क्या आपने इस विषय पर सोचा है कि क्यों भौतिक जगत हमें कभी निरंतर और कायमस्वरूपी सुख नहीं दे सकता ?
इसका उत्तर यह है कि बाह्य जगत कभी भी स्थिर नहीं है – बाह्य जगत में एक ही बात स्थिर है और वह है -परिवर्तन।
उदाहरणार्थ : ऐसे हो सकता है कि आपको आपका नया काम, जो आपको अभी-अभी मिला हो, बहुत प्यारा लगे, आपको बहुत प्रेरणादायक और उत्साहवर्धक लगे; परंतु कुछ वर्ष बीतने पर जब आपको नित्य वही दिनचर्या दोहरानी पडती है अथवा आपके गुट के सदस्य बदल जाएं तो क्या आपको नए सहयोगियों के साथ रहने में सुख मिलता है ? बाह्य जगत में सर्वदा परिवर्तन होता रहता है,इसलिए उस जगत में स्थायी सुख नहींपा सकते ।
यदि हमें स्थायी सुख चाहिए तो हमें स्वयं में क्या अपरिवर्तनशील और स्थायी है उसे ढूंढना होगा । हममें विद्यमान आत्मा अपरिवर्तनशील और स्थायी है; परंतु यदि हम अस्थायी वस्तुओं में सुख को ढूंढने का प्रयास करेंगे, तो हमें जो सुख मिलेगा वह अस्थायी और अल्पावधि के लिए ही होगा ।