१. केश खुले रखने से स्त्रियों पर होनेवाले आध्यात्मिक प्रभाव – प्रस्तावना
शैंपू के विज्ञापनों तथा पूरे विश्व में आधुनिक वेशभूषा एवं ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों की पत्रिकाओं में लंबे समय से स्त्रियों की मोहकता को प्रदर्शित करने के लिए लहराते केशों का चित्रीकरण किया गया है । इन व्यवसाय वृद्धि के संदेशों के फलस्वरूप ऐसा सामान्य बोध हो गया है कि यदि कोई महिला मोहक दिखना चाहती है तो उसे अपने केश खुले छोडने चाहिए । आजकल, विषेशतया संध्या काल में घूमने के लिए बाहर जाते समय, सर्वत्र स्त्रियों की यह आकांक्षा होती है कि वे सुंदरतम दिखें और इसलिए वे अपने केश खुले छोडती हैं ।
SSRF द्वारा केश रचना पर किए गए शोध से विभिन्न केश रचनाओं का क्या आध्यात्मिक प्रभाव होता है; यह प्रकाश में आया है । इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि पुरुष एवं स्त्रियों द्वारा केश खुले रखने के आध्यात्मिक प्रभाव क्या हैं ।
आपको इस लेख का योग्य आंकलन हो, इसके लिए हमारा परामर्श है कि निम्नलिखित लेख पढें :
१. सत्त्व, रज, तम — ब्रह्मांड के तीन सूक्ष्म मूल तत्त्व
२. सात्त्विक जीवन शैली की संकल्पना का प्रस्तावनात्मक विवेचन (दैनिक जीवन में आध्यात्मिकता)
३. केश की देखभाल एवं केश रचना का आध्यात्मिक प्रभाव – प्रस्तावना
२. केश खुले छोडने का आध्यात्मिक प्रभाव
इस अनुच्छेद में हम आपको एक चित्र की जानकारी देगे, जिसे सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर कु. प्रियंका लोटलीकर ने रेखांकित किया है, जो अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय से युक्त हैं ईश्वर की असीम अनुकंपा एवं अनेक वर्षों की नियमित आध्यात्मिक साधना के फलस्वरूप कु. प्रियंका आध्यात्मिक आयाम में ठीक उसी प्रकार देख सकती हैं, जैसे हम भौतिक जग को देख सकते हैं । अपने सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र द्वारा कु. प्रियंका उनके द्वारा सूक्ष्म से प्राप्त जानकारी का हमें लाभ करवाती हैं ।
सूक्ष्मज्ञान के आधार पर रेखांकित उपरोक्त चित्र दर्शाता है कि किस प्रकार जब एक महिला अपने केश खुले छोडती है, तब उस पर आध्यात्मिक स्तर पर अवांछित प्रभाव कैसे पडता है । प्रभाव की कारणमीमांसा निम्नांकित अनुच्छेदों में की है :
१. रजोगुण में वृद्धि होने से मन और बुद्धि विचलित होना
सूक्ष्म रजोगुण का संबंध क्रिया एवं आवेश से है और यही सूक्ष्म गुण गति प्रदान करता है । आध्यात्मिक स्तर से सामान्यतया महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक रजप्रधान होती हैं एवं इसके प्रकटीकरण के कारण ही वे अधिक भावुक होतीं हैं ।
जब कोई महिला अपने केश खुले छोडती है, तब उसके केशों में विद्यमान रजोगुण में और भी अधिक वृद्धि होती है । रजोगुण में वृद्धि से व्यक्ति का मन अधिक विचलित होता है एवं उसके चंचल होने की वृत्ति में वृद्धि होती है । मन की इस चंचलता का अवांछित लाभ लेकर अनिष्ट शक्तियां स्त्रियों को प्रभावित करती हैं तथा उसे ऐसा बोलने एवं करने के लिए बाध्य करती हैं जो वह सामान्यतया नहीं करती ।
इसके साथ ही जब कोई स्त्री अपने केश खुले छोडती है तब वह अपनी पंचज्ञानेंद्रियों एवं अपने शरीर के प्रति अधिक जागरूक हो जाती हैं । अनिष्ट शक्तियां इस रजोगुण को अतिशीघ्र तमोगुण में रूपांतरित कर देतीं हैं जिससे उनमें निराशा और चिंता की भावनाओं तथा कामुक विचारों में वृद्धि के कारण स्वैराचार बढता है ।
२. केश के खुले अग्रभागों द्वारा अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण
आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमने देखा कि केश मूलत: ही शरीर के अन्य भागों से अधिक रज-तम प्रधान होते हैं एवं इसके फलस्वरूप स्वाभाविकरूप से वे अनिष्ट शक्तियों के लक्ष्य पर आ जाते हैं जो स्वयं भी मूलत: रज-तम प्रधान होतीं हैं । वास्तव में केश का लक्ष्य होना सहज इसलिए होता है क्योंकि केश के छोर में सूक्ष्म छेद होने से अनिष्ट शक्तियां उनके भीतर प्रवेश कर सकती हैं । यद्यपि यह छेद अत्यंत सूक्ष्म होता है, किंतु प्रत्येक बार महिला के केश के काटने से वह खुल जाता है ।
शरीर के सभी रिक्त स्थान सूक्ष्म-आक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील हैं उदा; भोजन के साथ अनिष्ट शक्तियां मुख के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकती हैं ।
सूक्ष्मज्ञान द्वारा निर्मित चित्र में जैसे दर्शाया है, जब केश खुले होते हैं तब उनके छोर में स्थित खुले केशमुख से ये अनिष्ट शक्तियां प्रवेश कर मस्तक में केशमूलों तक जातीं हैं । फलस्वरूप कष्टदायक शक्ति केश के सभी छिद्रों में एकत्रित हो जाती है, जिससे महिला की बुद्धि पर विपरीत प्रभाव पडता है । इस प्रकार कोई महिला जब केश खुले छोडती है तब उसके शरीर में काली शक्ति का संचय अधिक मात्रा में होता है, इसलिए हमारा अनुरोध है कि महिलाएं अपने केश न काटें ।
२.१ छोटे केशवाली स्त्रियों पर प्रभाव
छोटे केशवाली स्त्रियों को अधिक हानि होती है, क्योंकि उनके केश अधिकतर खुले होते हैं । अनिष्ट शक्तियां निरंतर खुले केश की ओर आकर्षित होती रहतीं हैं । महिला के केश छोटे होने पर वे शीघ्र कष्टदायक स्पंदनों से आवेशित होने की आशंका अधिक होती है । अनिष्ट प्रभाव न्यून करने के उपाय इस लेख के अंतिम अनुच्छेद में दिए गए हैं ।
२.२. केश खुले रखकर सोना
जब कोई महिला अपने केश खुले रखकर सोती है, केश के छोर अनावृत्त होते हैं । निद्रावस्था में हम अनिष्ट शक्ति के लिए अधिक वेध्य (vulnerable)होते हैं, क्योंकि वे रात्रि काल में वातावरण में रज-तम की प्रचुरता के कारण अधिक कृतिशील होती हैं । विशेषकर यह उन स्त्रियों पर अधिक लागू होता है, जो साधना नहीं करतीं ।
२.३ पुरुष जो छोटे एवं खुले केश रखते हैं वे प्रभावित क्यों नहीं होते ?
आध्यात्मिक स्तर पर सामान्यतया पुरुषों में रज-तम की मात्रा स्त्रियों की तुलना में अल्प होने के कारण वे भावनाप्रधान और संवेदनशील नहीं होते । उनमें अनिष्टता से संघर्ष करने की क्षमता भी अधिक होती है । इसके फलस्वरूप उनके केश काटे जाने पर भी वे अनिष्ट शक्तियों द्वारा अल्प आक्रमण प्रवण होते हैं । पुरुषों में छोटे केश रखने पर भी सत्त्वगुण ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए पुरुषों के लिए केश छोटे रखना उचित होता है । पुरुषों द्वारा केश बढाने से उनके शरीर में सूक्ष्म-उष्णता की वृद्धि होती है और शरीर का आंतरिक संतुलन बिगड जाता है ।
३. आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से केश रचना के कुछ व्यावहारिक सुझाव
- SSRF द्वारा किए गए शोध से यह सिद्ध हुआ है कि जितना संभव हो स्त्रियों को उनके केश खुले नहीं छोडने चाहिए । यह योग्य होगा कि वे जूडे अथवा गूंथनेवाली चोटी केश रचना अपनाएं ।
- स्त्रियों के लिए यही उचित है कि वह सोते समय भी अपने केश बांधकर रखें ।
- केश के अग्रभागों में विभूति लगाकर रखने से सूक्ष्म आक्रमणों से बचा जा सकता है ।
- केश धोने के उपरांत अथवा सिर से स्नान करने के उपरांत संस्तुति की जाती है कि जब केश सूख रहे हों तब, महिलाएं केश के अग्रभागों को बांधकर रखें अथवा उन्हें एक तौलिए से बांध लें ।
- अनिष्ट शक्तियों से रक्षणार्थ प्रार्थना करने से एवं साधना करने की तीव्र इच्छा शक्ति जागृत करने से सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्मित होने में सहायता होती है ।
- अहं एवं स्वभावदोष न्यून करनेवाली नियमित आध्यात्मिक साधना के लिए कोर्इ विकल्प नहीं है ।
- ऐसा देखा गया है कि महिलाएं जब अपने केश खुले छोड देती हैं तब वे पंचज्ञानेंद्रियों एवं स्वशरीर के संबंध में अधिक संवेदनशील हो जाती हैं । शरीर के प्रति जागृत संवेदनशीलता, जीवन के उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति में गतिरोध उत्पन्न करती है । आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमें अपने आपको पंचज्ञानेंद्रिय युक्त शरीर, मन, बुद्धि के परे जाकर आत्मा अथवा परमात्मा के अंश से युक्त समझना चाहिए, अर्थात देहबुद्धि के परे जाकर आत्मबुद्धि वृद्धिंगत करनी चाहिए ।
- नियमित साधना के फलस्वरूप हम सत्त्व एवं तम क्रियाओं में विद्यमान अंतर को समझने लगते हैं । जिसे इसकी प्रचीती होने लगती है, उसे यह बताने की आवश्यकता नहीं होती कि क्या आध्यात्मिक दृष्टि से योग्य है, क्योंकि उसे अंतरमन से ही इसका ज्ञान हो जाता है । हमें नियमित साधना करने एवं सात्त्विक जीवन शैली अपनाने से श्री गुरु की कृपा प्राप्त होती है, जो सूक्ष्म शक्तियों के आक्रमण से हमारा संरक्षण करती है तथा तीव्र गति से स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति करने में सक्षम बनाती है ।