क्या अग्निहोत्र परमाणु विकिरण के प्रभाव को रोक सकता है ?
स्पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन के द्वारा उन्नत छठी इन्द्रिय के माध्यम से किया गया शोध यह पुष्टि करता है कि अग्निहोत्र नामक एक वैदिक यज्ञ से परमाणु विकिरण का प्रभाव शमित होता है । उच्च आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति द्वारा अग्निहोत्र किए जाने पर, यह और अधिक सुरक्षा प्रदान करता है ।
मेलबॉर्न / न्यू जर्सी (२३ मार्च २०११) – जापान में हाल ही में भयानक प्राकृतिक आपदाएं आईं, जिसके कारण बाद में फुकुशिमा में उसके परमाणु संयंत्रो में विस्फोट हो गए । इस स्थिति ने सम्पूर्ण विश्व के लोगों एवं शासकों की चिन्ताओं में वृद्धि कर दी थी; क्योंकि इस प्रकार के परमाणु विकिरण अन्य राष्ट्रों तक भी पहुंच सकते हैं । परमाणु विकिरण के प्रभाव को रोकने का कदाचित ही कोई समाधान उपलब्ध है । तथापि, अध्यात्म इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकता है ।
अधिकांश लोग इस विषय से अनभिज्ञ हैं कि वे सम्भावित परमाणु आक्रमण से पूर्व ही स्वयं को आध्यात्मिक रूप से तैयार कर सकते हैं । SSRF द्वारा नव प्रकाशित अद्वितीय शोध ने परमाणु आक्रमण होने की स्थिति में अग्निहोत्र के वैदिक अनुष्ठान की प्रभावकारिता को दर्शाया है । अग्निहोत्र एक लघु यज्ञ है जो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मन्त्र के उच्चारण के साथ किया जाता है ।
SSRF की एना प्रोडानोविक कहती हैं, “किसी भी परमाणु विस्फोट से ध्वनि ऊर्जा की ऐसी प्रतिकूल काली तरंगे निर्मित होती हैं, जो मानवीय नेत्र एवं कान द्वारा ज्ञात नहीं होती तथा वातावरण के माध्यम से सम्प्रेषित होती हैं । इस सरल अग्निहोत्र अनुष्ठान से अग्निहोत्र की अग्नि द्वारा उत्पन्न सकारात्मक लाल रंग की तरंगों से उन काली तरंगों का प्रतिकार होता है । फलस्वरूप यह उष्ण विकिरण से होनेवाले विनाश को निष्प्रभावी कर देता है ।
यद्यपि अग्निहोत्र में उष्ण विकिरण और रेडियोधर्मी आक्रमण से रक्षण करने की क्षमता होती है; परन्तु इससे विस्फोट के घेरे के बाहर स्थित किसी व्यक्ति कीसभी प्रकार के विकिरण से रक्षण कदाचित नहीं भी हो पाता । यह सुरक्षा प्रमुख रूप से यज्ञ करने वाले व्यक्ति की आध्यात्मिक शुद्धता तथा आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करती है । उच्च स्तर के चैतन्य से युक्त व्यक्ति अधिक सुरक्षा प्राप्त कर सकेगा ।
नियमित साधना करने व निःस्वार्थ जीवन यापन करने से आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती है ।
इसके अतिरिक्त्त, व्यक्ति का परमाणु बम विस्फोट जैसी किसी अप्रिय घटना होनेके क्षेत्र में होना प्रमुख रूप से उसके प्रारब्ध पर निर्भर करेगा । SSRF के अनुसंधान से ज्ञात होता है कि यदि हम अग्निहोत्र नहीं भी करते हैं, तब भी नियमित साधना करने से हम इस प्रकार के प्रारब्ध से रक्षण प्राप्त कर सकते हैं ।
ऑस्ट्रेलिया में स्थित SSRFअपने विश्वभर के केन्द्र और आध्यात्मिक साधकों के साथ, प्रगत छठी इन्द्रिय के माध्यम से किए गए आध्यात्मिक शोध प्रकाशित करती है । अतः, यह आध्यात्मिक आयाम के उन पहलुओं का अध्ययन करने में सक्षम है, जिन्हें पारम्परिक शोध विधियों द्वारा प्रायः अनदेखा कर दिया जाता है ।
रेडियोधर्मिता को न्यून करने में अग्निहोत्र की प्रभावशीलता के विषयमें अधिक जानकारी हेतु इस लिंक पर जाएं ।