SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।
वर्ष १९७७ में जब मैंने काम करना प्रारंभ किया तबसे मेरा धूम्रपान करना भी आरंभ हुआ । मुझे स्मरण है कि सिगरेट पीने का व्यसन एक धीमी प्रक्रिया रही । आरंभ में काम से अवकाश के समय मैं कुछ ही सिगरेट पीता था । जबतक मुझे पता चलता मैं इस व्यसन का आदी हो चुका था । धूम्रपान के अतिरिक्त, अपने मित्रों की संगति में कभी-कभार मुझे मद्यपान में भी रुचि होने लगी । जहां सिगरेट पूर्ण विकसित व्यसन बन चुका था वहीं मद्यपान सीमित रहा ।
डेढ दशकों (१९८०-९७) में मैंने अनगिनत बार इस व्यसन को छोडने हेतु संघर्ष किया; किंतु हर बार असफल रहा । अगस्त १९९६ में, मैं स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF)के संपर्क में आया और मैंने अपने कुलदेवता का नामजप करने की साधना आरंभ की । साथ ही अपनी आध्यात्मिक सुरक्षा हेतु मैं श्री गुरुदेव दत्त का भी नामजप करने लगा ।
दिसंबर १९९६, से सार्वजनिक रूप से सिगरेट पीने में मुझे अस्वस्थता लगने लगी और मैं अकेले में ही धूम्रपान करता । फरवरी १९९७ में, मेरे कार्यालय में होनेवाली नियमित स्वास्थ्य जांच के समय मेरे ईसीजी (ECG)में अनियमितता देखी गई । मुझे धूम्रपान न करने का परामर्श दिया गया । मुझे बताया गया कि ऐसा न करने पर मेरी हृदयसंबंधी समस्याएं और भी जटिल हो जाएंगी;तब भी मेरा धूम्रपान के व्यसन में कोई कमी नहीं आई ।
२० अप्रैल १९९७, को भारत के मुंबई महानगर में प.पू.डॉ. आठवलेजी द्वारा अध्यात्मशास्त्र पर सार्वजनिक प्रवचन आयोजित किया गया । अन्य साधकों के साथ मुझे भी इसके आयोजन का उत्तरदायित्व मिला । मुझे व्यासपीठ पर उनका स्वागत करने का भी उत्तरदायित्व मिला । इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाने का मैंने निश्चय किया । मैंने सोचा कि कि यदि मेरा व्यसन न छूटा, तो मैं उनके सामने कैसे जाऊंगा ? इस बौद्धिक निश्चय, प्रार्थना, नामजप , SSRF द्वारा आयोजित साप्ताहिक सत्संग में नियमित उपस्थित रहने तथा थोडी-बहुत सत्सेवा के साथ, मैं १९ अप्रैल १९९७ को पूर्ण रूप से धूम्रपान छोड सका ।
पहले जब मैं अपने मित्रों के साथ पिकनिक पर जाता, तब मद्यपान करता था । परंतु साधना के कारण मेरी संगति बदली और मैंने वैसी पिकनिक पर जाना छोड दिया । इस प्रकार वह व्यसन भी अपनेआप छूट गया । व्यसन पर विजय प्राप्त होने के कारण मेरे परिवार पर भी सकारात्मक प्रभाव पडा और कुछ लोगों ने साधना आरंभ कर दी । अब धूम्रपान छोडे मुझे ९ वर्ष से अधिक हो गए हैं, यह SSRF के मार्गदर्शन में की नियमित साधना के कारण संभव हो पाया ।
– श्री.नंदू मुळये, मुंबई, भारत.