संतत्व के संदर्भ में कुछ भ्रांतियां निम्नलिखित हैं :
१. एक अच्छा अथवा धार्मिक व्यक्ति अथवा जो चमत्कार करता है, वही संत है
एक संत केवल अपने आध्यात्मिक स्तर से जाना जाता है । व्यक्ति के मार्ग के अनुसार संतत्व प्राप्ति का आध्यात्मिक स्तर भिन्न हो सकता है । विविध कारणों से लोग चमत्कार कर पाने में सक्षम होते हैं । सबसे सामान्य कारण है, पिछले जन्मों की साधना । यद्यपि आध्यात्मिक शक्तियों के अनियंत्रित प्रदर्शन से व्यक्ति की आध्यात्मिक रूप से अधोगति होती है ।
२. संत बनने के लिए व्यक्ति का देह त्याग करना आवश्यक है
संत बनने के लिए व्यक्ति की मृत्यु हाेनी आवश्यक नहीं है । कोई व्यक्ति अध्यात्म के अधिकारी पुरुष जो गुरु (अध्यात्म के शिक्षक, जो ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के ऊपर हैं) के स्तर तक पहुंचे हुए हों, उनके मार्गदर्शन में योग्य साधनाद्वारा एक ही जन्म में ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर तक पहुंच सकता है ।
३. संतत्व कुछ चयनित व्यक्तियों तक सीमित है
संतत्व अर्थात ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना, यह आध्यात्मिक स्थिति केवल कुछ लोगों के लिए सीमित नहीं है, ना ही यह आवश्यक है कि कोई संतत्व की आध्यात्मिक स्थिति को लेकर ही जन्मे । पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति संतत्व प्राप्ति की निष्ठापूर्ण इच्छा रखे तो नियमित रूप से अगले अगले स्तर की साधना कर, उसके माध्यम से वह व्यक्ति संत बन सकता है । गुरु के मार्गदर्शन में हम सभी उस आत्मा से जुड सकते हैं, जो हमारा वास्तविक स्वरूप है ।
४. संत किसी निश्चित पंथ के ही हो सकते हैं
एक संत का दृष्टिकोण सार्वभौम होता है तथा वे किसी विशेष पंथ अथवा संप्रदाय के नहीं हो सकते । इसके साथ ही, एक संत को किसी विशेष पंथ का होना आवश्यक नहीं है । एक संत किसी विशेष पंथ में जन्म ले सकते हैं तथा साधना के द्वारा वे संतत्व प्राप्त कर सकते हैं । इस स्थिति में वे उस पंथ से परे चले जाते हैं, वे प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर (आत्मा) को देख सकते हैं तथा जितने लोग हैं ईश्वर के पास जाने के मार्ग भी उतने हैं ।