विषय सूची
१. प्रस्तावना
साधना ने मेरे जीवन को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया । विभिन्न परिस्थितियों के कारण, साधना प्रारंभ करने से पूर्व मेरा जीवन कई वर्षों से बुरा और बुरा होता जा रहा था । साधना प्रारंभ करने के पश्चात, यह पूर्णतया बदल गया एवं मेरा जीवन सकरात्मक हो गया । साधना प्रारंभ करने से पूर्व एवं पश्चात मेरे साथ जो हुआ उसका संक्षिप्त विवरण नीचे है ।
२. मद्य एवं मादक पदार्थ के प्रयोग की ओर मुडना
विद्यालय के दिनों में मेरा जीवन पूरी तरह से विशिष्ट था । मैं अच्छा आचरण करनेवाला एक अच्छा विद्यार्थी था, परंतु माध्यमिक शिक्षा के अंत में, मैंने कभी-कभी मद्य पीना प्रारंभ कर दिया एवं मादक पदार्थोँ का प्रयोग करने में भी मेरी रूचि थी । ऐसा इसलिए क्योंकि अन्य लोग जिन्हें मैं जानता था वे ऐसा कर रहे थे । गलत दिशा में ले जानेवाली जिज्ञासा के कारण मैंने इस रूचि को विकसित किया ।
आश्चर्य की बात है, लगभग उसी समय मैंने पहली बार एक संत द्वारा लिखित पुस्तक परम पूज्य रामकृष्ण परमहंस की जीवनी पढी । किसी प्रकार से उस विषय ने मेरे भीतर ईश्वर को जानने एवं उन्हें अनुभव करने की इच्छा को तनिक जागृत किया, परंतु यह कैसे करना है इसका मुझे ज्ञान नहीं थाI ।
मादक पदार्थों के विषय में इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पढने के कारण, मैंने पढ़ा कि कुछ लोगों ने कहा कि मादक पदार्थों से हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं । परिणामस्वरूप, इसमें मेरी रूचि बढी और मैं ईश्वर को अनुभव करने के लिए भ्रमित करनेवाले ( साइकेडेलिक) मादक पदार्थ जैसे एलएसडी को लेने की सोचने लगा । मैंने भिन्न प्रकार से ध्यान लगाने एवं साधना करने के प्रयत्न किए, परंतु मेरी बुरी आदतों के कारण यह कठिन था इसलिए मैंने सोचा अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मादक पदार्थ एक अच्छा मार्ग रहेगा ।
३. ईश्वर को पाने के लिए मादक पदार्थ
वर्ष २००७ के प्रारंभ के समय में, मैं एलएसडी के नियमित स्त्रोत तक पहुंच गया एवं मैंने अपने जीवन के सबसे अंधकारमय समय में प्रवेश किया । मादक पदार्थ ने मुझे ईश्वर की अनुभूति नहीं करवार्इ, इसके विपरीत इसने धीरे-धीरे मुझे भावनात्मक रूप से एवं, जो मैंने बाद में अनुभव किया, आध्यात्मिक रूप से भी अपंग बना दिया । मैंने गांजे (मारीजुआना) एवं एलएसडी का प्रयोग करते हुए ध्यान लगाने का प्रयास किया । मुझे अत्यधिक तीव्र भावनाओं की अनुभूति हुई जिसने मुझे निर्बल तथा आगे जड करके छोड दिया । मुझे अनिद्रा (इनसोम्निया) रोग हो गया और जब मैं सोता तब विचित्र स्वप्न आते । सामान्य रूप से सामाजिक बनना मेरे लिए कठिन हो गया । यह समस्या पूर्व में नहीं थी । मैंने स्वयं को अन्यों से अलग कर लिया । मुझे स्मरण है कि एक बार मैंने सोचा था मैं इतना भी नहीं जानता कि अन्यों से बात कैसे करते हैं । मैं छोटे-छोटे प्रसंगों पर भी अत्यंत भावुक हो जाता जो पूर्णतया मेरी मूल प्रकृति के विपरीत था ।
अंतःज्ञान से, मुझे यह समझ में आने लगा कि मुझ पर कोई आक्रमण कर रहा था, परंतु सूक्ष्म जगत का ज्ञान न होने के कारण मैं नहीं जानता था कि इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए क्या करना है । मैंने मादक पदार्थों का सेवन कुछ कालावधि के लिए अनियमित कर दिया । स्वस्थ होने के लिए, विभिन्न प्रकार की साधना करने पर ध्यान केंद्रित किया जिनके विषय में मैंने ऑनलाइन अथवा आध्यात्मिक ग्रंथ में पढा था । इन विविध साधना के कारण कुछ दिनों के लिए मुझे कभी-कभी राहत मिलती, परंतु लक्षण सदैव वापस आ जाते । मद्यपान करने अथवा गांजा पीने से स्वयं को रोकने में मैं असमर्थ था और इसलिए अपनी पुरानी आदतों पर पुनः आ गया ।
४. जीवन का आनंद लेने के लिए समारोह (पार्टी) करना
जब मैं विश्वविद्यालय से स्नातक कर रहा था, मेरा कोई मित्र नहीं था, यद्यपि मैं उच्च विद्यालय में लोकप्रिय रहा । भ्रमित करने वाले (सार्इकेडेलिक) मादक पदार्थों ने मेरे साथ जो किया मुझे समझ आ गया । उस समय मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि इसका समाधान मद्यपान करना, समारोह (पार्टी) करना एवं स्वयं को प्रसन्न रखना था, जिससे मैं वह कर सकूं जो मैं विश्वविद्यालय में न कर सका । मैं उन लोगों से जुडा जिन्हें मैं पहले से फेसबुक पर जानता था और प्रत्येक समारोह में जिसका मुझे पता चलता जाता । अपने मन में महाविद्यालय में मेरी जो छवि थी, मैं अपने आपको उससे दूर रखना चाहता था और मैंने अनुभव किया कि ऐसा करने के लिए वह सर्वोच्च मार्ग था ।
निस्संदेह, जब मैं उनतक पहुच गया मैंने अत्यधिक मादक पदार्थों जैसे कोकीन एवं विभिन्न गोलियां लेना प्रारंभ किया एवं यहां से स्थिति अधोगामी होती गई ।
यद्यपि आरंभ में सब कुछ पूर्णतया नवीन होने के कारण मुझे हर्ष अनुभव हो रहा था, शीघ्र ही यह हर्ष अदृश्य हो गया और मैं आतंरिक रूप से खाली अनुभव करने लगा । मुझे यह समझ में नहीं आया, परंतु मेरी प्रसन्नता का औसत स्तर, जो कि महाविद्यालय के समय से ही अल्प था, और भी अल्प होता जा रहा था ।
५. बंदी बनाया जाना
इसी काल में मैंने स्नातक विद्यालय में अध्ययन प्रारंभ कर दिया था, परंतु वास्तव में मैं अपने अध्ययन पर केंद्रित नहीं था । मैं समारोह आदि में जाने पर अधिक केंद्रित था । कई बार रात्रि मद्यपान के पश्चात, मैं बिना कुछ विचार किए वैसे ही वाहन चलाता । एक बार जब मैं मद्यपान कर वाहन चला रहा था, पुलिस ने मुझे पकड लिया । मैं भयभीत एवं भ्रमित था, परंतु जब मैं कारागृह से बाहर आया, तो मुझे ऐसा लगा कि यह मात्र एक संयोग है एवं ऐसा पुनः नहीं होगा । यह वह समय था जब मैंने प्रथम बार SSRF का जालस्थल देखा । मुझे जालस्थल पर उपलब्ध जानकारी रोचक लगी, परंतु किसी भी प्रकार से वह समय मेरे लिए उचित प्रकार से साधना करने का नहीं था ।
मैंने बंदी बनाए जाने के अपने कृत्य को सुधारने का प्रयत्न किया एवं कुछ समय के लिए वास्तव में सुधरा भी । इस समय मैं प्रसन्न अनुभव कर रहा था, परंतु मैं पूर्णतया आश्वस्त नहीं था कि मैं मद्यपान को सर्वदा के लिए त्याग पाऊंगा । कुछ माह पश्चात, मैं अपने गृहनगर गया एवं एक पुराने मित्र से मिला । हमने शीघ्र ही मद्यपान एवं मादक पदार्थों का सेवन आरंभ कर दिया, और अत्यधिक पार्टी करना आरंभ किया जो मैंने लंबे समय पहले की थी । एक रात, जैसे ही मैं नशे में वाहन चलाते हुए घर पहुंचा, मुझे दूसरी बार मद्यपान करके वाहन चलाने के लिए बंदी बना लिया गया । इस बार कारागृह में मुझे जहां रखा गया था वहां अत्यंत बुरे अपराधी थे और मुझे स्मरण है मैंने ईश्वर को वचन दिया कि यदि वे कारागृह से मुझे बाहर निकाल दें तो मैं पुनः कदापि मद्यपान नहीं करूंगा । यद्यपि जब मैं बाहर आया तब पुनः अपनी पुरानी आदतों के मध्य लौट आया ।
न्यायालय ने मुझे अपनी कार में एक यंत्र लगाने का आदेश दिया जो मेरे वाहन चलाने से पूर्व (एक मद्य श्वासपरीक्षक यंत्र) मेरी श्वास का निरीक्षण कर सके, किंतु मैं मद्यपान कर वाहन नहीं चलाने से बचने के लिए मादक पदार्थोँ का सेवन करता I एक बार, मैंने कुछ मित्रों के साथ मद्यपान किया और सोचा चूंकि मुझे अंतिम मद्यपान किए कुछ घंटे हो चुके हैं, मैं श्वासपरीक्षक यंत्र में श्वास लेने के लिए तैयार हूं I मेरी श्वास सकारात्मक आई एवं मुझे समझ आया कि जब मैं कार के श्वासपरीक्षक यंत्र को पुनः परीक्षण के लिए लेकर जाऊंगा तो मेरे मद्यपान एवं वाहन चलाने के मामले को देखनेवाला न्यायालय इस सकारात्मक परीक्षण को देख लेगा (श्वासपरीक्षक यंत्र का प्रति माह निरीक्षण करवाना आवश्यक है एवं इस बार सकारात्मक मद्य परीक्षण का पता लग जाएगा) I अंततः यह वह समय था, जिसमें मैंने अंतर्मन से अनुभव किया कि मुझे मद्यपान एवं मादक पदार्थोँ का सेवन बंद करना ही होगा I
६. साधना द्वारा स्वयं में सुधार लाना
मैं भयभीत था एवं मुझे समझ में आ गया कि मुझे अब बदलना ही होगा I मैंने मद्यपान एवं मादक पदार्थों का सेवन बंद करने का संकल्प लिया एवं SSRF जालस्थल का स्मरण किया I चूंकि अन्य कुछ भी काम नहीं कर रहा था, इसलिए मैंने सोचा कि SSRF जालस्थल पर जो लिखा था उस पर प्रयास करना अच्छा होगा I मैंने अपने जन्म के धर्मानुसार नाम जप करना प्रारंभ किया एवं दिन में कई घंटें श्री गुरुदेव दत्त का नामजप करता I उस समय, मेरे पास एक काम था जिसमें मुझे पूरे शहर में वाहन चलाना पडता I इसलिए मैंने वाहन चलाते समय नामजप करना आरंभ किया । मुझे नामजप करना सहज लगा । यद्यपि मद्यपान करने की मेरी इच्छा को नियंत्रित करना कठिन था, पहले की स्थिति के विपरीत अब यह वास्तव में संभव था I नामजप करते समय कभी-कभी मुझे आध्यात्मिक उपचार होते अनुभव होते एवं मैं इसे और अधिक अनुभव करने के लिए उत्सुक रहता I
कुछ महीनों पश्चात, मुझे पता चला कि न्यायालय मुझे श्वासपरीक्षक यंत्र पर आए सकारात्मक परीक्षण के लिए ५ दिनों का कारावास देना चाहता है I मुझे यह अनुचित लगा क्योंकि मैं बदलने का प्रयत्न कर रहा था I कारावास और वहां क्या हो सकता है इस भय से मैं और भी तत्परतापूर्वक निरंतर नाम जप करने लगा I कारावास में जाने से एक सप्ताह पूर्व मैं अपने प्रथम SSRF दूरभाष सत्संग में सम्मिलित हुआ एवं मुझे स्मरण है, सत्संग का आयोजन करनेवाले साधक बहुत ही स्नेहशील एवं उत्साहवर्धक थे I
अंततः जब मैं कारावास में गया, मुझे प्रायः ऐसा लगा कि कोई शक्ति मेरा रक्षण कर रही थी I लगभग जैसे ही मैं भीतर गया, मैंने देखा कि किसी झगडे के कारण एक कैदी दूसरे कैदी को कठोरता से पीट रहा था; परंतु किसी ने भी मुझे परेशान नहीं किया I मुझे उन कैदियों के संग रखा गया जो पुराने थे, यद्यपि मैं २३ वर्ष का था, और इन पुराने कैदियों में से अधिकतर किसी को कष्ट देने जैसे नहीं दिख रहे थे I इस समय मैं निरंतर नाम जप करता रहा और मैंने अनुभव किया कि ईश्वर ने ही मेरी रक्षा की I यहांतक कि कारावास के अधिकारियों ने मुझे दो दिन पहले ही छोड दिया I
कारावास से निकलने के पश्चात, मैंने अनुभव किया कि ईश्वर की कृपा से ही मुझे जीवन में एक नया अवसर मिला I मैंने अपने इमेल में देखा की जब मैं बाहर आया लगभग उसी समय SSRF के एक साधक ने मुझसे संपर्क किया । मैंने उनसे संपर्क किया एवं उनसे इमेल पर पत्रव्यवहार करते रहा जिससे मैं उनसे साधना के विषय में प्रश्न कर सका I मैं नियमित रूप से नामजप करते रहा एवं उत्तर अमेरिकन दूरभाष सत्संगों में मैंने नियमित रूप से सम्मिलित होना प्रारंभ किया I सत्संग के साधक बहुत सहायक थे एवं मुझे समझाया कि कैसे मेरे साथ जो हुआ वह अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण था एवं उन्होंने मेरी समस्याओं के लिए आध्यात्मिक उपाय भी बताए I
जैसे-जैसे मैं सत्संगों में निरंतर सम्मिलित होता एवं साधना में आगे के चरणों जैसे सत्सेवा, स्वभाव दोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलन, भाव जागृति आदि, प्रारंभ किया तब मेरी पहले की सभी समस्याएं धीरे-धीरे लुप्त हो रही थीं I मुझमे मद्यपान एवं पार्टी की कोई इच्छा शेष नहीं थी I मेरा अनिद्रा का रोग समाप्त हो गया और मैं मद्य अथवा मादक पदार्थों पर निर्भर रहे बिना सहजता से लोगों से बात कर सकता I
ऐसा लगा मैंने जितनी अधिक साधना की उतनी अधिक स्थायी सुख एवं आनंद की भी अनुभूति हुई I
७. SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में जाना
जुलाई २०११ में, आध्यात्मिक शरण के लिए भारत में SSRF के आध्यात्मिक अनुसंधान केंद्र में जाने का मुझे पहला अवसर मिला एवं वहां की अनुभूति ने मुझमें स्थायी संस्कार निर्मित किया I उस अनुभूति का वर्णन संभव नहीं है, परंतु उसने मुझे स्वभाव दोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलन के विषय में गंभीर बना दिया, जो हमारी साधना के अति आवश्यक भाग हैं I जैसा हमें बताया गया मैंने अध्यात्म प्रचार करने के लिए भी प्रयत्न करना प्रारंभ किया एवं ऐसा करने के पश्चात मुझे अत्यधिक आनंद की अनुभूति हुई जिसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकता I
मुझे जनवरी २०१२ में पुनः SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में जाने का अवसर प्राप्त हुआ, और इस बार मेरे पास वहां कुछ समय के लिए रुकने का अवसर था I इस कालावधि में, मैंने गुरुकृपायोग के ८ पहलुओं के अनुसार साधना में स्वयं को लिप्त किया तथा मैंने आंतरिक रूप से स्वयं में परिवर्तन अनुभव किया I
एक बार एक साधक ने मुझसे SSRF में मैं कैसे आया यह पूछ रहे थे । इसलिए मेरे साथ जो कुछ भी हुआ सब मैंने उन्हें बताना प्रारंभ किया, उनको बताते समय मुझे लगा जैसे कोई सकारात्मक ऊर्जा मेरे द्वारा बोल रही है और मैंने हल्कापन अनुभव किया I अंत में, साधक ने बताया कि ईश्वर ने मेरे लिए जो किया उनके प्रति मुझे अति कृतज्ञ होना चाहिए और मेरी आंखों से अश्रु निकलने लगे एवं लगा कि स्वर्णिम प्रकाश ने मुझे भीतर से भर दिया है I यह भाव जागृति की मेरी प्रथम अनुभूति थी I
कई माह पश्चात SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में, मैंने दिन भर ईश्वर के चरणों में समर्पित होने की प्रार्थना करना प्रारंभ किया I प्रथम बार मैंने समर्पण प्रार्थना की, मैंने सूक्ष्म से ईश्वर के पवित्र चरणों में देह, मन एवं बुद्धि को समर्पित किया एवं वास्तव में स्वयं को उन्हें अर्पण करना अनुभव किया I तत्पश्चात मुझ पर एक स्वर्णिम प्रकाश की वर्षा होने लगी और उसने मुझे भर दिया I तत्पश्चात मुझे ज्ञात है मैंने लंबे समयतक वैसा ही अनुभव किया, और एक सप्ताहतक वे प्रार्थनाएं उसी तडप से हो रही थीं I मैं ईश्वर से कहता मैं कुछ नहीं जानता, मैं कुछ नहीं कर सकता एवं मेरे पास कुछ भी नहीं है, इसलिए कृपया मुझे साधना करना सिखाएं I मुझे अपनी देह का भान नहीं रहता एवं प्रार्थनाएं होती, और तत्पश्चात मुझे ज्ञात होता कि मेरे मुख पर भाव के अश्रु बह रहे थे I
इन प्रार्थनाओं ने मुझ पर स्थायी प्रभाव छोडा एवं मेरे भीतर साधना को तीव्रता से बढाने की इच्छा उत्पन्न हुर्इ I यहांतक कि इस समय मैं भिन्न दिखने लगा और मेरी आध्यात्मिक उपचार की आवश्यकता घट गई I जब मैं अमरीका (USA) लौटा, मुझे स्वयं एक परिवर्तित व्यक्ति जैसा लगा और इस बार मैं साधना के प्रति लगन रख, अधिक केंद्रित था I इसके अतिरिक्त, मुझे ईश्वर से संबंध अनुभव हुआ जो SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में जाने से पहले कभी नही हुआ था एवं यह अनुभव किया कि ईश्वर ने वास्तव में मेरी प्रार्थनाओं को सुना I
दिसम्बर २०१३ में मुझे पुनः SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में आने का अवसर प्राप्त हुआ और मैं ३ माहतक रुका I यह यात्रा पिछली यात्रा से अधिक भिन्न थी I यह यात्रा अहं निर्मूलन के विषय में अधिक थी जबकि पिछली यात्रा भाव जागृति के विषय में लग रही थी I मुझे विभिन्न परिस्थितियों में रखा गया था जो स्वीकार करने के लिए कठिन थी I मैंने प्रार्थना के लिए एवं उस समय स्वयं को स्थिर रखने के लिए ईश्वर से संपर्क बनाए रखने का प्रयास करता रहता I वास्तव में, ईश्वर ने ही परिस्थितियों को स्वीकारने के क्षमता प्रदान की एवं मुझसे साधना करवा ली I
८. परिवर्तन का समय
इस यात्रा के समय अनेक सकारात्मक बातों में से एक यह हुआ कि एक साधिका से मेरा विवाह हुआ I यह साधिका एक उन्नत साधिका है; परंतु उसे भी अनिष्ट शक्ति का आध्यात्मिक कष्ट है, इसलिए जब उसका कष्ट बढता तो परिस्थितियों से सामंजस्य बनाने में मेरा अत्यधिक अहं निर्मूलन होता I मैंने स्वयं से एवं इन परिस्थितियों में स्वयं को किस प्रकार परिवर्तित करने की आवश्यकता है इससे बहुत कुछ सीखा, एवं मैं अभी भी इस सीखने की प्रक्रिया में हूं I
अमरीका वापस लौटने के पश्चात मैं अभी भी अहं निर्मूलन की प्रक्रिया में हूं; परंतु अहं निर्मूलन का पहले से ही मुझ पर सकारात्मक प्रभाव रहा है I मुझे स्मरण है मुझमें क्रोध स्वभावदोष बहुत लंबे समय से था उसकी तीव्रता अल्प होनी प्रारंभ हो गर्इ है I मैं अन्यों के साथ सामंजस्य रखने में अधिक सक्षम हो गया हूं एवं अपनी इच्छा के विरुद्ध कुछ होने पर भी मैं सामान्यतः अधिक सकारात्मक हूं I
जब मैं पीछे मुडकर देखता हूं कि जब मैंने साधना प्रारंभ की तब मैं कौन था ? और मैं सच्चार्इ से कह सकता हूं कि मैंने एक लंबा मार्ग तय किया है I मैं अत्यधिक दुखी एवं तामसिक गतिविधियों में सम्मिलित होने से लेकर साधना में लिप्त होने एवं अधिकतर सकारात्मक अनुभव करने लगा हूं I यह परिवर्तन मात्र ईश्वर की कृपा से संभव हुआ है I यदि मेरे जैसे किसी इतने सारे गलत निर्णय लेनेवाले व्यक्ति पर भी ईश्वर की कृपा होती है, तो मैं समझता हूं कोई भी ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है I मैं प्रार्थना करता हूं कि जिन्होंने यह लेख पढा, वे लोग जो कठिन परिस्थितियों में यह समझते हैं कि अब वे इससे बाहर नहीं निकल सकते, वे भी ईश्वर प्राप्ति के लिए साधना प्रारंभ करें I साधना से वे अपने प्रारब्ध, स्वाभाव दोष एवं अहं पर विजय पाने में सक्षम होंगे एवं आनंद अनुभव करेंगे जो मैं अब प्रतिदिन अनुभव कर रहा हूं I मुझे परिवर्तित करने के लिए मैं ईश्वर को हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करता हूं I
– श्री. ओरीत्रो मल्लिक, यूएसए