श्री गणेश (गणपति देवता) के चित्रों को अधिकतम सात्त्विक बनाना
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- श्री गणेश (गणपति देवता) के चित्रों को अधिकतम सात्त्विक बनाना
१. प्रस्तावना
सभी संस्कृतियों में पूजा के लिए धार्मिक कला, धार्मिक चित्रों और प्रतीकों का उपयोग किया जाता है । इस तरह की आध्यात्मिक कलाकृति का उद्देश्य उपासकों में भक्ति जागृत करना, विश्वास में वृद्धि करना और ईश्वरके स्मरण में वृद्धि करना है । सभी सम्प्रदायों के उपासक अपनी आध्यात्मिक सुरक्षा के लिए इन धार्मिक कलाकृतियों को अपने साथ रखते हैं । किन्तु, इन आध्यात्मिक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए कलाकृतियों द्वारा न्यूनतम सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करने की आवश्यकता होगी । विभिन्न कला रूपों (धार्मिक कला सहित) को देखते समय, हम बहुधा/प्रायः उनके सौंदर्य गुण/विशेषता अथवा उनके आकर्षक दिखने से उनकी ओर आकर्षित होते हैं । धार्मिक कलाकृति का मूल्यांकन कदाचित ही कभी इस आधार पर किया गया है कि क्या उस कलाकृति से सकारात्मकता प्रक्षेपित होती है, जो कि वास्तव में मुख्य मानदंड होना चाहिए ।
बहुधा/प्रायः जब हम धार्मिक कलाकृतियां क्रय करने जाते हैं अथवा धार्मिक कलाकृति उपहार में देते समय अथवा किसी परिवार में पीढी दर पीढी आध्यात्मिक स्मृति की वस्तुएं सौपी जाते समय, हम केवल कलाकृति के सौंदर्य मूल्य/विशेषता अथवा उससे सम्बंधित भावनात्मकता/भावना पर ध्यान देते हैं । उससे प्रक्षेपित होने वाली आध्यात्मिक सकारात्मकता/ सात्त्विकता के स्तर का अधिक विचार नहीं किया जाता है ।
दूसरी ओर, क्या आध्यात्मिक अथवा धार्मिक कला से जुडे कलाकार इस बात पर विचार करते हैं कि क्या उनकी कलाकृति आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक/सात्त्विक है ? कला के स्वरूप में आध्यात्मिक शक्ति को प्रस्तुत/प्रकट करने का दायित्व कलाकारों पर है ।
२. भारत में आध्यत्मिक कला
आध्यात्मिक कला के संबंध में, भारत बडी संख्या में ईश्वर में विश्वास करने वाले लोगोंका घर है (हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित भारत की जनगणना २०११ ) और परिणामस्वरूप, धार्मिक कलाकृति जैसे देवताओं (देवता ईश्वर का एक स्वरुप है) के चित्र अधिक/बहुत लोकप्रिय हैं और पूरे देश/राष्ट्र में उपलब्ध/प्राप्त हो सकते हैं । उच्च-स्तर के देवताओं में से एक जिनकी प्रत्येक अनुष्ठान और आध्यात्मिक समारोह से पूर्व सर्वाधिक पूजा की जाती है, वे हैं गणपति देवता । प्रत्येक अनुष्ठान से पूर्व उनके नाम का आह्वान किया जाता है क्योंकि वे ईश्वर का वह स्वरूप हैं जो दसों दिशाओं से सभी आध्यात्मिक विघ्नों/बाधाओं को दूर करते हैं ताकि दैवी शक्तियां आयोजन स्थल पर प्रवेश कर सकें और लोग प्रामाणिक/वास्तविक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकें । गणपति देवता ज्ञान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि वे ईश्वर का वह स्वरुप हैं जो सभी १४ विद्याओं (ज्ञान) के स्वामी हैं ।
गणपति देवता सर्वाधिक लोकप्रिय और पूजनीय देवताओं में से एक हैं, इसलिए कलाकारों ने गणपति देवता के कई स्वरूपों को दर्शाते हुए चित्र बनाए हैं । प्रत्येक कलाकार के पास गणपति देवता का अपना चित्रण है । नीचे दिए गए विभिन्न चित्रों में, हम देख सकते हैं कि कलाकारों द्वारा गणपति देवता के चित्रण में कितनी भिन्नता है । महृषि अध्यात्म विश्वविद्यालय में आध्यात्मिक शोध दल द्वारा किए गए सूक्ष्म-अध्ययन से ज्ञात हुआ कि इनमें से कुछ चित्र नकारात्मक आध्यात्मिक स्पन्दन भी प्रक्षेपित करते हैं ।
यद्यपि ऊपर दिखाए गए कुछ चित्र, कलाकारों द्वारा गणपति देवता को चित्रित करने के वास्तविक/यथार्थ प्रयास हैं, वहीं कई अन्य ऐसे हैं जिन्होंने उनके रूप को विकृत कर दिया है । जब किसी चित्र में ऐसी विकृति होती है, तो इससे देवता का निरादर होता है । स्पंदनों के स्तर पर, एक विकृत चित्र आध्यात्मिक रूप से अपवित्र स्पन्दन प्रक्षेपित करता है । अतः, ऐसी कलाकृति किसी धार्मिक चित्र के आध्यात्मिक उद्देश्य को पूर्ण नहीं करती है, जो कि ब्रह्माण्ड से पूजा स्थल पर आने हेतु गणपति देवता के तत्त्व को आकर्षित करना और आध्यात्मिक सकारात्मकता और सुरक्षा प्रदान करना है । इसके विपरीत, ऐसी कलाकृतियां नकारात्मक स्पन्दन प्रक्षेपित करती हैं । आदर्श रूप से, पूजा के स्थान पर ऐसा चित्र लगाना चाहिए जो देखने वाले में भक्ति जगाएं और अधिकतम मात्रा में देवता तत्व को आकर्षित करें । अतः, ऐसे धार्मिक चित्रों अथवा प्रतीकों की अधिक आवश्यकता है, जिनसे आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक स्पन्दन प्रक्षेपित होते हैं ।
तदनुसार, इस स्पष्ट/वास्तविक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए और सात्विक (आध्यात्मिक रूप से शुद्ध) कलाकृति की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए, आध्यात्मिक शोध दल के कला अनुभाग ने देवताओं के ऐसे चित्र बनाने की प्रक्रिया आरम्भ की जो उच्च मात्रा में आध्यात्मिक रूप से पवित्र स्पन्दन प्रक्षेपित करते हैं ।
३. आध्यात्मिक रूप से विशुद्ध/सात्त्विक कलाकृति बनाने की विधि/प्रक्रिया
आध्यत्मिक रूप से शुद्ध कला का सार तब है जब कोई किसी उच्च देवता का चित्र यथार्थ रूप से बनाने में सक्षम हो, क्योंकि उससे अधिकतम मात्रा में सकारात्मकता प्रक्षेपित होती है । देवता के यथार्थ रूप को एक दृश्य कलाकृति के रूप में लाने में सक्षम होने के लिए वर्षों की निष्ठापूर्ण साधना और उच्चतम स्तर के उन्नत आध्यात्मिक मार्गदर्शक के निरंतर मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना कर रहे साधक-कलाकारों ने वर्ष २००० में देवताओं के आध्यात्मिक रूप से शुद्ध/सात्त्विक चित्र बनाना प्रारंभ किया । इस प्रक्रिया के माध्यम से, यह निर्धारित करने के लिए कि देवता के चित्र से आध्यात्मिक सकारात्मकता उत्सर्जित हो रही हैं अथवा नहीं, साधकों-कलाकारों द्वारा प्रत्येक चरण में कई सूक्ष्म-प्रयोग किए गए । साधक-कलाकारों की साधना और परम पूज्य डॉ. आठवलेजी (सर्वोच्च स्तर के संत) के संकल्प के कारण, देवता के चित्रों को चित्रित करने के प्रत्येक उतरोत्तर प्रयास से अधिकाधिक मात्रा में देवता तत्त्व आकर्षित और उत्सर्जित होना आरम्भ हुआ ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधक-कलाकारों ने हाथ से और उच्च देवताओं के डिजिटल चित्रों के रूप में सटीक/यथार्थ चित्र बनाए हैं और उनसे उच्च मात्रा में आध्यात्मिक सकारात्मकता/सात्विकता उत्सर्जित होती हैं । इसके अतिरिक्त, जिन साधकों ने इन चित्रों को साथ रखा है अथवा उनकी पूजा की है, उन्हें उनसे निकलने वाली सकारात्मकता के कारण कई अनुभूतियां आई हैं और उनसे आध्यात्मिक रूप से लाभ प्राप्त हुआ है ।
साधक-कलाकार श्रीमती जान्हवी शिंदे द्वारा महृषि अध्यात्म विश्वविद्यालय में गणपति देवता का डिजिटल चित्रण किस प्रकार हुआ, इसके संबंध में एक प्रकरण अध्ययन नीचे दिया गया है । यह प्रकरण अध्ययन उन कलाकारों के लिए एक प्रेरणा और शिक्षा के रूप में प्रस्तुत किया गया गया है जो आध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हैं और अपनी कला के माध्यम से ईश्वर को अनुभव करना चाहते हैं ।
४. आध्यातसात्त्विक कलाकृति का एक उदाहरण – गणपति देवता के सात्त्विक डिजिटल/अंकीय चित्र का उद्भव /क्रमिक विकास
२००० से २०१२ के बीच में, साधक-कलाकार श्रीमती जान्हवी शिंदे ने संगणक पर सॉफ्टवेयर का उपयोग करके गणपति देवता का सात्विक डिजिटल/अंकीय चित्र बनाने का कार्य आरम्भ किया । उन्होंने परम पूज्य डॉ. आठवलेजी (उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक) के मार्गदर्शन में इस कार्य/सेवा को अपनी साधना के रूप में प्रारंभ किया । उन्होंने इस कार्य को इसलिए आरम्भ किया क्योंकि गणपति देवता के बाजार/हाट में उपलब्ध सर्वोत्तम चित्रों में भी सात्विकता न्यून थी और वे केवल २-३% देवता तत्त्व को ही आकर्षित और उत्सर्जित कर सकते थे । यह प्रतिशत आध्यात्मिक शोध दल द्वारा छठी इंद्रिय के माध्यम से निष्कर्ष लेने पर प्राप्त किया गया था । आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, यह भी समझ में आया कि कलियुग के वर्तमान युग में, किसी भी कलाकृति की ओर देवता तत्त्व के आकर्षित अथवा प्रक्षेपित होने की अधिकतम मात्रा ३०% अथवा उससे थोडी ही अधिक हो सकती है ।
साधक-कलाकार जान्हवी द्वारा निर्मित प्रथम डिजिटल चित्र गणपति देवता के तत्त्व को ४% आकर्षित करने में सक्षम था, जो बाजार में उपलब्ध चित्रों की तुलना में थोडा अधिक उपयुक्त था । १२ वर्ष की अवधि में, अपनी साधना में निष्ठापूर्वक प्रयासों के कारण, उनकी सूक्ष्म-क्षमता में वृद्धि हुई, और वह अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के मार्गदर्शन में मूल चित्र में और अधिक सुधार करने में सक्षम हुईं । इन वर्षों में, उन्होंने कुल ६ डिजिटल चित्र पूर्ण किए और प्रत्येक उतरोत्तर चित्र के साथ, इसकी यथार्थता/सटीकता में वृद्धि होती गई । गणपति देवता के ६ डिजिटल चित्रों और गणपति देवता के तत्त्व को अवशोषित और प्रक्षेपित करने की उनकी क्षमता को नीचे प्रतिशत (%) में दर्शय गया है ।
कृपया ध्यान दें : इस लेख में, शब्द ‘डिजिटल चित्र’ को ‘चित्र’से भी संबोधित किया गया है ।
कृपया ध्यान दें : आध्यात्मिक शोध दल ने शोध दल के साधकों की उन्नत छठी इंद्रिय के माध्यम से ऊपर दिए गए प्रत्येक चित्र की सटीकता/यथार्थता के स्तर का आकलन किया । इस कार्य/परियोजना ने कला के इतिहास में एक आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त की क्योंकि वर्तमान युग में प्रथम बार, गणपति देवता का कोई चित्र गणपति देवता के तत्त्व को इतनी उच्च मात्रा (२८.५ %) में आकर्षित करने में सक्षम था ।
आध्यात्मिक शोध दल गणपति देवता के उपरोक्त प्रत्येक डिजिटल चित्र की आध्यात्मिक शुद्धता/सात्विकता को प्रभामंडल और सूक्ष्म-ऊर्जा स्कैनरों के साथ मापने हेतु उत्सुक था, ताकि यह देखा जा सके कि इनसे प्राप्त निष्कर्ष छठी इंद्रिय के माध्यम से प्राप्त निष्कर्षों से मेल खाते हैं अथवा नहीं । इसकी जांच दर्शाने वाला एक प्रयोग नीचे दिया गया है ।
५. प्रभामंडल और सूक्ष्म-शक्ति स्कैनरों द्वारा सूक्ष्म-स्पन्दनों का मापन
५.१ प्रस्तावना और पृष्ठभूमि
आध्यात्मिक शोध दल यह पता लगाना चाहता था कि क्या प्रभामंडल और सूक्ष्म-ऊर्जा स्कैनर भी उन ६ डिजिटल चित्रों के बीच सकारात्मकता में अंतर का पता लगा सकते हैं ।
५.२ कार्यपद्धति/कार्यप्रणाली
इस प्रयोग के लिए, पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी (पीआईपी) का उपयोग किया गया । पीआईपी एक ऊर्जा क्षेत्र वीडियो इमेजिंग (दृश्य छायांकन) प्रक्रिया है । इस तकनीक से प्रकाश के उन स्वरूपों को देखा जा सकता हैं जो नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते और वें रंगों के रूप में कंप्यूटर मॉनिटर (संगणक पटल) पर प्रदर्शित होते हैं । वातावरण में सकारात्मक और नकारात्मक स्पंदनों को विशिष्ट रंगों द्वारा दर्शाया जाता है जिन्हें यंत्र में समायोजित/अंशांकित किया गया है । सकारात्मक रंग उन आध्यात्मिक स्पंदनों को दर्शाते हैं जिनमें सात्विकता होती है, जबकि नकारात्मक रंग रज-तम प्रधान स्पंदनों अथवा आध्यात्मिक अशुद्धता को दर्शाते हैं ।
ऊपर दिए गए गणपति देवता के ६ डिजिटल चित्रों में से प्रत्येक के संबंधित पीआईपी चित्र नीचे दिए गए हैं । उनकी तुलना उस वातावरण के मूलभूत पाठ्यांक से की गई है जहां प्रयोग (पीआईपी का उपयोग करके) आयोजित किया गया था । मूलभूत पाठ्यांक एक खाली कक्ष से लिया गया था जहां एक मेज थी तथा जिस पर विभिन्न चित्र एक-एक करके रखे गए थे ।
५.३ प्रमुख अवलोकन
यह देखा जा सकता है कि प्रत्येक पीआईपी चित्र में रंग भिन्न भिन्न हैं, जो सकारात्मक और नकारात्मक सूक्ष्म स्पंदनों के एक भिन्न अनुपात को दर्शाते हैं । यहां गणपति देवता के प्रत्येक पीआईपी चित्र में से सकारात्मक बनाम नकारात्मक रंगों के कुल क्षेत्र को मापा गया और उनकी तुलना की गई । नीचे दिया गया ‘खडा स्तम्भ रेखाचित्र’ प्रत्येक पीआईपी चित्र में देखे गए सकारात्मक और नकारात्मक स्पंदनों के अनुपात को दर्शाता है ।
५.४ विश्लेषण तथा निष्कर्ष
ध्यान देने योग्य बात यह है कि पीआईपी तकनीक द्वारा गणपति देवता के प्रत्येक उत्तरोत्तर चित्र में सूक्ष्म सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि का उचित रूप से पता लगाया गया । इससे सकारात्मकता में १५% से २७% तक की उल्लेखनीय वृद्धि होने का भी पता लगाया जा सका । इसके अतिरिक्त, अंतिम दो डिजिटल चित्रों (यथार्थता २७% और २८.५%) के लिए उच्च मात्रा में सकारात्मक स्पंदनों (रजत/चांदी और पीले हरे रंग द्वारा इंगित) का पता लगाया गया ।
यह प्रकरण अध्ययन किसी देवता की चित्रकारी करने अथवा चित्र बनाते समय अध्यात्म शास्त्र का पालन करने के महत्व और एक उन्नत आध्यात्मिक मार्गदर्शक के महत्व को दर्शाता है । चित्रकारी अथवा चित्र जितना यथार्थ होगा, वह देवता तत्त्व को उतना ही अधिक आकर्षित करता है और परिणामस्वरूप, उस चित्र को देखने वाले व्यक्ति और उस वातावरण को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
देवता के रूप के संबंध में कोई भी अशुद्धि/त्रुटियां चित्र में सात्विकता को तीव्रता से न्यून कर सकती है । यदि रूप को अत्याधिक अनुचित विधी से चित्रित किया गया है, तो यह नकारात्मक स्पन्दन भी प्रक्षेपित कर सकता है जैसा कि खंड २ में दिखाए गए अपमानजनक चित्रों के विषय/प्रकरण में है।
जैसे-जैसे साधक-कलाकार की साधना और प्रेरणा में सुधार होता है, चित्रांकन की परिशुद्धता/यथार्थता में वृद्धि होती जाती है । एक बार जब कलाकृति सात्विक हो जाती है, तो देवता तत्व कलाकृति में आकर्षित होता है और उसमें से प्रक्षेपित भी होता है । यदि कोई कलाकार अपने कौशल को ईश्वर की भक्ति के साथ जोडता है, तो कला से उतने ही अनुपात के अनुसार अधिक सात्विकता प्रक्षेपित होती है ।
उन्नत छठी इंद्रिय की सहायता से किए गए आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, यह ज्ञात हुआ है कि किसी देवता का आध्यात्मिक रूप से शुद्ध चित्र बनाने के लिए आवश्यक ९५% कारक आध्यात्मिक प्रकृति के होते हैं । ८०% कारकों में गुरु का संकल्प और देवता का आशीर्वाद/कृपा समावेषित होता है ।
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, साधकों को महृषि अध्यात्म विश्वविधालय द्वारा निर्मित किये गए देवताओं के चित्रों के संबंध में कई अनुभूतियां हुई हैं । २७% परिशुद्धता/यथार्थता/सटीकता के साथ निर्मित गणपति देवता के चित्र के समक्ष नामजप करते समय एक साधक की एक अनुभूति नीचे दी गई है, जो यह दर्शाता है कि किस प्रकार ऐसे भक्तिपूर्वक/श्रद्धापूर्वक निर्मित किए गए और अत्यधिक यथार्थ/सटीक चित्रों से कोई व्यावहारिक रूप से लाभान्वित हो सकता है ।
मुझे महृषि अध्यात्म विश्वविधालय द्वारा निर्मित गणपति देवता का एक चित्र प्राप्त हुआ । मैंने सुना था कि इन चित्रों से बहुत अधिक मात्रा में सकारात्मकता प्रक्षेपित होती हैं, इसलिए मैं यह देखने के लिए उत्सुक था कि मुझे क्या अनुभव होता है । मैंने चित्र को फ्रेम करवाया और उसके सामने नामजप करने बैठ गया । मैं पिछले कुछ महीनों से नामजप कर रहा था, लेकिन इस बार नामजप करते समय मुझे बहुत भिन्न अनुभव हुआ। मैंने अनुभव किया कि प्रत्येक नामजप के साथ, मुझे हल्केपन और आनंद की एक अविश्वसनीय अनुभूति अनुभव हो रही थी जिसे मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था । जैसे-जैसे मैं अधिक समय तक नामजप करता रहा, यह अनुभूति तीव्र होती गई । मैं बस नामजप करता रहना चाहता था और अधिक अनुभव करना चाहता था । यह अनुभव आज तक मेरे मन में बना हुआ है और इससे मुझे ज्ञात हुआ कि महृषि अध्यात्म विश्वविधालय द्वारा उपलब्ध करवाएं जा रहे देवताओं के चित्रों से हम कितना अधिक लाभ उठा सकते हैं ।
हम उन कलाकारों क, जो अपनी साधना के एक भाग के रूप में देवताओं के चित्र निर्मित करने में रुचि रखते हैं, नियमित साधना आरम्भ करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं । इससे उन्हें देवताओं अथवा धार्मिक प्रतीकों को परिशुद्ध/यथार्थ रूप से चित्रित करने/बनाने हेतु आवश्यक सूक्ष्म-क्षमता विकसित करने में सहायता मिलेगी । यदि अधिक से अधिक कलाकार भक्तिपूर्वक/भावपूर्वक कला को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध/सात्त्विक करने का प्रयास करें तो इससे पूरे समाज में सात्विकता का प्रसार होगा और विश्व का कल्याण होगा ।