टिप्पणी : इस लेख को भली प्रकार से समझने हेतु कृपया पहले हमारा लेख अनिष्ट शक्ति द्वारा प्रभावित तथा आविष्ट होने की परिभाषा पढें ।
१. पुरुषों की तुलना में अनिष्ट शक्तियां महिलाओँ को अधिक आविष्ट क्यों करती हैं – प्रस्तावना
जब कोई अनिष्ट शक्ति अथवा कोई अन्य प्रकार की नकारात्मक शक्ति व्यक्ति की चेतना के साथ मिलकर उसके मन (भावनाएं अथवा विचार) एवं बुद्धि (निर्णय लेने की क्षमता) पर नियंत्रण कर लेती हैं, तब उसे भूतावेश कहते हैं । परिणामस्वरूप, वे व्यक्ति की गतिविधियों को भी नियंत्रित करती हैं ।
पूर्व के लेखों में हमने समझाया है कि, वर्तमान काल में, विश्व की ३० प्रतिशत जनसंख्या भूतों अथवा अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट है । इसमें भी पुरुषों की तुलना में, महिलाएं ही अधिक आविष्ट हैं । आध्यात्मिक शोध द्वारा हमने इसके कारण का अध्ययन किया ।
२. पुरुषों की तुलना में अनिष्ट शक्तियों द्वारा महिलाओँ को अधिक आविष्ट किए जाने के संदर्भ में सूक्ष्म-ज्ञान
निम्न सारणी अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट स्त्रियों एवं पुरुषों का अनुपात दर्शाती है I
स्त्री | पुरुष | |
---|---|---|
लिंग के आधार पर अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति की ओर आकर्षित होती हैं (%) | ७०% | ३०% |
नीचे हमने मुख्य कारण का विवरण दिया है I
२.१ शारीरिक कारण
स्त्रियों के शरीर में हारमोंस प्रायः परिवर्तित होते रहते हैं और इसलिए उनमें अधिक संवेदनशीलता निर्मित होती है I शरीर की यह संवेदनशीलता कष्टदायक शक्तियों को आकर्षित करती है ।
तुलनात्मक रूप से, पुरुषों के शरीर में समय के अनुसार हारमोंस में अल्प परिवर्तन होता हैI । परिणामस्वरूप वे अल्प संवेदनशील होते हैं एवं उनके शरीर की ओर कष्टदायक शक्तियों के आकर्षित होने की संभावना अल्प होती है ।
२.२ मनोवैज्ञानिक कारण
आविष्ट होने के मनोवैज्ञानिक कारण
स्त्री | पुरुष | |
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स्वभाव दोष |
१. महिलाएं अधिक भावुक प्रवृति की होती है, इस कारण अनिष्ट शक्तियां सरलता से उनकी ओर आकर्षित हो जाती हैं । भावनात्मक होना दुर्बल मन का सूचक है एवं अहं का पहलू है । २. स्वभाव दोष जैसे चिंता करना, आत्मग्लानि अनुभव करना एवं स्वयं को दोष देना, अपेक्षाएं करना इत्यादि स्त्रियों में प्रमुख है । |
१. पुरुष अल्प भावुक होते है, इस कारण अनिष्ट शक्तियां उनकी ओर अल्प मात्र में आकर्षित होती हैं । २. स्त्रियों की तुलना में, पुरुषों में स्वभाव दोष अल्प मात्र में होते हैं । |
अहं |
१. जब स्त्री में अपने बच्चों एवं अपने पति के प्रति सेवा की प्रवृति होती है , तो उसका अहं अल्प होता है I तथापि जब वह भावुक हो, तो उसका अहं बढ जाता है । २. दिखने में आकर्षक स्त्री अपने शरीर पर बहुत ध्यान देती है, परिणामस्वरूप उसमें देहभान अधिक रहता है । ऐसी स्त्रियों में अनिष्ट शक्तियों का अनुपात अधिक होता है जो अन्यों को उनपर मोहित (मोहिनी शक्ति) करता है एवं अनिष्ट शक्तियां उनकी ओर आकर्षित होती हैं । । |
१. वे पुरुष अहंकारी होते हैं जो यह सोचते हैं कि वे स्वयं की एवं अपने परिवार की रक्षा कर रहे हैं,। कई बार ऐसे पुरुषों का मन भी दुर्बल हो जाता है; यद्यपि यह दुर्बलता स्त्रियों की तुलना में अल्प होती है । २. पुरुषों में देह भान अल्प होता है इसलिए उनपर अनिष्ट शक्तियों का कोई प्रभाव नहीं होता । |
२.३ आध्यात्मिक कारण
स्त्रियों का का प्रारब्ध प्रायः अधिक होता है । किसी के क्रियमाण कर्म अथवा संचित( पूर्व जन्म के कर्म एवं लेन देन के हिसाब ) अधिक होता है, तब व्यक्ति महिला के रूप में जन्म लेता है ।
तुलनात्मक रूप से पुरुषों का प्रारब्ध अल्प होता है । इसका कारण यह है कि, क्रियमाण कर्म अथवा पूर्व जन्म के कर्म तथा इस जन्म में लेन देन के परिणामस्वरूप निर्मित संचित (लेन देन का हिसाब) पुरुषों में स्त्रियों की तुलना में अल्प होते हैं ।
३. लिंग के अनुसार प्रकट हुए अनिष्ट शक्तियों के सूचक
लिंग के अनुसार प्रकट होनेवाली अनिष्ट शक्तियों के लक्षण
स्त्री | पुरुष |
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१. नृत्य, कला से संबंधित अभिव्यक्तियां एवं शारीरिक गतिविधियां करना | १. आपस में लडने के विचार I |
२. अन्यों को मोहित करनेवाली अनिष्ट शक्ति द्वारा (मोहिनी-शक्ति), कामुक विचार आना एवं ऐसे विचारअन्यों के मन में भी डालना I | २. कामुक विचार आना I |
३. आकर्षक दिखने के विषय में मन में विचार डालना और इससे देह भान बढना I | ३. सबसे अधिक बलवान बनने के विषय में विचार डालना एवं देह भान बढना I |
४. भावना बढना एवं बुद्धि पर आक्रमण होना I* | ४. बुद्धिमान होने के विषय में अहं बढना I |
* अनिष्ट शक्तियां सर्वप्रथम मन को निर्बल करने के लिए भावुकता बढाती हैं । स्त्री की भावनात्मकता पर बुद्धि नियंत्रण न कर पाए इसलिए अनिष्ट शक्तियां बुद्धि को भी वश में कर लेती हैं । |
४. भूतावेश का आध्यात्मिक उन्नति पर प्रभाव
पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में भावुकता एवं भोगने योग्य प्रारब्ध, अधिक होने के कारण, उनमें से कुछ ही संत पद को प्राप्त करती हैं । उन्हें संत पद प्राप्त करने के लिए तीव्र साधना करनी पडती है । अल्प मात्रा में स्त्रियों द्वारा संत पद प्राप्त करने के इन आध्यात्मिक कारणों के साथ-साथ शारीरिक कारण भी सम्मिलित हैं । मासिक धर्म के समय, स्त्री में रजोगुण बढता है एवं सत्वगुण घट जाता है । इन सबके उपरांत भी, संत पद को प्राप्त करने की अवधि व्यक्ति के अनुसार बदलती है । कुछ घटक जैसे आध्यात्मिक स्तर, पूर्व की साधना, कष्ट, प्रारब्ध इत्यादि सभी उन्नति की गति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इस हेतु लगन से प्रयत्न करने पर स्त्री, पुरुष की तुलना में शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति कर सकती हैं ।
५. संक्षिप्त में – भूतावेश से रक्षण के लिए उपाय के रूप में साधना
आविष्ट होने के कष्ट से स्वयं की रक्षा एवं मुक्ति हेतु, हम निम्न पहलुओं को व्यवहार में ला सकते हैं :
१. साधना करना
२. आध्यात्मिक उपचार की पद्धतियों को करना
३. जो उच्च आध्यात्मिक स्तर पर हैं, उनसे सुझाव एवं मार्गदर्शन लेना
४. स्वभाव दोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलन हेतु नियमित प्रयत्न करना ।