१. प्रस्तावना
अनिष्ट शक्तियों के पदक्रम में भूत निम्नतम श्रेणी में आता है । उनकी तुलनात्मक शक्ति १ मानी जाती है। (संदर्भ हेतु देखें लेख – ‘अनिष्ट शक्तियों के प्रकार’) । वर्तमान काल में एवं वर्ष २०२५ तक समाज के लगभग ३० प्रतिशत लोग इन भूतों से प्रभावित अथवा आविष्ट हैं ।
२. सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित भूत का चित्र
कृपया ध्यान दीजिए, यह मात्र एक कच्चा दिशानिर्देश है, चूंकि भूत अपने उद्देश्य के अनुसार कोई भी रूप ले सकता है । संदर्भ हेतु ये लेख भी देखें : सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर बनाए गए इस चित्र के चारोंओर सुरक्षा चौखट क्यों है ?
३. भूत की मुख्य विशेषताएं
३.१ भूलोक पर निवास का स्थान
सामान्यत: अनिष्ट शक्तियां उस परिवेश में निवास करती हैं, जहां की तरंगें उनके उद्गम स्थल सूक्ष्म-पाताल की तरंगों के समान हों अथवा जहां के रज -तम उनसे मेल खाते हों । इसी कारण, भूत जीर्ण-शीर्ण घर, दारू के अड्डे, रज-तम प्रधान मनोरंजन के केंद्र (अपनी इच्छापूर्ति हेतु) गढ्ढे, नहर, तथा वैसे घर जहां के निवासियों की आदतें तथा इच्छाएं उनके समान हों, इत्यादि स्थानों में आश्रय लेता है । उनका निवास स्थान प्रतिदिन परिवर्तित हो सकता है ।
३.२ भूत की भौतिक विशेषताएं
भूत कोई भी रूप अथवा रंग धारण कर सकता है । यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह क्या प्राप्त करना चाहता है तथा वह स्वयं को कितना प्रकट स्वरूप में दिखाना चाहता है । प्रायः उनका रूप जब वह भूलोक में थे, उस मूल रूप से मेल खाता है । जब वह लोगों को डराना चाहता है, तो वह ऊपर दिखाए गए सूक्ष्म चित्र जैसा कोई भी विचित्र रूप धारण कर सकता है । आध्यात्मिक शक्ति अत्यल्प होने के कारण अपने सामान्य रूप में अत्यधिक परिवर्तन लाने की उसकी क्षमता (उच्च श्रेणी के भूतों की तुलना में) मर्यादित होती है । वह सामान्यत: भूलोक से जुडा होता है तथा विस्तृत रूप से भूमि के स्तर पर पाया जाता है ।
३.३ भूत की मानसिक विशेषताएं
- साथ में रहना : उनके मरणोपरांत जीवन में भी परिवार तथा मित्रों के विचार चलते ही रहते हैं । समान स्पंदन, व्यक्तिगत तथा समान प्रदेशवाले भूत एकसाथ रहते हैं । अर्थात वह अपना एक गुट बनाकर रहना पसंद करता है ।
- चंचल वृत्ति :
१. वे किसी भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रह पाते । निरंतर गतिशील रहते हैं ।
२. उनकी आंखें चंचल होती हैं ।
- इच्छाएं : उन्हें भौतिक सुख प्रिय होते हैं ।
- प्रत्यक्ष कृत्य से संबंधित वृत्ति : जब वह आविष्ट व्यक्ति में प्रकट होता है, तब वह ऊंचे स्वर में चिल्लाता है, अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने एवं प्रशंसा पाने हेतु तालियां बजाता है, मस्ती करता है, शरारत करता है, उपद्रव मचाता है, एक दूसरे की खिंचाई करता है और अकस्मात ही चिल्लाने लगता है ।
- विचारों से संबंधित वृत्ति: वह निरंतर मनुष्यों को कष्ट पहुंचाकर उसका आनंद लेता है । वह सामान्यत: मनुष्यों पर आक्रमण नहीं करता । वह केवल मनुष्यों को डराने तथा उनके माध्यम से अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में जुटा रहता है ।
३.४ भूतों की आध्यात्मिक विशेषताएं :
भूत अधिक काली शक्ति प्राप्त करने हेतु स्वयं साधना नहीं करते, अपितु अपने से उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्तियों से उनकी तैयार शक्ति ले लेते हैं । क्षमता न होने के कारण भूत स्वयं कार्य नहीं कर सकता । वह अन्य सभी प्रकार की अनिष्ट शक्तियों (राक्षस, मांत्रिक, काली शक्तियां, इत्यादि) के आदेशानुसार काम जैसे उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्तियों को संदेश पहुंचाना तथा विविध स्थानों की जानकारी देना इत्यादि करता है ।
४. भूत मनुष्यों को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
भूत तथा मृत पूर्वज (जो अभी भूत नहीं बने हों) आध्यात्मिक शक्ति के संदर्भ में दोनों समान स्तर पर होते हैं । इसमें मुख्य अंतर इतना ही है कि मृत पूर्वज अपने ही वंशजों से रहे लेन-देन के माध्यम से कष्ट देते हैं, जबकि भूत किसी भी मनुष्य को, चाहे वह उसका वंशज हो अथवा न हो, सभी को अपनी काली शक्ति के माध्यम से कष्ट देता है ।
४.१ कष्ट देने के माध्यम :
भूत मानवजाति को इस प्रकार प्रभावित करता है :
- अपनी इच्छाओं जैसे मद्यपान, भोजन, संभोग इत्यादि की पूर्ति हेतु मनुष्य को आविष्ट करना
- व्यक्ति के समक्ष घनीभूत होना
- जानवरों के शरीर में थोडे समय के लिए प्रवेश कर मनुष्य को भयभीत करना अथवा उन पर आक्रमण करना
४.२ वातावरण के माध्यम से :
- वह वातावरण का सूक्ष्म-दाब बढाता है जिसके परिणामस्वरूप वातावरण में काले बादल अथवा काला घना कोहरा दिखाई देता है । इससे परिवार में कलह उत्पन्न होता है, जैसे लडाई-झगडे होना, आय घट जाना ।
४.३ वस्तुओं/भौतिकता के माध्यम से :
- भूत खाद्य पदार्थ खराब कर देता है ।
- वह वस्तुओं को एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर रख देता है, जिससे लोगों को वस्तुएं ढूंढने में कठिनाई होती है । वस्तुओं के गिरने की अत्यधिक घटनाएं होती हैं ।
- उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के आदेशानुसार वह घर से पैसे एवं वस्तुओं की चोरी करता है ।
- वह परिसर में भित्ति (दीवार) एवं छत पर कूद-कूदकर विचित्र स्वर उत्पन्न करता है । वास्तव में वह नकारात्मक तरंगों के माध्यम से कान को बधिर करनेवाले कर्कश स्वर उत्पन्न कर सकता है ।
४.४ शारीरिक स्तर पर :
- चलते हुए अकस्मात धक्का मारना ।
- नींद में बडबडाना ।
- रात में बिछावना गीला करना ।
- भूत के स्पर्श का अनुभव होने के उपरांत चक्कर आना
- भूत द्वारा आविष्ट व्यक्ति पर आध्यात्मिक उपचार किए जाने पर उसका हाथ-पैर पटकना
४.५ मानसिक स्तर पर :
- अंधेरे कमरे में अनायास ही श्वेत रंग का कोहरा दिखाई देना तथा उसके उपरांत जो काम कर रहे थे वह भूल कर चकित रह जाना ।
- सतत किसी का अस्तित्व अनुभव करना
- सोते हुए अकस्मात ऐसा लगना जैसे किसी ने उठाया अथवा पैरों तले की धरती खिसक रही हो ऐसा अनुभव करना, क्रोध का आवेश, गालियां देने अथवा ऊंचे स्वर में चिल्लाने का मन करना
- व्यसनाधीनता
- भूत से आविष्ट व्यक्ति पूजा स्थलों पर जाने से डर सकता है । इस समय भूत के अंदर का डर उभरकर सामने आता है ।
- जब भूत से आविष्ट व्यक्ति पूजा स्थल पर जाता है, तब वह पूजा की सामग्री फेंक देता है तथा उसके आचरण से धार्मिक विधियों में विघ्न उत्पन्न होता है ।
५. उपाय
- व्यक्तिगत स्तर पर : चमेली की लकडी का उपयोग करना, पवित्र विभूति लगाना एवं पवित्र जल (तीर्थ) छिडकना
- वातावरण के लिए : परिसर में पवित्र जल (तीर्थ) छिडकना एवं धूप जलाना
टिप्पणी : उपचार करनेवाले आध्यात्मिक उपचारक का आध्यात्मिक स्तर व्यक्ति को प्रभावित अथवा आविष्ट करनेवाले भूत के स्तर से न्यूनतम २० प्रतिशत अधिक होना चाहिए । बाह्य आध्यात्मिक उपचारों से उपचार करने पर पीडित को कुछ समय के लिए अच्छा लग सकता है;किंतु इस कष्ट से (जो अनेक प्रसंगों में हमारे साथ अनेक जन्मों से होता है)स्थायी रूप से मुक्ति पाने के लिए, साधना करना तथा स्वयं में निरंतर तथा दीर्घकालावधि तक रहनेवाली सकारात्मकता को लाना आवश्यक है । यदि कोई आध्यात्मिक उपचार को नामजप के साथ करता है, तब उसे उसके कष्ट से अल्प कालावधि में मुक्ति मिल सकती है ।