१. प्रस्तावना
श्रीमती योया वाले व्यवसाय से एक अंर्तराष्ट्रीय मॉडल हैं तथा वे सूक्ष्म कलाकार एवं SSRF के आध्यात्मिक शोध दल की भी सदस्य हैं । उनके सुनने तथा बोलने की शक्ति क्षीण है और वे एक सूक्ष्म कलाकार हैं । इसका अर्थ है कि जैसे हम किसी स्थूल वस्तु को देख सकते हैं उसी प्रकार उनमें सूक्ष्म आध्यात्मिक आयाम में देखने की क्षमता है तथा उनकी कलाकार प्रज्ञा उन्हें सूक्ष्म आयाम में देखी हुई वस्तु का चित्रांकन करने की क्षमता प्रदान करती है । यद्यपि आध्यात्मिक आयाम का हमारे दैनंदिन जीवन पर गहरा प्रभाव रहता है तथापि चूंकि इसे अनुभव नहीं कर सकते, इस कारण हम इससे अनभिज्ञ रहते हैं । श्रीमती योया वाले जैसी सूक्ष्म कलाकार हमें आध्यात्मिक आयाम के झरोखे के उस पार देखने का सुअवसर प्रदान करती हैं । श्रीमती योया वाले एवं अन्य सूक्ष्म कलाकारों के दृष्टिकोण का अंतर यह है कि उनके सूक्ष्म चित्र प.पू. डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में उनकी साधना का ही एक भाग हैं ।
इस लेख में हम श्रीमती योया की आधुनिक फैशन जगत से एक आध्यात्मिक उन्नति के प्रति अनन्य समर्पित साधक बनने की विशेष आध्यात्मिक यात्रा के संबंध में जानकारी प्राप्त करेंगे ।
२. बाल्यकाल
योया का जन्म पुराने युगोस्लाविया गणराज्य के बेलग्रेड नगर में २५ अप्रैल १९८० को हुआ । जब वे मात्र १० महीने की थीं तब एक बीमारी के कारण उन्हें ८० प्रतिशत श्रवण दोष (श्रवण दोष अर्थात सुनाई देना कम हो गया) हो गया । इससे उनकी वाणी पर भी परिणाम हुआ । वे जब १२ महीने की थीं तभी से श्रवण यंत्र (hearing aids) पहनने लगीं । पांच वर्षों के वाणी प्रशिक्षण के उपरांत योया सामान्य बालकों की पाठशाला में प्रवेश पा सकीं । वाणी दोष तथा श्रवण दोष का निर्मूलन कर वे सामान्य विद्यालय में अन्य विद्यार्थियों के साथ प्रवेश ले सकीं, यह उनकी एक बहुत बडी एवं दुर्लभ उपलब्धि थी ।
माता-पिता ने योया के बचपन से ही वाणी दोष निवारण उपचार की व्यवस्था की थी । जब सामान्य बालक खेला करते तब योया एक दिन में लगभग चार घंटे वाणी-उपचार का अभ्यास किया करती । योया के श्रवण एवं वाणी दोषों के होते हुए भी उनका बाल्यकाल सामान्य रहा
बचपन से योया को चित्रकला अतिप्रिय थी । योया की माता को स्मरण है कि दो वर्ष की आयु में भी योया को लेखनी (पेंसिल) पर नियंत्रण करना सहजता से आता था और वह तितली का सुंदर चित्रण किया करती थी । उनके बाल्यकाल के बहुतेरे चित्रों में परियों समान चित्रण होता था, जबकि दूरदर्शन अथवा किसी कहानी की पुस्तक में भी उसने कभी परी को नहीं देखा था । पांच वर्ष की आयु में उसने परी का सटीक चित्रांकन किया ।
अपनी चित्रांकन योग्यता का प्रस्तुतीकरण करने के साथ ही पांच वर्ष की होते-होते योया में सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करने के चिन्ह दिखने लगे । उन्हें सूक्ष्म दृश्य दिखते । योया बताती हैं, ‘‘अनेक बार जब मैं मेरे मन में कोई विचार नहीं होता, उस समय भी मैं किसी चित्र की मानसिक कल्पना करती थी । प्रारंभ में मैं इस ओर विशेष ध्यान नहीं देती थी; क्योंकि वह किसी चित्र का मात्र आधा-अधूरा भाग होता जैसे हाथ में कलम अथवा कोई अधूरा चित्र जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता; किंतु २ अथवा ३ वर्षों के उपरांत, कभी-कभी मुझे पूर्ण अर्थ सहित चित्र दिखता था । जब मैं सात वर्ष की थी तब ऐसी आंखें दिखाई दीं जो किसी पंख पर थीं तथा एक प्राणी भी दिखा जिसे पंख थे, इसका मैंने चित्रांकन किया । कई महीन उपरांत मैं अपने पिता के साथ बेलग्रेड स्थित स्वेटा पेटका गिरजाघर में गई, वहां दीवार एवं छत पर मुझे ठीक वही चित्र दिखा जो मुझे पहले दिखाई दिया था । मैं अचंभित थी एवं मैंने अपने पिता को यह बताया कि कुछ माह पूर्व मुझे आभास हुए चित्र और यहां बने चित्र में आश्चर्यजनक साम्य है ।
३. योया का तरुण जीवन एवं अध्यात्म की ओर झुकाव
कला के प्रति लगाव होने के कारण एक कलाकार के संरक्षण में योया बेलग्रेड में कलावर्ग में जाने लगीं, उनका उद्देश्य कला को आजीविका बनाना नहीं था । जब वे १२ वर्षों की थीं तभी उनका परिवार यू.एस.ए. के वाशिंगटन डी.सी. में स्थानांतरित हो गया । वहां उन्होंने कला प्रशिक्षण में निरंतरता बनाए रखी । उन्होंने दो वर्ष प्रतिष्ठित कोरकोरन कला विद्यालय में ग्रीष्मावकाश पाठशाला कलाकार के कार्यक्रम में भाग लिया; किंतु सामान्य कला में योया की रुचि धीरे-धीरे घटने लगी ।
योया बतातीं हैं कि, ‘‘सामान्यतः कला केंद्र में किन्हीं वस्तुओं का रेखांकन करने के लिए कहा जाता; परंतु मुझे स्व-कल्पना अथवा जो दृश्य मुझे दिखते, उनका रेखांकन करने की इच्छा थी ।’’ इस कारण से उस समय रूढिवादी कला के प्रति मेरी रुचि न्यून हो गई । अंतत: मैंने कला विद्यालय को त्याग कर अपनी कल्पनानुसार चित्रांकन करना प्रारंभ कर दिया जिससे मुझे अत्यंत आनंद प्राप्त होता ।’’
किंतु योया के प्रारब्ध में तो कुछ और ही लिखा था । अपनी १६ वर्ष की आयु में वे मॉडलिंग करनें लगीं । अंतराष्ट्रीय मॉडल के रूप में वे शीर्ष पर पहुंच गईं । अगले दो वर्ष वे अपनी मां के साथ मॉडलिंग असाइनमेंट हेतु लम्बीं यात्राएं भी करतीं । यहां दिए छायाचित्र योया के उच्च फैशन मॉडल का स्वरूप दर्शाते हैं ।
अनेक बार उनकी यात्रा के समय उनकी मां ड्रगाना निराशा से ग्रस्त रहतीं । उस समय ड्रगाना को ईश्वर में विश्वास न था; परंतु वे आंतरिक शांति एवं आनंद के शोध में थीं । योया का चित्रांकन निरंतर जारी था । उनके चित्रों का आधार आध्यात्मिक होता जिससे ड्रगाना को अच्छा अनुभव होता । उनके चित्रों से ड्रगाना की के प्रति आस्था में कुछ वृद्धि हुई ।
योया अपनी मां को प्रोत्साहित करती, फिर भी उन्हें सदैव ऐसा प्रतीत होता जैसे कुछ खो गया है । योया को स्मरण होता है कि जब कभी वे अपनी मां से कहतीं कि ईश्वर की ऐसी इच्छा है कि वे जीवित रहें, तो उनकी मां को ऐसा लगता जैसे मेरे माध्यम से कोई दूसरा ही उनसे बोल रहा हो । उस समय मुझे यह बोध नहीं हुआ कि मेरा उपयोग कुछ आध्यात्मिक शक्तियां माध्यम के रूप में कर रहीं हैं ।
तभी एक मॉडलिगं कार्य के समय योया एवं उनकी मां की भेंट श्रीमती शेरॉन क्लार्क सिक्वेरा से हुई जो अमरीका में SSRF के तत्त्वाधान में आयोजित कार्यक्रमों में अध्यात्म पर प्रवचन दिया करती थीं । ड्रगाना अध्यात्म संबंधी सीख से प्रभावित हुईं एवं श्रीमती शेरॉन से आध्यात्मिक सिद्धांतों एवं अवधारणाओं पर चर्चा करने अनेक बार जातीं । शेरॉन जो कहा करती थीं उनमें योया की अभिरूचिउस समय जागृत हुई, जब एक बार योया ने अपनी मां एवं शेरॉन को बात करते हुए देखा ।
योया को स्मरण है कि ‘‘ पहले शेरॉन की बातों में मेरी कोई रुचि नहीं थी औरमैं पार्क के झूले में झूलते हुए दूर से उन्हें बस देखा करती । उनकी बातचीत के समय उनके चारों ओर पीले प्रकाश वलय का सूक्ष्म-दृश्य मुझे दिखाई देता । इसका मुझे बहुत कुतूहल होता तथा मुझे जो सूक्ष्म दृष्टि से दिखता, मैंने उसका चित्रांकन करना प्रारंभ किया । मैं उन्हें अपने चित्र दिखाया करती । इससे उनका मत दृढ हुआ कि चर्चा के समय ईश्वरीय चैतन्य कार्यरत रहता है । इसके उपरांत अध्यात्म में मेरी रूचि जागृत हुई तथा मेरी मां ने मुझे मेरा जन्म जिस धर्म में हुआ है उसके अनुसार नामस्मरण करने के लिए कहा, जो उन्होंने स्वयं SSRF से सीखा था । मैंने १८ वर्ष की आयु में ईश्वर का नामस्मरण करना प्रारंभ किया । मुझे इस साधना की विशेषता का भान होना प्रारंभ हुआ । जिसके फलस्वरूप इसका अधिक ज्ञान प्राप्त करने में मेरी रूचि बढी ।’’
४. योया का एक माध्यम से साधक में रूपांतरण
प्रारंभिक काल में योया एक माध्यम के रूप में सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रांकन किया करती थी । एक माध्यम के रूप में चित्रांकन करने का अर्थ है किसी अन्य शक्ति के प्रभाव में कार्य करना । जब कोई माध्यम होता है, तब किसी अन्य शक्ति का उसकी बुद्धि, मन एवं शरीर पर नियंत्रण होता है । उस समय कलाकार स्वयं की रचनात्मकता अथवा कल्पनानुसार रेखांकन न कर किसी अन्य शक्तिद्वारा दिखाए जा रहे दृश्य के प्रभाव में चित्रांकन करता है ।”
योया माध्यम के रूप में कार्य करने के अपने अनुभव बतातीं हैं । ‘‘मुझे जब एक माध्यम के रूप में दृश्य दिखता तब मेरे चेहरे के हावभाव बदल जाते एवं चेहरा पीले रंग का हो जाता । मैं अलग प्रकार से तथा भारी सांसें लेती । प्राय: मुझे इसका बोध ही न होता कि मैंने क्या चित्रांकन किया है । मेरी मां को मुझसे अनेक प्रश्न पूछने पडते कि मैं चित्र के माध्यम से क्या दिखाना चाहती हूं । प्राय: चित्र बनाना प्रारंभ करने के कुछ सेकेंड पूर्व जैसे ही मुझे दृश्य दिखनेवाला होता मेरी मां को अंतःप्रेरणा से इस बात का बोध हो जाता । मुझे ऐसे दृश्य प्राय: तीव्रता से एवं कभी-कभार धीमी गति से दिखते । दृश्य टी.वी. के स्क्रीन जितने बडे दिखते । प्राय: दृश्यों के रंग दैवी होत, रंग जो पहले कभी भी न देखे हों । मुझे भूतकाल के तथा भविष्यकाल के दृश्य दिखाई देते तथा मुझे स्वप्न में भी वे दिखाई देते । जब भी मुझे दृश्य दिखते मुझे अच्छा अनुभव होता, अत्यधिक शक्ति ग्रहण होती तथा मुझे आनंद अनुभव होता । मैं उत्कंठावश वे दृश्य बार-बार देखना चाहती । मुझे केवल मुख्य दृश्य दिखते किंतु दृश्य की अन्य वस्तुएं रिक्त दिखतीं । माध्यम के रूप में मैं चित्रांकन भी कर सकती थी और बोल भी सकती थी । यद्यपि वाणी की समस्या थी तथापि दृश्य के समय मेरे स्वर पूरी तरह से स्पष्ट होते; किंतु मुझे श्वास लेने में कष्ट होता । मैं अत्यंत गति से बात करती तथा बाद में मैंने क्या कहा इसका मुझे स्मरण न रहता । ये सब होने के उपरांत मुझे शक्तिहीनता अनुभव होती एवं ऐसा लगता कि मैं गिर पडूंगी । मेरा चेहरा श्वेत हो जाता एवं मुझमें बातें करने की भी शक्ति न रहती । मुझे प्यास भी बहुत लगती । इन सब बातों का अनुभव किसी कलाकार को सामान्य कल्पना में नहीं होता ।
जब SSRF के साधकों ने योया को माध्यम के रूप में कार्य करते देखा तब उन्हें उसमें अनेक परिवर्तन दिखे । योया का पूर्ण व्यक्तित्त्व ही बदल जाता । यद्यपि उन्हें बोलने की समस्या था; तथापि उस कालावधि में वह बिलकुल स्पष्ट वाणी में बात करती । वह आधिकारिक वाणी में एक पुरुष की भांति बोलने लगती । वहां उपस्थित साधकों को ऐसा लगता जैसे योया से बहुत बडी शक्ति निकल रही हो । उन्हें ऐसा प्रतीत होता कि उसके भाव ऐसे हो जाते जैसे वह अतितीव्र ध्यान लगा रही हो । इसके साथ ही उसकी सांस भी खूब गहरी चलने लगती ।
कालांतर में योया परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी से भेंट करने हेतु भारत आने लगीं । उन्होंने योया को बताया कि भारत से बाहर अन्य देशों में उच्च आध्यात्मिक ज्ञान, माध्यम के रूप में ही प्राप्त हो सकता है । वहां आस्था को वृद्धिंगत करने की दृष्टि से वह महत्त्वपूर्ण है । उन्होंने आगे बताया कि भारत में अनेक सर्वोच्च स्तर के संत हैं । वे महाज्ञानी हैं तथा उन्हेi विश्वमन एवं बुद्धि से ज्ञान प्राप्त होता है । भारत में किसी माध्यम का कोई महत्त्व नहीं है क्योंकि यहां संतों से ज्ञान तथा मार्गदर्शन प्राप्त हो जाता है । उन्होंने आगे समझाया कि एक बार आध्यात्मिक उन्नति कर लेने के पश्चात किसी शक्ति के माध्यम से भूत अथवा भविष्य काल के काल्पनिक दर्शन प्राप्त करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती । किसी शक्ति के माध्यम से दृश्य देखने की रूचि में न्यूनता आने का यह कारण है कि प्रारंभिक अवस्था में शक्ति किसी को आस्था प्रदान कर सकती है ; किंतु ईश्वर प्राप्ति में कोई सहायता नहीं कर सकती ।
प.पू. डॉ. आठवलेजी ने योया को आगे समझाया कि वे अपनी सूक्ष्मज्ञान की क्षमता का उपयोग आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगत होने के लिए कर सकती हैं । ईश्वर द्वारा दिए गए गुणों से एवं अपनी क्षमता का उपयोग अध्यात्म प्रसार के लिए करनेपर, व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगत सकता है । संदर्भ हेतु देखें लेख – साधना के छ: मूल सिद्धांत । योया की सूक्ष्मदृष्टि की क्षमता को विकसित करने के लिए, प.पू. डॉ. आठवलेजी ने मार्गदर्शन करते हुए बताया कि माध्यम के रूप में कार्य न कर उन्हें साधना पर ध्यान देना चाहिए । उनके मार्गदर्शन के अनुसार योया ने एक वर्ष से अधिक समय तक चित्रांकन नहीं किया तथा केवल साधना पर ध्यान केंद्रित किया । किसी के माध्यम के रूप में कार्य करना, आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से योया के लिए हानिकारक था । यह बात जानना आवश्यक है कि सूक्ष्म-विश्व अनिष्ट शक्तियों से भरा है तथा वे ऐसे किसी भी व्यक्त को अपने नियंत्रण में लेना चाहती हैं जिसकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय जागृत होती है । माध्यम को धोखा देने के लिए अनिष्ट शक्तियां अनेक बार इष्ट (सकारात्मक) शक्तियां होने का नाटक कर माध्यम को तथा उससे परामर्श करनेवालों को अपने नियंत्रण में ले लेतीं हैं । माध्यम की छठवीं ज्ञानेंद्रिय जागृत न होने के कारण उनको इसका पता ही नहींचल पाता कि वास्तव में वे किसके साथ कार्यरत है एवं इस कारण वे आविष्ट हो जाते हैं । यदि अति उच्चस्तर की अनिष्ट शक्ति इष्ट शक्ति होने का नाटक कर रही होती है, तब अनुभवी माध्यम भी उसकी वास्तविकता समझने में असमर्थ होते हैं । इसीलिए SSRF का परामर्श है कि साधक अपनी जन्मजात सूक्ष्म-आयाम को समझने की क्षमता का उपयोग, संतों के मार्गदर्शन में ही करें क्योंकि संत ही आध्यात्मिक दृष्टिकोण से शक्तियों को पहचान सकते हैं ।
संदर्भ हेतु कृपया देखें लेख – एक आध्यात्मिक उपचारक की भांति छठवीं ज्ञानेंद्रिय का उपयोग कैसे करें ।
योया ने सुसुत्रता से प.पू. डॉ. आठवलेजी द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन का उल्लेख इन शब्दों में किया ‘‘जैसे अन्य साधक अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते हैं, मैं उन्हें अपने सूक्ष्मज्ञान पर आधारित चित्रों के माध्यम से व्यक्त करती हूं । मैं सूक्ष्मज्ञान के आधार पर रेखांकित किए हुए चित्रों के माध्यम से चर्चा करती हूं । ये मेरे वार्ता का माध्यम है । परमात्मा के चरणों में सत्सेवा अर्पण करने की कला भी साधना का एक मार्ग है ।
संदर्भ लेख : अनुसंशित साधना देखें ।
५. SSRF में सूक्ष्म निरीक्षण के लिए योया द्वारा उपयोग की गई प्रक्रिया
- विषयों का चयन: SSRF में योया को जिन विषयों के सूक्ष्म निरीक्षण करने होते हैं उनकी एक सूची दी जाती है । विषयों में प्रचुर विविधता होती है । अगले अनुभाग में हमने प्रगत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से उनके द्वारा बनाए गए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों के कुछ उदाहरण दर्शाए हैं । कुछ प्रकरणों में उन्हें आध्यात्मिक प्रयोगों का निरीक्षण कर उसमें कार्यरत शक्तियों का सूक्ष्म चित्रण करने के लिए कहा जाता है । उदाहरणार्थ एक साधक में प्रकट अनिष्ट शक्ति पर किसी रंग का क्या प्रभाव पडता है इसे समझना । ऐसे प्रकरण में योया रंगों से प्रक्षेपित संबंधित सूक्ष्म तरंगों के आंतरिक परिवर्तन का तथा प्रकट हुई अनिष्ट शक्ति के बल पर इसका क्या प्रभाव पडता है, उसका चित्रण करतीं । इस प्रकार योया ने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं संबंधी तथा वे किस प्रकार आध्यात्मिक स्तर पर हमें प्रभावित करते हैं, इसका सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रण किया है । इन विभिन्न पहलुओं में सोने की विभिन्न स्थितियों/मुद्राओं का आध्यात्मिक लाभ अथवा हानि, दूरदर्शन देखना, काले वस्त्र पहनना, अपने हाथों से भोजन करना तथा विभिन्न प्रकार के संगीत सुनना, इत्यादि सम्मिलित हैं ।
- सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रांकन करने की पूर्व तैयारी: योया अपनी सत्सेवा का प्रारंभ इस प्रार्थना के साथ करतीं हैं कि जो भी आवश्यक हो वह उन्हें स्पष्टता से दिखे तथा ईश्वर उनसे सत्सेवा करवा लें । वह सुरक्षा हेतु भी प्रार्थना करतीं हैं कि कोई भी अनिष्ट शक्ति उनके आध्यात्मिक आयाम में देख पाने की क्षमता को प्रभावित न कर पाए । योया कहतीं हैं कि प्रार्थना के अतिरिक्त अन्य कोई पूर्व तैयारी नहीं करनी होती । मुझे जागृत अवस्था में ही सूक्ष्म से दृश्य दिखाई देते हैं तथा मुझे किसी प्रकार के ध्यान धारणादि स्थिति में जाने की आवश्यकता नहीं होती । यह कहने से मेरा तात्पर्य है कि मुझे जो वस्तु देखने की प्रेरणा होती है मैं उसे देख लेती हूं ।
- चित्रांकन की पद्धति: जब योया चित्रांकन प्रारंभ करतीं हैं तब वे गतिपूर्वक चित्रांकन करती हैं । यह देखा गया है कठिन चित्र आरंभ से अंततक बनाने में भी उन्हें अधिकतम आधा घंटा लगता है । इतना ही नहीं चित्रांकन करने में वे यदा-कदा ही मिटाने के लिए रबर का उपयोग करती हैं । योया कहती हैं कि ‘‘जिन्हें सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त है ऐसे कुछ कलाकार साधकों को सूक्ष्म दर्शन अति अल्पकाल के लिए होता है तथा प्राय: उसे वे पश्चात चित्रांकित नहीं कर पाते किंतु योया को एक बार देख कर याद रख लेने की क्षमता प्राप्त है जिसे फोटोग्राफिक मेमोरी भी कहते हैं । इसके कारण सूक्ष्म दर्शन के उपरांत भी वे चित्रांकन कर सकती हैं । प.पू. डॉ. आठवलेजी की अनुकंपा से एवं स्वयं की साधना के फलस्वरूप योया आध्यात्मिक जगत में कुछ गिन-चुने सूक्ष्म दृष्टि संपन्न कलाकारों के समान देख सकती हैं । योया सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र के साथ ही उस घटना का प्रत्यक्ष आध्यात्मिक विवरण तथा घटना क्रम भी उपलब्ध कराती हैं जिसमें उन्हें विविध सूक्ष्म तरंगें दिखाई देती हैं । वे सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में आध्यात्मिक घटनाओं का क्रम भी चिन्हित करती हैं जैसे १ अ, १ आ, १ इ आदि, जिससे पाठक को यह विदित होता है कि दृश्य का क्रम क्या है ।
- परीक्षण: अनेक सूक्ष्म कलाकारों का भाग्य ऐसा नहीं होता कि उनके चित्रों का परीक्षण किया जा सके । योया भाग्यशाली हैं क्योंकि उनके चित्रों का परीक्षण स्वयं प.पू. डॉ. आठवलेजी अपनी दिव्य दृष्टि से करते हैं । कुछ प्रकरणों में चित्रों की अचूकता में वृद्धि के लिए वे कुछ परामर्श भी उन्हें देते हैं । अंतिमतः वे सभी चित्रों को १ से १० मानक पैमाने के आधार पर अंक देते हैं । ऐसे सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र जिनका मानांकन ४/१० अर्थात ४० प्रतिशत से कम होता है उन्हें कभी भी प्रकाशित नहीं किया जाता क्योंकि उस चित्र की अचूकता पर्याप्त नहीं होती है ।
- सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र को अंतिम करना: चित्र का परीक्षण होने के उपरांत उस सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र को उस साधक के पास भेजा जाता है जो संगणक पर एडोब फोटोशाप जैसे सॉफ्टवेयर से उसका अंकीकरण करता है । SSRF संकेत स्थल पर प्रकाशित सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र सामान्यतया इस चरण से तैयार किए जाते हैं ।
नीचे दर्शाया गया क्लिप भयानक अलौकिक मुठभेड (हॉरिफाईंग सुपरनेचुरल एनकाउंटर्स) वीडियो का एक अंश है । इसमें यह दर्शाया गया है कि किस प्रकार योया सूक्ष्म-आयाम को देखकर कागज पर उतारती हैं ।
६. योया के सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों के उदाहरण
यहां पर प्रदर्शित स्लाईड शो योया द्वारा आध्यात्मिक आयाम में ग्रहण किए गए सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर चित्रांकित चित्रों का समग्र दर्शन कराता है जो उन्हें उनकी सत्सेवा के रूप में दिखाई दिए ।
७. योया की सूक्ष्म-ज्ञान सक्षमता में समय के साथ परिवर्तन
- सूक्ष्म-ग्रहण बोध क्षमता में विकास : जब योया ने प.पू. डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में सूक्ष्म कलाकार के रूप में अपनी साधना का प्रारंभ किया तब उनके चित्रों के लिए उन्हें ४० प्रतिशत अंक मिलते । किंतु जब उन्होंने अपनी साधना प.पू. डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में अत्यंत दृढता के साथ लगभग १० वर्षों तक आरंभ रखी तो उनकी सूक्ष्म प्रचिती की अचूकता में धीरे-धीरे वृद्धि होती गई । सन् २०१० में योया के प्राय: सभी सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों में ८० प्रतिशत अचूकता आई । प्रारंभ में योया अपने चित्रों का विवरण बहुत संक्षिप्त देतीं । किंतु समय के साथ इसमें परिवर्तन आया और वे अपने सूक्ष्म दृश्यों के साथ उनका विस्तृत वर्णन करने लगीं । हाल ही में उन्हें प.पू. डॉ. आठवलेजी द्वारा प्रयुक्त कंघी दी गई और उसमें से प्रक्षेपित होनेवाले सूक्ष्म स्पंदनों का चित्रांकन करने के लिए कहा गया । कंघी के विषय में पिछली कोई जानकारी ज्ञात न होने के उपरांत भी उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह कंघी किसी अति उन्नत व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाई गई है । उन्होंने यह भी बताया कि इस कंघी को अति उन्नत व्यक्ति ने मात्र एक बार ही उपयोग में लाया है, जो सत्य था ।
- वाणी का विकास : योया के पति सीरियक वाले संस्मरण में कहते हैं कि जब वे ९० के दशक में योया से पहली बार मिले तब उन्हें उनकी बातें समझने में कठिनाई होती थी, किंतु सन् १९९९ में प.पू. डॉ. आठवलेजी ने योया को यह संदेश भेजा कि यदि वह साधना करती रहेंगी तो उनकी वाणी तथा सुनने की समस्या में ३० प्रतिशत सुधार होगा । योया वर्षों तक कर्मठतापूर्वक साधना करती रहीं । प्रत्येक वर्ष उनके पति एवं मित्रों ने देखा कि उनकी वाणी में लक्षणीय विकास हुआ है । आज योया अंग्रेज़ी, सर्बियन तथा अच्छे प्रमाण में फ्रेंच भाषा भी बोल लेतीं हैं । यह किसी मूक-श्रवण बाधित व्यक्ति की अनन्य उपलब्धि है ।
- व्यक्तित्त्व में परिवर्तन : श्री सीरियक वाले, योया के साथ उनकी पूर्ण आध्यात्मिक यात्रा के सहयात्री हैं। वे कहते हैं कि उनके गुणों में निखार आया है एवं उनके स्वभाव दोष न्यून हुए । उन्हें योया के अहं में निश्चित न्यूनता का अनुभव होता है एवं इसके साथ ही उनमें भाव की अत्यधिक जागृति हुई है ।
८. संतत्व की प्राप्ति
श्रीमती योया वाले को १३ जनवरी २०१३ में संत घोषित किया गया । वे तीसरी साधक हैं जिन्हें SSRF के मार्गदर्शन में संतत्त्व की प्राप्ति हुई है । उनमें दूसरों के प्रति प्रेम, तीव्र आध्यात्मिक उत्कंठा, न्यून अहं एवं निरंतर नव-नवीन सीखने की ललक जैसे सद्गुण हैं । पूजनीय योया वाले संतत्त्व के सोपान पर ३२ वर्ष की तरुण आयु में ही पहुंच गईं । समाज के उत्थान हेतु उनकी साधना निरंतर चल रही है ।