा से निर्मित होते हैं । प्रायः पूर्णरूप से सूक्ष्म माध्यम द्वारा तैलीय धब्बे निर्माण करने के स्थान पर (जिसमें अत्यधिक आध्यात्मिक शक्ति लगती है), उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां पशु अथवा मानव वसा अथवा किसी अन्य तेल को निकाल कर उसे सूक्ष्म रूप में परिवर्तित कर देती है एवं तत्पश्चात जहां वे आक्रमण करना चाहती हैं उस स्थान पर उसे स्थूल रूप में घनीकृत कर देती है I
    • उसके पश्चात त्राटक (योग अभ्यास के रूप में किसी वस्तु को एकटक देखना) अथवा मंत्रों अथवा सिद्धियों द्वारा उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां तैलीय धब्बों को काली शक्ति से प्रभारित करती है ।
  • निर्माण करने के लिए आवश्यक आध्यात्मिक शक्ति : केवल सूक्ष्म-माध्यम द्वारा तैलीय धब्बों का निर्माण करने के लिए अनिष्ट शक्तियों को निश्चित मात्रा में आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है । आक्रमण किए जानेवाले वस्तु के प्रकार तथा वह वस्तु किससे संबंधित है, इसके आधार पर अनिष्ट शक्ति की न्यूनतम आध्यात्मिक शक्ति कितनी होनी चाहिए, यह नीचे दर्शाया गया है ।
    • सामान्य व्यक्ति से संबंधित वस्तुओं पर तैलीय धब्बों का निर्माण करना : तीसरा पाताल लोक
    • नियमित साधना करनेवाले साधक से संबंधित वस्तुओं पर धब्बों का निर्माण करना : चौथा पाताल लोक
    • आश्रम परिसर के भीतर वस्तुओं पर तैलीय धब्बों का निर्माण करना : चौथा पाताल लोक
    • प.पू. भक्तराज महाराज एवं परम पूज्य डॉ. आठवलेजी से संबंधित वस्तुओं पर तैलीय धब्बों का निर्माण करना : चौथा पाताल लोक

टिप्पणी: पाताल के सात लोक हैं । पाताल का लोक जितना उच्च होता है, अनिष्ट शक्ति भी उतनी ही शक्तिशाली होती है । उदा. पांचवें पाताल लोक का मांत्रिक तीसरे पाताल लोक के मांत्रिक से अधिक शक्तिशाली होगा । लक्ष्य जितना सात्विक होगा उस पर सूक्ष्म-माध्यम से आक्रमण करने में उतनी ही अधिक शक्ति लगेगी ।

  • अद्वितीय विशेषताएं :
    • तैलीय धब्बों में आपतत्व की प्रधानता अधिक होती है, इसलिए वे अधिक मात्रा में काली शक्ति को ग्रहण करने एवं संग्रहित करने में अत्यधिक उपयुक्त होती हैं ।
    • कभी-कभी तैलीय धब्बों का आकार गुडिया के रूप में होता है । गुडिया जैसे आकार के धब्बों के प्रकरण में काले जादू के समतुल्य प्रभाव के साथ काली शक्ति के प्रक्षेपित होने की संभावना अधिक होती है ।
  • तेल की गंध : सूक्ष्म-माध्यम द्वारा निर्मित तैलीय धब्बों के साथ सूक्ष्म तैलीय गंध भी होती है । यह शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं संबंधित शक्ति एक साथ होती हैं, अध्यात्म के इस सिद्धांत के अनुसार है ।
  • प्रभाव : धब्बे का प्रभाव विभिन्न स्तर पर होता है ।
  • भौतिक स्तर पर : इन धब्बों की अद्वितीय विशेषता यह है कि इन धब्बों के माध्यम से मांत्रिक पृथ्वी तत्व की सहायता से अपनी सिद्धियों को प्रकट करते हैं । पृथ्वी तत्व की सहायता से उभरा हुआ रूप स्वयं ही स्थूलदेह पर आक्रमण करता है ।
  • प्राण देह : सिद्धियों से निर्मित तैलीय धब्बे में व्यक्ति के प्राण देह को प्रभावित करने की विशेष क्षमता होती है एवं यह उस व्यक्ति में अत्यधिक उदासीनता एवं निष्क्रियता को उत्पन्न करती है ।
  • मानसिक एवं बौद्धिक देहों पर : निराशा के विचार, बुद्धि का मंद हो जाना इत्यादि उत्पन्न कर सकता है ।
  • आध्यात्मिक स्तर पर : साधना में व्यवधान जैसे साधना के संदर्भ में शंकाएं उत्पन्न करना इत्यादि ।

४. सूक्ष्म आक्रमण पर आध्यात्मिक शोध का उदाहरण

स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) में प्रगत छठवीं ज्ञानेंद्रियवाले साधक हैं । जिस प्रकार एक साधारण व्यक्ति संसार की घटना का अवलोकन करता है, जिसे हम देख सकते हैं, उसी प्रकार आध्यात्मिक आयाम में होनेवाली घटनाओं को वे देख सकते हैं । आप नीचे दिए गए चित्र में देख सकते हैं कि तैलीय धब्बे परम पूज्य भक्तराज महाराज के लेमिनेटेड चित्र में उभरे हैं । प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि ऐसा स्वयं एवं बिना किसी स्पष्ट कारण के हुआ है ।

HIN-1

निम्न चित्र पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी द्वारा सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र है जो यह आक्रमण किस प्रकार हुआ इसकी एक झलक दिखाता है ।
HIN-2

टिप्पणी :  अनिष्ट शक्ति के रूप में निकलनेवाली नकारात्मकता से दर्शकों की रक्षा हेतु चित्र को एक विशेष सुरक्षात्मक  चौखट (बॉर्डर) दिया गया है ।

जिस अनिष्ट शक्ति ने आक्रमण किया था वह एक पिशाच था जो पांचवें पाताल के सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक की आज्ञा से कार्य कर रहा था ।

वातावरण में चित्र से प्रक्षेपित होनेवाली सूक्ष्म दिव्य सुगंधित तरंगों की शक्ति को न्यून करने के लिए, अनिष्ट शक्ति ने दुर्गंधयुक्त तैलीय तरंगों से उन्हें ढंकने का प्रयत्न किया । पिशाच ने अपने शरीर के बाह्य आवरण से निकलनेवाली जल आधारित दुर्गंधयुक्त तरंगों से चित्र पर आक्रमण कर उसमें विद्यमान र्इश्वरीय तरंगों को रोकने का प्रयत्न किया, जिसके परिणामस्वरूप चित्र धुंधला होने लगा । इस आक्रमण के समय पिशाच स्वयं भी प्रभावित हुआ । चित्र से निकली तेज तत्व की तरंगों के कारण, पिशाच के बाह्य आवरण में छिद्र बन गए एवं उससे तैलीय दुर्गंधयुक्त द्रव रिसना प्रारंभ हो गया ।

चित्र से निकलनेवाली तेल की दुर्गंधयुक्त तरंगों के कारण आसपास के वातावरण में रहनेवाले लोगों को मिचली, उल्टी, बेचैनी जैसे कष्ट अनुभव हुए ।

५. अपनेआप उभरे तैलीय धब्बे के प्रभाव को निष्क्रीय करना

उपरोक्त खंड में वर्णन के अनुसार, तैलीय धब्बों से आस-पास के वातावरण एवं वहां रहनेवाले साधकों पर दीर्घकालीन प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है । तैलीय धब्बे को पोंछने, उसे वैसे ही रखने अथवा उस पर विभूति लगाने जैसे कुछ आध्यात्मिक उपचार द्वारा ठीक करने के प्रभाव के अंतर को नीचे दी गर्इ सारणी में दर्शाया गया है ।

तैलीय धब्बे को स्वच्छ करने तथा न करने के प्रभाव के मध्य अंतर (यह उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित अपनेआप घनीकृत हुए तैलीय धब्बों के संदर्भ में है ।)
पहलू पोंछने के प्रभाव नहीं पोंछने के प्रभाव आध्यात्मिक उपचारों सहित स्वचछ करना
वातावरण पर प्रभाव वातावरण पर दबाव अल्प होना वातावरण पर दबाव में वृद्धि होना वातावरण में उष्ण ऊर्जा की निर्मिति
व्यक्ति पर प्रभाव पोंछते समय हो रहे स्पर्श से घर्षण ऊर्जा के कारण धब्बे में विद्यमान काली शक्ति जागृत हो गर्इ तथा पोंछनेवाले व्यक्ति पर आक्रमण करती है । इससे पोंछनेवाले व्यक्ति के प्राणमय कोष प्रभावित होता है, फलस्वरूप उसकी प्राणशक्ति घट जाती है । काली शक्ति व्यक्ति के शरीर तथा वातावरण में फैल जाती है तथा व्यक्ति के शरीर तथा वातावरण में केंद्र निर्मित करने का प्रयास करती है । व्यक्ति के शरीर में विद्यमान काली शक्ति प्रकट होती है तथा काली शक्ति का आदान-प्रदान होता है । पवित्र विभूति में विद्यमान तेजतत्त्व के सूक्ष्म लपटों के कारण धब्बों में सूक्ष्म युद्ध आरंभ हो जाता है । फलस्वरूप व्यक्ति की त्वचा में लाल पट्टी, लाल चकते तथा खंरोच के उभरने की संभावना होती है ।
लाभ ३० प्रतिशत ० प्रतिशत ५० प्रतिशत
हानि ० प्रतिशत ३० प्रतिशत ५ प्रतिशत
सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक पर प्रभाव चूंकि काली शक्ति का रूप नष्ट हो जाता है, आक्रमण करनेवाला सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक धब्बों में काली शक्ति संग्रहित नहीं कर सकता । काली शक्ति का आदान-प्रदान संभव है, साथ ही वातावरण में प्रक्षेपित काली शक्ति द्वारा साधकों को व्यष्टि तथा समष्टि स्तर पर कष्ट देना भी संभव होता है । चूंकि धब्बों में विद्यमान काली शक्ति नष्ट हो जाती है, इस कारण धब्बों से निकलनेवाली  काली शक्ति निष्क्रिय हो जाती है ।
धब्बों पर पवित्र विभूति डालने से सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक के  कोष पर आक्रमण होता है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है ।

टिप्पणी:

१.   जब तक तैलीय धब्बे के प्रभाव को हटाने के लिए पुनः पुनः आध्यात्मिक उपचार नहीं किए जाते, समस्या बनी रह सकती है ।

६. सूक्ष्म से निर्मित धब्बों के विषय में अधिक जानकारी

६.१ जिन चित्रों पर आक्रमण हुआ उनके प्रकार

यह देखा गया है कि साधकों द्वारा परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी का व्यक्तिगत स्तर पर लिया गया छायाचित्र, धब्बों के माध्यम से किए जानेवाले आक्रमण के लक्ष्य नहीं बने । तथापि समष्टि प्रयोजन के लिए छापे गए औपचारिक चित्रों पर आक्रमण हुए ।

र्इश्वरीय दिव्य ज्ञान द्वारा प्राप्त उत्तर इस प्रकार है :

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के छापे गए औपचारिक चित्रों के पीछे संकल्प के रूप में ईश्वर की शक्ति होती है । इसी कारण अनिष्ट शक्तियों ने जाग्रत संकल्प के आधार पर निर्मित इन चित्रों पर आक्रमण किया । तथापि व्यक्तिगत स्तर पर लिए गए चित्र जहां मुख्य हेतु व्यक्तिगत स्मरणीय वस्तु स्वरूप है, उन पर धब्बे नहीं उभरे । यह दर्शाता है कि कार्य व्यष्टि (अर्थात व्यक्तिगत साधना के लिए) की तुलना में समष्टि स्वरूप का अधिक है ।

६.२ समय के साथ धब्बे कैसे बढते हैं ?

यह भी देखा गया है कि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के चित्रों पर उभरनेवाले धब्बे समय के साथ बढते गए अथवा वहां नए धब्बे उभरे । तब मन में उठे प्रश्न थे  :

  • आक्रमण हुए विभिन्न चित्रों पर  उभरे धब्बे समय के साथ निरंतर क्यों बढते जाते हैं ?
  • क्या यह नए आक्रमण के कारण है अथवा पहले से विद्यमान धब्बों में अनिष्ट शक्ति के आकर्षित होने के कारण ऐसा हुआ है ?

आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त उत्तर निम्न था :

नए आक्रमण के कारण धब्बे बढते हैं । समष्टि कार्य के रूप में वातावरण में विद्यमान चैतन्य धब्बे में विद्यमान काली शक्ति को विखंडित करता है । समष्टि के कार्य की प्रगति को विभिन्न प्रकार से बाधित करने के लिए सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक उसी अनुपात में अपने आक्रमणों में दृढ रहकर काली शक्ति को प्रेषित करते हैं ।