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निम्नलिखित संदर्भलेख पढें – ‘सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रांकन क्या होता है ?’ और ‘ब्रह्मांड के तीन मूलभूत सूक्ष्म घटक – सत्त्व, रज और तम

१. प्रस्तावना (विषयप्रवेश)

कई लोगों के लिए जगाने के तुरंत पश्चात बिछौने में ही पहली चाय अथवा कॉफी पीना, एक सुखद अनुभव होता है, जिसकी उन्हें प्रतीक्षा होती है । कुछ लोग इसके बिना रह नहीं सकते । अपने साथी को बिछौने में ही नाश्ता खिलाना उन्हें रोमांचित करनेवाला एक अद्भुत अनुभव प्रतीत होता है । ऐसा होते हुए भी हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे प्रत्येक कर्म में अच्छे अथवा बुरे स्पंदन आकर्षित करने की क्षमता होती है । इस छोटे-से कृत्य पर आध्यात्मिक शोध किया गया, तब इस संस्कार के विषय में कुछ भिन्न जानकारी प्राप्त हुई ।

२. निद्रावस्था में मुखविवर पर होनेवाले परिणाम

प्रगाढ निद्रावस्था में शारीरिक गतिविधियां अत्यंत मंद हो जाती हैं और परिणामस्वरूप सूक्ष्म तमोगुण वृद्धिंगत होता है । साथ ही आध्यात्मिक साधना का स्तर भी घट जाता है और आध्यात्मिक दृष्टि से हम दुर्बल हो जाते हैं । दिन के किसी अन्य समय की तुलना में रात तमप्रधान होती है और अनिष्ट शक्तियां भी अधिक मात्रा में कार्यरत रहती हैं । परिणामस्वरूप निद्रावस्था में हम पर अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) द्वारा आक्रमण होने की आशंका अधिक रहती है ।

मुखविवर आपतत्त्व से संबंधित होने के कारण वह तमोगुणी स्पंदनों से पूर्णतः ग्रस्त होने की आशंका रहती है । आपतत्त्व में नकारात्मक तमोगुणी स्पंदन संग्रहित करने की क्षमता अधिक होती है । परिणामस्वरूप पूरी रात की नींद के उपरांत मुखविवर में कष्टप्रद तमोगुणी स्पंदन अधिक मात्रा में संग्रहित होते हैं । साथ ही दुर्गंध भी होती है ।

३. दांत मांजने से पूर्व ही, बिछौने में चाय पीने के आध्यात्मिक दुष्परिणाम

सवेरे उठने पर मुखविवर में कष्टप्रद स्पंदन अधिक मात्रा में होते हैं, इसलिए कुछ भी पदार्थ निगलने से उसके साथ तमोगुणी स्पंदन भी निगले जाते हैं । सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित निम्नांकित चित्रांकन में चाय पीते समय निर्माण होनेवाले सूक्ष्म नकारात्मक स्पंदन दर्शाए हैं । चाय स्वयं तमप्रधान होने से ही वृद्धिंगत कष्टप्रद स्पंदनों में और भी वृद्धि होती है । कष्टप्रद तमप्रधान स्पंदनों में वृद्धि होने से अनिष्ट शक्तियों के (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) आक्रमणों की आशंका भी बढती है ।

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित यह चित्र कु. प्रियांका लोटलीकर ने उसकी अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय द्वारा चित्रांकित किया है सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र में विद्यमान विविध पंचतत्त्वों के विवरण के लिए कृपया निम्नांकित सारणी पढें ।

१. चाय के तमप्रधान होने से कष्टप्रद शक्ति का प्रवाह उसकी ओर आकर्षित होना
१ अ. कष्टप्रद शक्ति की तरंगें वायुमंडल में फैल जाना
१ आ. कष्टप्रद शक्ति की तरंगें वायुमंडल में फैल जाना
२. मायावी शक्ति का वलय निर्मित होना और उसका सक्रिय होकर घूमते रहना
३. कष्टप्रद शक्ति का प्रवाह व्यक्ति की ओर आकर्षित होना
३ अ. सक्रिय स्थिति में घूमते रहनेवाले कष्टप्रद शक्ति का वलय बुद्धि में निर्मित होना
४. मुखविवर में कष्टप्रद शक्ति का वलय निर्मित होना
४ अ. कष्टप्रद शक्ति का प्रवाह शरीर में प्रविष्ट होना
४ आ. कष्टप्रद शक्ति का वलय निर्मित होता है । यह कार्यरत स्थिति में घूमता रहता है और कष्टप्रद शक्ति के केंद्रवर्ती (समकेंद्री) वर्तुलाकार वलय शरीर में प्रक्षेपित करता है ।
४ इ. कष्टप्रद शक्ति के कार्यरत कण शरीर और वायुमंडल में फैलना
४ र्इ. कष्टप्रद शक्ति की तरंगें शरीर में फैलना
५. शरीर के सर्व ओर काली शक्ति का मोटा आवरण निर्मित होना

अंतरजाल (इंटरनेट) पर स्वास्थ्य संगठनों और दंत चिकित्सकों में इस विषय में विवाद दिखाई देता है कि नाश्ते के पूर्व दांत मांजे अथवा नाश्ते के उपरांत । परंतु यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो दांत मांजने और मुखप्रक्षालन करने से मुखविवर में रातभर में संगृहीत हुए तमप्रधान स्पंदनों की मात्रा न्यून होती है । इसीलिए सवेरे दांत मांजने के उपरांत ही कुछ खाने अथवा पीने का अनुरोध किया जाता है ।