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१. प्रस्तावना

हस्तमिलाप, एक बहुत छोटी विधि है, जिसमें दो व्यक्ति एक दूसरे का दाहिना हाथ पकडकर प्राय: उनको ऊपर नीचे हिलाते हैं । सहस्त्रों वर्षों से, भेंट होने पर अभिनंदन देते समय, कृतज्ञता व्यक्त करते समय अथवा स्वीकार पत्र (deal) पर हस्ताक्षर करने के उपरांत हाथ मिलाने को एक स्वीकार्य संकेत माना गया है । खेल अथवा प्रतियोगिताओं में इसे खिलाडी वृत्ति माना जाता है । इसका उपयोग सामान्यतया विश्‍वास, भरोसा एवं समानता प्रदर्शित करने के लिए होता है, फिर भी इस विधि पर आध्यात्मिक शोध करनेपर एक अलग ही कथा उजागर हुई और हाथ मिलाने के परिणाम प्रकाश में आए ।

२. हस्तमिलाप के आध्यात्मिक प्ररिप्रेक्ष्य की पृष्ठभूमि समझानेवाले  लेख

इस लेख को समझने के लिए कृपया देखें – अभिवादन करने का आध्यात्मिक प्ररिप्रेक्ष्य

इसमें उल्लेख किया गया है कि कैसे स्पर्श के माध्यम से अभिवादन करते समय सूक्ष्म शक्ति स्थानांतरित हो सकती है । इसमें इस तथ्य का भी उल्लेख है कि किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक स्थिति, वह अनिष्ट शक्ति से आविष्ट अथवा प्रभावित होनेपर कैसे दूसरे व्यक्ति का अभिवादन करने की क्रिया को प्रभावित कर सकती है ।

हमारा सुझाव है कि लेख सात्विक जीवनशैली के लिए मार्गदर्शन एवं सत्त्व, रज, तम – ब्रह्मांड के तीन सूक्ष्म-स्तरीय मूलभूत घटक इन लेखों का भी अध्ययन करें ।

३. हस्तमिलाप  का आध्यात्मिक  परिप्रेक्ष्य

३.१ हस्तमिलाप एवं नकारात्मक शक्ति का स्थानांतरण

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हाथ मिलाने की कृति से दूसरे व्यक्ति में विद्यमान अनिष्ट शक्ति का हम पर आक्रमण होने की आशंका अधिक होती है । इस कृति से दूसरे व्यक्ति में विद्यमान अनिष्ट शक्ति को हमारे अंदर प्रवेश करने का मार्ग मिलता है । वास्तव में बिना स्पर्श किए अभिवादन करने की अपेक्षा ऐसे स्पर्शयुक्त अभिवादन से हम दूसरे व्यक्ति में स्थित अनिष्ट शक्ति के आक्रमण के लिए दोगुने प्रवण हो जाते हैं । नीचे दिया सूक्ष्मज्ञान पर आधारित रेखाचित्र सूक्ष्मज्ञान प्राप्तकर्त्ता चित्रकार ने बनाया है, उसमें दो औसत व्यक्ति जो नकारात्मक अनिष्ट शक्ति से पीडित हैं, जब वे हाथ मिलाकर हिलातेहैं, तब अनिष्ट शक्तियां कैसे हस्तक्षेप करती हैं यह दर्शाया गया है ।

कृपया देखें – विश्व की जनसंख्या के कितने प्रतिशत लोग अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित हैं ?

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जब दो व्यक्तियों के हाथ एक दूसरे के हाथ में होते हैं, तब उनके द्वारा प्रक्षेपित रज-तम स्पंदन उनकी हथेली में स्थित रिक्ति में एकत्रित हो जाते हैं । इससे उस क्षेत्र के सूक्ष्म घर्षण में वृद्धि होती है एवं वहां उत्पन्न हुर्इ रज-तमात्मक शक्ति हथेली के माध्यम से उनके शरीर में संक्रमित हो जाती है । शक्ति के आदान-प्रदान के समय वह वातावरण में भी प्रवाहित हो जाती है जिससे आसपास के वातावरण में भी उसका तमोगुण फैल जाता है । ऐसा अभिवादन जिसमें स्पर्श किया जाता है, उसमें प्राय:सूक्ष्म मोहिनी शक्ति के एक वलय की निर्मिति हो जाती है । मोहिनी शक्ति एक विशेष प्रकार की नकारात्मक शक्ति होती है जो आनंददायी स्पंदनों के वेष में होती है किंतु उससे जुडे व्यक्तियों के लिए हानिकारक होती है । अत्यल्प अतींद्रीय ज्ञान रखनेवाले एक औसत व्यक्ति को इस काली शक्ति के अप्रत्यक्ष विनिमय का बोध नहीं होता । व्यक्ति में तमोगुण की वृद्धि के फलस्वरूप अन्य अनिष्ट प्रभाव, जैसे बुद्धि पर आवरण, कष्टदायक विचार, सिर भारी होना, जी मिचलाना आदि कष्ट हो सकते हैं ।

कोई ऐसा विचार कर सकता है किसी व्यक्ति से हाथ मिलाना क्या इतना अनिष्ट हो सकता है ? हमारा शोध यह कहता है कि बिना उच्च श्रेणी की साधना के आविष्ट व्यक्ति के सान्निध्य में रहना, स्वयं के लिए हानिकारक हो सकता है । यह ठीक वैसा ही है जैसा किसी छूत के रोग से ग्रस्त व्यक्ति के साथ रहना; किंतु आवेशन का अनिष्ट प्रभाव हमारे जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है तथा वह और भी बढता जाता है । कालांतर में जब व्यक्ति अधिकाधिक काली शक्ति के आवरण से आच्छादित रहते हैं, तब काली शक्ति के विनिमय को अनुभव करने की उनकी क्षमता कम होती चली जातीहै ।

DDFAO exampleSSRF ने बायोफीडबैक यंत्रों का उपयोगकर ऐसे प्रयोग किए हैं जिनमें काली शक्ति से बाधित व्यक्ति तथा साधक अथवा संत को स्पर्श करने के प्रभावों को लेखीकृत किया है । इन प्रयोंगों की सामग्री हम अपने वाचकों के लिए शीघ्र ही संचार के आध्यात्मिक आयाम शीर्षक के अंतर्गत प्रस्तुत करेंगे ।                                                                                                                                                                                                                                                                                                        .

 .२ हस्तमिलाप एवं अहंकार में वृद्धि

हस्तमिलाप का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण बतानेवाले अनेक लेख प्रकाशित होते हैं जिनमें किसी व्यक्ति के साथ विश्‍वास एवं दृढताभरा हस्तमिलाप कैसे करें से लेकर कितनी बार हाथ हिलाएंतक की जानकारी दी जाती है ।

आध्यात्मिक दृष्टि से हस्तमिलाप सामान्यत: व्यक्ति के अहंकार को वृद्धिंगत करता है, क्योंकि अधिकांश हस्तमिलाप व्यक्ति को उसकी पंचज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि से अलग करने के स्थान पर और अधिक जोडते हैं । पंचज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि के साथ निरंतर संबंध हस्तमिलाप करने के फलस्वरूप तमोगुण की वृद्धि होने के कारण, उसकी आध्यात्मिक प्रगति में अवरोध उत्पन्न करता हैं ।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अभिवादन करने के लिए किसी व्यक्ति से हस्तमिलाप करने का कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं हैं ।

४. हस्तमिलाप के अनिष्ट प्रभावों के संबंध में हम क्या कर सकते हैं ?

  • हस्तमिलाप कर अभिवादन करने को, आदर्श न मानना ही उचित है । भारतीय परंपरा के अनुसार नमस्कार करना आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वोत्तम विकल्प है ।
  • मित्रता में अथवा अभिवादन के लिए हस्तमिलाप करना समाज में इतना प्रचलित हो गया है कि यदि कोई आपकी ओर हाथ बढाता है, तो उसे स्वीकार न करना कठिन हो जाता है । एक औसत व्यक्ति तो यह समझ भी नहीं सकता कि जिससे हाथ मिलाकर  अभिवादन किया जा रहा है वह व्यक्ति आविष्ट है अथवा क्या वे दोनों ही आविष्ट/प्रभावित हैं । कुछ ऐसी कृतियां हैं जिससे आध्यात्मिक स्तरपर हस्तमिलाप के अनिष्ट प्रभाव कम किए जा सकते हैं ।
    • नियमित रूप से ईश्वर का नामजप करने पर वे हमें चारों ओर से सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं, जिससे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के लिए प्रवण होने की संभावना कम होती है ।

    • हाथ मिलाने से पहले प्रार्थना करना उपयुक्त है । प्रार्थना कुछ ऐसी हो सकती है, हे प्रभु हम दोनों को अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से बचने के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करें तथा हस्तमिलाप से हमारी साधना पर कोई परिणाम न हो ।
  • सभी रीति-रिवाज (हस्तमिलाप जैसी सहज कृति से पश्‍चिमी सभ्यताओं में मनाए जानेवाले हैलोविन से मृत शरीर के अंतिम संस्कारतक) जो समाज में सूक्ष्म तमोगुण बढाते हैं वे मूलतः उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रारंभ किए जाते हैं । कुछ लोगों के मस्तिष्क में विचारों को रोपित करने से एक परंपरा जन्म लेती है, कुछ लोग उसका समथर्न करते हैं तथा अन्य उसको अपनाते हैं । बडी मात्रा में तमोगुण से भारित परंपराओं का निर्माण करने से  अनिष्ट शक्तियों के लिए मानव जातिपर अंकुश लगाना सहज रहता है । कालांतर में ये रीति रिवाज स्वीकार्य परंपराओं का स्थान ले लेते हैं और हमसे एकरूप हो जाते हैं । यह विडंबना ही है कि ऐसा होने से सात्त्विक परंपराओं की सामान्यतया उपेक्षा कर दी जाती है या उन्हें तुच्छ समझा जाने लगता है । अपनी साधना में वृद्धि करने पर और अपनी सूक्ष्म क्षमताओं का विकास करने पर हम विभिन्न रीति – रिवाजों में निहित सूक्ष्म तमोगुण समझने के सक्षम हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप उनसे दूरी बनाए रखने में हम अधिक निपुणता प्राप्त कर सकते हैं ।