जब मैं बारह वर्ष की थी तबसे मुझे तंबाकू (tobacco)खाने का व्यसन था । अब मैं ७३ वर्ष की हूं । मैं तंबाकू की लगभग १० ग्राम की पुडिया एक से दो दिनों में खा लेती थी । तंबाकू के बिना मैं पांच मिनट भी नहीं रह पाती थी । मैं कितना भी प्रयास करती, इसका व्यसन मुझे छोडता ही नहीं था । कई चिकित्सकों ने मुझे मुख कैंसर के होने के भय से यह लत छोडने का परामर्श दिया था, लेकिन मैं कहती, यदि मुझे मुख का कैंसर हो भी जाए, तो भी मैं इसे नहीं छोड सकती ।
स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF)के मार्गदर्शन के अनुसार मैंने वर्ष १९९७ से नामसाधना आरंभ की । जिसमें मैंने अपने कुलदेवता तथा विशेष सुरक्षात्मक नामजप श्री गुरुदेव दत्त आरंभ किया; किंतु मेरा व्यसन चलता ही रहा । वर्ष १९९८ में साधना स्वरूप निःशुल्क सत्सेवा करने हेतु मैं SSRF के आश्रम में रहने आई । मैं रसोईघर में सेवा करने लगी । वर्ष १९९८ में एक त्यौहार के दिन, मैं तैयारी तथा पूजा के भाव में ऐसी मग्न रही कि पूरा दिन निकल गया । रात्रि में मुझे चिडचिडाहट हुई कि कुछ तो गलत हुआ है । जब मैंने उस दिन की पूरी घटना का विचार किया, तब मुझे भान हुआ कि पूरे दिन मैंने तंबाकू का सेवन नहीं किया और ना ही मेरे मन में तंबाकू के संदर्भ में विचार आए । उसी क्षण मैंने उसे पुनः कभी स्पर्श भी न करने का निश्चय किया । तबसे मेरा ५४ वर्ष का व्यसन दूर हो गया । यह व्यसन छोडने पर मुझे कोई अतिरिक्त लक्षण (withdrawal effects) अनुभव नहीं हुआ । SSRF के परामर्श अनुसार साधना करने के कारण बिना किसी विशेष प्रयास के मैं यह व्यसन छोड पाई ।
– अन्नपूर्णा अंभोरे