१. परिचय
वर्ष २००० से SSRF ऐसे अनेक प्रकरणों की जांच-पडताल कर रहा है, जिसमें वस्तुओं में परिवर्तन आ गया है अथवा उनमें अपनेआप आध्यात्मिक शक्ति का घनीकरण हो गया है । इन परिवर्तनों का कारण किसी भी परंपरागत माध्यम द्वारा नहीं समझाया जा सकता । हमारे आध्यात्मिक शोध बताते हैं कि वस्तुओं में हो रहे परिवर्तन नकारात्मक अथवा सकारात्मक शक्तियों के घनीकरण का परिणाम है ।
सकारात्मक शक्ति के कारण परिवर्तित हुर्इ तीन वस्तुएं परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी द्वारा उपयोग की गर्इ हैं । जब हमने लंबी समयावधि तक इन तीनों वस्तुओं का निरीक्षण किया तो हमें ज्ञात हुआ कि परिवर्तन निरंतर हो रहा है ।
इस लेख में, हमने सकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति के कारण अपनेआप होनेवाले उत्तरोत्तर परिवर्तन की इस घटना का एक विवरण प्रस्तुत किया है । हमने इन वस्तुओं की फोटो गैलेरी भी प्रकाशित की है ।
२. अध्ययन का महत्व
इस लेख में, हमने अपनेआप होनेवाले परिवर्तन अथवा दैवीय घनीकरण के अध्ययन के महत्त्व को समझाया है ।
जब परिवर्तन की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती रहती है, जैसे एक वर्ष से अधिक, तब यह और अधिक रोचक हो जाती है । इस प्रकार की घटना के अध्ययन से हम न केवल वस्तुओं में विद्यमान दिव्यता तथा परिवर्तन का कारण समझेंगे; अपितु उत्तरोत्तर परिवर्तन होने की प्रक्रिया को भी समझेंगे ।
सकारात्मक शक्तियों के अस्तित्व के संदर्भ में हमें समझाने के अतिरिक्त, ये वस्तुएं हमें यह भी बताती हैं कि उच्च स्तर के संत की सात्त्विकता के कारण होनेवाले सकारात्मक परिवर्तन लंबे समय तक होते रहते हैं । यह संतों द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं का महत्त्व आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से समझाता है ।
३. सकारात्मक शक्ति का प्रकटीकरण क्यों होते रहता है ?
संत एक पावन व्यक्ति होते हैं, जो आध्यात्मिक रूप से शुद्ध (सात्विक) होते हैं । इसलिए उनकी स्थूल देह सकारात्मक शक्ति के घनीकरण हेतु आदर्श माध्यम बन जाती है । संतों द्वारा प्रयुक्त वस्तुएं अधिक सत्त्व प्रधान होती हैं क्योंकि संत की सकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति उस वस्तु में संचारित होती हैं । संतों द्वारा किसी विशिष्ट वस्तु का प्रयोग करने की कालावधि के आधार पर वे वस्तुएं अधिक चैतन्य, र्इश्वरीय तत्त्व, सकारात्मकता इत्यादि ग्रहण करती हैं ।
सकारात्मकता के घनीकरण की निरंतरता परिवर्तन के मूल कारण पर भी निर्भर करती है । सर्वोच्च स्तर के संत जैसे परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी निर्गुण स्तर पर कार्यरत हैं और जब वे किसी वस्तु का उपयोग करते हैं, र्इश्वर का निर्गुण तत्त्व उस वस्तु में प्रवाहित होता है और उस पर प्रभाव डालता है । मात्र यही नहीं, इस प्रकार के संत सतत निर्गुण स्तर की ओर बढते रहते हैं । रोचक बात यह है कि ऐसे संतों के संपर्क में आने के कारण वस्तु में जो सकारात्मक शक्ति का घनीकरण होता है वह भी कालांतर में निर्गुण स्तर की ओर बढने लगता है ।
४. सकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति के कारण वस्तुओं में होनेवाले उत्तरोत्तर परिवर्तन के लाभ
वे वस्तुएं (अथवा उनके छायाचित्र भी) जो लंबे समय से सतत परिवर्तन दर्शाती हैं, वे सकारात्मक शक्ति के बडे स्रोत के रूप में भी कार्य करती हैं । सामान्य व्यक्ति के लिए सूक्ष्म-स्तर पर सकारात्मक शक्ति का लाभ लेना कठिन है, जबकि स्थूल रूप से घनीकृत हुई सूक्ष्म-शक्ति से लाभान्वित होना तुलनात्मक रूप से सरल है ।
इन वस्तुओं से सकारात्मक शक्ति सतत वास्तु तथा वातावरण में प्रक्षेपित होती है, जिसका प्रभाव हम पर पडता है । वातावरण में विद्यमान रज-तम के कारण, हम पर सतत एक कष्टदायक आवरण बना रहता है । जैसे-जैसे रज-तम में वृद्धि होती है, निष्क्रियता उत्पन्न होकर कष्ट की निर्मिति होती है और साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं । जब हम ऐसी सकारात्मक वस्तुओं के संपर्क में आते हैं, उनसे प्रक्षेपित सात्त्विक स्पंदनों से रज-तम का नाश होकर कष्टदायक आवरण घटता है और इससे हमारी साधना में सहायता होती है । हमें ज्ञात हुआ है कि इन वस्तुओं से आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।
यद्यपि हम केवल विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से पता लगा सकते हैं कि कोर्इ अनुभूति सकारात्मक है अथवा नकारात्मक, तथापि अनुभूति के सकारात्मक होने के कुछ लक्षण हैं – वस्तु की ओर देखकर उत्साह लगना, मन की निर्विचार अवस्था हो जाना, आनंद का अनुभव, बाह्य कारणों के बिना सुगंध की अनुभूति होना, शांति का अनुभव होना इत्यादि । जब अनिष्ट शक्ति से पीडित कोर्इ व्यक्ति इन वस्तुओं के संपर्क में आता है उस समय दिखनेवाले लक्षण हैं – डकार आते रहना, जम्हार्इ आना, प्राणशक्ति अल्प लगना, आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति का प्रकटीकरण होना, क्योंकि वे उनसे प्रक्षेपित होनेवाली आध्यात्मिक शुद्धता (सात्विकता) को सह नहीं पाते ।
अनिष्ट शक्ति के तीव्र कष्ट से पीडित व्यक्ति पर इन सकारात्मक वस्तुओं का प्रभाव विशेष रूप से देखा गया । जब उन्हें इन वस्तुओं के संपर्क में लाया गया, उन्हें आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति का तीव्र प्रकटीकरण देखा गया । क्योंकि अनिष्ट शक्ति उन वस्तुओं की आध्यात्मिक शुद्धता (सात्विकता) को सहन करने में सक्षम नहीं थी । इसका सूक्ष्म-परीक्षण दर्शाता है कि उस वस्तु से प्रक्षेपित होनेवाले सकारात्मक स्पंदन तथा आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति से प्रक्षेपित होनेवाले नकारात्मक स्पंदनों के मध्य एक सूक्ष्म–युद्ध छिड गया । अत्यधिक सकारात्मकता के कारण आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति की शक्ति घट गर्इ तथा वह व्यक्ति अधिक सकारात्मक हो गया ।
SSRF में हम इस प्रकार की सकारात्मक वस्तुओं को संरक्षित करते हैं । इनका प्रयोग हम आध्यात्मिक केंद्र में अनिष्ट शक्ति के तीव्र कष्ट से पीडित साधकों पर आध्यात्मिक उपचार के रूप में करते हैं तथा उनमें आए सकारात्मक परिवर्तन के अध्ययन हेतु करते हैं । इन वस्तुओं में बढती जा रही सात्त्विकता के कारण वे आनेवाले वर्षों में मानवजाति के लिए सहायक होंगी । ये सकारात्मक शक्तियों के केंद्रस्थल समान हैं तथा वे वातावरण में सत्त्वगुण को बनाए रखते हैं I
कभी-कभी संत इन वस्तुओं को साधकों अथवा अन्यों को भेंटस्वरूप देते हैं । उसके साथ वे साधक को र्इश्वरीय कार्य के लिए आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं । ये वस्तुएं कार्य हेतु आवश्यक उनकी संकल्प शक्ति से प्रभारित होती हैं । संत र्इश्वरेच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, इस प्रकार इन सकारात्मक वस्तुओं का प्रयोग कार्य के लिए आवश्यक सकारात्मकता प्रदान करने हेतु तथा कार्य में व्यवधान डालनेवाली अनिष्ट शक्तियों से सुरक्षा हेतु किया जाता है । संक्षेप में, इन सकारात्मक वस्तुओं का महत्त्व साधकों तथा अन्य कोर्इ भी जो साधना के लिए गंभीर हैं, उनके लिए अनन्य है । हममें इन वस्तुओं के प्रति अत्यधिक कृतज्ञता का भाव होना चाहिए तथा उन्हें यथोचित रूप से संरक्षित करना चाहिए । संभवतः कुछ लोग उनका महत्त्व समझने में सक्षम न हों अथवा उनमें हो रहे परिवर्तन वास्तव में सकारात्मक हैं अथवा नकारात्मक, इसके संदर्भ में संभ्रमित हो सकते हैं । वैसी स्थिति में, आध्यात्मिक रूप से प्रगत व्यक्ति से संपर्क करना श्रेयस्कर होगा ।
५. सकारात्मक शक्ति का अनुभव स्वयं करना
और अच्छे से समझने के लिए आप हमारी गैलेरी देख सकते हैं तथा स्वयं उन वस्तुओं को अनुभव कर सकते हैं । आप अपने अनुभव भी हमें ‘अपना मत दें’ के माध्यम से भेज सकते हैं ।