टिप्पणी: इस प्रकरण अध्ययन की पृष्ठभूमि समझने के लिए और ऐसी घटनाएं विशेष रुप से SSRF के संबंध में क्यों हो रही हैं, कृपया पढें – भयभीत करनेवाली असाधारण घटनाओं का परिचय
यह अनुभूति कुमारी तेजल पात्रीकर की है, जो परम पूज्य डॉ. आठवलेजी की कृपा से संपादित एक आध्यात्मिक कार्यक्रम की दूरदर्शन प्रस्तोता हैं ।
उस दिन मैंने गोवा के रामनाथी स्थित SSRF के शोध केंद्र के स्टूडियो में एक आध्यात्मिक दूरदर्शन कार्यक्रम के एक भाग का चित्रीकरण (शूटिंग)समाप्त किया ही था । संध्याकाल से ही मुझे बहुत बेचैनी लग रही थी तथा बहुत नकारात्मक विचार आ रहे थे । मैंने निश्चय किया कि आज रात शीघ्र सो जाती हूं । आश्रम में हम भूमि पर सोते हैं, इसलिए अपना बिछावन बिछाकर मैं सोने से पूर्व हाथ-मुंह धोने चली गई ।
वापस आने पर मैंने चादर में १ इंच व्यास का जलने से बना छिद्र देखा । आध्यात्मिक उपचार के रूप में मैं प्रायः अपने चादर के नीचे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी तथा परम पूज्य दादाजी वैशंपायन के चित्रवाला समाचारपत्र रखती हूं । उस रात्रि भी मैंने वो समाचारपत्र रखा था ।
अचरज की बात यह थी कि चादर वहीं जली थी जहां मैंने समाचारपत्र रखा था । जब मैंने चादर उठाई, तो मैंने देखा कि समाचारपत्र भी जला हुआ है । जलने के कारण छिद्र परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के ठीक हृदय भाग में हुआ था । दूसरे शब्दों में परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का हृदय का भाग जल चुका था । समाचारपत्र हटाने पर मैंने देखा कि उस आग से मेरा गद्दा भी १ इंच भीतर तक जल गया था । मैं स्तब्ध रह गई क्योंकि जिससे इस प्रकार आग लग सके, ऐसी कोई भी वस्तु आसपास नहीं थी ।
मैंने अपनी चादर बदली, गद्दे को पलटा तथा सोने का प्रयास करने लगी । जब तक मैं सो नहीं गई, अशांत विचार चलते रहे । जब मैं सवेरे उठी, तब मेरा मन रात्रि की तुलना में अच्छा था । मेरी शारीरिक थकान समाप्त हो गई थी ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी : अनेक बार साधक स्वतः दहन होने की घटना से पूर्व ही कष्ट (शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर)अनुभव करते हैं, क्योंकि उनकी छठवीं इंद्रिय होनेवाले आक्रमण के प्रति संवेदनशील होती है ।