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इस लेख को अच्छे से समझने के लिए हमारा ये सुझाव है कि आप निम्नलिखित लेखों से परिचित हो जाएं l
  1. सत्व, रज, तम – ब्रह्मांड के तीन मूलभूत सूक्ष्म घटक
  2. सात्विक जीवन पद्धति – प्रस्तावना (दैनिक जीवन में अध्यात्म)

वेशभूषा कैसे करें – प्रस्तावना

how-to-dress-spiritualityआज मैं क्या पहनूं ?

हममें से कुछ लोग इस प्रश्न पर अधिक विचार करते हैं, तो कुछ कपाट में से जो पहले हाथ में आता है, वही वस्त्र परिधान करते हैं ।

दिन में परिधान करने के वस्त्र सामान्यतः इस आधार पर चुने जाते हैं कि आज हमें कहां जाना है तथा आज का मौसम कैसा है । यह निर्णय अंतिम होने तक अन्य अनेक घटक अपना प्रभाव डालते हैं, उदा. समाज में प्रचलित शैली, वस्त्र हम पर कैसे जंचते हैं, हमारी मानिसक स्थिति, उपलब्ध समय इत्यादि ।

हमें प्रतिदिन इस प्रक्रिया से जाना पडता है, परंतु वस्त्र क्रय (खरीदते) अथवा परिधान करते समय वस्त्रों से हम पर होने वाले आध्यात्मिक प्रभावों की हम अनदेखी करते हैं । परिधान किए जाने वाले वस्त्रों के हम सभी पर आध्यात्मिक परिणाम होते हैं, इस तथ्य से लगभग हम सभी (वस्त्रों के निर्माताओं सहित) अनभिज्ञ होते हैं । पहनने हेतु चयन किए गए वस्त्र हमारे लिए किस प्रकार लाभप्रद अथवा हानिप्रद होते हैं, इस विषय में आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें प्राप्त ज्ञान हम आपके सामने इस लेख द्वारा प्रस्तुत करेंगे ।

वेशभूषा (वस्त्र) संबंधी आध्यात्मिक शोध

स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) द्वारा किया वस्त्र तथा वेशभूषा संबंधी आध्यात्मिक शोध प्रगत छठी ज्ञानेंद्रिय की सहायता से किया गया है । अनेक वर्षों की साधना के कारण जो साधक प्रगत छठी ज्ञानेंद्रिय का उपयोग कर सकते हैं उनके द्वारा और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि .पू. डॉ. आठवले जी के मार्गदर्शन में यह शोध किया जाता है । विविध प्रकार के वस्त्रों से उनके रंग, आकार तथा पदार्थ के अनुसार प्रक्षेपित होने वाले आध्यात्मिक स्पंदन ग्रहण कर छठी ज्ञानेंद्रिय द्वारा प्राप्त निरीक्षण वे लिख सकते हैं । कुछ साधकों को सूक्ष्म संबंधी ज्ञान होने से वे विविध प्रकार के आध्यात्मिक स्पंदन सूक्ष्म दृष्टि से देख पाते हैं । सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्रांकन बनाकर वे हमें हमारी सामान्य ग्रहण क्षमता के परे के आध्यात्मिक विश्व की झलक दिखाते हैं । इस भाग में हम सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित ऐसे कुछ चित्र देखेंगे जो हमें वस्त्रों को धारण करने के परिणामों के विषय में अंर्तदृष्टि प्रदान करेंगे ।

आध्यात्मिक दृष्टि से वस्त्रों का उद्देश्य

हम सभी स्थूल (शारीरिक) तथा मानसिक दृष्टिकोण से वस्त्रों का उद्देश्य जानते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से वस्त्रों के दो उद्देश्य होते हैं ।

अनिष्ट शक्तियां : SSRF में हम ‘अनिष्ट शक्तियां (बुरी शक्तियां)’ शब्द का प्रयोग सामूहिक रूप से सूक्ष्म विश्व में विद्यमान उन सभी घटकों के लिए करते हैं, जो मानवजाति को हानि पहुंचाना चाहते हैं । इनमें भूत, प्रेत, पिशाच, चुडैल, मांत्रिक आदि का समावेश है । मांत्रिक सर्वाधिक शक्तिमान अनिष्ट शक्ति है । यदि सामान्य भूत की शक्ति को १ - १० इकाई के बीच मानें, तो मांत्रिक की शक्ति अरब से लगभग अनगिनत तक हो सकती है ।

. सात्त्विकता ग्रहण और प्रक्षेपित करना: हम जिस प्रकार की वेशभूषा करते हैं, उसके अनुरूप वस्त्र अच्छे और दैवी स्पंदन अपने आसपास के वातावरण से ग्रहण करने का कार्य करते हैं । ऐसा करते समय वे अच्छे स्पंदन और शुद्धता (पवित्रता) हमारे अंतर्मन में संचारित करते हैं ।

. अनिष्ट शक्तियों द्वारा (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) होने वाले आक्रमणों से रक्षा करनापहने हुए वस्त्र यदि अच्छी शक्ति धारण करने की क्षमता रखते हैं, तो ऐसा करते समय वे अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा करने की क्षमता भी रखते हैं । यदि वस्त्र तामसिक होंगे, तो वे आध्यात्मिक (सूक्ष्म) विश्व से अनिष्ट शक्तियों तथा भूतों को आकृष्ट करते हैं ।

ध्यान रखने योग्य कुछ सूत्र : आध्यात्मिक विश्व के भूत तथा अनिष्ट शक्तियां वातावरण में बढते रजतम के स्पंदनों का लाभ उठाती हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अनुचित परिधान रजतम प्रधान होने के कारण वे अनिष्ट शक्तियों को आकृष्ट करते हैं ।

४. हमारी वेशभूषा और उसके आध्यात्मिक परिणाम

प्रत्येक वस्तु के (पदार्थ के) अपने विशिष्ट तथा अद्वितीय आध्यात्मिक स्पंदन होते हैं । वस्त्रों से निकलने वाले स्पंदन; वस्त्र का प्रकार, आकार, रंग, कलाकृति, वस्त्र की सिलाई इत्यादि घटकों पर निर्भर करते हैं । ये घटक जितने सात्त्विक होंगे, उतनी ही अंतिम उत्पाद में अर्थात परिधान में (वस्त्र में)  सात्त्विकता अधिक होती है । वस्त्रों की शुद्धता में वृद्धि कैसे करें और आध्यात्मिक अज्ञान, जडत्व और अनिष्ट शक्तियों के कष्ट उत्पन्न करनेवाला तम घटक न्यून कैसे करें, इस विषय में यह लेख है ।

४.१ मूल वस्त्र का (धागे का) प्रकार

रेशम, रूई जैसे प्राकृतिक धागों में वातावरण के ईश्वरीय स्पंदन आकृष्ट, अवशोषित और संग्रहित करने की क्षमता अधिकतम होती है । दूसरी ओर नायलोन, टेरिलीन, रेयॉन और पॉलीस्टर जैसे कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों में ईश्वरीय स्पंदन आकृष्ट करने की क्षमता अत्यल्प होती है । ये वस्त्र वातावरण के रज-तम स्पंदनों को आकृष्ट करते हैं जिससे उन्हें परिधान करनेवाले लोगों पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण किए जाने की संभावना बढ जाती है ।

४.२. सिलाई की मात्रा

Holiday 2010मूल वस्त्र को काटने से तथा सिलाई के समय उसमें अनगिनत सूक्ष्म छिद्र बनाने से वातावरण की अनिष्ट शक्तियां आकृष्ट होती हैं । इसलिए न्यूनतम सिलाई किए हुए वस्त्र परिधान करना अच्छा होता है । यही एक कारण है कि भारतीय नारी की पारंपारिक वेशभूषा साडी, अर्थात ९ गज का रेशमी वस्त्र, अत्यधिक सात्त्विक परिधान माना जाता है । इसी कारणवश हिंदुओं द्वारा गांठ से  बांधे जाने वाले वस्त्र (जैसे अनसिले वस्त्र के चौकोर टुकडे, जो कि ४-५ मीटर लंबे होते हैं तथा कमर और पैरों के सर्व ओर लपेटे जाते हैं तथा कटि में गांठ द्वारा बांधे जाते हैं) अर्थात धोती से, बटन लगाकर सिले हुए वस्त्रों की तुलना में अत्यधिक आध्यात्मिक लाभ होता है ।

इसी के साथ, जो वस्त्र ईश्वर का नामजप करते हुए, हाथों द्वारा बनाए जाते हैं, उनमें अच्छे स्पंदन आकृष्ट करने की अधिक क्षमता होती है । सिलाई यंत्र द्वारा वस्त्र में अधिक मात्रा में और गति से छिद्र बनाने से कष्टदायक स्पंदन आकृष्ट होते हैं ।

४.३ वस्त्र का रंग

how-to-dress-coloursश्वेत, पीले और नीले रंग में आध्यात्मिक दृष्टि से अच्छे स्पंदन आकृष्ट करने की क्षमता होती है । यह इसलिए कि ये रंग सात्त्विक होते हैं । दूसरी ओर काला एक ऐसा रंग है, जो अत्यधिक कष्टदायक स्पंदन आकृष्ट करता है । श्वेत और काले रंग के वस्त्र एक साथ पहनने से, ये रंग एक दूसरे से आध्यात्मिक स्पंदनों के स्तर पर संघर्ष करते हैं और फलस्वरूप बुरे स्पंदनों को आकृष्ट करते हैं ।

संदर्भ हेतु : रंग और अग्निसंस्कार के समय काले वस्त्र क्यों नहीं पहनने चाहिए – यह लेख पढें । गाढे रंग भी तम प्रधान स्पंदनों को आकृष्ट करते हैं । रंग एक-दूसरे के पूरक होने चाहिए ।

४.४ वस्त्र पर छपी कलाकृतियों की रचना

Close up of a mens shirtsवेशभूषा द्वारा प्रक्षेपित अच्छे अथवा बुरे स्पंदन; वस्त्रों पर बनाई कलाकृतियों की रचना, उसका आकार अथवा उसकी घनता से प्रभावित होते हैं ।

  • पत्ते, फूल, बिंदु, बेलें जैसी सात्त्विक कलाकृतियां उपयुक्त होती हैं
  • सात्त्विक कलाकृतियों में साधारणतः नुकीले अग्र नहीं होते
  • कलाकृतियां अधिक सघन नहीं होनी चाहिए
  • खोपडी जैसी हिंसक तथा भयानक कलाकृतियां बुरे स्पंदन आकृष्ट करती हैं
  • कुर्ते की खडी रेखाएं आडी (भूमि से समांतर) रेखाओं से अच्छी होती हैं
  • मूलतः रंगीन धागों से बने, कलाकृति रहित सात्त्विक रंग के वस्त्र साधारणतः अच्छे स्पंदनों को आकृष्ट करते हैं इस लेख के आरंभ में दिए चित्र का संदर्भ लें ।

४.५  वस्त्रों की अवस्था (स्थिति)

वस्त्र जिस स्थिति में हैं, उसकी भी हमें आध्यात्मिक स्तर पर प्रभावित करने में भूमिका होती है ।

अनधुले वस्त्र अनिष्ट शक्तियों को आकृष्ट करते हैं । उदा. एक जीन्स बनाने वाला एक विख्यात प्रतिष्ठान अपने ग्राहकों को अपनी जीन्स न धोने का परामर्श देता है । आध्यात्मिक दृष्टि से धूल तथा पसीना जम जाने से रज-तम स्पंदन भी अधिक हो जाते हैं । दूसरी ओर, धुले वस्त्र किसी व्यक्ति के स्पंदनों से और धूल से आवेशित नहीं होते, इसलिए उनकी सात्त्विकता आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है ।

युवा पीढी में फटे वस्त्र पहनने का आधुनिक चलन है । परंतु फटे वस्त्र बुरे स्पंदन आकृष्ट करते हैं ।

जहां पुराने अथवा नए वस्त्रों की बात आती है, तब नए वस्त्र दैवी शक्तियों को आकृष्ट करने में सहायक होते हैं । उदा. धुले हुए नए रेशम के वस्त्र ईश्वरीय स्पंदन आकृष्ट करने में पुराने रेशम के वस्त्र की तुलना में अधिक सक्षम होते हैं ।

४.६  वस्त्रों की लंबाई

dancing pairकुछ दशकों से वस्त्रों की लंबाई कम होती जा रही है और इसे फैशन कहा जाता है । आध्यात्मिक दृष्टि से इससे हानि होती है । वस्त्र अनिष्ट शक्तियों से बचने के लिए एक संरक्षण कवच का कार्य करते हैं । तंग वस्त्रों से विपरीत लिंग के व्यक्ति में न केवल वासनाएं जागृत होती हैं, अपितु आसपास की अनिष्ट शक्तियां और भूत भी आकृष्ट होते हैं । जो स्त्रियां देह प्रदर्शन करनेवाले वस्त्र पहनती हैं उनकी ओर अनिष्ट शक्तियां आकृष्ट होती हैं और अपनी वासनाएं पूरी करने के लिए उन्हें सूक्ष्म स्तर पर कष्ट पहुंचाती हैं । SSRF में हमें ऐसे अनेक प्रसंग ज्ञात हुए हैं, जहां वासनाएं पूरी करने के लिए सूक्ष्म-जीवों ने कुछ स्त्रियों का उनके जाने-अनजाने में अनुचित प्रकार से उपयोग किया ।

४.७  वेशभूषा की शैली

how-to-dress-tight-clothesवेशभूषा की शैली के अनेक अंग हैं, जिसमें एक है वस्त्रों का कसा हुआ होना अथवा न होना । वेशभूषा देह के लिए सुखदायक होनी चाहिए, न कि कसी हुई । यदि वस्त्र बहुत कसे हुए होंगे, तो वस्त्र तथा त्वचा में होने वाले घर्षण से सूक्ष्म-वायु की ध्वनि तरंगें निर्मित होकर उससे वातावरण की कष्टदायक तरंगें व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित होती हैं । ढीले वस्त्रों के कारण वस्त्र और त्वचा में सूक्ष्म-रिक्ति निर्मित होकर वातावरण से ईश्वरीय चैतन्य आकृष्ट होकर संग्रहित होता है ।

वस्त्र परिधान करने की पद्धति भी एक महत्त्वपूर्ण अंग है । यह जिस प्रकार की होती है उसपर शक्ति का प्रवाहित अथवा बाधित होना निर्भर होता है । आइए, साडी का उदाहरण देखते हैं । आध्यात्मिक शोध द्वारा ज्ञात हुआ कि साडी की रचना में आगे की ओर चुन्नटें क्यों होती हैं । यह रचना, चुन्नटों में से शक्ति के प्रवाह को भूमि की ओर प्रवाहित करती हैं और पाताल (नरक) से प्रक्षेपित होनेवाली अनिष्ट शक्तियों से स्त्री की रक्षा करती हैं ।

वस्त्रों की शैलियों में समय के साथ सदैव उतार-चढाव होते रहते हैं, क्योंकि फैशन डिजाईनर नवीन कालकृति की ताक में रहते हैं । तथापि हमारे आध्यात्मिक शोध द्वारा ज्ञात हुआ है कि शतकों से चली आ रही नौ गज की तथा छः गज की साडी आध्यात्मिक दृष्टि से अनुकूल वेशभूषाएं थीं और आज भी हैं ।

देखें लेख : वेशभूषा कैसे करें ? साडी और स्कर्ट

४.८ वस्त्रों का आदान-प्रदान – एक आध्यात्मिक बंधन

मित्रों के बीच वस्त्र, जूते, टोपी आदि का आदान-प्रदान करने से कुछ समय के लिए किसी की कपाटिका भर जाएगी, परंतु इस लाभ से आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाली हानि अधिक है ।

आज के युग में समाज के अधिकांश लोगों को अनिष्ट शक्तियों के कष्ट हैं । परिणामस्वरूप उनके वस्त्रों में इन अनिष्ट शक्तियों के स्पंदन कष्टदायक शक्ति के रूप में संग्रहित होते हैं । अनिष्ट शक्ति से पीडित व्यक्ति के वस्त्र पहनना आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत हानिकारक है । अनिष्ट शक्तियों से कौन प्रभावित अथवा पीडित है, यह समझने के लिए आवश्यक छठी ज्ञानेंद्रिय की क्षमता हमारे पास न होने के कारण, अच्छा यही  है कि हम किसी और के वस्त्र न लें ।

कितने लोग अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित अथवा पीडित हैं – इस लेख का संदर्भ लें ।

दूसरे द्वारा प्रयुक्त (पुराने) वस्त्र क्रय करते समय भी हमें यह अनुभव हो  सकता है ।

पुराने वस्त्र क्रय करना अनिवार्य हो, तो उन्हें परिधान करने से पहले उनकी आध्यात्मिक शुद्धि करना अत्यंत आवश्यक है ।

वस्त्रों से सूक्ष्म-गंध हटाना – इस लेख का संदर्भ लें ।

संक्षेप में – वेशभूषा कैसे करें

इस लेख में दी गई जानकारी से ज्ञात होता है कि वस्त्र मुख्यतः किस प्रकार से आध्यात्मिक स्तर पर हमें प्रभावित करते हैं । इन मार्गदर्शक तत्त्वों के अनुसार आचरण से हम सात्विक जीवन पद्धति के समीप आने लगते हैं । प्रत्यक्ष में इनमें से कुछ तत्त्व हम तुरंत ध्यानपूर्वक आचरण में ला सकते हैं । उदा. काले रंग के वस्त्र पहनना टालें । जितनी शीघ्रता से हम वेशभूषा में ये परिवर्तन लाएंगे, उतना ही हमारे लिए लाभप्रद होगा ।

दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि उपर्युक्त कुछ सूत्रों को आचरण में लाना संभव न हो । यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि स्वयं में सत्त्व गुण की वृद्धि करने के लिए जो भी प्रयत्न हम कर सकते हैं, उससे हमारी कुल शुद्धता में वृद्धि होगी और वस्त्र खरीदते समय हम इस पर ध्यान दे सकते हैं । साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने से हमारी छठी ज्ञानेंद्रिय की क्षमता विकसित होने में सहायता होती है । उपर्युक्त जानकारी को स्पंदनों के स्तर पर अनुभव करना हमारे लिए संभव हो जाता है । एक बार सूक्ष्म-स्पंदन अनुभव करने की क्षमता प्राप्त हो जाने पर हममें दैनिक जीवन में उचित निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है और हमें एक सात्त्विक और परिपूर्ण जीवन पद्धति अपनाने में सहायता होती है ।