वर्ष २००० के अप्रैल माह में, एक दोपहर को जब मैं जप कर रहा था, तब अकस्मात ही मुझे चंदन की सुगंध आई । मुझे लगा हो सकता है किसी ने चंदन की अगरबत्ती जलाई है अथवा इत्र लगाया हो । बस पुष्टि करने के लिए, मैंने घर में उपस्थित सभी सदस्यों से पूछा कि उन्हें किसी सुगंध की अनुभूति हो रही है क्या तथा क्या उन्होंने इत्र लगाया अथवा अगरबत्ती जलाई है । लेकिन सभी ने नहीं कहा । अंत में, मैं शौचालय भी गया और वह सुगंध मुझे शौचालय में भी आ रही थी । वह सुगंध लगभग पांच मिनट तक रही । मैंने अपने जीवन में पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था ।
– डॉ. अविनाश काशिद , बीड, भारत.
इस अनुभव के पीछे अध्यात्मशास्त्र
सूक्ष्म (बाह्य स्रोत के बिना आनेवाली) सुगंध का अनुभव ४५ से ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर में होता है । तथापि आध्यात्मिक स्तर ४५ प्रतिशत से अल्प होने पर भी इसकी अनुभूति हो सकती है, यदि व्यक्ति साधना में सक्रिय रूप से भक्ति सहित तथा ध्यानपूर्वक सम्मिलित है । कभी-कभी आध्यात्मिक स्तर तात्कालिक रूप से बढ जाता है । जैसे इस प्रसंग में जब डॉ. काशिद जप कर रहे थे । यह अनुभूति उस स्थिति में प्राप्त होती है, जब बद्ध आत्मा साधना कर रही हो, अर्थात् जीवात्मा स्थिति में हो। इस स्थिति में भगवान के प्रति भाव जागृत होता है । इस कारण मन आत्मा से प्रक्षेपित होनेवाली चैतन्य की प्रकट तरंगों पर केंद्रित हो जाता है । ये तरंगें पृथ्वीतत्व से संबंधित होती हैं । पृथ्वीतत्व की सूक्ष्म अनुभूति सुगंध है ।
एक अनुभूति हमारी आध्यात्मिक यात्रा में एक मील के पत्थर के समान कार्य करती है । यह ईश्वर की यह बताने की पद्धति है कि, हम योग्य मार्ग पर हैं ।